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Thursday, March 29, 2012

वो हवा का ज़ोखा छू के निकल गया…


November12
वो हवा का ज़ोखा छू के निकल गया
गुदगुदा के मेरे मंन को यूह सा निकल गया

छीन के मेरे सपनो को पानी वो दे गया
वो पियासा था जो दरया को रवानी दे गया
टकटकती है यह नज़र दस्तख़ पे
दिल पे दस्तख़ का है इंतज़ार
हवा के साथ आया था वो लूटेरा
लूट के मुझे चला गया

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