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Friday, May 18, 2012


इकनॉमिक सर्वे क्या है

पहला इकनॉमिक सर्वे वित्त वर्ष 1951-52 में पेश किया गया था और उसके बाद से हर साल सरकार इकनॉमिक रिव्यू करती रही है। पिछले कुछ सालों में इकनॉमिक सर्वे सिर्फ आंकड़ों की बयानबाजी से बदलकर पॉलिसी एडवाइस डॉक्युमेंट बन गया है।

इकनॉमिक सर्वे क्या है?

यह इकनॉमी पर सालाना रिपोर्ट कार्ड है, जिसे चीफ इकनॉमिक अडवाइजर पेश करते हैं। इस भारी-भरकम दस्तावेज में साल भर की अहम इकनॉमिक, फाइनैंशल और सोशल स्कीम्स का ऐनालिसिस होता है। धीरे-धीरे इसमें कई और सेक्टरों को जोड़ा गया और यह ज्यादा से ज्यादा ऐनालिटिकल होता चला गया। साल 2004-05 में यह सर्वे 362 पेज का था। 2010-11 में यह बढ़कर 459 पेज का दस्तावेज बन गया। पिछले साल इसमें महंगाई, फाइनैंशल सर्विसस पर अलग से चैप्टर दिया गया था, जिससे आर्थिक बहस में इन विषयों की अहमियत पता चलती है।

सर्वे का महत्व क्या है?

जहां तक जानकारी का सवाल है, सर्वे के आंकड़ों की अहमियत काफी कम है। इसमें पेश ज्यादातर डाटा के बारे में पहले से ही जानकारी होती है। यह देश में इकनॉमिक रिफॉर्म का एजेंडा तय करने के लिए गाइडलाइंस मुहैया कराता है। सर्वे में पॉलिसी बनाने वालों को उन मसलों पर सलाह जारी की जाती है, जो आर्थिक बहस में प्रमुखता से शामिल रही हैं। आम तौर पर यह केंद्रीय बजट से ठीक एक दिन पहले पेश किया जाता है। माना जाता है कि सर्वे की कुछ सिफारिशों को बजट में जगह मिलती है।

क्या सर्वे अपने रोल पर खरा उतरा है?

बेशक संसद में सर्वे को वित्त मंत्री पेश करते हैं, मगर यह मुख्य तौर पर चीफ इकनॉमिक अडवाइजर की राय को बयां करता है। सर्वे में पेश किया रिफॉर्म एजेंडा यह बताता है कि राजनीतिक दांव-पेच को ध्यान में रखे बिना आर्थिक मोर्चे पर क्या किया जाना चाहिए। शायद यही वजह है कि हर साल इस दस्तावेज का रिफॉर्म एजेंडा अगले दिन पेश किए जान वाले बजट में प्रतिबिंबित नहीं होता है। बहरहाल, यह कई आर्थिक मसलों पर बहस की जमीन तैयार करता है।

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