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Wednesday, October 10, 2012

भारत की साख पर फिर सवाल, S&P घटा सकती है रेटिंग▐ साख निर्धारण करने वाली अंतरराष्ट्रीय एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स

भारत की साख पर फिर सवाल, S&P घटा सकती है रेटिंग

10-10-2012

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आर्थिक सुधार की दिशा में सरकार की ओर से उठाए गए कदमों के बावजूद ग्लोबल एजेंसियों के मन में देश की अर्थव्यवस्था को लेकर संशय बरकरार है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा जीडीपी की विकास दर का अनुमान घटाए जाने के महज एक दिन बाद साख निर्धारण करने वाली अंतरराष्ट्रीय एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (एसएंडपी) भारत की मौद्रिक साख को सवालों के घेरे में ला खड़ा किया है।

एसएंडपी ने चेतावनी दी है कि अगले दो वर्ष (24 महीने) में भारत की साख घटाई जा सकती है। एजेंसी ने अनुमान से कम कर वसूली, आर्थिक विकास में सुस्ती और सब्सिडी बिल बजटीय प्रावधान से अधिक रहने को इस चेतावनी की मुख्य वजह बताया है।
एसएंडपी ने बुधवार को जारी रिपोर्ट में कहा कि यदि भारत का आर्थिक विकास प्रभावित होता है, विदेशी स्थिति खराब होती है, राजनीतिक माहौल प्रतिकूल होता है और सुधार में सुस्ती बनी रहती है, तो साख घटाये जाने की आशंका है। फिलहाल भारत की रेंटिंग ‘ट्रिपल बी माइस’ है जो ‘जंक’ यानी बेकार से मात्र एक स्थान ऊपर है।
तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाए, तो भी ब्रिक्स देशों में भारत की निवेश रेटिंग सबसे नीचे है। इस वर्ष अप्रैल में एसएंडपी ने भारत की साख पूर्वानुमान को स्थिर से घटाकर ऋणात्मक कर दिया था। हालांकि सुधार की गुंजाइश छोड़ते हुए एसएंडपी ने कहा है कि यदि सरकार वित्तीय घाटा कम करने के दिशा में समुचित कदम उठाती है, देश निवेश का माहौल बनता है और विकास परिदृश्य सुधरता है, तो भारत का साख पूर्वानुमान फिर से ‘स्थिर’ श्रेणी में आ सकता है।

इसके अलावा उसने चालू वित्त वर्ष में चालू खाते का घाटा घटने की भी संभावना जताते हुए इसके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.5 प्रतिशत पर आ जाने का अनुमान जताया है। पिछले वर्ष यह घाटा 4.5 प्रतिशत रहा था। उसने कहा है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और पोर्टफोलियो निवेश बढ़ने से चालू खाता घाटा में कम हो सकता है।

दूसरी ओर सब्सिडी के बिल को कम करने के लिए डीजल की कीमतों में पांच रुपये प्रति लीटर की बड़ी बढ़ोतरी और रियायती रसोई गैस आपूर्ति के लिए सालाना छह सिलेंडर की सीमा निर्धारित करने जैसे कड़े कदम भी सरकार की ओर से उठाए गए हैं। विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए कर व्यवस्था में सुधार और गार जैसे कड़े प्रावधानों को टालने जैसी घोषणाएं भी की गई हैं।

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