ये तोहमत कि हम बदजुबान हो गए।
इसी बहाने कुछ अपने कद्रदान हो गए।
इमानदारी के लफ्जो को बेचते बेचते।
आखिर हम भी एक दिन बेइमान हो गए।।
हर रोज जानवरों का किरदार निभाते रहे।
पूछा जो खुदा ने तो कहा हम इंसान हो गए।।
हमारी शक्ल देखकर रास्ता बदलने वाले।
आज क्या बात कि सरकार मेहरबान हो गए।।
क्या बना दूं और कौन सी नियामत लाऊं।
बडी मुददत के बाद वो मेरे मेहमान हो गए।।
हमने झेले हैं गमों और मुश्किलों के तुफां को।
आप तो इन आंधियों में ही परेशान हो गए।।
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