हमदर्दी का नाम न दे…
November12
हमदर्दी का नाम न देयह तो है मोहब्बत मेरी
अहसान का मुझे करार न दे
चाहा है तुझे दिल से
समझती हूँ में जज़्बात तेरे
मेरी बात भी तू समझ ज़रा
नाम उसका तू बार बार न ले
कही यह दिल उससे बेवफी न दे दे
वाडा किया है तो निभाना पड़ेगा
चाहे मेरी जान चली जाए
वादा किया है तो मुझे जाना ही पड़ेगा
इस मोहब्बत को तो आज़माना पड़ेगा
विशवाश है मुझे उन आँखो पे
चाहे यह मेरा धुन्ध विशवाश हो
देखा है उसने मोहब्बत से मुझे
देखी है नामी मैने उन आँखों में
उससे भूलना अब आसान न होगा
यह बंधन हो गया है पुराना
मुझे उन बाहों में जाना होगा
उस दिल में घर आपना बनाना होगा
शायद यह ज़िंदगी की भूल हो
मुझे यह ज़ोख़िम उठना होगा
लाए हम आपने घर कातिल को
देना है मंज़िल-ए-अंजाम इश्क़ को
तू आज मुझसे एक वादा कर दे
छोड़ना न मुझे तू कभी
तू मेरा हाथ आज थम ले
संभाल लेना गर ज़िंदगी मुझे धोखा दे
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