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Tuesday, October 23, 2012

अंतिम व निर्णायक विजय नरेन्द्र भाई मोदी की होती है। न्यायालय से लेकर राजनीतिक तक यह सबकुछ साबित हो चुका हैं।

अंतिम व निर्णायक विजय नरेन्द्र भाई मोदी की होती है। न्यायालय से लेकर राजनीतिक तक यह सबकुछ साबित हो चुका हैं।

नरेन्द्र भाई मोदी की हर क्रिया, हर प्रतिक्रिया बड़ी खबर बनती है, राजनीति को हिलाती, डुलाती है झकझोरती है, समर्थक संवर्ग को झुलाती है तो विरोधी संवर्ग को संशकित करती है।उनकी हर क्रिया और हर प्रतिक्रिया पर समर्थक और विरोधी सेनाओं के बीच तलवारें खींच जाती हैं। अभी तक का निष्कर्ष भी देख लीजिये। हर क्रिया-हर प्रतिक्रिया पर समर्थक व विरोधियों के बीच उठने वाले राजनीतिक वेग पर अंतिम व निर्णायक विजय नरेन्द्र भाई मोदी की होती है। न्यायालय से लेकर राजनीतिक तक यह सबकुछ साबित हो चुका हैं। नरेन्द्र भाई मोदी का संघ प्रमुख मोहन भागवत से नागपुर में मिलना भी कैसे नहीं बड़ी खबर बनती?

नरेन्द्र भाई मोदी का मोहन भागवत से मिलना स्वाभाविक तौर पर बड़ी खबर बनी है। खबर का निष्कर्ष यह है कि नरेन्द्र मोदी पहले से कहीं अधिक मजबूत होकर उभरे हैं और उन्होंने यह संदेश देने में कामयाबी हासिल की है कि उनके साथ पूरी तरह से संघ खड़ा है। संघ की नाराजगी का कोई आधार है। बहुत दिनों से नरेन्द्र भाई मोदी की कथित स्वेच्छाचारिता व तानाशाही प्रवृति की काफी चर्चा हो रही थी और प्रचारित यह था कि उनकी स्वेच्छाचारिता व तानाशाही प्रवृति के कारण संघ में नाराजगी  है और केशु भाई पटेल संघ की इसी नाराजगी की उपज हैं। संध की नाराजगी नरेन्द्र भाई मोदी के लिए गुजरात चुनावों में भारी पड़ सकती है।  संजय जोशी जैसे घोर विरोधियों की गुजरात में सक्रियता और केशु भाई पटेल के समर्थक संवर्ग की पीठ थपथपाने की राजनीतिक प्रक्रिया भी एक अहम सवाल था।

क्यास की धारा क्या होनी चाहिए? निष्कर्ष की कसौटी क्या होनी चाहिए? अभी तक क्यास और निष्कर्ष की धारा व कसौटी तो यही है कि नरेन्द्र भाई मोदी का मिशन 2014 पर संघ परिवार की अप्रत्यक्ष मुहर लग गयी है और प्रधानमंत्री पद के लिए नरेन्द्र भाई मोदी संघ के निर्णायक पंसद होंगे? भीड़ चर्चा से अलग होकर चाकचौबंद व स्वतंत्र आकलन खुशफहमी से परे है। अभी न तो नरेन्द्र भाई मोदी का मिशन 2014 आगे बढ़ा है और न ही संघ ने उन्हें 2014 के लोकसभा चुनावों में संघ ने नरेन्द्र भाई मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित कराने का कोई आश्वासन या सर्टिफिकेट दिया है। संघ की नाराजगी भी एक विचारण का उमदा विषय है। संघ खुद अपनी भूमिका और परमपरा को लेकर अंदर ही अंदर काफी उतेजित भी था और मजबूर भी था। उतेजित होने के बाद भी संघ मजबूर क्यों था? इसका सर्वश्रेष्ठ जवाब यह है कि नरेन्द्र भाई मोदी अपनी राजनीतिक भूमिका और क्रियाशीलता से हिन्दू हितों का सर्वश्रेष्ठ प्रतीक बन गये हैं। हिन्दू हितों के सर्वश्रेष्ठ प्रतीक के खिलाफ संघ की अभिव्यक्ति का सीधा अर्थ न केवल संघ के हिन्दुत्व के प्रति समर्पण पर सवाल उठता बल्कि गुजरात में नरेन्द्र भाई के विरोधियों का पक्ष ही मजबूत होता। संदेश यह भी जाता कि नरेन्द्र भाई मोदी को संध ही गुजरात में हराना चाहता है। पिछले गंुजरात विधान सभा चुनाव में संघ पूरी तरह से नरेन्द्र मोदी के खिलाफ खड़ा था। प्रवीण तगोड़िया ने मोदी को हराने के लिए बयान तक दिये थे फिर भी संघ ने प्रवीण तगोड़िया के खिलाफ कोई नोटिस नहीं लिया था।

हमारा आकलन यह है कि संघ की अहम की ही संतुष्टि हुई है। संध और नरेन्द्र भाई मोदी की मुलाकात न तो अचानक हुई है और न ही यह सिर्फ औपचारिक मुलाकत भर थी। संघ की पूरी सर्चोच्च टीम नरेन्द्र भाई मोदी की खबर लेने और राजनीतिक विसात पर अपनी अहम की संतुष्टि निर्णायक तौर पर सिद्ध करने के लिए बैठी थी। नरेन्द्र भाई मोदी के बयान पर गौर कीजिये। नरेन्द्र भाई मोदी के बयान थे कि उनकी मोहन भागवत, भैया जी जोशी, सुरेश सोनी से साढे तीन घंटे की बात हुई है। जानना यह जरूरी है कि मोहन भागवत, भैया जी जोशी और सुरेश सोनी संघ की सर्वोच्च शिखर पुरूष हैं। नरेन्द्र मोदी और संघ के बीच वार्ता में सिर्फ मोहन भागवत, भैया जी जोशी और सुरेश सोनी ही शामिल नहीं थे बल्कि संघ के अन्य विचारक और छत्रप भी थे। संघ में एक तबका ऐसा भी है जो मोदी विरोधी है और नरेन्द्र भाई मोदी के खिलाफ राजनीतिक सक्रियता को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष हवा भी देते हैं। जहां तक नरेन्द्र मोदी का पक्ष का सवाल है तो उनकी संघ से इच्छा कई राजनीतिक सक्रियताओं के प्रबंधन को लेकर है। नरेन्द्र भाई मोदी ने संघ के अंदर अपने उन विरोधियों को लगाम लगाने के लिए गुहार लगायी होगी जो उन्हें काफी समय से परेशान कर रहे हैं। गुजरात विधान सभा चुनाव में संघ की सकरात्मक भूमिका चाही होगी। संघ भी अब यह कह सकता है और अहसास करा सकता है कि नरेन्द भाई मोदी उनकी परिधि से बाहर नहीं है और न ही नरेन्द्र भाई मोदी की स्वैच्छाचारिता व तानाशाही प्रवृति से संघ आक्रांत है।

स्वाभाविक लक्ष्य क्या है? नरेन्द्र भाई मोदी की शख्सियत को जानने-समझने वाले और पूर्वाग्रह से परे लोग को मालूम है कि नरेन्द्र मोदी कच्चे राजनीतिक खिलाड़ी नहीं है, उनका लक्ष्य चाकचौबंद होता है,वे  भविष्य में नहीं बल्कि वे वर्तमान में जीते हैं। वर्तमान की राजनीति चुनौतियों से जुझते हैं, संघर्ष करते हैं और विजय भी हासिल करते हैं। मूल से कटना उन्हे गंवरा नहीं है। मूल से कटने का अर्थ कितना घातक होता है, यह सर्वविदित ही नहीं बल्कि निर्णायक तौर पर सिद्ध सिद्धांत है। नरेन्द्र भाई मोदी का मूल क्या है? नरेन्द्र भाई मोदी का मूल गुजरात है। गुजरात से जैसे ही कटे वे वैसे ही राजनीतिक धरातल उनकी हिल जायेगी। अभी मूल को मजबूत करने और फिर से कामयाबी हासिल करने का समय है। यानी गुजरात विधान सभा चुनाव पर पूरी दृष्टि गडाने और ध्यान केन्द्रित करने की है। गुजरात विधान सभा चुनाव में उनकी जीत ही आगे की राह तय करेगी। हम यह मानने हैं कि गुजरात में नरेन्द्र भाई मोदी ने विकास के जो अलग जगाये हैं वह सपने सरीखा है। विकास की कामयाबी विरोधी राजनीतिक शक्तियां भी मानती है, प्रत्यक्ष रूप से भी और अप्रत्यक्ष रूप में भी। इतना ही नहीं बल्कि उनकी कामयाबी सात समुंद्र पार कर गयी। अमेरिका-यूरोप नरेन्द्र मोदी की कामयाबी का यशोगान कर रहे है। ब्रिटेन ने नरेन्द्र भाई मोदी के प्रति अपना रवैया बदल लिया है और नरेन्द्र भाई मोदी के साथ नये संबधों की शुरूआत की है। अमेरिका भी नरेन्द्र भाई मोदी के प्रति के प्रति अपनी नीति पर विचार करने के लिए तैयार हो रहा है।

लेकतांत्रिक जीवन और व्यवस्था में हमनें बहुत सारी विसंगतियां भी देेखी है। कभी-कभार यह देखा गया है कि विकास के बावजुद सरकारें दुबारा जनादेश हासिल नहीं कर पाती हैं। लोकतांत्रिक चुनावों में सिर्फ विकास और स्वच्छ-नैतिक प्रशासन ही जीत के गारंटी नहीं होते हैं। लाकतांत्रिक चुनावों मे कई कारक ऐसे होते हैं जो लोकतांत्रिक चुनाव परिणामों को प्रभावित करते हैं। जैसे क्षेत्रवाद, जातिवाद, वंशवाद, मजहब वाद की राजनीतिक संस्कृतियां चुनाव परिणामों को प्रभावित करती हैं। नरेन्द्र भाई मोदी क्षेत्र, जाति, गोत्र की राजनीति से अलग हैं। उनकी राजनीति का आधार सिर्फ हिन्दुत्व है। पर उनके सामने जातिवाद की चुनौती भी खड़ी है। केशु भाई पटेल ने जाति के आधार पर ही अपनी चुनावी ताल ठोकी है। केशु भाई पटेल कुर्मी जाति का प्रतिनिधित्व करते हैं। गुजरात में कुर्मियों की संख्या और वर्चस्व भी एक समय निर्णायक था। नरेन्द्र भाई मोदी के उदय के बाद कुर्मी वर्चस्ववादी राजनीति निसहाय हुई है।

यह मानने में हर्ज नहीं है कि नरेन्द्र भाई की मिशन 2014 आगे बढ़ा है। अगर वे प्रधानमंत्री के उम्मीदवार घोषित होंगे तो उसमें संघ की ही मर्जी होगी। भाजपा में कई ऐसे नेता हैं जो हवाहवाई तो हैं पर वे अति महात्वांकाक्षा से ग्रसित हैं और प्रधानमंत्री के उम्मीदवार अपने आप को घोषित कराना चाहते हैं।

 

एक आखरी आशा मोदी जी के गुजरात का नागरिक - जुगल पटेल [ईगुरु]║█║▌

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