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Sunday, May 20, 2012


इतिहास के पन्नों में दबे जिन दरिन्दे शासकों की मै ..यहा चर्चा करूंगा उनमें सबसे पहला नाम मंगोलियाई मूल के क्रूर चंगेजखान का आता है। उसके बाद उसी देश का हलाकु खान का नाम आता है जो चंगेजखान की मौत के बाद सक्रिय हुआ। तीसरे नम्बर का दरिन्दा रहा तेमूल लंग। उपरोक्त तीनों के बारे में आप अब तक पढ चुके हैं। अब है बारी चौथे नम्बर के दरिन्दे शासक रहे अहमदशाह अब्दाली की.. जिसने भारत को बुरी तरह लूटा और आबादी में भीषण नरसंहार और रक्तपात किया। पॉचवे नम्बर पर आता है अरब का बादशाह नादिर शाह..। उसकी चर्चा इसके बाद होगी।

अहमदशाह अब्दाली

अफगान शासक.....अहमद शाह अब्दाली यानि जिसे अहमद शाह दुर्रानी भी कहा जाता है, सन 1748 में नादिरशाह की मौत के बाद अफगानिस्तान का शासक और दुर्रानी साम्राज्य का संस्थापक बना। उसने भारत पर सन 1748 से सन 1758 तक कई बार चढ़ाई की और अपने दल बल के साथ रक्तपात और मूल्यवान सम्पदा की  लूटपाट करता रहा। उसने अपना सबसे बड़ा हमला सन 1757 में जनवरी माह में दिल्ली पर किया। उस समय दिल्ली का शासक आलमगीर (द्वितीय) था। वह बहुत ही कमजोर और डरपोक शासक था। उसने अब्दाली से अपमानजनक संधि की जिसमें एक शर्त दिल्ली को लूटने की अनुमति देना था। अहमदशाह एक माह तक दिल्ली में ठहर कर लूटमार करता रहा। वहां की लूट में उसे करोड़ों की संपदा हाथ लगी थी।

अब्दाली द्वारा मथुरा और ब्रज की भीषण लूट बहुत ही क्रूर और बर्बर थी। दिल्ली लूटने के बाद अब्दाली का लालच बढ़ गया। उसने दिल्ली से सटी आसपास के छोटे छोटे राज्य के जाटों की रियासतों को भी लूटने का मन बनाया। ब्रज पर अधिकार करने के लिए उसने जाटों और मराठों के विवाद की स्थिति का पूरी तरह से फायदा उठाया। अहमदशाह अब्दाली पठानों की सेना के साथ दिल्ली से आगरा की ओर चला। अब्दाली की सेना की पहली मुठभेड़ जाटों के साथ बल्लभगढ़ में हुई। वहां जाट सरदार बालूसिंह और सूरजमल के ज्येष्ठ पुत्र जवाहर सिंह ने सेना की एक छोटी टुकड़ी लेकर अब्दाली की विशाल सेना को रोकने की कोशिश की। उन्होंने बड़ी वीरता से युद्ध किया पर उन्हें शत्रु सेना से पराजित होना पड़ा।
अहमद शाह अब्दाली की सेना के आक्रमणकारियों ने तब न केवल बल्लभगढ़ और उसके आस-पास लूटा और व्यापक जन−संहार किया बल्कि उनके घरों खेतो और शत्रुओं को भी गाजर मूली की तरह काट डाला। उसके बाद अहमदशाह ने अपने दो सरदारों के नेतृत्व में 20 हजार पठान सैनिकों को मथुरा लूटने के लिए भेज दिया। उसने उन्हें आदेश दिया− मेरे जांबाज बहादुरो! मथुरा नगर हिन्दुओं का पवित्र स्थान है। उसे पूरी तरह नेस्तनाबूद कर दो। आगरा तक एक भी इमारत खड़ी न दिखाई पड़े। जहां-कहीं पहुंचो, कत्ले आम करो और लूटो। लूट में जिसको जो मिलेगा, वह उसी का होगा। सभी सिपाही लोग काफिरों के सिर काट कर लायें और प्रधान सरदार के खेमे के सामने डालते जाएं। सरकारी खजाने से प्रत्येक सिर के लिए पांच रुपया इनाम दिया जायगा। यह थी अहमदशाह अब्दाली की  क्रूर नीयत और नीति।

दिल्ली,गाजियाबाद.. पलवल, हापुड़ तथा मेरठ को लूटने के बाद सेना का अगला पड़ाव ब्रजभूमि,गोकुल और मथुरा की ओर था। इसके बाद अब्दाली का आदेश लेकर सेना मथुरा की तरफ चल दी। मथुरा से लगभग 8 मील पहले चौमुहां पर जाटों की छोटी सी सेना के साथ उनकी लड़ाई हुई। जाटों ने बहुत बहादुरी से युद्ध किया लेकिन दुश्मनों की संख्या अधिक थी, जिससे उनकी हार हुई। उसके बाद जीत के उन्माद में पठानों ने मथुरा में प्रवेश किया। मथुरा में पठान भरतपुर दरवाजा और महोली की पौर के रास्तों से आए और मार−काट और लूट−पाट करने लगे।

अहमदशाह अब्दाली की नृशंश फौज ने जब दिल्ली के आसपास के देहातों में किसानो के घरों और अन्न भण्डार  की लूट पाट की तो वे अपनी सेना की रसद के लिए।गेहूं, दाल,चावल, आटा, घी, तेल, गुड़, नमक और शाक सब्जी तक बोरों और कट्टों में भर कर ले गए... यही नहीं उन्होंने उनके पशुओं और जानवरों तक को नहीं छोडा, उनके घोडे खच्चर हाथी और भैंसे तथा बैलगाड़ी उस सामान को ढोने के काम आए जो उन्होंने लूटपाट करके एकत्रित की थी। बाकी गाय भैसों सहित भेड़ बकरियों का कत्ल करके उनका फौज ने आहार बना लिए और उनकी खाल तक को बांध कर अफगानिस्तान ले गये ताकि फौजियों के लिए उम्दा जूते बन सकें।

ब्रजभूमि में वहां के सशस्त्र नागा साधु सैनिकों के मुबाबले पर आए परन्तु मुठठी भर साधु क्या कर लेते। बचाव के लिए आए साधुओं के साथ अब्दाली की सेना ने खूब मारकाट की और−वृन्दावन में लूट और मार-काट करने के बाद अब्दाली भी अपनी सेना के साथ मथुरा आ पहुँचा। ब्रज क्षेत्र के तीसरे प्रमुख केन्द्र गोकुल पर भी उसकी नजर थी। वह गोकुल को लूट-कर आगरा जाना चाहता था। उसने मथुरा से यमुना नदी पार कर महावन को लूटा और फिर वह गोकुल की ओर गया। वहां पर सशस्त्र नागा साधुओं के एक बड़े दल ने यवन सेना का जम कर सामना किया। उसी समय अब्दाली की फौज में हैजा फैल गया, जिससे अफगान सैनिक बड़ी संख्या में मरने लगे। इस वजह से अहमदशाह अब्दाली किसी अज्ञात दैवी प्रकोप की दहशत के कारण वापिस लौट गया। मथुरा की लूटपाट के दौरान उसके सलाहकारो ने यही अनुमान लगाया कि यह हिन्दुओं की पवित्र नगरी है और कंस को मारने वाले श्रीकृष्ण इसकी रक्षा करते हैं। 

इस प्रकार नागाओं की वीरता और दैवी मदद से गोकुल लूट-मार से बच गया। गोकुल−महावन से वापसी में अब्दाली ने फिर से वृन्दावन में लूट की। मथुरा−वृन्दावन की लूट में ही अब्दाली को लगभग 12 करोड़ रुपये की धनराशि प्राप्त हुई, जिसे वह तीस हजार घोड़ो, खच्चरों और ऊटों पर लाद कर ले गया। वहां की कितनी ही  जवान,विधवा और अविवाहित स्त्रियों को भी वह जबरन अफगानिस्तान ले गया।
 
आगरा में लूट के बाद अब्दाली की सेना ब्रज में तोड़-फोड़, लूट-पाट और मार-काट करती आगरा पहुंची। उसके सैनिकों ने आगरा में जबर्दस्त लूट-पाट और मार−काट की। यहां उसकी सेना में दोबारा हैजा फैल गया और वह जल्दी ही लौटने की तैयारी  करने लग गया और लूट की धन−दौलत अपने देश अफगानिस्तान ले गया। कई मुसलमान लेखकों ने लिखा है− अब्दाली द्वारा दिल्ली और और मथुरा के बीच ऐसा भारी विध्वंस किया गया था कि आगरा−दिल्ली सड़क पर झोपड़ी भी ऐसी नहीं बची थी, जिसमें एक आदमी भी जीवित रहा हो। अब्दाली की सेना के आवागमन के मार्ग में सभी स्थान ऐसे बर्बाद हुए कि वहां दो सेर अन्न तक मिलना कठिन हो गया था।
इधर महाराष्ट्र में मराठों का प्रभुत्व मुगल-साम्राज्य की अवनति के पश्चात मथुरा पर भी बाद में मराठों का प्रभुत्व स्थापित हुआ और इस नगरी ने सदियों के पश्चात चैन की सांस ली। 1803 ई. में लॉर्ड लेक ने सिंधिया को हराकर मथुरा-आगरा प्रदेश को अपने अधिकार में कर लिया। उसके बाद से भारत की आजादी 1947 तक यह क्षेत्र अंग्रेजी हकूमत के अधीन रहा और इस देश ने काफी उतार चढाव देखे। यह भी एक तथ्य है ऐसे अनेक विदेशी दरिन्दों की लूटपाट और ��रसंहार के बावजूद  मध्य भारत का यह इलाका सदा जीवन्त रहा और अपनी रक्षा और मान मर्यादा के लिए यहां की जनता ने मरते दम तक संघर्ष किया।

क्रमश: अगला दरिन्दा ... नादिर शाह

(यहां पर मैं इन दरिंदे और लुटेरे राजाओं को महिमामंडित नहीं कर रहा हूं। मेरा मकसद किसी धर्म या सम्प्रदाय विशेष के खिलाफ घृणा फैलाना भी कतई नहीं है। क्योंकि, यह सिर्फ भारत का इतिहास है। ये बातें अब इतिहास के पन्नों से छन-छन कर आ रही है। यहां मेरा मकसद साफ तरीके से आज की पीढ़ी को असलियत से जागरूक करवाना ही है जिसमें सिर्फ वास्तविक जानकारी देने के उद्देश्य से यह लेखमाला प्रस्तुत कर रहा हूं।)

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