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Saturday, March 31, 2012

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया है मेरे आगे

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया है मेरे आगे

September 18, 2006
Lyrics: Mirza Ghalib
Singer: Jagjit Singh
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया है मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे।
होता है निहाँ गर्द में सहरा मेरे होते
घिसता है जबीं ख़ाक पे दरिया मेरे आगे।
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे।
ईमान मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र
काबा मेरे पीछे है कलीसा मेरे आगे।
गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है
रहने दो अभी सागर-ओ-मीना मेरे आगे।

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल = Children’s Playground
शब-ओ-रोज़ = Night and Day
निहाँ = निहान = Hidden, Buried, Latent
जबीं = जबीन = Brow, Forehead
कुफ़्र = Infidelity, Profanity, Impiety
कलीसा = Church
जुम्बिश = Movement, Vibration
सागर = Wine Goblet, Ocean, Wine-Glass, Wine-Cup
मीना = Wine Decanter, Container

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