नेहरू खानदान यानी गयासुद्दीन गाजी का वंश
भारत मे और कोई नेहरू क्यूँ नहीं हुआ ?
नेहरू ने ऐसा क्यूँ कहा “I AM HINDU BY AN ACCIDENT”
कभी फ़िरोज़ H/o इंदिरा गाँधी उर्फ़ मेमुना बेगम का जन्म या मृत्यु दिवस मनाते नहीं देखा है, क्यों?
1. गंगाधर नेहरु |
नेहरू से पहले ….नेहरू कीपीढ़ी इस प्रकार है….
1. गंगाधर नेहरु
2. राज कुमार नेहरु
3. विद्याधर नेहरु
4. मोतीलाल नेहरु
5. जवाहर लाल नेहरु
गंगाधर नेहरु (Nehru) उर्फ़ GAYAS -UD – DIN SHAH जिसे GAZI की उपाधि दी गई थी ….
GAZI जिसका मतलब होता है (KAFIR – KILLER) इस गयासुद्दीन गाजी ने ही मुसलमानों को खबर (मुखबिरी ) दी थी की गुरु गोबिंद सिंह जी नांदेड में आये हुए हैं , इसकी मुखबिरी और पक्की खबर के कारण ही सिखों के दशम गुरु गोबिंद सिंह जी के ऊपर हमला बोला गया, जिसमे उन्हें चोट पहुंची और कुछ दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई थी.और आज नांदेड में सिक्खों का बहुत बड़ा तीर्थ-स्थान बना हुआ है.|
जब गयासुद्दीन को हिन्दू और सिक्ख मिलकरचारों और ढूँढने लगे तो उसने अपना नामबदल लिया और गंगाधर राव बन गया, और उसे इससे पहले मुसलमानों ने पुरस्कार के रूप में अलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में इशरत मंजिल नामक महल/हवेली दिया, जिसका नाम आज आनंद भवन है.| आनंद भवन को आज अलाहाबाद में कांग्रेस उर्फ पोर्नग्रेस का मुख्यालय बनाया हुआ है इशरत मंजिल के बगल से एक नहर गुजरा करती थी, जिसके कारण लोग गंगाधर को नहर के पास वाला, नहर किनारे वाला, नहर वाला, neharua,आदि बोलते थे जो बाद में गंगाधर नेहरु अपना लिखने लगा इस प्रकार से एक नया उपनाम अस्तित्व में आया नेहरु और आज समय ऐसा है की एक दिन अरुण नेहरु को छोड़कर कोई नेहरु नहीं बचा …
अपने आप को कश्मीरी पंडितकह कर रह रहा था गंगाधर क्यूंकि अफगानी था और लोग आसानी से विश्वास कर लेतेथे क्यूंकि कश्मीरी पंडितभी ऐसे ही लगते थे.
अपने आप को पंडित साबित करने के लिए सबने नाम के आगे पंडित लगाना शुरू कर दिया
1. गंगाधर नेहरु
2. राज कुमार नेहरु
3. विद्याधर नेहरु
4. मोतीलाल नेहरु
5. जवाहर लाल नेहरु लिखा ..और यही नाम व्यवहार में लाते गए …
- पंडित जवाहर लाल नेहरु अगर कश्मीर का था तो आज कहाँ गया कश्मीर में वो घर आज तो वो कश्मीरमें कांग्रेस का मुख्यालय होना चाहिए जिस प्रकार आनंदभवन कांग्रेस का मुख्यालय बना हुआ है इलाहाबाद में….
- आज तो वो घर हर कांग्रेसी के लिए तीर्थ स्थान घोषित हो जाना चाहिए
- ये कहानी इतनी पुरानी भी नहीं है की इसके तथ्य कश्मीर में मिल न सकें ….आज हर पुरानी चीज़ मिल रही है ….चित्रकूट में भगवन श्री राम के पैरों के निशान मिले,लंका में रावन की लंका मिली, उसके हवाई अड्डे, अशोक वाटिका, संजीवनी बूटी वाले पहाड़ आदि बहुतकुछ….समुद्र में भगवान श्री कृष्ण भगवान् द्वारा बसाईगई द्वारिका नगरी मिली ,करोड़ों वर्ष पूर्व की DINOSAUR के अवशेष मिले तो 150 वर्ष पुरानाकश्मीर में नकली नेहरू काअस्तित्व ढूंढना क्या कठिन है ?????दुश्मन बहुत होशिआर है हमें आजादी के धोखे में रखा हुआ है,
- इस से उभरने के लिए इनको इन सब से भी बड़ी चुस्की पिलानी पड़ेगी जो की मेरेविचार से धर्मान्धता ही हो सकती है जैसे गणेश को दूध पिलाया था अन्यथा किसी डिक्टटर को आना पड़ेगा या सिविल वार अनिवार्य हो जायेगा
जो नेहरू नेहरू कहते है उनसे पूछिये की इस खानदानके अलावा भारत मे और कोई नेहरू क्यूँ नहीं हुआ ?अगर यह वास्तव मे ब्राह्मण था तो ब्राह्मनों मे नेहरू नाम की गोत्र अवश्य होनी चाहिए थी ? क्यूँ नहीं ?क्यों देश मे और कोई नेहरू नहीं मिलता?क्या ये जवाहर लाल के परिवार वाले आसमान से टपके थे ?
- जो लोग नेहरू गांधी परिवार को मुस्लिम मानने से इंकार करते है उनके लिए प्रश्न
- # देश मे सोलंकी, अग्रवाल, माथुर, सिंह, कुशवाहा, शर्मा, चौहान, शिंदे, कुलकर्णी, व्यास, ठाकरे आदि उपनाम हजारो, लाखो करोड़ो कीसंख्या मेमिलेंगे लेकिन “नेहरू” सेकड़ों भी नहीं है क्यूँ?
- # कश्मीरी हमेशा अपने नाम के पीछे पंडित लगाते है लेकिन जवाहर लाल के नाम के आगे पंडित कैसे ? गंगाधर के पहले का इतिहास क्यूँ नहीं है ?
- # नेहरू ने ऐसा क्यूँ कहा “I AM HINDU BY AN ACCIDENT”
की गंदगी भरी जा रही है देश के लाखो स्कूलो मे…इस गांधी नेहरू नाम के इतिहास के सामने राम कृष्ण, राणा, शिवाजी आदि हजारो महावीरों सपूतो के किस्से इतिहास भी नगण्य किए जाते है…इतिहासकारो और इतिहासिक संस्थानो पर कॉंग्रेस और वामपंथियों का कब्जा है कैसे देश की पीढ़ी वीर बनेगी ? ? ? ?
इस परिवार ने देश के अन्य वीर शहीदो की शहीदी को भू फीका कर दिया अपने महिमामंडित इतिहास से हर पन्ने पर इनका नाम नजर आता है …हमें तो अब चाहिए पूर्ण आजादी …राम कृष्ण राणा शिवाजी के देश मे नकली गाँधी नेहरू नाम के पिशाच नहीं चाहिए~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~!!~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Feroze Gandhi |
* जवाहरलाल नेहरू राहुल-वरुण की दादी के पिता जी थे, यानि तीसरी पीढ़ी में. तब ये नेहरू के वंशज कैसे बन गये?
* क्या नेहरू ने दूर की सोचकर अपने दामाद फ़िरोज़ को गाँधी नाम दिलाकर विधि-विधान के विरुद्ध कार्य किया था?
* पैदा होने के बाद आदमी का धर्म तो बदला जा सकता है, लेकिन जाति बदले का अधिकार तो विधि के हाथ भी नहीं है.
* फ़िरोज़ जहाँगीर घंडी को किन्ही दस्तावेज़ो में पारसी (ज़्रोस्ट्रियन) लिखा गया है. बरहाल वे पारसी थे कि, मुस्लिम इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता लेकिन गाँधी जी के कुछ नहीं थे और न ही वे किसी भी तरह से गाँधी थे. कश्मीरी कौल ब्राहमण की बेटी इंदिरा और फ़िरोज़ की संतान गुजरात के गाँधी बनिये किस विधि से हो सकती है?
* इस देश के पढ़े लिखे लोग ग़लत बात का विरोध क्यों नहीं करते? इस नामकरण से इस देश का बहुत कुछ बर्बाद हो रहा है, और बर्बाद हो चुका है....?
* अगर यह छद्म नामकरण रोक दिया जाता तो आज देश की तस्वीर ही कुछ और होती. चुनाव में नेहरू-गाँधी के वंशज की झोक में ठप्पा मारने वालों का रुख़ ही कुछ और होता और 5-7% वोट का डेवियेशन इस देश की तकदीर बदल देता.
* पढ़े कथित गाँधी-नेहरू के वंशज की असलियत, जिससे लम्बे समय से इस देश का वोटर्स धोखा में हैं:
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एक और तर्क दिया जाता है इस बात के लिए की ,
क्या वजह थी कि जब इंदिरा ने फिरोज़ जहांगीर शाह; पारसी मुसलिमद्ध से ब्याह रचाया तो नहेरु ने उनकी एक नहीं सुनी और गांधीजी ने फिरोज को गोद लेना पडा़। मेरी समझ में तो पूरे देश की तरह शायद गांधी जी भी यही मानते थे कि आज़ादी की लड़ाई में सबसे ज्यादा योगदान उन्हीं का है और इसलिए वो नहीं चाहते थे कि गांधी नाम की विरासत उनके साथ ही खत्म को जाए, वो चाहते थे कि उनका नाम सियासी गलियारों में हमेशा गूंजता रहे, लेकिन खुद को किसी पद से जोड़ के महानता का चोगा त्यागे बिना। उन्हें ये मौका इंदिरा की शादी से मिला,गांधी जी का एक और गुण भी था उनकी दूरर्दर्शिता, इंदिरा में नेतृत्व के गुण वो पहले ही देख चुके थे,वो जानते थे कि इंदिरा से परमपरागत राजनीती की शुरुआत होगी और इसीलिए उन्होंने फिरोज़ को गोद लिया और उसे अपना नाम दिया।
लोगों का मानना है कि र्सिफ हिन्दु कट्टरपंथी ही नहीं नेहरु जी भी इस शादी के खिलाफ थे,पर नेहरु ने अपनी एक किताब में लिखा है कि फिरोज़ को वो बेहद पसंद करते थे और उन्हें इस शादी से नहीं बल्कि लोंगों के विद्रोह से परेशानी थी,जिसका अंदाजा उन्हें और गांधी जी को पहले से था। देश आज़ादी की कगार पे था और गांधी जी का प्रभाव अपने चरम पे,उन्होंने इंदिरा और फिरोज के पक्ष में एक वक्तव्य जारी किया,जिसे पढ़ के और सुन के सभी शांत हो गये। फिर भी उन्होने फिरोज को अपना नाम दिया, चाहे इंदिरा हो,राजीव हो,सोनिया या अब राहुल,ये तो बस अलग-अलग चेहरें हैं, देश चलाने वाला तो गांधी ही है,पर हम तो उन्हें महात्मा के नाम से जानते हैं!
"समंदरे शोहरत का साहिल नहीं होता,
डूबते हैं बड़े बड़े तैराक इस समंदर में!!! "
- इस देश की कुछ जनता को पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा-फिरोज का जन्म और मृत्यु दिवस मनाते देखा है. राजीव और संजय का भी मृत्यु दिवस कुछ पोलिटिकल/ सरकारी/ जनता द्वारा मनाया जाता है. मज़े की बात देखिए कि कभी फ़िरोज़ H/o इंदिरा गाँधी उर्फ़ मेमुना बेगम का जन्म या मृत्यु दिवस मनाते नहीं देखा है, क्यों?
- इंदिरा के पति यानी कि राजीव व संजय के पिता का नाम लेवा कोई क्यों नहीं रहा, यानी कि जो हैं वे उनके ये पावन दिन क्यों नहीं मनाते हैं? क्यों नहीं उनकी कब्र पर उनके वंशज अमुक दिन माला या फूल चढ़ाने जाते हैं? क्या फ़िरोज़ का इंदिरा से शादी करके दो बच्चे पैदा करने का ही कांट्रॅक्ट था? ये सब ज्वलंत प्रश्न हैं.
Feroze Gandhi फिरोज गांधी |
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Member of the Indian Parliament for Pratapgarh District (west) cum Rae Bareli District (east)[1] |
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In office 17 April 1952 – 4 April 1957 |
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Member of the Indian Parliament for Rae Bareli[2] |
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In office 5 May 1957 – 8 September 1960 |
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Succeeded by | Baij Nath Kureel | |||
Personal details | ||||
Born | 12 September 1912 Bombay, Bombay Presidency, British India |
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Died | 8 September 1960 (aged 47) New Delhi, Delhi, India |
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Resting place | Parsi cemetery, Allahabad | |||
Nationality | Indian | |||
Political party | Indian National Congress | |||
Spouse(s) | Indira Gandhi | |||
Children | Sanjay Gandhi, Rajiv Gandhi |
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Religion | Zoroastrianism | [विकिपेडीया से उपलब्ध] |
- अब भी अगर इस लेख पर विश्वास ना आ रहा हो तो इस लिंक को विजिट करे [http://www.vepachedu.org/Nehrudynasty.html]
- दस्तावेज़ों और नेट पर उपलब्ध विवरण के अनुसार फ़िरोज़ एक मुस्लिम पिता और घंडी गोत्र की पारसी महिला की संतान थे. देवी इंदिरा और फ़िरोज़ ने प्रेम विवाह किया था. नेहरू अपना वंश चलाने के लिए अपने दो नातियों राजीव और संजय में से एक को गोद ले सकते थे, लेकिन उस दशा में वह शख्स नेहरू कहलाता. अगर नेहरू ने फ़िरोज़ को घर जमाई भी रख लिया होता तो भी उसके बच्चे नेहरू हो गये होते. यानी कि नेहरू ने अपनी इकलौती बेटी इंदिरा का विवाह कर दिया था, लेकिन तत्पश्चात किसी को गोद नहीं लिया था. इस प्रकार जादायद भले ही इंदिरा को मिले लेकिन खानदानी वारिस होने का हक उसे नहीं मिल सकता है. इस प्रकार जवाहरलाल नेहरू का खानदान उनकी मृत्यु के साथ ही ख़त्म हो गया था. इंदिरा-फ़िरोज़ की संतान फ़िरोज़ की वंशज हुई न कि नेहरु की.
- फ़िरोज़ ख़ान क्यों और कैसे गाँधी बन गये, यह एक रोचक बात है. अगर किसी की माँ उसके बाप को तलाक़ देकर खुद बच्चे की परवरिश करे और उसे अपने परिवार का नाम दे तो भी उस दशा में फ़िरोज़, फ़िरोज़ घंडी हो सकते थे. हम नहीं जानते कि फ़िरोज़ के साथ ऐसा कुछ हुआ था या नहीं?
- रही समस्त बुराई की जड़ मोहन दस करमचंद गाँधी द्वारा फ़िरोज़ को गोद लेने की बात. यह भी सुना है कि सेकुलर नेहरू फ़िरोज़ से इंदिरा का विवाह करने को तैयार नहीं थे, जबकि वह पहले ही बिना बाप को बताये शादी कर चुकी थी. ऐसी दशा में गाँधी ने कहा था कि वे फ़िरोज़ को गोद लेते हैं. गोद लेना कोई गुड्डे-गुड़िया का खेल नहीं है. गोद लेने की एक प्रक्रिया है, एक एक विधि-विधान है. एक उम्र है. यही नहीं गोद लेने के लिए जाति आधारित क़ानून भी थे. गाँधी जी कोई खुदा नहीं थे कि वे जब जो चाहे कर लेते. तब गाँधी ने अगर यह बात की भी तो यह बड़ी ही हास्यस्पद घटना है, और एक बेरिस्टर से ऐसी मूर्खता पूर्ण बात की कल्पना नहीं की जा सकती है. (इससे साबित होता है की वो बेरिस्टर की डिग्री के नाम पर विदेश किसी और मिशन पर गए थे)
- दादी के पिता जी का वारिस दादी का पोता हो, शायद यह अजूबा दुनिया में भारत में ही मान्य हो सकता है. अधिकतर लोगों को तो अपनी दादी के पिता जी का भी नाम मालूम न होगा. दादी के पिता जी का वारिस दादी हो सकती है या दादी का पुत्र, भला पोता काहे और कैसे वारिस हो जाएगा? और वह भी बिना किसी वैधानिक प्रक्रिया के.
- इनके नेहरु के वारिस होने की ही नहीं कुछ सिरफिरे लोग इनके गाँधी के वारिस होने की भी बात करते हैं. वह यह नहीं बताते कि ये लोग कौन से गाँधी के वारिस हैं? इन्हें उस गाँधी का पूरा नाम लेना चाहिए. यह देश तो गाँधी का मतलब मोहनदास कर्मचंद गाँधी मानता है. अगर फ़िरोज़ उर्फ छद्म गाँधी की बात कर रहे हैं तो उसका पूरा नाम क्यों नहीं लेते, कभी उसका जन्म या मृत्यु दिवस क्यों नहीं मनाते? कभी उसकी कब्र पर झाड़पूंछकर फूल पत्ते क्यों नहीं धरते? और अगर महात्मा गाँधी जी के वारिस होने की बात करते हैं तो गाँधी जी का अपना भरा पूरा परिवार है, वे दूसरों को वारिस क्यों बनाते? यह तो ऐसा हुआ जैसे कि खरगोश ऊँट का वारिस होने की ताल ठोक रिया हो.
- तब प्रश्न उठता है कि फ़िरोज़, फ़िरोज़ गाँधी कैसे हो गये, और उन्हें इस उपनाम जो की गुजरात के बनिए वर्ग में प्रयुक्त होने वाले गाँधी के उपयोग की इजाज़त किसने और क्यों दी? फ़िरोज़ को अपने सही नाम पर क्यों आपत्ति हुई, और क्यों ही उसे नाम बदलने की ज़रूरत पड़ी? देश के बहुत से लोग तो आज भी यह समझते हैं कि यह कथित गाँधी परिवार महात्मा गाँधी से रिलेटेड है, जबकि ऐसा कतई नहीं है. कथित कश्मीरी पंडित की बेटी इंदिरा-फ़िरोज़ से विवाह करके गाँधी बनिया कैसे पैदा कर सकती थी? इस देश के पढ़े लिखे तबके को यह सोचना चाहिए.
- राहुल के दादा फ़िरोज़ थे, और दादी कथित कश्मीरी पंडित की बेटी थी, और वह भी तीन पीढ़ी पहले. राहुल एक इटलियन लेडी और राजीव वल्द फ़िरोज़ की औलाद है, तब वह नेहरू-गाँधी परिवार का वारिश किस विधि से हो गया, इस देश के प्रबुद्ध जन इस पर विचार करे. यही नहीं कथित रूप से भी राहुल ही नेहरू-गाँधी परिवार का वारिस क्यों हुआ, मेनका-संजय का बेटा वरुण भी वारिस क्यों नहीं हुआ?
- क्या इस नामकरण की साजिश में गाँधी और नेहरू भी शामिल थे? और अगर ऐसा था तो गाँधी ने इस देश के साथ बहुत बड़ा जघन्य धोखा अपराध किया है. धर्म परिवर्तन हो सकता है लेकिन दुनिया की कोई विधि-विधान जाति परिवर्तन नहीं कर सकता है, यानी कि गाँधी जी फ़िरोज़ को गुजराती बनिया गाँधी में परिवर्तित नहीं कर सकते थे, किसी प्रौढ़ फ़िरोज़ को गोद नहीं ले सकते थे. अपना भरा पूरा परिवार होते हुए भी अपना नाम किसी प्रौढ़ को दे देने का अधिकार गाँधी जी को भी प्रदत्त नहीं था.
- दस्तावेज़ों के अनुसार फ़िरोज़ की कब्र इलाहाबाद के पारसी कब्रिस्तान में हैं. दूसरों की कब्र/ समाधियों पर माला टांगने वाले लोग क्यों नहीं अपने पूर्वज फ़िरोज़ की कब्र की सुध लेते हैं? शायद इसलिए कि कहीं लोग असलियत न जान जाएँ.
- जो लोग शासन की समझ रखते हैं वें भी जानते होंगे कि सेना प्रत्यक्ष रूप से ही युद्ध में हार जीत के निर्णय में भागीदार होती है असली जीत का भागीदार तो कोई और ही होता है. एक चार कमरे के मकान में कोई अंजान व्यक्ति फ्रीली नहीं घूम सकता. तब अरब़ अक्रांता/ अँग्रेज़ों ने कैसे इस इतने बड़े मुल्क पर फ़तह कर उसे सैकड़ों वर्ष तक गुलाम बनाए रखा? रावण जैसा विद्याधर, योद्धा क्या यूँ ही राम के हाथों हार गया, और मारा गया. जी नहीं सच यह है कि `घर का भेदी लंका ढ़ावे’ हुआ है. जीत के लिए श्रेय हमेशा सशक्त ख़ुफ़िया तंत्र के सिर होता है. हार के प्रमुख कारणों में से एक कारण, पराजित देश के देशद्रोही/ समाजद्रोही भेदियों की नकारात्मक भूमिका होती है. अगर ये देशद्रोही/ समाजद्रोही भेदिये विजयी सेना के ख़ुफ़िया तंत्र को अपने देश के राज न दें तो स्थिति ही कुछ और होती
- आज इस देश में सोनिया क्या अपने बल पर अध्यक्ष बनी बैठी है? क्या उसमें इतना बूता है? तो उत्तर होगा कतई नहीं. यहाँ दो पहलू हैं एक तो यह प्रोपगॅंडा की राहुल नेहरू-गाँधी खानदान का वारिस, जैसे कि वरुण उनमें से किसी का कुछ न लगता हो. दूसरे वे कौंच के बीज इस कुकर्म में दोषी हैं जो इस देश की बर्बादी में विभीषण की भूमिका निभा रहे हैं, और सत्ता और संपत्ति के लालच में डूबे हैं.
- उन विभीषणों को यह नहीं भूलना चाहिए कि आज भी विभीषण का नाम समाज में गाली समझा जाता हैं. वे अपने मन से अपने कुकर्मों का हिसाब लगाकर कभी ज़रूर देखे, और की तो छोड़िए उनकी आत्म ही अगर कभी जाग गयी तो उन्हें माफ़ न करेगी. किसी की आत्मा कभी जागे न जागे लेकिन मृत्यु के समय ज़रूर जागेगी, ....और उस समय उन्हें देश के समाज के साथ धोखा करने के पाप का बोध तो हो जाएगा, लेकिन तब प्रायशचित का न तो समय रहेगा, न ही शक्ति.
जननी जनमभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी
सुखस्य मूलं धर्म:
धर्मस्य मूलं अर्थ:
अर्थस्य मूलं वाणिज्य:
वानिजस्य मूलं स्वराज्य:
स्वराज्यस्य मूलं चारित्रं.
Father's name of rajiv and sanjay is written different in above table . Are they not real brothers ?
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