क्या है बैंकों के कासा की कहानी?
किसी बैंक के पास कुल डिपॉजिट में करेंट एकाउंट और सेविंग एकाउंट की कितनी
हिस्सेदारी है, इसका पता उसके कासा रेशियो से चलता है। बैंकों को कासा पर
दूसरे डिपॉजिट के मुकाबले कम ब्याज का भुगतान करना पड़ता है।
कासा रेशियो क्या है?
कासा का मतलब करेंट एकाउंट और सेविंग एकाउंट होता है। बैंक के कुल डिपॉजिट में करेंट एकाउंट और सेविंग एकाउंट की हिस्सेदारी कासा रेशियो कहलाती है। भारत में बैंकों को कासा पर कितना ब्याज देना होगा, यह केंद्रीय बैंक यानी भारतीय रिजर्व बैंक तय करता है।
कासा पर ज्यादा जोर क्यों देते हैं बैंक?
बैंकों को कासा पर सावधि और रेकरिंग जैसे दूसरे डिपॉजिट के मुकाबले कम ब्याज देना पड़ता है। बैंकों को करेंट एकाउंट पर कोई ब्याज नहीं देना पड़ता है, जबकि सेविंग एकाउंट पर उसे 4 फीसदी ब्याज देना पड़ता है। इसलिए लागत घटाने के लिए बैंक अपने डिपॉजिट में कासा की हिस्सेदारी बढ़ाने पर ज्यादा जोर देते हैं। एचडीएफसी बैंक का कासा सबसे ज्यादा यानी 52 फीसदी है। इसके बाद एसबीआई का कासा 48 फीसदी और आईसीआईसीआई बैंक का कासा 45 फीसदी है।
ग्राहकों के लिए कासा का क्या मतलब है?
रिजर्व बैंक ने हाल में सेविंग एकाउंट पर देय ब्याज दर को 3.5 फीसदी से बढ़ाकर 4 फीसदी कर दिया है। एक साल पहले आरबीआई ने बैंकों से कहा था कि वे सेविंग एकाउंट पर ब्याज दर की गणना छह महीने तक की न्यूनतम जमा के बजाय दैनिक आधार पर करें। इसके चलते सेविंग एकाउंट धारकों को सालभर पहले के मुकाबले ज्यादा ब्याज मिल रहा है। इसके अलावा सेविंग एकाउंट पर मिलने वाले ब्याज पर टीडीएस नहीं कटता है। सावधि जमा पर साल भर में 10,000 रुपए से ज्यादा की ब्याज आय पर 10 फीसदी का टीडीएस लगता है, लेकिन करेंट एकाउंट धारकों को कोई फायदा नहीं होता, जिन्हें ज्यादातर कंपनियां और ट्रेडर खुलवाते हैं।
ज्यादा कासा होने के क्या नुकसान हैं?
कासा के कभी भी बैंक के खाते से निकलने का जोखिम होता है। ऐसा होने पर एसेट-लाइबिलिटी मिसमैच का खतरा पैदा होता है। सावधि जमा पर बैंकर यह मानकर चलते हैं जमाकर्ता मैच्योरिटी से पहले निकासी नहीं करेंगे और मैच्योरिटी के बाद उसका रिन्यूअल करा सकते हैं। इसके अलावा बैंकों को लंबी अवधि की परियोजनाओं को फंड मुहैया कराने के लिए लंबी अवधि के डिपॉजिट की जरूरत होती है। इसमें एसेट-लाइबिलिटी मिसमैच का खतरा कम होता है। बैंक लंबी अवधि के लोन देने के लिए कासा पर निर्भर नहीं रह सकते।
कासा रेशियो क्या है?
कासा का मतलब करेंट एकाउंट और सेविंग एकाउंट होता है। बैंक के कुल डिपॉजिट में करेंट एकाउंट और सेविंग एकाउंट की हिस्सेदारी कासा रेशियो कहलाती है। भारत में बैंकों को कासा पर कितना ब्याज देना होगा, यह केंद्रीय बैंक यानी भारतीय रिजर्व बैंक तय करता है।
कासा पर ज्यादा जोर क्यों देते हैं बैंक?
बैंकों को कासा पर सावधि और रेकरिंग जैसे दूसरे डिपॉजिट के मुकाबले कम ब्याज देना पड़ता है। बैंकों को करेंट एकाउंट पर कोई ब्याज नहीं देना पड़ता है, जबकि सेविंग एकाउंट पर उसे 4 फीसदी ब्याज देना पड़ता है। इसलिए लागत घटाने के लिए बैंक अपने डिपॉजिट में कासा की हिस्सेदारी बढ़ाने पर ज्यादा जोर देते हैं। एचडीएफसी बैंक का कासा सबसे ज्यादा यानी 52 फीसदी है। इसके बाद एसबीआई का कासा 48 फीसदी और आईसीआईसीआई बैंक का कासा 45 फीसदी है।
ग्राहकों के लिए कासा का क्या मतलब है?
रिजर्व बैंक ने हाल में सेविंग एकाउंट पर देय ब्याज दर को 3.5 फीसदी से बढ़ाकर 4 फीसदी कर दिया है। एक साल पहले आरबीआई ने बैंकों से कहा था कि वे सेविंग एकाउंट पर ब्याज दर की गणना छह महीने तक की न्यूनतम जमा के बजाय दैनिक आधार पर करें। इसके चलते सेविंग एकाउंट धारकों को सालभर पहले के मुकाबले ज्यादा ब्याज मिल रहा है। इसके अलावा सेविंग एकाउंट पर मिलने वाले ब्याज पर टीडीएस नहीं कटता है। सावधि जमा पर साल भर में 10,000 रुपए से ज्यादा की ब्याज आय पर 10 फीसदी का टीडीएस लगता है, लेकिन करेंट एकाउंट धारकों को कोई फायदा नहीं होता, जिन्हें ज्यादातर कंपनियां और ट्रेडर खुलवाते हैं।
ज्यादा कासा होने के क्या नुकसान हैं?
कासा के कभी भी बैंक के खाते से निकलने का जोखिम होता है। ऐसा होने पर एसेट-लाइबिलिटी मिसमैच का खतरा पैदा होता है। सावधि जमा पर बैंकर यह मानकर चलते हैं जमाकर्ता मैच्योरिटी से पहले निकासी नहीं करेंगे और मैच्योरिटी के बाद उसका रिन्यूअल करा सकते हैं। इसके अलावा बैंकों को लंबी अवधि की परियोजनाओं को फंड मुहैया कराने के लिए लंबी अवधि के डिपॉजिट की जरूरत होती है। इसमें एसेट-लाइबिलिटी मिसमैच का खतरा कम होता है। बैंक लंबी अवधि के लोन देने के लिए कासा पर निर्भर नहीं रह सकते।
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