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Tuesday, October 9, 2012

तेरे खुशबु मे बसे ख़त मैं जलाता कैसे,

(3) ƪJugal Eguru


तेरे खुशबु मे बसे ख़त मैं जलाता कैसे,

तेरे खुशबु मे बसे ख़त मैं जलाता कैसे,
जिनको दुनिया की निगाहों से छुपाये रखा,
जिनको इक उम्र कलेजे से लगाए रखा,
जिनका हर लफ्ज़ मुझे याद था पानी की तरह,
याद थे मुझको जो पैगाम-ऐ-जुबानी की तरह,...
मुझ को प्यारे थे जो अनमोल निशानी की तरह,

तूने दुनिया की निगाहों से जो बचाकर लिखे,

सालाहा-साल मेरे नाम बराबर लिखे,

कभी दिन में तो कभी रात में उठकर लिखे,

तेरे खुशबु मे बसे ख़त मैं जलाता कैसे,

प्यार मे डूबे हुए ख़त मैं जलाता कैसे,

तेरे हाथों के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे,

तेरे ख़त आज मैं गंगा में बहा आया हूँ,

आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ,

 


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