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Saturday, March 31, 2012

मेरी नज़र से न हो दूर एक पल के लिए

मेरी नज़र से न हो दूर एक पल के लिए

August 3, 2005
Lyricist: Qateel Shifai
Singer: Ghulam Ali
इसका रोना नहीं क्यों तुमने किया दिल बरबाद
इसका ग़म है कि बहुत देर में बरबाद किया।

मेरी नज़र से न हो दूर एक पल के लिए
तेरा वज़ूद है लाज़िम मेरी ग़ज़ल के लिए।
कहाँ से ढूँढ़ के लाऊँ चराग से वो बदन
तरस गई हैं निग़ाहें कँवल-कँवल के लिए।
कि कैसा तजर्बा मुझको हुआ है आज की रात
बचा के धड़कनें रख ली हैं मैंने कल के लिए।

क्या बेमुरौव्वत ख़ल्क़ है सब जमा है बिस्मिल के पास
तनहा मेरा क़ातिल रहा कोई नहीं क़ातिल के पास।

‘क़तील’ ज़ख़्म सहूँ और मुसकुराता रहूँ
बने हैं दायरे क्या-क्या मेरे अमल के लिए।

लाज़िम = Essential, Important, Necessary
ख़ल्क़ = World

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