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Thursday, October 4, 2012

गोधरा कांड में फंसाए गए मोदी ने दंगों पर लगाम कसने के लिए हरसंभव कदम उठाए थे-एसआईटी

 

मोदी ने दंगों पर लगाम कसने के लिए हरसंभव कदम उठाए थे-एसआईटी

सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल (एसआईटी) ने कहा है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2002 में गोधरा कांड के बाद भड़के दंगों पर लगाम कसने के लिए हरसंभव कदम उठाए थे। एसआईटी ने दंगों के चार साल बाद एक दंगा पीड़ित द्वारा मोदी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के मकसद पर भी सवाल खड़ा किया।
जाकिया जाफरी की शिकायत पर निचली अदालत में पेश अपनी रिपोर्ट में एसआईटी ने कहा कि दंगों के दौरान मारे गये कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी की विधवा जाकिया द्वारा लगाया गया कोई आरोप विचारणीय नहीं है। घटना के चार साल बाद शिकायत दर्ज कराने के मकसद पर भी एसआईटी ने सवाल खड़ा किया। 
मोदी पर 27 फरवरी 2002 को एक बैठक में शीर्ष पुलिस अधिकारियों को हिंदुओं को गोधरा कांड के मद्देनजर अपना गुस्सा जाहिर करने देने के लिए कहने संबंधी आरोपों पर एसआईटी ने कहा कि इस तरह के आरोपों को लगाने का कोई आधार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एसआईटी ने यह भी कहा कि अगर इस तरह के आरोपों को दलीलों के लिहाज से मान भी लिया जाए तो कोई अपराध नहीं बनता। एसआईटी की रिपोर्ट न्यायमित्र राजू रामचंद्रन की रिपोर्ट के विरोधाभासी है। रामचंद्रन ने कहा था कि अलग-अलग समूहों के बीच शत्रुता फैलाने के मामले में मोदी पर मुकदमा चलाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के वकील रामचंद्रन ने निलंबित आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की गवाही पर रिपोर्ट केंद्रित की थी। भट्ट ने शीर्ष अदालत में दाखिल हलफनामे में आरोप लगाया था कि मोदी ने शीर्ष पुलिस अधिकारियों को दंगाइयों पर नरमी बरतने का निर्देश दिया था।
एसआईटी रिपोर्ट के अनुसार, ‘मोदी ने कानून व्यवस्था की समीक्षा बैठकें कीं और हालात को संभालने के लिए सबकुछ किया गया।’ रिपोर्ट के अनुसार सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए समय पर सेना को बुलाया गया। एसआईटी ने कहा, ‘मोदी हालात पर लगाम लगाने, दंगा पीड़ितों के लिए राहत शिविर बनाने और स्थिति को शांतिपूर्ण एवं सामान्य करने के लिहाज से कदम उठाने में व्यस्त रहे।’
मुख्यमंत्री पर गैरकानूनी आदेश देने के आरोप के संबंध में रिपोर्ट में कहा गया है, ‘पुलिस अधिकारियों आरबी श्रीकुमार और संजीव भट्ट ने मुख्यमंत्री द्वारा कथित गैरकानूनी निर्देशों पर जो कहा है उसके संबंध में कोई आधार नजर नहीं आता।’ रिपोर्ट के अनुसार, ‘अगर दलीलों के लिए इन आरोपों को मान भी लें तो किसी कमरे की चार दीवारों में महज कथित शब्दों का बयान कोई अपराध नहीं तय करता।’
एसआईटी ने कहा, ‘विस्तृत जांच और शामिल लोगों के संतोषप्रद स्पष्टीकरण के मद्देनजर नरेंद्र मोदी के खिलाफ कोई आपराधिक मामला नहीं बनता।’ रामचंद्रन की रिपोर्ट के संबंध में सीबीआई के पूर्व निदेशक आरके राघवन की अध्यक्षता वाली एसआईटी ने कहा कि न्यायमित्र ने केवल भट्ट के बयानों पर किसी नतीजे पर पहुंचकर ‘भूल की’ है।

 

काफा न पहनने से मोदी जी हमारे दुश्मन नहीं बन जाते - मुस्लिम छात्रायें

 इलाहाबाद इंजीनियर कॉलेज की थर्ड ईयर की छात्रा मिस फातिमा और नौरीन मुस्तफा ने कहा कि आज मोदी जी ने 'काफा' नहीं पहना तो उन्हें हमारे समुदाय का दुश्मन बताया जा रहा है।

अगर
वो काफा पहन लेते तो क्या वो हमारे लिए दोस्त साबित हो जाते? ये बाते सिर्फ और सिर्फ उन लोगों के लिए मायने रखतीं है जो कि धर्म के नाम पर राजनीति करते हैं और राम-रहीम को बांटते हैं।

जिनके अपने गोधरा दंगो के शिकार हुए हैं, उनका गम तो कोई नहीं भर सकता और इतनी बड़ा त्रासदी का जिम्मेदार कोई अकेला नहीं हो सकता है। इसलिए इन दंगों के लिए केवल मोदी जी को जिम्मेदार ठहराना सही नहीं होगा। वो इस बात के लिए दोषी हैं या नहीं इसका फैसला कानून करेगा लेकिन इस बात को मु्द्दा बनाकर कुछ लोग अपनी राजनैतिक रोटियां सेंक रहे हैं।

जो लोग मुस्लिम समुदाय के हितैषी बनते हैं और मोदी को गलत ठहराते हैं, हम उनसे पूछते हैं कि उन्होंने हमारे और हमारे समुदाय के लिए क्या किया है? किसी के ऊपर दोषारोपण करने से ही लोगों का भला नहीं हो जाता है। इसलिए हम अपने समुदाय और देश की जनता से अपील करते हैं कि वो इस तरह की बातों को तूल ना दें और धर्म के नाम पर होने वाली राजनीति से दूर रहें। तभी इस देश का और इस देश के लोगों का भला हो सकता है।

गौरतलब है कि इन दिनों गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी उपवास पर हैं, अपने उपवास के दौरान मोदी ने 'काफा, जो कि एक तरह का स्कार्फ होता है जिसे मुस्लिम समुदाय के लोग पहनते हैं, को पहनने से इंकार कर दिया। एक मुस्लिम शख्स ने मोदी को 'काफा' भेंट किया। मोदी साहब ने उस शख्स का अभिवादन तो स्वीकार कर लिया लेकिन काफा नहीं पहना जिसके बाद से विरोधियों ने कहना शुरू कर दिया कि मोदी जी ने दोबारा मुस्लिम समुदाय का अपमान किया है।

इससे पहले सद्भावना उपवास के दौरान भी एक मुस्लिम गुरू ने उन्हें अपने समुदाय की टोपी पहनानी चाही थी लेकिन उन्होंने मना कर दिया था।

 

गुजरात सरकार ने गोधरा कांड के आरोपियों के लिए फांसी मांगी

 गुजरात सरकार ने गोधरा मामले में निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए अपील दायर करके 20 आरोपियों को मुत्यु दंड देने की मांग की है। इन सभी लोगों को वर्ष 2002 में हुए गोधरा कांड के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

इस
मामले में सरकारी वकील जे. एम. पांचाल ने शनिवार को कहा कि हमने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर 20 आरोपियों को मुत्यु दंड दिए जाने की मांग की है, इन आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा दी गई है। इसके अलावा हमने निचली अदालत द्वारा रिहा किए गए आरोपियों को भी अधिकतम सजा देने की मांग की है।

निचली
अदालत ने मामले में इस साल 22 फरवरी को 11 लोगों को मौत की सजा भी सुनाई थी और अन्य लोगों को रिहा कर दिया था। पंचाल ने दावा किया कि रिहा किए गए लोगों के खिलाफ सरकार के पास पर्याप्त सबूत हैं।27 फरवरी 2002 को गोधरा रेलवे स्टेशन पर साबरमति एक्सप्रेस रेलगाड़ी के दो कोचों में लगी आग से 59 लोगों की मौत हुई थी।

 

एसआइटी ने गुजरात दंगा मामले में चार पुलिस अधिकारियों को क्लीन चिट दी

 सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित विशेष जांच दल [एसआइटी] ने राज्य पुलिस के चार आला अधिकारियों को गुजरात दंगा मामले में क्लीन चिट दे दी है। विशेष अदालत ने इस मामले में अपना फैसला 31 मई तक सुरक्षित रखा है। अदालत के इस रुख से मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को राहत पहुंची है।

अहमदाबाद
की गुलबर्ग सोसाइटी में 28 फरवरी 2002 को दंगों के दौरान कांग्रेस के पूर्व सांसद अहसान जाफरी समेत 69 लोगों की हत्या कर दी गई थी। विशेष अदालत के न्यायाधीश बी जे. ढांडा के समक्ष जांच रिपोर्ट पेश कर एसआइटी ने राज्य के तत्कालीन पुलिस आयुक्त पीसी पांडे, संयुक्त पुलिस आयुक्त एमके टंडन, पुलिस उपायुक्त पीबी गोंदिया और अहमदाबाद सिटी अपराध शाखा के सहायक पुलिस आयुक्तएसएस चूड़ास्मा को क्लीन चिट दे दी है।

जांच
दल का कहना है कि चारों पुलिस अधिकारियों के खिलाफ दंगों में लिप्त होने का कोई सुबूत नहीं मिला है। दंगे में मारे गए सांसद की पत्नी जकिया जाफरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर गुलबर्ग सोसाइटी मामले की सीबीआइ जांच कराने की मांग की थी। इसके बाद कोर्ट के आदेश पर एसआइटी का गठन किया गया था। साथ ही दंगा मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालत भी बनी थी।

बचाव
पक्ष के वकील एस. एम. वोरा ने पुलिस अधिकारियों का पक्ष रखते हुए कहा था कि भारतीय साक्ष्य कानून की धारा-6 के तहत उक्त अधिकारी सीधे तौर पर दंगा मामले में शामिल नहीं हैं। इसके अलावा उनके खिलाफ लापरवाही बरतने का भी कोई मामला नहीं बनता है।

 

मुझे तीस्ता शीतलवाड़ ने 'फुसलाया और गुमराह' किया - यासमीन बानो

2002 के गुजरात के बेस्ट बेकरी कांड में अभियोजन पक्ष की एक महत्वपूर्ण गवाह शेख यासमीन बानो ने बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उसने आरोप लगाया है कि उसे सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता शीतलवाड़ ने 'फुसलाया और गुमराह' किया था। बानो ने यह भी आरोप लगाया है कि तीस्ता ने 17 आरोपियों के खिलाफ गवाही दिलवाने के लिए ऐसा किया, जिनमें से नौ को उम्रकैद की सजा हो चुकी है।
बॉम्बे हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को 17 जून, 2010 को लिखे पत्र पर कोई कार्रवाई नहीं किए जाने के बाद यासमीन ने इस हफ्ते के शुरू में याचिका दाखिल की थी। याचिका में कहा गया है कि यास्मीन ने आरोपियों के खिलाफ गवाही दी और तीस्ता सीतलवाड़ की ओर से और उसकी सलाह पर आरोपियों की केवल इस उम्मीद में शिनाख्त की कि तीस्ता उसकी आर्थिक मदद करेगी। यासमीन ने अपील की है कि निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए नौ दोषियों द्वारा दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई के साथ ही हाई कोर्ट द्वारा उसकी गवाही नए सिरे से रिकॉर्ड की जाए।

 

गोधरा कांड नहीं था हादसा, रची गई थी साजिश

गुजरात के गोधरा में 27 फरवरी, 2002 को कारसेवकों से भरी साबरमती एक्सप्रेस की एस6 बोगी में आग लगाए जाने के मामले में मंगलवार को विशेष अदालत ने पहली बार फैसला सुनाया। इस अग्निकांड में 58 कारसेवकों की मौत हुई थी। विशेष अदालत ने इस मामले में 31 लोगों को दोषी करार दिया और 63 लोगों को बरी कर दिया। अदालत ने माना कि आग साजिश के तहत लगाई गई थी, कि यह हादसा था। दोषी करार दिए गए लोगों के लिए सजा का ऐलान 25 फरवरी को किया जाएगा।

सरकार ने मौलाना उमरजी को साबरमती एक्‍सप्रेस में आग लगाने का मुख्‍य साजिशकर्ता बताया था, लेकिन अदालत ने उन्‍हें बरी कर दिया है। इस मामले में मंगलवार को 9 साल में पहली बार फैसला आया। फैसले के मद्देनजर गोधरा, अहमदाबाद और बडोदरा में पुलिस को सतर्क कर सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए हैं।

हाल के वर्षो में देश के इतिहास में हुए इस सबसे बड़े अपराध के मामले में विशेष अदालत ने मंगलवार को साबरमती केंद्रीय जेल परिसर में अपना फैसला सुनाया। गोधरा में 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के एस6 कोच में आग लगा दी गई थी जिसमें 58 लोगों की मौत हो गयी थी। इस घटना के बाद भड़के दंगों में करीब 1100 लोगों की मृत्यु हो गई और संपत्ति को भारी नुकसान पंहुचा था।

पुलिस उपायुक्त सतीश शर्मा के अनुसार इस फैसले के मद्देनजर जेल परिसर के साथ ही सभी संवेदनशील स्थानों पर कड़ी चौकसी बरती जा रही है और किसी भी अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए पुलिस के 8000 जवानों के साथ ही, राज्य रिजर्व पुलिस बल की 25 कंपनियां, त्वरित कार्रवाई बल की तीन टुकड़ियां और होमगार्ड के जवानों की तैनाती की गई है।

प्रशासन ने अहमदाबाद और गोधरा में सार्वजनिक प्रदर्शनों को प्रतिबंधित कर धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी है। इसके अलावा मीडिया द्वारा इस घटना से जुड़ी तस्वीरों के प्रकाशन एवं प्रसारण पर रोक है।

पुलिस सूत्रों के मुताबिक यहां स्थित साबरमती सेंट्रल जेल कांप्लेक्स सहित सभी संवेदनशील इलाकों में पुलिस बल तैनात किया गया है। इसके अलावा एसआरपी और आरपीएफ की टीम गश्त करेगी। मध्य गुजरात के वडोदरा, पंचमहाल, दाहोद, नर्मदा और भरूच में भी विशेष सतर्कता बरती जा रही है।

इस केस में कुल 97 आरोपी लंबे समय से जेल में हैं। गोधराकांड की जांच भी विशेष जांच टीम ने की थी।

प्रमुख साजिशकर्ता : मौलवी हुसैन हाजी इब्राहिम उमरजी

प्रमुख कोर टीम : हाजी बिलाल, सलीम जर्दा, शौकत अहेमद चरखा उर्फ लालु(फरार), सलीम पानवाला (फरार), जबीर बिनयामीन बहेरा, अब्दुलरजाक कुरकुरे, अब्दुलरहेमान मेंदा उर्फ बाला, हसन अहेमद चरखा उर्फ लालु, महेमुद खालिद चांद

प्रमुख कोर टीम के सहायक : फारुक अहेमद भाण(फरार), महंमद अहेमद हुसेन उर्फ लतिको, इब्राहिम अहेमद भटकु उर्फ फेटु (फरार)

 

कांग्रेस में संशोधित करवाई एसआईटी रिपोर्ट-अब मोदी को क्लीन चिट नहीं

गोधरा दंगों की जांच कर रही एसआईटी की रिपोर्ट सामने गयी है. माना जा रहा है कि इस रिपोर्ट में मोदी को क्लीनचिट नहीं दी गयी है. मतलब दंगों के दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की भूमिका साफ-सुथरी नहीं है.


इससे पहले ये बात सामने आयी थी कि एसआईटी ने नरेन्द्र मोदी को दंगों के मामले में क्लीचिट दे दी है. पर अब जबकि रिपोर्ट सामने आ गयी है, सीधे संकेत यही हैं कि मोदी के हाथ दंगों में साफ नहीं हैं. 2002 में साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में जलकर 61 लोगों की मौत हो गयी थी.

उसके बाद पूरे गुजरात में भीषण दंगे हुए थे.मोदी उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री थे और गृहमंत्रालय भी उन्हीं के पास था. ऐसे में दंगों के दौरान प्रशासन की भूमिका को लेकर जांच की गयी और खोजा गया कि दंगों को रोकने में नरेन्द्र मोदी की भूमिका क्या रही.

एसआईटी ने जो भी जांच में पाया है उसके मुताबिक नरेन्द्र मोदी दंगों के दाग से बचे नहीं हैं. साबरमती एक्सप्रेस गोधरा कांड में फैसला 16 फरवरी को आने वाला है.

माना जा रहा है की एसआईटी की यह रिपोर्ट केंद्र सरकार के दखल के बाद संशोधित की गई है, यदि इस रिपोर्ट में मोदी को क्लीन चिट दे दी जाती तो कांग्रेस और दूसरी पार्टियों के पास तो कोई मुद्दा ही नहीं रहता.

:: हिन्दूराष्ट्र ::: गोधरा कांड

गिरफ्तारी के डर से तीस्ता सीतलवाड़ ने अग्रिम जमानत मांगी

गुजरात दंगों के बाद सुर्खियों में आईं तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने लूनावाड़ा नरकंकाल मामले में गिरफ्तारी के डर से गोधरा की फास्ट ट्रैक कोर्ट में अग्रिम जमानत की अर्जी लगाई है।गैर सरकारी संगठन [एनजीओ] सिटीजन फॉर पीस एंड जस्टिस की प्रमुख तीस्ता पर आरोप है कि उनके ही इशारे पर उनके पूर्व साथी रईस खान पठान ने पंचमहाल जिले के लूनावाड़ा में पानम नदी के किनारे दफनाए गए शवों को निकाला था।


बाद में हालांकि इन शवों के डीएनए टेस्ट में करीब आधा दर्जन लोगों की स्थानीय बाशिंदों के रूप में पहचान हुई थी। लेकिन, मामले की जाच कर रही गोधरा पुलिस ने गत माह रईस खान को प्रशासन की मंजूरी बगैर दंगों में मारे गए लोगों की कब्र खोदने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था।

पूछताछ के दौरान रईस ने पुलिस को बताया था कि उसने तीश्ता के कहने पर ही कब्र से शव बाहर निकाले थे।गुजरात दंगा पीड़ितों के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने वाली तीस्ता ने जनवरी, 2008 में रईस को अपनी संस्था से निकाल दिया था। इसके बाद रईस ने तीश्ता पर दंगा पीड़ितों को बरगलाने का आरोप लगाया था।

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सुप्रीम कोर्ट की तीस्ता सीतलवाड़ को कड़ी फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने विदेशी संगठनों में गुजरात दंगों का मुद्दा बुलंद करने पर सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को कड़ी फटकार लगाई.

न्यायमूर्ति डीके जैन की अध्यक्षता वाली एक विशेष पीठ ने कहा, हम यह पसंद नहीं करते कि अन्य संगठन हमारे कामकाज में दखल दें। हम खुद उन्हें निबटा सकते हैं और दूसरों से दिशा-निर्देश नहीं ले सकते। यह हमारे काम काज में सीधा दखल है। हम इसे पसंद नहीं कर सकते।

अदालत इससे नाराज थी कि तीस्ता की अध्यक्षता वाले गैर-सरकारी संगठन ‘सेंटर फॉर जस्टिस एंड पीस’ (सीजेपी) ने जिनेवा आधारित मानवाधिकार उच्चायुक्त के कार्यालय से संपर्क कर गुजरात दंगों के गवाहों की सुरक्षा का मुद्दा उठाया था।

पीठ ने कहा, ऐसा प्रतीत होता है कि इस अदालत से ज्यादा विदेशी संगठनों पर आपका भरोसा है। ऐसा लगता है कि गवाहों की सुरक्षा इन संगठनों से होगी। पीठ ने कहा कि अगर इस तरह के पत्र लिखे जाएंगे, तो अदालत सीजेपी की दलीलें सुने बिना आदेश पारित करेगी।

अदालत ने कहा, अगर आप इस तरह के पत्र भेजेंगे, तो हम न्यायमित्र की दलीलें सुनेंगे और (आपकी दलीलें सुने बगैर) आदेश पारित करेंगे। पीठ ने कहा, तमाम मामलों की हम निगरानी कर रहे हैं, हम विदेशी एजेंसियों के साथ उनका (तीस्ता का) पत्राचार पसंद नहीं करते।

यह मुद्दा पीठ के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने पेश किया, जो 2002 के गुजरात दंगों के मामलों में न्यायमित्र के रूप में अदालत की सहायता कर रहे हैं। सीजेपी की अधिवक्ता कामिनी जायसवाल ने कहा कि भविष्य में इस तरह का कोई पत्र अन्य संगठनों को नहीं भेजा जाएगा।

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एसआईटी ने गुजरात दंगों के मामले में मोदी को दी क्लीन चिट

सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित एसआईटी ने गुजरात दंगों के मामले में राज्य के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को क्लीन चिट दे दी है। एसआईटी की रिपोर्ट में मोदी को उस आरोप से मुक्त कर दिया गया है जिसमें कहा गया था कि उन्होंने गोधरा कांड के बाद 2002 में हुए दंगों के समय अपने संवैधानिक जिम्मेदारियों को नहीं निभाया।
सूत्रों के मुताबिक, एसआईटी को मोदी के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिले हैं।
 
गौरतलब है कि एसआईटी ने 6 दिन पहले ही अपनी स्टेटस रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंपी है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 27 अप्रैल को सीबीआई के पूर्व निदेशक आर. के. राघवन की अध्यक्षता में एसआईटी का गठन किया था। एसआईटी को गुजरात दंगों के दौरान मारे गए पूर्व कांग्रेसी सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी की शिकायत की जांच करने को कहा था।
 
जाकिया ने मोदी पर आरोप लगाया था कि उन्होंने दंगाइयों को भड़काया था। गौरतलब है कि जाकिया के पति एहसान जाफरी की गुजरात दंगों के दौरान हत्या कर दी गई थी। जाकिया का आरोप था कि पुलिस ने दंगाइयों को रोकने के लिए कुछ नहीं किया।
 
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश डी. के. जैन, आफताब आलम और पी. सदाशिवम की बेंच के समक्ष पेश की गई एसआईटी की रिपोर्ट के बारे में अभी तक कुछ पता नहीं चला है। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, एसआईटी ने जाकिया की शिकायत पर जांच पूरी कर ली है और उसे मोदी के खिलाफ कोई ठोस सबूत हाथ नहीं लगे हैं।
 

:: हिन्दूराष्ट्र ::: गोधरा कांड

गोधरा कांड में फंसाए गए दो भाजपा विधायको को जमानत

गुजरात उच्च न्यायालय ने गोधरा कांड के बाद हुए दंगे के मामले में गिरफ्तार भाजपा के पूर्व विधायक प्रह्लाद गोसा और स्थानीय निकाय के सदस्य को आज जमानत दे दी।

न्यायमूर्ति आर एच शुक्ला ने मामले की सुनवाई करते हुए गोसा और दाह्याभाई पटेल को जमानत दे दी। पटेल को गत अगस्त में उस समय गिरफ्तार कर लिया गया था जब कुछ गवाहों ने मेहसाणा के विसनगर के दीप्दा दरवाजा क्षेत्र में दंगा भड़काने के आरोप लगाये। वर्ष 2002 में हुए इस दंगे के दौरान 11 लोगों को जिंदा जला दिया गया था।

गोसा और पटेल के वकील योगेश लखानी ने कहा था कि गवाहों ने उनके मुवक्किल का नाम इस मामले की सुनवाई के दौरान इस वर्ष के शुरू में लिया था। लखानी ने कहा, ‘‘वर्ष 2002 के बाद से गवाहों के बयान चार बार दर्ज किये गए लेकिन उस दौरान उन्होंने गोसा और पटेल का नाम नहीं लिया।’

:: हिन्दूराष्ट्र ::: गोधरा कांड

नानावटी आयोग को नहीं मिले मोदी के खिलाफ पर्याप्त सबूत

गोधरा कांड के बाद हुए गुजरात दंगों की जांच कर रहे नानावटी आयोग ने कहा है कि आयोग के सामने अब तक पेश किए गए सबूत नरेंद्र मोदी को समन भेजने के लिए नाकाफी है। हालांकि आयोग ने कहा कि यदि आयोग के सामने भविष्य में और सबूत आते हैं तो नरेंद्र मोदी को भी समन भेजा जा सकता है।

जब अधिवक्ता मुकुल सिन्हा ने सफाई पेश की कि राज्य सरकार ने गुजरात हाई कोर्ट को पहले ही जानकारी दे दी थी कि नरेंद्र मोदी को पूछताछ के लिए बुलाए न जाने पर फैसला अंतिम नहीं है तो इस पर आयोग ने सफाई दी की यह समन पूर्व गृह राज्य मंत्री गोर्धन जदाफिया और पुलिस अधिकारी आरजे सावानी से संबद्ध था और नरेंद्र मोदी से संबद्ध नहीं था।

हालांकि जस्टिस नानावटी ने साफ किया कि यदि भविष्य में आयोग के सामने ऎसे सबूत आए और आयोग को किसी को भी समन भेजने की जरूरत महसूस हुई तो आयोग समन भेजेगा।

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