खुली जो आँख तो वो था न वो ज़माना था
July 25, 2005Lyricist: Farhat Sahzad
Singer: Mehdi Hasan
खुली जो आँख तो वो था न वो ज़माना था
दहकती आग थी तनहाई थी फ़साना था।
ग़मों ने बाँट लिया मुझे यूँ आपस में
कि जैसे मैं कोई लूटा हुआ ख़ज़ाना था।
ये क्या चंद ही क़दमों पे थक के बैठ गए
तुम्हें तो साथ मेरा दूर तक निभाना था।
मुझे जो मेरे लहू में डुबो के गुज़रा है
वो कोई ग़ैर नहीं यार एक पुराना था।
ख़ुद अपने हाथ से ‘शहज़ाद’ उसे काट दिया
कि जिस दरख़्त के तनहाई पे आशियाना था।
No comments:
Post a Comment