क्या जीडीआर और एडीआर पर वोटिंग राइट्स मिलता है?
ग्लोबल डिपॉजिटरी रिसीट (जीडीआर) और अमेरिकन डिपॉजिटरी रिसीट (एडीआर) पर वोटिंग राइट्स नहीं मिलता है, लेकिन इनके अंडरलाइंग शेयर (शेयर जिनके एवज में जीडीआर/एडीआर जारी किए जाते हैं) वोटिंग राइट्स वाले होते हैं। ये शेयर डिपॉजिटरी के पास रखे जाते हैं, जो इनके एवज में निवेशकों को जीडीआर या एडीआर जारी करता है।
इस तरह से वोटिंग राइट्स डिपॉजिटरी के पास होता है। जीडीआर या एडीआर रखने वाले वोट कर सकते हैं या नहीं, यह जीडीआर या एडीआर जारी करने वाली कंपनी और डिपॉजिटरी के बीच हुए समझौते पर निर्भर करता है। पहले प्रबंधन की तरफ से डिपॉजिटरी को वोट देने का अधिकार होता था। लेकिन बाद में जीडीआर या एडीआर के निवेशकों को यह अधिकार दिया गया कि वे अपनी तरफ से डिपॉजिटरी को वोट देने का निर्देश दे सकते हैं।
एडीआर/जीडीआर किस तरह से काम करते हैं?
कंपनियां फंड जुटाने के लिए विदेशी निवेशकों को एडीआर/जीडीआर जारी करती हैं। उदाहरण के लिए यदि कोई भारतीय कंपनी एडीआर जारी करना चाहती है तो उसे उतने ही शेयर अमेरिकी डिपॉजिटरी बैंक को जारी करने पड़ेंगे। तब डिपॉजिटरी उन निवेशकों को रिसीट जारी करेगा, जिन्होंने एडीआर इश्यू को सब्सक्राइब किया है। डिपॉजिटरी रिसीट हस्तांतरणीय (ट्रांसफरेबल) इंस्ट्रूमेंट होते हैं। इसका मतलब है कि जिस स्टॉक एक्सचेंज में ये सूचीबद्ध होते हैं, उसमें इनकी खरीद-फरोख्त की जा सकती है। इसके अलावा एडीआर रखने वाला व्यक्ति डिपॉजिटरी को इन्हें अंडरलाइंग शेयरों में परिवर्तित करने के लिए कह सकता है और वह भारत में शेयर बाजार में इन्हें बेच सकता है।
सेबी ने एडीआर/जीडीआर के नियमों में क्या बदलाव किया है?
अभी तक एडीआर/जीडीआर के जरिए 15 फीसदी से अधिक हिस्सा खरीदने पर भी खरीदार को ओपन ऑफर नहीं लाना पड़ता था। लेकिन, मंगलवार को सेबी ने नियम में संशोधन किए हैं। अब यदि एडीआर/जीडीआर के जरिए कंपनी में निवेशक की हिस्सेदारी 15 फीसदी की सीमा तक पहुंच जाती है तो उसके लिए ओपन ऑफर लाना जरूरी होगा। सेबी की दलील है कि पहले एडीआर/जीडीआर पर वोटिंग राइट्स नहीं होता था। अब इन पर वोटिंग राइट्स मौजूद है, जिसके चलते नियमों में संशोधन किया गया है।
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