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Friday, May 11, 2012

इंदिरा के जमाने से ही शुरू हो गई थी सियासत व्यापार बननी

इंदिरा के जमाने से ही शुरू हो गई थी सियासत व्यापार बननी

 इंदिरा की बरसी पर धवन ने कहा- 'इंदिरा ने इमरजेंसी और ब्ल्यू स्टार के कदम मजबूरी में उठाए। दोनों का बहुत अफसोस था बाद में।' ताकि सनद रहे। सो बताना जरूरी। इंदिरा ने दोनों काम जून में किए। पहला 25 जून 1975 को। दूसरा पहली जून से पांच जून 1984 तक। पहले बात इमरजेंसी की। अपन धवन और फोतेदार की इस बात से सहमत नहीं। जो उनने कहा- 'विपक्ष हर काम में अड़चन बन रहे थे। इसलिए इंदिरा ने इमरजेंसी लगाई। इमरजेंसी का फैसला तो जनवरी में हो गया था। पर लगी जून में।' हां, सिध्दार्थ शंकर रे जैसों की जनवरी में इंदिरा को सलाह थी- 'भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन कुचलने के लिए इमरजेंसी लगाई जाए।' पर इमरजेंसी लगी तब जब इंदिरा के पीएम पद पर खतरा मंडराया। इमरजेंसी लगी इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से। जिसमें इंदिरा का चुनाव रद्द हुआ। उन्हें पीएम पद से इस्तीफा देना पड़ता। इसलिए संविधान सस्पेंड कर इमरजेंसी लगाई। अब बात ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार की। तो जनरैल सिंह भिंडरावाले विरोधी अकाली दल में नहीं थे। कांग्रेस के करीब थे भिंडरावाले। इंदिरा और ज्ञानी जैलसिंह दोनों के करीब। अपना गढ़े मुर्दे उखाड़ना जायज नहीं। पर इंदिरा के महिमामंडन में इमरजेंसी-ब्ल्यू स्टार के जख्म हरे करना भी जायज नहीं। सो आज बात माफी और महिमामंडन की नहीं। बात व्यापार बन गई सियासत की। इंदिराकाल से ही व्यापार बन गई थी सियासत। आज महाराष्ट्र हो या हरियाणा। मंत्री पद की मंडी लगी हैं। सौदेबाजी हो रही है। अपन ने कल बताया ही था। एंटनी-अहमद की पवार-प्रफुल्ल से बात सिरे नहीं चढ़ी। शुक्रवार को इधर एंटनी-अहमद ने सोनिया को रपट दी। तो उधर मुंबई में पवार के घर पर चौक्ड़ी जमी। प्रफुल्ल, छगन और आरआर पाटिल भी बैठे। पवार ने साफ कहा- 'बहुत झुक लिए, अब और नहीं। फार्मूला 99 ही चलेगा। तब एनसीपी की 58 सीटें थी अब तो 62 सीटें। फिर होम, फाईनेंस, पावर क्यों दें।' प्रफुल्ल मुंबई से ही तुर्की उड़ गए। आज आधी रात के बाद लौटेंगे। तो इतवार को बातचीत का एक और दौर होगा। यानी दो को भी शपथ होना आसान नहीं। कुछ ऐसा ही फच्चर हरियाणा में। मंत्री पदों की रेवड़ियां कम। मांगने वाले ज्यादा। हुड्डा को सात इंडिपेंडेंट का समर्थन तो मिल गया। पर साथ बनाए रखना खालाजी का घर नहीं। हुड्डा चाहते हैं भजन का छोरा साथ आ जाए। तो मुसीबत कटे। पर कुलदीप विश्नोई हाथ नहीं धरने दे रहे। हुड्डा की कोशिश भजन-कुलदीप की विकास कांग्रेस तोड़ने पर भी। बता दें- वाजपेयी दो कानून बहुत टेढ़े बना गए। एक तो अब एक तिहाई नहीं। पार्टी तोड़ने के लिए दो तिहाई एमएलए चाहिए। सो भजन-कुलदीप की विकास कांग्रेस तब टूटेगी। जब छह में चार एमएलए टूटें। चार एमएलए टूटना कोई मुश्किल नहीं। पर ब्रीफकेस न सही। मंत्री पद तो देना ही होगा। वाजपेयी दूसरा टेढ़ा कानून बना गए मंत्री पद का। अब एसेंबली का 15 फीसदी ही हो सकते हैं मंत्री। यानी 90 के सदन में 14 मंत्री। सात इंडिपेंडेंट और चार भजनिए-कुलदीपिए मंत्री बनें। तो कांग्रेस के हाथ क्या आएगा। कहीं चौटाला कांग्रेस ही न तोड़ दें। ऊपर से अपन को जितना आसान लगता था। राजनीति का खेल उतना आसान होता नहीं।

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