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Sunday, October 28, 2012

इलेक्शन कमीशन या फिर कॉंग्रेस का ही मीशन !

इलेक्शन कमीशन या फिर कॉंग्रेस का ही मीशन !

पेड न्यूज के दोषी अमर उजाला और जी-न्यूज को को सम्मानित किया है इलेक्शन कमीशन ने ! जैसा तरह कॉंग्रेस का मीशन रहा है की हर घोटाले बाज की पदोन्नति कर देते है ! तब अब ये चुनाव आयोग भी ऐसे महाभियोग से बच नहीं पाया !

लोकसभा चुनाव के दौरान पेड न्यूज का कोराबार करने के दोषी करार दिये गये अमर उजाला को अब देश का इलेक्शन कमीशन लोकतंत्र को मजबूत करनेवाली पत्रकारिता के पुरस्कार से पुरस्कृत करेगा. वह भी ऐसे वक्त में जब एक तरफ पेड न्यूज पर नजर रखने के लिए नयी गाइडलाइन तैयार की जा रही हैं वहीं प्रेस परिषद द्वारा दोषी करार दिये गये अखबार को जनता को जागरुक के लिए पुरस्कृत किया  है.

इलेक्शन कमीशन ने इसी साल 23 जनवरी को घोषणा किया था कि हर साल मतदाता दिवस पर वह ऐसे समाचार माध्यमों या संस्थाओं को पुरस्कृत करेगा जो मतदाताओं को जागरूक करने का काम करते हैं. यह पुरस्कार मतदाता जागरूकता दिवस 23 जनवरी को दिया जाएगा.  इस साल चुनाव आयोग ने जिन दो मीडिया घरानों को यह पुरस्कार देने के लिए चुना उसमें एक जी न्यूज है तो दूसरा अमर उजाला है. इन दोनों को यह पुरस्कार उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान की गई रिपोर्टिंग के लिए पुरस्कृत किया जाएगा.

चुनाव आयोग ने अपना ही साल दो साल पुराना रिकार्ड चेक नहीं किया जब इसी अमर उजाला के खिलाफ चुनाव आयोग में भी शिकायत की गई थी कि उसने लोकसभा चुनाव के दौरान 2009 में एक उम्मीदवार से खबर छापने के लिए पैसे की मांग की थी. उस वक्त योगेन्द्र कुमार नामक एक प्रत्याशी ने चुनाव आयोग और प्रेस परिषद से दो अखबारों की शिकायत थी. इसमें एक दैनिक जागरण था और दूसरा अमर उजाला. उस उम्मीदवार की शिकायत पर प्रेस परिषद ने जांच की और फैसला भी सुनाया था. प्रेस परिषद ने अमर उजाला को पेड न्यूज का दोषी पाया था. अब उसी अमर उजाला को चुनाव आयोग इस बात के लिए पुरस्कृत कर रहा है, कि चुनाव के दौरान मतदाताओं को जागरुक करने के लिए इस अखबार ने बेहतरीन काम किया है.

और जी-न्यूज भी आज खुद नवीन जीदाल के रीवर्स स्टींग से आरोपो के घेरे मे है ! अब तक लगता था की सिर्फ टीवी चेनल ही बीके न्यूझ देते है ! लेकिन मेरा एक साल पहले का एक गुजराती लेख , सार्थक होता दिख रहा है की यह चेनल का दूषण अब प्रिंट मीडिया मे भी घुस गया है ! अब बात ये सोचनेवाली है की गुजरात मे जिस तरह आर्थिक हेर फेर को आचार संहिता के दायरे मे ला कर जिस तरह सामान्य व्यापारी गण और आम इंसान को परेशान कर रहा है तो उसकी निष्पक्षता पर सवाल लाजमी है ! अभी पीछले हफ्ते ही एक सोनी व्यापारी की एक किलो चांदी आचार समहीता के नाम पर जप्त कर ली थी ! गुजरात मे इतनी समृद्धता है की ज़्यादातर व्यापारी के जेब से ही 2-3 लाख यूही निकल जाएँगे ! तो 2 लाख की रकम की हेरफेर को आचार संहिता के दायरे मे ला कर आखिर चुनाव आयोग गुजरात और गेर कोंग्रेसी राज्यो मे ही क्यूँ इतनी सख्ती से पेश आ रहा है ! क्या इसमे भी कोई पैड आयोग का मामला है ?

सवाल यह है कि ऐसे वक्त में जब चुनाव आयोग खुद पेड न्यूज को रोकने के लिए सख्त गाइडलाइन बना रहा है तब दागदार छवि वाले अखबारों को पुरस्कार करके वह कौन सी परंपरा कायम करना चाह रहा है?

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