आइए जानते हैं बायबैक का फंडा
लीजा मैरी थॉमसन
किसी कंपनी के अपने शेयर दोबारा खरीदने के कदम को बायबैक कहा जाता है। ऐसा कर कंपनी खुले बाजार में उपलब्ध अपने शेयरों की संख्या घटाती है। इस कदम से आय प्रति शेयर (ईपीएस) में इजाफा होने के अलावा कंपनी की संपत्ति पर मिलने वाला रिटर्न भी बढ़ता है। इनके असर से कंपनी की बैलेंस शीट भी बेहतर होती है। निवेशक के लिए बायबैक का मतलब है, कंपनी में उसकी हिस्सेदारी बढ़ना। शेयर बायबैक करने को कभी-कभार शेयर खरीदना कहा जाता है और आम तौर पर इसे शेयर की कीमत में उछाल का संकेत माना जाता है। कैसा होता है बायबैक? कंपनी टेंडर ऑफर या खुले बाजार में बायबैक से अपने शेयर वापस खरीद सकती है। पहले तरीके में कंपनी शेयरों की उन संख्या से जुड़े ब्योरे के साथ टेंडर ऑफर जारी करती है जिन्हें खरीदने की उसकी योजना है और प्राइस रेंज का संकेत देती है। ऑफर को स्वीकार करने में दिलचस्पी रखने वाले निवेशक को एक आवेदन भरकर जमा कराना होता है, जिसमें इसकी जानकारी होती है कि वह कितने शेयर टेंडर करना चाहता है और वांछित कीमत क्या है। इस फॉर्म को कंपनी के पास वापस भेजना होता है। ज्यादातर मामलों में टेंडर ऑफर बायबैक की कीमत ओपन माकेर्ट में शेयर के दाम से ज्यादा होती है। सेबी के दिशा-निर्देशों के मुताबिक अगर कंपनी आपके शेयरों को स्वीकार करती है तो उसे आपको ऑफर क्लोज होने के 15 दिन के भीतर जानकारी देनी होगी। कंपनी के समक्ष दूसरा रूट यह होगा कि वह सीधे बाजार से धीरे-धीरे शेयरों को खरीदे। कहां से मिली जानकारी? बायबैक से जुड़ी तमाम जानकारी स्टॉक एक्सचेंज से मिल सकती है क्योंकि कंपनियों को ऐसे प्रस्तावों के बारे में सूचित करने की जरूरत होती है। कंपनियां क्यों चुन रही है बायबैक का रास्ता? इसकी कई वजह हो सकती हैं। कभी-कभी कंपनियां तब बायबैक में शामिल होती हैं जब उन्हें लगता है कि बाजार में शेयरों की कीमत काफी टूट रही है। दूसरे हालात में ज्यादा नकदी का इस्तेमाल कर ऐसा किया जा सकता है। हालांकि ऐसा कोई उदाहरण नहीं दिखता कि कंपनी के टेकओवर से बचने के लिए ऐसा किया गया हो। |
Friday, May 18, 2012
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment