गुलशन-गुलशन शोला-ए-ग़ुल की
October 25, 2005Lyrics: Asghar Saleem
Singer: Mehdi Hasan
गुलशन-गुलशन शोला-ए-ग़ुल की ज़ुल्फ़-ए-सबा की बात चली
हर्फ़-ए-जुनूँ की बंद-गिराँ की ज़ुल्म-ओ-सज़ा की बात चली।
ज़िंदा-ज़िंदा शोर-ए-जुनूँ है मौसम-ए-गुल के आने से
महफ़िल-महफ़िल अबके बरस अरबाब-ए-वफ़ा की बात चली।
अहद-ए-सितम है देखें हम आशुफ़्ता-सरों पर क्या गुजरे
शहर में उसके बंद-ए-क़बा के रंग-ए-हिना की बात चली।
एक हुआ दीवाना एक ने सर तेशे से फोड़ लिया
कैसे-कैसे लोग थे जिनसे रस्म-ए-वफ़ा की बात चली।
–
सबा=Breeze, wind
हर्फ़-ए-जुनूँ = A word that describes craziness
अरबाब = Friends
अहद-ए-सितम = Days of Tyranny/Cruelty
आशुफ़्ता = Perplexed, Careworn, Distracted, Confused
आशुफ़्ता-सर = Mentally Deranged
क़बा = Gown, Long Coat Like Garment (I think it has been used in the sense of बुर्का here)
बंद-ए-क़बा = Locked in the gown/बुर्का
तेशे = Axe
No comments:
Post a Comment