मै अच्छी तरह जानता हूँ
की नही मिल सकता , मुझे चाँद
तो क्या
मै चाँद को पाने की अपनी
ज़िद छोड दूँ
जब जब मेरी आशाओं
के नन्हे नन्हे हाथ बढ़ने लगते है
छुने चाँद को
तुम समझाने लगती
हो मुझे पानी भरे थाल में
दिखा कर चाँद की परछाई
देखो यह रहा तुम्हारा चाँद
लो छु लो इसे
पर
तुम शायद समझती हो
मुझे अब भी नन्हा सा किशन
कभी कभी तो हो कर
परेशान मेरी इस ज़िद से
तुम करने लगती हो
मेरे चाँद की बुराई
उघेड़ने लगती हो
मेरे चाँद की बखिया
और उसकी चमकती चांदी का
रहस्य की ये उसकी अपनी कहाँ है ?
तो क्या ?
चाँद को देखने की
मेरी अपनी नज़र है
चाहे कैसी भी हो
तुम्हारी नज़र तुम्ही कहो कैसे
छोड दूँ आखिर मै
चाँद को पाने की अपनी ज़िद ?
चाँद को पाने ना पाने का प्रश्न पीछे है
पहले चाँद को
पाने की ज़िद ही हो इतनी
उँची की वही छु ले आसमान को
यदि छोड दूंगा
मै चाँद को पाने की
अपनी ज़िद
तो दूर बहुत दूर न चला जाऊँगा
मै अपने चाँद से
अरे इतनी सीधी सी बात
तुम समझती क्यूँ नही ?
की यही चाँद को पाने की
मेरी ज़िद ही मुझे रखती
है चाँद के आसपास
इसी उम्मीद मे की कभी
पा ही लूँगा मै अपना चाँद
तुम चाहे लाख कहो कि
नही पा सकता मै अपना चाँद कभी
फिर भी मै नही छोड सकता
चाँद को पाने कि अपनी ज़िद
देखना तुम एक रात जब
मेरी चाहत के आगे
समर्पित हो कर सारी दुनिया
के सामने उतरेगा
चाँद अपनी पूर्णता के साथ
मेरे घर के छोटे से आँगन में
या फ़िर बुला लेगा चाँद प्यार
से मुझे पूनम की ठंडी सी रात में
और छुपा लेगा मुझे अपनी बांहों में
आख़िर क्या फर्क पड़ता है ?
इन बातों से की मै चाँद को पा जाऊँ
या फ़िर चाँद मुझे
और इसीलिए मै कभी नही
छोड़ सकता यह जिद
की मुझे चाँद चाहिए
हाँ बस मुझे चाँद चाहिए
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