खुली जो आँख तो वो था न वो ज़माना था
दहकती आग थी तनहाई थी फ़साना था।
ग़मों ने बाँट लिया मुझे यूँ आपस में
कि जैसे मैं कोई लूटा हुआ ख़ज़ाना था।
...ये क्या चंद ही क़दमों पे थक के बैठ गए
तुम्हें तो साथ मेरा दूर तक निभाना था।
मुझे जो मेरे लहू में डुबो के गुज़रा है
वो कोई ग़ैर नहीं यार एक पुराना था।█▌║││█║▌│║█║▌© Official Jugal Eguru™ ║││█ ADD FRIEND - GET BEST: VISIT TIMELINE -..|► सच्चाई-पारदर्शिता-देशप्रेम-विश्वास-क्रांतिकारी मौलिक पोस्ट और निर्भीक खबरे~True Hidden History║││█
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Tuesday, October 16, 2012
खुली जो आँख तो वो था न वो ज़माना था
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