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Thursday, May 17, 2012

धर्मपरिवर्तन धंधा बन चुका है-सोनिया गाँधी क्यूँ लौटी?एक राजनीतिक मकसद है

आज भारत में धर्मपरिवर्तन धंधा बन चुका है जिसके मूल में राजीनीतिक साम्राज्यवाद और बहुराष्ट्रीय कंपनियों का पैसा लगा हुआ है. भारत के संविधान में मौलिक अधिकारों की धारा 25 के तहत भारत के हर नागरिक को यह अधिकार मिला हुआ है कि वह कोई धर्म अपनाने के लिए आजाद है. लेकिन आज भारत में जो धर्मांतरण हो रहा है उसका एक राजनीतिक मकसद है और यह बहुराष्ट्रीय कंपनी के व्यापार में बदल चुका है. यह परावर्तित लोगों को साम्राज्यवादी ताकतों का पिछलग्गू बनाता है.
मैं जब धर्मपरिवर्तन को व्यापार कहता हूं तो यह अनायास नहीं है. इसके पीछे ठोस तथ्य हैं. इसके लिए मैं सेविन्थ डे एडवेन्टिस्ट चर्च का उदाहरण पेश करना चाहूंगा. एक अकेले सेवेन्थ डे एडवेन्टिस्ट चर्च ने साल 2004 में विदेशों से 5850 करोड़ रूपये प्राप्त किये. इस पैसे का उपयोग 10 लाख लोगों का धर्मपरिवर्तन करने के लिए किया गया. कनाडा के धर्म-प्रचारक रॉनवाट्स सेवेन्थ डे एडवेन्टिस्ट चर्च के दक्षिण एशिया के प्रमुख हैं. 1997 में व्यापारिक वीजा लेकर वे भारत में दाखिल हुए थे. जब वे भारत आये थे तो उस समय इस चर्च के सवा दो लाख सदस्य थे. यह इस चर्च के 103 साल के काम का नतीजा था. लेकिन बाद के पांच सालों में सदस्यों की संख्या अचनाक बहुत तेजी से बढ़ी और यह सात लाख हो गयी. ग्लोबल इन्वेगेलिज्म के निदेशक मार्क फिन्ले ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि अकेले 2004 में भारत में 10 लाख 71 हजार 135 लोगों ने ईसाई धर्म ग्रहण किया जो कि पिछले पंद्रह सालों में सर्वाधिक था. यही रिपोर्ट कहती है कि भारत में 15 से 30 वर्ष के 6 लाख नौजवान चर्च के प्रचार, भीड़ को धर्म सभाओं तक लाने व चमत्कारी शो आयोजित करने में लगे हुए हैं.

अब यह ज्यादा स्पष्ट नजर आने लगा है कि धर्म परिवर्तन के काम को साम्राज्यवादी देशों ने अपने हित के कामों में प्रमुख स्थान दिया है. कनाडा की डोरोथी वाट्स एक योजना चला रही हैं जिसका नाम है 10 गांव और 25 घर. यह एक धर्मपरिवर्तन योजना है जो गांवों को अपना निशाना बनाती है. 1998 में 10 गांव कार्यक्रम 17 बार चलाए गये और उससे 9337 लोग ईसा की शरण में पहुंचे. 1999 में यह कार्यक्रम 40 बार आयोजित किया गया और इस साल इससे 40 हजार लोग ईसाई बने. अपने इन शुरूआती नतीजों से उत्साहित होकर डोरोथी वाट्स ने अब 50 गांव योजना शुरू की है. इससे हर महीने 10 हजार लोगों को बैप्टाईज किया जा सकेगा या ईसाई बनाया जा सकेगा.

अमेरिका की मैसिव इवेन्गुलाईजेशन आफ इंडिया नामक संस्था धर्म प्रचार और धर्म परिवर्तन की नयी तकनीकि से लैस होकर इस काम में उतरी है. यूं तो यह योजना 1990 में शुरू की गयी थी लेकिन बुश जूनियर के अमरीकी राष्ट्रपति बनने के बाद इसे गति मिली. इस योजना का असली मकसद है कि भारत को तेजी से ईसाई देश में बदलना है. इस योजना के तहत भारत गरीबों का धर्म परिवर्तन करके उन्हें ज्यादा से ज्यादा चर्च निर्माण के लिए जगह उपलब्ध कराना है. इस संस्था के पास पैसे की कमी नहीं है और वह एक पास्टर (मुख्य ईसाई प्रचारक) को 10 हजार रूपये मासिक तनख्वाह देती है. एक पास्टर के नीचे जो लड़के काम करते हैं उन्हें तीन से पांच हजार रूपये मासिक दिया जाता है. इसके अलावा गांव में जिन्हें रिसोर्स पर्सन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है उन्हें भी पांच सौ रूपये मासिक दिया जाता है.

धर्म परिवर्तन का असर तब दिखाई पड़ता है जब ईसाई अलग राज्य की मांग करने लगते हैं.या फिर अलग देश का ही सपना देखने लगते हैं. उत्तर पूर्व में नेशनल लिबरेशन फ्रंट आफ त्रिपुरा बाकायदा अलग ईसाई राज्य बनाने का आंदोलन चला रहा है. उसकी घोषणा में साफ लिखा है कि उसे त्रिपुरा को खुदा की राजधानी बनाना है. अप्रैल सन 2000 में सीआरपीएफ ने बैप्टिस्ट चर्च आफ त्रिपुरा के सचिव को भारी मात्रा में गोला-बारूद, 50 जिलेटिन की छड़ें, 5 किलो पोटेशियम, 2 किलो सल्फर और बम बनाने के दूसरे सामान के साथ गिरफ्तार किया था. चर्च का दूसरा पदाधिकारी जटन कोलोई ने गिरफ्तार होने पर बयान दिया कि उसने नेशनल लिब्रेशन फ्रण्ट आफ त्रिपुरा के बेस में गोरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण लिया है.

इन्हीं बातों को देखते हुए हम धर्म परिवर्तन को सही नहीं मानते. अगर धर्मपरिवर्तन साम्राज्यवादी हितों की पूर्ती, जातीय उत्पीड़न और सामाजिक गैर बराबरी को बढ़ाता है तो हम इसका विरोध करते हैं. अगर वह चर्चों, मिशन, अस्पतालों और शिक्षण संस्थानों में उच्च जाति के ईसाईयों का कब्जा बरकार रखता है और गरीबों और दलित ईसाईयों को वहां प्रवेश की भी मनाही होती है तो ऐसे धर्म परिवर्तन का मकसद समझ में आता है.
अगर मै मौजूदा सूरते हाल देखता हु वो भी २००१ इस टेबल से १० साल बाद की तो मुझे कुछ ही और दिखाई देता है!
जो राज्य कभी हिन्दू और मुस्लमान बहुल हुआ करते थे वो राज्य अब ईसाई बहुल कैसे हो गए? ऐसी कौन सी जड़ी बूटी पिलाई गई की १० सालो में ही वो राज्य ईसाई बन गए और हमें कानो कान कोई खबर नहीं हुई। आज भी इन राज्यों में धर्मान्तरण जारी है पर इन राज्यों की शायद ही कोई खबर हम तक मीडिया के द्वारा पहुचाई जाती है।
"द विन्ची कोड" जो की पुरे विश्व में चली कही उस पर कोई केस दर्ज नहीं हुआ लेकिन भारत में कैथोलिक ईसाई पादरियों ने इस पर केस दर्ज किया इसे बैन करने के लिए भारत में। कैथोलिक इसइयो की बात करे तो इनको सबसे ज्यादा इनको ही धर्मपरिवर्तन करने की पड़ी रहती है और सबसे ज्यादा बर्बर ये रहे हैं लेकिन यहाँ भारत में ये शांत रूप से हिन्दू और मुस्लमान को लड़ाते हुए इनका धर्म परिवर्तन करने में लगे हुए हैं।
किसी भी जगह पर एक भी परिवार भले वो गरीब हो अगर ईसाई बन जाता है तो तुरंत किसी जमीन को अधिगृहित करके उस पर एक भव्य चर्च का निर्माण किया जाता है। उस गरीब के पास तो इतना पैसा नहीं होता की वो अपनी रोटी ला सके फिर ये चर्च कैसे बन जाता है वहा।
कुछ जगहों पर ऐसा भी पाया गया है की अगर वहा के स्थानीय लोग अगर भूमि अधिग्रहण का विरोध करते हैं तो सीधा उस मिसनरी से सम्बंधित देश के सर्वोच्च पदासीन पदाधिकारी चाहे वो वहा का प्रधानमंत्री हो या राष्ट्रपति उसका फ़ोन आता है उस राज्य के मुख्या मंत्री के पास और मुख्या मंत्री से उस जिले के DM के पास ताकि उसी भूमि का अधिग्रहण हो और वहा चर्च बने।
अब मै एक और न्यूज़ को आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा-
एक वेबसाइट हैं http://www.dalitnetwork.org/ जो की एक अमेरिकी ईसाई की मिस्सनरी है जो २००२ में USA में बनी और इसके प्रेसिडेंट का नाम है DR. JOSEPH D'SOUZAजो की भारत के क्रिस्चियन कॉउन्सिल के भी प्रेसिडेंट हैं| ये हैं तो एक ईसाई पर इनको चिंता है दलितों की। ऐसा क्या दिखा इस ईसाई को दलितों में। क्यों ये दलित फ्रीडम नेटवर्क चला रहा है एक ईसाई हो कर भी इसका मतलब साफ़ है की ये यहाँ दलित फ्रीडम के नाम पर धर्मान्तरण करने की कोसिस कर रहा है पर मै तो कहूँगा की ये धर्मान्तरण कर रहा है और कोई समझ नहीं प् रहा है या समझ कर भी नासमझ बनने की कोसिस कर रहा है।
सुबूत के तौर पर मै आपके सामने कुछ तथ्य प्रस्तुत करना चाहूँगा क्युकी आज का हिन्दू बिना सुबूतो के तो कुछ देखना नहीं चाहता है-
देखिये यहाँ यह लिखा है की जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बन गए थे तो धर्मपरिवर्तन रुक गए थे मिस्सनारिज को कितनी समस्या हुयी थी धर्मपरिवर्तन करने में. अब आपको यह भी समझ में आया होगा की सोनिया गाँधी क्यूँ लौटी...
यह पैराग्राफ देखिये निचे दिए हुए लिंक का-
• Persecution: When Hindu fundamentalists won national elections in 1998, they brought an assertive Hinduism that fostered anti-conversion laws and persecution of Christians. Public evangelism became nearly impossible. Indian missionaries retreated from street preaching and public rallies, and instead settled in single locations to open schools, offer economic development and training, and plant house churches.
http://www.christianitytoday.com/ct/2011/july/indiagrassroots.html?start=4
इन लोगो ने सोसिअल नेट्वोर्किंग साइट्स तक पर अपने नुमैन्दे बैठा रखे हैं जो की आए दिन हिन्दू देवी-देवताओ को गली देते हुए दिख जाते हैं वो भी हिन्दू नामो से, मूर्ति पूजा को मना करते हैं, लेकिन जब इनसे कुछ ही सवाल पूछे जाते हैं तो इनके पास इसका कोई जवाब नहीं होता है।

१. क्राइस्ट पैदा कैसे हुए? (गौर तलब है की कोई भी वर्जिन लड़की बच्चा पैदा नहीं कर सकती है ये हम सभी जानते हैं)

२. क्राइस्ट के बीवी बच्चो का क्या हुआ? जिसे ये अपना स्वार्थ साधने के लिए एक वेश्या बुलाते हैं पर असल में वो क्राइस्ट की बीवी थी।
३. क्राइस्ट ने कभी नहीं कहा की वो भगवान हैं उन्होंने हमेसा कहा की वो भगवान के बच्चे हैं, फिर आज क्राइस्ट भगवान कैसे बन गए?
४. क्राइस्ट को क्यों मारा गया?
५. क्या कभी किसी के मरने को हंसी खुसी मनाया जाता है पर ये ईसाई क्राइस्ट की मौत को मानते हैं।
६. ईसाई मूर्ति पूजा को मना करते हैं पर खुद क्राइस्ट की प्रतिमा के सामने झुकते हैं और साथ एक क्राइस्ट की प्रतिमा को अपने गले में धारण किये हुए देखे जा सकते हैं? फिर तो सबसे बड़े मूर्ति पूजक ईसाई ही हुए।
७. ऐसा सिद्ध हो चूका है की क्राइस्ट मरने से पहले भारत आ चुके थे और हिंदुत्व अपना लिया था फिर ईसाई कहा से आ गए?
८. ईसाई हमेसा अपने धर्म को सबसे पुराना और सबसे अच्छा बताते हैं पर क्रिस्चियन हुए क्राइस्ट के बाद तो उसके पहले ये क्या थे? जबकि ये सिद्ध हो चूका है की हमारा सनातन धर्म विश्व का सबसे पुराना धर्म है और विज्ञानिक पद्धति पर आधारित है। ========================

(नोट - रही बात शांति की, तो सेकुलरों को लगता है कि समूचे भारत से हिन्दुओं को मार-मारकर भगाने और बाकी बचे-खुचे को धर्मान्तरित करने के बाद ही "शांति" आयेगी…, हालांकि हकीकत ये है कि शांति सर्वाधिक वहीं पर होती है, जहाँ हिन्दू बहुसंख्यक हैं…पूर्वोत्तर और कश्मीर में नहीं या अल्पसंख्यक बहुल इलाको में नहीं)


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