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Friday, May 18, 2012


क्या है क्यूआईपी?

क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट (क्यूआईपी) कंपनियों के लिए पूंजी जुटाने का एक जरिया है। शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनी क्यूआईपी के तहत क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल बायर (क्यूआईबी) को वॉरंट के अलावा शेयर, आंशिक या पूर्णत: परिवर्तनीय डिबेंचर जैसी सिक्योरिटीज जारी कर पूंजी जुटाती है। ये सिक्योरिटी तय अवधि के बाद शेयरों में परिवर्तित कर दी जाती हैं। प्रिफरेंशियल आवंटन के अलावा जल्द पूंजी जुटाने का यह दूसरा जरिया है।

क्यूआईपी की शुरुआत कब और कैसे हुई थी?

सेबी ने घरेलू कंपनियों को कम अवधि में बाजार से पैसे जुटाने की सुविधा देने के लिए 2006 में इसकी शुरुआत की थी। इसका मकसद विदेशी पूंजी पर घरेलू कंपनियों की अत्यधिक निर्भरता में कमी लाना भी था। क्यूआईपी से पहले घरेलू बाजार से पूंजी जुटाने की जटिल औपचारिकताओं से बचने के लिए कई कंपनियां विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बॉन्ड (एफसीसीबी) या ग्लोबल डिपॉजिटरी रिसीट (जीडीआर) के जरिए पैसे जुटाना पसंद करती थीं।

क्यूआईपी में कौन हिस्सा ले सकता है?

क्यूआईपी के तहत सिर्फ वैसे क्यूआईबी को सिक्योरिटी जारी किए जा सकते हैं, जो खुद कंपनी के प्रमोटर नहीं हैं या प्रमोटर से संबंधित नहीं हैं। क्यूआईपी का प्रबंधन सेबी में पंजीकृत मर्चेंट बैंकर द्वारा किया जाता है। क्यूआईपी से पैसे जुटाने वाली कंपनी को इश्यू से पहले सेबी के यहां किसी तरह का दस्तावेज जमा नहीं करना पड़ता है। प्लेसमेंट से संबंधित दस्तावेज स्टॉक एक्सचेंज और कंपनी की वेबसाइट पर उपलब्ध कराया जाता है।

क्यूआईपी से पैसे जुटाने वाली कंपनियों की संख्या क्यों बढ़ गई है?

हाल में देखी गई मंदी में रियल एस्टेट सहित कई कंपनियों के सामने पैसे की भारी कमी की समस्या पैदा हो गई थी। उन्हें कारोबार के लिए कामकाजी पूंजी जुटाने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। शेयर बाजार में हालात में आया सुधार कंपनियों के लिए वरदान के समान है। कंपनियां अपने महंगे कर्ज को चुकाने या अपनी बैलेंसशीट के पुनर्गठन के लिए क्यूआईपी का सहारा ले रही हैं। एक महीने से थोड़े अधिक समय में कंपनियों द्वारा क्यूआईपी के जरिए जुटाई गई रकम 3,500 करोड़ रुपए के स्तर को पार कर गई है। 2008 में कंपनियों ने करीब इतनी ही रकम क्यूआईपी से जुटाई थी। अगले कुछ हफ्ते में कई और कंपनियां क्यूआईपी के जरिए पैसे जुटाने जा रही हैं।

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