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Sunday, October 14, 2012

ब्रिटन के बाद अब अमरीका ने भी माना - मोदितव मेव जयते ! पश्चीम को झुका देनेवाला ये पहला भारतीय शख्स है !

ब्रिटन के बाद अब अमरीका ने भी माना - मोदितव मेव जयते ! पश्चीम को अपनी शर्तो पे झुका देनेवाले मोदी जी !

नरेंद्र मोदी ने तोड़ा पश्चिम का अहंकार | Narendra Modi

नरेंद्र मोदी ने तोड़ा पश्चिम का अहंकारपश्चिम के देशों मसलन अमेरिका, ब्रिटेन आदि को यह समझ में आ गया है कि भारत में पूंजी निवेश गुजरात को दरकिनार कर नहीं किया जा सकता है और गुजरात में अगर निवेश करना है तो नरेंद्र मोदी की जय करनी ही होगी। गुजरात में चुनावी बयार के बीच 10 अक्तूबर 2012 को सात समंदर पार से यह खबर आई कि ब्रिटिश सरकार गुजरात के साथ द्विपक्षीय सम्बंध बढ़ाना चाहती है। भारत मामलों के नए ब्रिटिश मंत्री ह्यूगो स्वायर ने लंदन में जारी एक बयान में कहा कि मैंने नई दिल्ली स्थित ब्रिटिश उच्चायुक्तों से कहा है कि वे गुजरात जाएं और वहां के मुख्यमंत्री व अन्य बड़ी हस्तियों से मिलकर आएं। बयान में आगे कहा गया था कि इससे आपसी सहयोग बढ़ाने के कई मौके मिलेंगे और हम आपसी हितों के कई मसलों पर चर्चा कर सकेंगे। ब्रिटिश सरकार की यह मंशा केवल एक सामान्य मंशा मात्र नहीं है। ब्रिटिश सरकार ने उसी गुजरात के साथ सम्बंध बढ़ाने की पहल की है, जिसके मुखिया नरेन्द्र मोदी हैं और जिन पर गोधरा कांड के बाद गुजरात में भड़के साम्प्रदायिक दंगों में भूमिका का आरोप लगाकर ब्रिटिश सरकार ने गुजरात से सम्बंधों पर 2002 में ही रोक लगा दी थी। अब यदि 10 साल बाद ब्रिटिश सरकार नींद से जागी है तो इसे मोदी की विकासवादी सोच का नतीजा ही कहा जाएगा।
ठीक एक दिन बाद 11 अक्तूबर 2012 को ब्रिटिश फैसले को नरेंद्र मोदी के लिए अंतरराष्ट्रीय रूप से परित्यक्त व्यक्ति के दर्जे का अंत होने की शुरुआत बताते हुए अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट लिखता है कि विश्व में तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था के उद्यम प्रिय सरकारी अधिकारी (नरेंद्र मोदी) बहुत सी राजनैतिक बाधाएं हटा सकते हैं। इसके बाद गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लिए बगैर अमेरिकी विदेश मंत्रालय में लोक कल्याण मामलों के सहायक विदेश मंत्री माइक हैमर ने वाशिंगटन में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान विदेशी पत्रकारों को बताया कि हम किसी व्यक्ति विशेष के वीजा मामले से जुड़े सवालों में नहीं पड़ते। अमेरिका किसी भी वीजा आवेदन का मूल्यांकन योग्यता और अमेरिकी नियमों के मुताबिक करेगा। दरअसल नरेंद्र मोदी के बारे में हैमर से सवाल नरेंद्र मोदी और गुजरात को लेकर ब्रिटेन के हालिया फैसले के संदर्भ में पूछा गया था।

दरअसल कहानी तो यहीं खत्म हो जाती है कि 11 सालों में देखते ही देखते हार्डकोर हिन्दुत्व का पोस्टर ब्वॉय नरेंद्र मोदी अपनी छवि विकास पुरुष के रूप में साबित कर उन पश्चिमी देशों (अमेरिका और ब्रिटेन) के अहंकार को मिट्टी में मिला दिया जिन्होंने नरेंद्र मोदी को `अछूत` मान लिया था। लेकिन यहां यह जानना जरूरी होगा कि इस वैश्विक पूंजीवादी राजनीति के पीछे की हकीकत क्या है? गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी देश के ऐसे इकलौते राजनेता हैं जो जिंदगी अपनी शर्तों पर जीते हैं और इसी दर्शन के साथ वह दो दशक से अधिक समय से गुजरात में भी अपना शासन चलाते आ रहे हैं। आपको याद होगा जब वर्ष 2002 में गुजरात में गोधरा की आग फैली थी तो पूरी दुनिया में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अछूत मान लिया गया था। देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी उन्हें `राजधर्म` का पालन करने की नसीहत दे डाली थी। ब्रिटेन ने 2002 में द्विपक्षीय सम्बंधों पर रोक लगा दी थी और मार्च-2005 में अमरीका ने मोदी को वीजा देने से इनकार कर दिया था। तब मोदी ने कसम खाई थी कि वह जीते जी अमेरिका की धरती पर कदम नहीं रखेंगे। और फिर मोदी ने गुजरात के परिदृश्य को ऐसे बदला कि गुजरात बना विकास मॉडल और नरेंद्र मोदी बने विकास पुरूष।

नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने जब अक्तूबर 2001 में मुख्यमंत्री के रूप में पहली बार कार्यभार संभाला था तब गुजरात 26 जनवरी, 2001 को आए विनाशकारी भूकंप की विभीषिका तले दबा हुआ था। तब लगता था मानो गुजरात फिर कभी उठ नहीं पाएगा। लेकिन पुनर्वास और पुनर्निमाण के तेज प्रयासों और पुन: उठ खड़े होने के लोगों के अदम्य साहस और जज्बे से गुजरात विकास के मार्ग पर अग्रसर हो गया। उस दौर में गुजरात के पुनर्वास कार्य को रोल मॉडल के तौर पर स्वीकार किया गया। नरेंद्र मोदी की बातों पर यदि भरोसा करें तो वर्ष 2001 में जब वह मुख्यमंत्री बने थे उस दौरान लोग उनसे विनती करते थे कि कम से कम शाम को भोजन के दौरान बिजली का इंतजाम कर दीजिए। इस समस्या के समाधान के लिए मोदी ने `ज्योति ग्राम योजना` बनाई जिसके तहत गुजरात के गांवों में 24 घंटे अबाध बिजली आपूर्ति की जाती है। इसके साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सड़क, पानी, कृषि, उद्योगों के विकास के साथ सरकारी कार्यालयों के कंप्यूटरीकरण की कवायद भी शुरू की।

लंदन स्कूल और इकोनॉमिक्स के एक विशेषज्ञ ने चुनाव पूर्व सर्वेक्षण के दौरान इस बात को स्वीकार किया है कि मेहसाणा जिले के वडनगर में 16 सितंबर 1950 को जन्मे नरेंद्र मोदी के सितारे बुलंद हैं, क्योंकि उन्होंने गुजरात में विकास के काम किए हैं और इस बात को जनता तक सही तरीके से पहुंचाया गया है। अपने दो दशक से अधिक के शासनकाल में मोदी के विकासवादी सोच के कुछ अहम फैसलों ने गुजरात कि किस्मत ही बदल दी। मसलन डेढ़ लाख खेत तालाब, ज्योति ग्राम योजना से 24 घंटे अबाध बिजली, वाईब्रेंट गुजरात ग्लोबल इनवेस्टर्स समिट से 40 लाख करोड़ का पूंजी निवेश, सभी गावों को ब्रॉडबैंड से जोड़ना, 15 मिनट में एंबुलेंस सेवा, महिला सखी मंडलों को 16 हजार करोड़ के काम, कन्या शिक्षा अभियान, कृषि महोत्सव, कार उद्योग की स्थापना और गरीब कल्याण मेला की उपलब्धि ने नरेंद्र मोदी को विकास पुरुष का ताज पहना दिया। कुछ लोग और सियासी पार्टियां यह दलील देते हैं कि गुजरात में ऐसा कुछ खास नहीं हुआ है। वह आठवी पंचवर्षीय योजना (1992-97) के समय से ही तेजी से विकास कर रहा है। हम इसे गलत भी नहीं ठहरा रहे हैं लेकिन अर्थशास्त्र का नियम कहता है कि जैसे-जैसे विकास होता है वैसे–वैसे उच्च विकास दर को बरकरार रखना मुश्किल होता जाता है। विकास का ह्रास होते देर नहीं लगती।

किसी भी देश या राज्य की अर्थव्यवस्था की बात जब हम करते हैं तो निश्चित रूप से उसके सकल घरेलू उत्पाद दर (जीडीपी दर), कृषि विकास दर, औद्योगिक विकास दर और सेवा क्षेत्र में तरक्की की जमीनी हकीकत को आंका जाता है। गुजरात के सकल घरेलू उत्पाद (तरक्की की रफ्तार) की बात करें तो यह हमेशा डबल डिजिट में रही है जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था की तरक्की की रफ्तार (जीडीपी दर) की बात करें तो यह डबल डिजिट के नजदीक भी नहीं पहुंच पा रही है। हमारा इरादा गुजरात की अर्थव्यवस्था की तुलना भारतीय अर्थव्यवस्था से करने का नहीं है लेकिन इस बात को मानने से इनकार नहीं किया जा सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती में गुजरात का बड़ा योगदान है। वर्ष 2000 के बाद गुजरात में कृषि की विकास दर बहुत अच्छी रही है। गुजरात में कृषि विकास दर हमेशा 10 प्रतिशत से ज्यादा रही है। इसमें पानी, बिजली और सड़कों के अलावा भी कई कारकों की भूमिका रही है। वर्ष 2001 में गुजरात में 2000 मेगावाट बिजली पैदा होती थी जो उसकी अपनी जरूरत से बहुत कम थी, लेकिन 2012 के अंत में गुजरात में अतिरिक्त बिजली पैदा होने लगी। गुजरात ने इस दलील को भी गलत साबित कर दिया कि लोगों को कम दाम में बिजली चाहिए होती है और वह ज्यादा दामों का भुगतान नहीं करना चाहते। गुजरात का अनुभव बताता है कि लोग भुगतान करने को तैयार होते हैं बशर्ते बिजली सप्लाई बेहतर हो। चूंकि बिजली औद्योगिक विकास के लिए संजीवनी होती है इसलिए गुजरात में औद्योगिक विकास की रफ्तार भी तेज है। आप दिल्ली में जिस मेट्रो कोच में सफर करते हैं उसके निर्माण की भारत में इकलौती फैक्ट्री गुजरात में है। बॉम्बार्डियर कनाडा की कंपनी है जिसका संयंत्र गुजरात के सावली जिले में स्थित है। साणंद को इंड्रस्ट्रियल हब के रूप में विकसित किया गया है। औद्योगिक विकास को गति देने के लिए गुजरात सरकार ने बुनियादी सुविधाएं तो मुहैया कराई ही हैं, इसके साथ ही अगर आपको उद्योग लगाना है और उसकी सरकार से मंजूरी चाहिए तो इसके लिए सिंगल विंडो सिस्टम लागू किया गया। अन्य राज्यों में इस मंजूरी के लिए कुल 84 एप्रूवल उद्यमियों को लेने पड़ते है। जाहिर है उद्यमियों की प्राथमिकता में गुजरात पहले नंबर पर होगा। मारुति और टाटा नैनो गुजरात में अपना विस्तार कर रहे हैं।

वर्ष 2002 में समूचे गुजरात के गांवों में शुद्घ पानी पहुंचाने के उद्देश्य से वास्मो का गठन किया गया। जनभागीदारी और असरदार जल व्यवस्थापन की वजह से आज गुजरात में 17,700 से भी ज्यादा पानी समितियां कार्य कर रही हैं। इनमें से ज्यादातर समितियों की कमान महिलाओं के हाथों में है। 19 अप्रैल 2012 के दिन एक ओर जहां वैज्ञानिकों ने अग्नि-5 मिसाइल का सफल प्रक्षेपण कर देश को गौरवान्वित किया, वहीं दूसरी ओर इसी दिन गुजरात ने 600 मेगावाट की सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता राष्ट्र को अर्पित कर एक नए अध्याय की शुरूआत की। 25 वर्ष के समय काल में यह 600 मेगावाट का प्रोजेक्ट 24000 मिलियन यूनिट्स बिजली पैदा करेगा। इससे पहले वर्ष 2009 में गुजरात ने अपनी सौर ऊर्जा नीति की घोषणा की। 500 मेगावाट की स्थापित क्षमता वाली इस सौर ऊर्जा नीति के लिए करीब 85 डेवलपरों के साथ 968.5 मेगावाट की खरीद व्यवस्था पर हस्ताक्षर किए गए। आज देश के कुल सौर ऊर्जा उत्पादन में 66 फीसदी योगदान गुजरात का है।

लोग अक्सर पूछते हैं कि गुजरात मॉडल क्या है। दरअसल इस राज्य में व्यक्तिगत पहल और उद्यमशीलता के लिए पूरी आजादी दी गई है और राज्य ने इसके लिए अनुकूल माहौल भी पैदा किया है। यह नियोजन के सशक्तिकरण और लोगों के सशक्तिकरण का बेजोड़ उदाहरण है। इसमें केंद्र के अनुदान से चलनेवाली योजनाओं के साथ राज्य की विशिष्ठ योजनाओँ को पूरक बनाया गया है। यह विकास का एक मानक सांचा है जिसे कोई भी राज्य अपनाकर तरक्की की राह पकड़ सकता है। वैसे गुजरात मॉडल को सफल तरीके से लागू करने में जिन विभिन्न कारकों का हाथ है उसमें पहला कारक हे विरासत का। 2002 के पहले की सरकारों ने भी अच्छा प्रभाव छोड़ा है। दूसरा गुजरात में निजी उद्यमशीलता और सरकार के प्रति संदेह करने की स्वस्थ परंपरा रही है। तीसरा पानी और बिजली के क्षेत्र में गुजरात को अनुकूल स्थितियों का लाभ मिला। चौथा वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व ने नौकरशाही के सशक्तिकरण, भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम, नियोजन और डिलीवरी के विकेंद्रीकरण और पिछड़े वर्गों व क्षेत्रों के विकास के लिए सुनियोजित दखलंदाजी कर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

बहरहाल, इतना सब कुछ अगर गुजरात में मौजूद है तो फिर पश्चिमी देशों के लिए गुजरात को या नरेंद्र मोदी को दरकिनार करने की कोई वजह नहीं बनती है। आपको यह जानकर शायद आश्चर्य होगा कि जब अमेरिका और ब्रिटेन ने गोधरा कांड की आड़ लेकर मोदी को दरकिनार करने की कोशिश की तो नरेंद्र मोदी ने जापान से दोस्ती गांठी, चीन और इजरायल से दोस्ती गांठी। आज की तारीख में चीन, जापान और इजरायल से नरेंद्र मोदी के रिश्ते बेहद मधुर हैं। जाहिर है पूंजी निवेश में अमेरिका और ब्रिटेन के मुकाबले नरेंद्र मोदी जापान, इजरायल और चीन को ज्यादा तरजीह देंगे। इस बात को अमेरिका और ब्रिटेन भी समझ रहा होगा। गुजरात में दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस चुनाव की अहमियत इस मायने में अधिक है कि नरेंद्र मोदी भले ही गुजरात के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन उनकी छवि एक राष्ट्रीय नेता के रूप में है। देश की जनता उन्हें आगामी लोकसभा चुनाव-2014 में प्रधानमंत्री के एक सशक्त उम्मीदवार के रूप में देख रही है। देश के कुछ बड़े औद्योगिक घराने रतन टाटा, मुकेश अंबानी आदि ने भी देश के अगले प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी को पहली पसंद बताया है। गुजरात विधानसभा चुनाव में अगर मोदी की बड़ी जीत होती है तो प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी का दावा और मजबूत हो जाएगा। अंतरराष्ट्रीय राजनीति के जानकारों की इस पूरे घटनाक्रम पर पैनी नजर है और इसी के तहत गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान अमेरिका और ब्रिटेन ने नरेंद्र मोदी के प्रति समर्पण का एक खास भाव पेश किया है।

Saturday, October 13, 2012, 16:25

जब माफी मांगे बिना ही लोग उन्हें अगले प्रधानमंत्री के रूप में देखने को तैयार है तो वे माफी क्यों मांगे?

अगर वे माफी मांगते हैं जो वर्ग अभी तक मोदी को 2002 दंगों का कूसूरवार बताता आ रहा है उनकी बातों को बल मिलेगा कि वे सही थे।

पीएम पद के लिए मोदी को मंजूर नहीं माफीनामा   जब से यूके से संदेश आया है मोदी गदगद हैं। वे खुश हो भी क्यों न आखिर उनकी छवि जो देश से विदेश तक खराब थी उसमें सुधार आ रहा है। इस बात का अंदाजा सभी को है कि अगर मोदी को पीएम पद के रेस में आगे आना है तो उन्हें अपनी छवि में थोड़ा परिवर्तन लाना ही होगा। लेकिन वे अपनी छवि में परिवर्तन लाने के लिए 2002 के लिए लोगों से माफी नहीं मागने वाले। क्योंकि वे भी जानते हैं कि इससे उन्हें फायदा के बजाय नुकसान ही होगा। अभी दो दिन पहले राजदीप सरदेसाई से बात करते हुए उन्होंने 2002 दंगों के मसले पर माफी मांगने के सवाल पर कुछ नहीं बोला। सरदेसाई से दो बार यह सवाल किया कि जो लोग चाहते हैं कि वे प्रधानमंत्री बने, वे चाहते हैं कि मोदी 2002 दंगों के लिए लोगों से माफी मागें। क्या वे ऐसा करेंगे? दोनों ही बार मोदी ने कुछ नहीं कहा। आखिर इसके पीछे क्या वजह क्या हो सकती है?

मोदी अपनी छवि में तो सुधार तो चाहते हैं लेकिन माफी नहीं मांगना चाहते। अपनी इसी छवि को सुधारने के लिए उन्होंने    सद्भावना यात्रा निकाली थी। लेकिन यात्रा के दौरान एक अल्पसंख्यक के हाथों टोपी न पहनने पर उनकी सद्भावना यात्रा पर सवाल भी खड़े हुए थे। उसी समय इस बात संकेत मिल गए थे कि मोदी अपनी छवि में सुधार अपनी ही शर्तो पर चाहते हैं। आज जब लोग या कहे मीडिया मोदी को प्रधानमंत्री पद का सबसे प्रबल दावेदार मानता है तो भी वे माफी मांगने पर राजी नहीं है। माफी मांगने से मोदी को क्या नुकसान हो सकता?

अगर वे माफी मांगते हैं जो वर्ग अभी तक मोदी को 2002 दंगों का कूसूरवार बताता आ रहा है उनकी बातों को बल मिलेगा कि वे सही थे। जबकि मोदी शुरू से ही इस मसले पर अडिग रहे हैं। इस बात अंदाजा उन्हें भी है कि वे माफी मांग भी ले उस वर्ग का विश्वास नहीं जीत सकते। माफी मांगने से दूसरा नुकसान यह हो सकता है कि जिन लोगों ने 2002 दंगों के बाद भी मोदी को सर आंखों पर बैठाया। माफी मांगने के बाद मोदी की छवि उनकी आंखों में कम हो जाएगी। आखिर उनकी आंखों में 2002 के बाद से वे एक हीरो के रूप में सामने आए थे। तभी तो वे लगातार दो बार गुजरात में दो बार अपनी सत्ता जमाने में कामयाब हो सके। मोदी को उन लोगों का या कहे की उस वोट बैंक की भी चिंता है जिसके कारण वे माफी से कतरा रहे हैं।

अगर वे माफी मांग लेते हैं तो कांग्रेस भी उनको नहीं छोड़ेगा। कांग्रेस को बैठे-बिठाय मोदी पर निशाना साधने का मुद्दा मिल जाएगा। इस बार के गुजरात चुनावों में कांग्रेस 2002 की बात नहीं कर रहा क्योंकि उससे कांग्रेस को ही नुकसान होता। जिसका उदाहरण वे पिछले दो चुनावों में देख चुके हैं। जहां सोनिया ने मोदी को मौत का सौदागर तक कह दिया था। लेकिन उससे मोदी को ही फायदा हुआ और चुनाव आसानी से जीत गए। इन परिस्थितियों में अगर मोदी माफी मांगते हैं तो कांग्रेस इस मुद्दे को हाथ से जाने नहीं देगी। वैसे भी कांग्रेस भाजपा को कट्टर दल बताने का कोई मौका अपने हाथ से जाने देना नहीं चाहती। मोदी को शायद इन सभी बातों का इल्म है इसलिए ही वे माफी मांगने को तैयार नहीं है।

मोदी के माफी मांगने का सबसे बड़ा नुकसान उनको आरएसएस के गुस्से के रूप में भी झेलना पड़ सकता है। जब नीतिश कुमार ने कहा था कि अगला प्रधानमंत्री धर्मनिरपेक्ष होना चाहिए तो मोदी के बचाव में आरएसएस ही सबसे पहले सामने आया था। आज आरएसएस ही मोदी का सबसे बड़ा समर्थक है। अगर उसका साथ ही मोदी के साथ न रहा तो उनके लिए प्रधानमंत्री पद तक पहुंचना आसान नहीं होगा। क्योंकि सभी जानते हैं कि आरएसएस की सहमति के बिना भाजपा में कोई बड़ा फैसला नहीं होता।

मोदी यह जानते हैं कि प्रधानमंत्री पद के लिए उनकी छवि का सुधरना जरूरी हैं। लेकिन अपनी छवि सुधारने के चक्कर में अपना नुकसान नहीं कराना चाहते। उनके माफी न मांगने पर भी कई लोग उन्हें प्रधानमंत्री पद का दावेदार मानते हैं। संडे इंडियन में छपे सर्वे में भी लोग मोदी को बेहतर प्रधानमंत्री मानते हैं। सर्वे में इस बात पर लोगों ने सहमति जताई है कि अगर मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं तो देश से भ्रष्टाचार में काफी हद तक कमी आ जाएगी। यह मोदी के लिए अच्छी बात है। जब माफी मांगे बिना ही लोग उन्हें अगले प्रधानमंत्री के रूप में देखने को तैयार है तो वे माफी क्यों मांगे? 

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