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Saturday, March 31, 2012

84 दंगों के दौरान पुलिस ने आंखें मूंदे रखी: CBI

 84 दंगों के दौरान पुलिस ने आंखें मूंदे रखी: CBI
आईएएनएस | नई दिल्ली, 31 मार्च 2012 |

 
कांग्रेस नेता सज्जन सिंह वर्मा से सम्बंधित 1984 के सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान सीबीआई ने अदालत को बताया कि दंगों के समय पुलिस ने अपनी आंखें बंद कर ली थी.
मामले की सुनवाई के दौरान सीबीआई के वकील आर. एस. चीमा ने कहा, ‘यह ऐसा मामला था, जहां पुलिस ने पूर्व नियोजित तरीके से काम किया और सभी पुलिसकर्मियों ने अपनी आंखें मूंद ली थी.’
चीमा ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जे. आर. आर्यन को कहा कि दंगे से सम्बंधित 150 शिकायतें आई थी जिनमें से महज पांच ही मामले पुलिस द्वारा दर्ज किए गए.
उन्होंने अदालत को बताया कि जिन पुलिस अधिकारियों ने बतौर बचाव पक्ष के गवाह के रूप में अपने बयान दर्ज कराए हैं, उन्होंने साफ शब्दों में कहा है कि उन्होंने दंगों के दौरान कुछ नहीं देखा.
अदालत ने अभियोजक से सज्जन कुमार व पांच अन्य आरोपियों के खिलाफ ऐसा कोई प्रत्यक्ष सबूत दिखाने को कहा जिससे साबित हो कि उन्होंने सिखों के खिलाफ भीड़ को उकसाया हो.
इसके जवाब में अभियोजक ने कहा कि वह दो अप्रैल को होने वाली आगामी सुनवाई के दौरान कुछ मीडिया रिपोर्ट दिखाएंगे

1984 दंगा मामला: सज्जन कुमार का बयान दर्ज करेगी अदालत

साल 1984 के भीषण सिख दंगा मामले में मुकदमे का सामना कर रहे पूर्व कांग्रेस सांसद सज्जन कुमार के बयान को दिल्ली की एक अदालत सोमवार को दर्ज करेगी.
बाहरी दिल्ली के इस पूर्व सांसद के खिलाफ जस्टिस जीटी नानावती आयोग की सिफारिशों के बाद मामला दर्ज किया गया था. इसके बाद पिछले साल जनवरी महीने में सीबीआई ने सज्जन कुमार और अन्य के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया था.
हालांकि, इस पूरी प्रक्रिया के बाद सज्जन कुमार द्वारा उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायाल की शरण में जाने के कारण सुनवाई प्रक्रिया प्रभावित हो चुकी है लेकिन 20 सितंबर 2010 को जब उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई द्वारा सज्जन के खिलाफ दायर आपराधिक मामलों को खत्म करने संबंधी उनकी याचिका को खारिज कर दिया तो पूरी प्रक्रिया पटरी पर लौट आई.
इसके बाद निचली अदालत ने मई 2010 में सज्जन और पांच अन्य के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 395 (डकैती), 427 (संपत्ति को नुकसान पहुंचाना) और 153ए (विभिन्न समुदायों के बीच शत्रुता फैलाना) के तहत मामला दर्ज किया था.
दूसरी तरफ, सीबीआई ने सज्जन कुमार को हिंसा के दौरान सिख समुदाय के खिलाफ लोगों को भड़काने को दोषी ठहराया है.

सिख विरोधी दंगा: सज्जन कुमार की मुश्किलें बढ़ी

दिल्ली की एक अदालत ने 1984 के सिख विरोधी दंगे से जुड़े एक और मामले में वरिष्ठ कांग्रेस नेता सज्जन कुमार के विरूद्ध आपराधिक सुनवाई का मार्ग प्रशस्त कर उनके लिए एक नई परेशानी खड़ी कर दी है.
अदालत ने कुमार के खिलाफ पहले से चल रही एक मामले की सुनवाई के साथ नये मामले को जोड़ने की दिल्ली पुलिस की मांग खारिज कर दी.
जिला न्यायाधीश एस के सरवारिया ने विशेष जन अभियोजक के आवेदन को यह कहते हुए स्वीकार कर लिया कि 1992 में कुमार के खिलाफ तैयार आरोपपत्र को दूसरे मामले के साथ जोड़ा नहीं जा सकता है जिस पर सुनवाई पहले से जारी है.
सिख विरोधी दंगे के सिलसिले में 1992 में एक आरोप पत्र तैयार किया गया था जिसमें कुमार के खिलाफ सुनवाई के लिए पर्याप्त सबूत होने की बात कही गयी थी लेकिन इस आरोपपत्र को कभी भी न्यायाधीश के समक्ष अभियोजन के लिए नहीं लाया गया.
दिल्ली पुलिस का दावा था कि सिख विरोधी दंगे के दौरान की घटनाओं से जुड़े दोनों मामलो को अभियोजना शाखा के सुझाव पर जोड़े गए. अभियोजक ने कहा था कि पुलिस को मामलों को जोड़ने का अधिकार नहीं है और ऐसा केवल अदालत कर सकती है.

सिख दंगों के गवाह ने सज्जन कुमार और अन्य को पहचाना

1984 में राष्ट्रीय राजधानी में हुए सिख विरोधी दंगे में अपने परिवार के पांच सदस्यों को खोने वाले एक अहम गवाह ने अदालत में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सज्जन कुमार की उस व्यक्ति के तौर पर पहचान की, जिसने दंगे के दौरान भीड़ को उकसाया था. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सुनीता गुप्ता की अदालत में बचाव पक्ष के वकील द्वारा जिरह के दौरान जगदीश कौर ने सज्जन के भतीजे बलवंत खोखर, गिरधारी लाल और कैप्टन भागमल की सहयोगियों के तौर पर पहचान की.
कौर का बयान पूरा होने के बाद बचाव पक्ष के वकील ने उनसे जिरह शुरू की. बचाव पक्ष के वकील ने समय-समय पर विभिन्न अधिकारियों के समक्ष दंगा पीड़ितों के बयान की कई असंगतियों को रेखांकित किया. हालांकि, कौर ने बयान में असंगति की बातों का खंडन किया. कौर ने कहा कि उन्होंने सभी अधिकारियों के समक्ष वही बयान दिया, चाहे वह नानावती आयोग हो, सीबीआई या पंजाब का मजिस्ट्रेट हो.
कौर ने कहा, ‘‘उन्होंने (अधिकारियों ने) कहा कि वे रिकार्ड में सिर्फ प्रासंगिक बयानों को दर्ज करेंगे.’’ गवाह का जिरह सोमवार को जारी रहेगा. कौर ने कल पुलिस पर 1984 में दंगाइयों का पक्ष लेने और दंगों के प्रति आंखें मूंद लेने का आरोप लगाया था. उन्होंने इस दंगे में अपने परिवार के पांच सदस्यों को खो दिया था.

IF MODI SIR IS CULPRIT......WHOLE CONGRESS CULPRIT....!
4000 MURDERS....In 1984......
अब १९८४ के बारे में बात करते है I जहा पर इंदिरा गांधीजी के हत्यारे शीख होने के कारन बेवजह डेल्ही के हजारो शीखो को मौत के घाट उतारा I इतना तो सही है लेकिन उसको जनता का रोष जताकर ठन्डे बसते में डालने की बात कांग्रेस कर रही है I और उनके जिम्मेदार नेता आज केंद्र में है I जिनको कोई सजा नहीं होगी I
कांग्रेस ही सही तौर पर भारत में असली कम्युनल पार्टी है जो दंगे फैलाती है I गुजरात में कांग्रेस के शाशन के दौरान कई दंगे हुए है I जिसमे कई हिन्दू मारे गए है और कई घर उजाड़ दिए गए थे I आज पश्चिम अहमदाबाद में बसने वाले किसी भी लोगो से पुचो आपको एक ही जवाब मिलेगा की क्प्नग्रेस के शाशन में कई दंगे हुए है और कई हिन्दू मरे गए है I
सच में कांग्रेस का दामन कई निर्दोशो के खून से लाल है I चाहे वोह शीख हो या कोई भी अपने झूठे सेक्युलारिस्म के लिए कई निर्दोशो को बलि का बकरा बना दिया और गाँधी की पार्टी और अहिंसा की पुजारी बता कर सत्ता का सुख ले रही है I बोफोर्स, शीख, भोपाल कांड ऐसे और कई खूंखार खुनी कांड है जो यह साफ़ करता है असली मौत के सौदागर कौन है कांग्रेस है या बीजेपी I
कई नेता कौभांड में शामिल है फिर भी आज भी खुर्शी पे चीपके हुए है I आप की अगुईवाली कई राज्य सरकारों के राज्य में किसान आत्महत्या कर रहा है, पीने को पानी नहीं, बीजली नहीं वैसा हल गुजरात में नहीं I यहाँ पानी एवम लाइट २४ घंटे मौजूद है और किसान भी खुशहाल है I आप ही ने अपने विदेश प्रेम के कारन क्वोत्रोची एवम एंडरसन को देश में से बाइज्जत बरी किया और हो भी क्यों न विदेशी ही तो कांग्रेस को चला रही है I इसलिए विदेश प्रेम जायज है I
अंत में किसी और को कुछ कहने से पहले अपने दमन में एक बात जाक लेने चाहिए कही वो दागी तो नहीं अगर है तो पहले उसे साफ़ करना चाहिए बाद में किसी और को बताना चाहिए I इसीलिए १९८४ भोपाल कांड, शीख कांड के बावजूद कांग्रेस बीजेपी को मौतकी सौदागर मानती है तो वोह क्या है ?
गोधरा में हुए २००२ के दंगो के लिए कांग्रेस एवम अन्य राजनीतिक पक्ष बीजेपी को और खास तौर पर नरेन्द्र मोदी को जिम्मेदार मान रही है I इस दंगो की शुरुआत गोधरा से हुई जहा साबरमती ट्रेन से लौट रहे रामसेवको को कुछ लोगो ने डब्बे में बांध करके जलादिया था I जो उस समय के रेलमंत्री लालू यादव ने कहा की आग अंदर से ही लगे गई थी I
मेरा उनसे एक प्रश्न यह है की कोई भी इन्सान इतना पागल तो नहीं होता की अपने आप को जिन्दा जला डाले I और ऐसे लोगो को जो ठीक से बोल भी नहीं पाते I उस समय वह का मंजर ऐसा था की कोई भी पत्थर दिल इन्सान सहम जाता I जो माजर था वो वाकई में इतना घिनोना था की जब भी उसकी याद आती है आज भी दिल काप उठता है I हमारी केंद्र सरकार को दंगो में मरे जाने वाले मुस्लिमो की चिंता है लेकिन ट्रेन में जो ५८ लोगो को जिन्दा जलाया उनका क्या?
झूठे सेकुलरिस्म के लिए वाकई में ऐसा अन्याय होना यह हम सेहन नहीं सर सकते I दोनों तरफ से लोग कसूरवार है अगर हिन्दू कसूरवार है तो मुस्लिम भी है क्यूंकि उन्होंने ही आग लगायी थी ट्रेन में अगर ट्रेन में आग नहीं लगी होती तो ऐसा नहीं होता I उस समय के गुजरात कांग्रेस नेता शंकरसिंह वाघेला की भी जाच होनी चाहिए क्यूंकि उस समय वोह भी खली भीथे थे और उनके पास चुनाव में कोई मुद्दा नहीं था और आग लगनेवाले में कांग्रेस का स्थानीय कोर्पोराते भी शामिल था I इसलिए गोधरा ट्रेन कांड की निष्पक्ष जांच फिर से होनी चाहिए और जो ट्रेन में जलकर मर गए है उनके परिवार को भी न्याय मिलना चाहिए I और दंगो में कांग्रेस की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए I

एक बस तू ही नहीं मुझसे ख़फ़ा हो बैठा

एक बस तू ही नहीं मुझसे ख़फ़ा हो बैठा

July 24, 2005
Lyricist: Farhat Shahzad
Singer: Mehdi Hasan
एक बस तू ही नहीं मुझसे ख़फ़ा हो बैठा
मैंने जो संग तराशा वो ख़ुदा हो बैठा।
उठ के मंज़िल ही अगर आए तो शायद कुछ हो
शौक-ए-मंज़िल तो मेरा आबलापा हो बैठा।
शुक्रिया ऐ मेरे क़ातिल ऐ मसीहा मेरे
ज़हर जो तूने दिया था वो दवा हो बैठा।

संग = Stone
आबलापा = Having Blistered Feet

खुली जो आँख तो वो था न वो ज़माना था

खुली जो आँख तो वो था न वो ज़माना था

July 25, 2005
Lyricist: Farhat Sahzad
Singer: Mehdi Hasan
खुली जो आँख तो वो था न वो ज़माना था
दहकती आग थी तनहाई थी फ़साना था।
ग़मों ने बाँट लिया मुझे यूँ आपस में
कि जैसे मैं कोई लूटा हुआ ख़ज़ाना था।
ये क्या चंद ही क़दमों पे थक के बैठ गए
तुम्हें तो साथ मेरा दूर तक निभाना था।
मुझे जो मेरे लहू में डुबो के गुज़रा है
वो कोई ग़ैर नहीं यार एक पुराना था।
ख़ुद अपने हाथ से ‘शहज़ाद’ उसे काट दिया
कि जिस दरख़्त के तनहाई पे आशियाना था।

तुम आ गए हो ऐ शह-ए-ख़ूबाँ ख़ुशामदीद

तुम आ गए हो ऐ शह-ए-ख़ूबाँ ख़ुशामदीद

July 25, 2005
Lyricist:Ahsoor??
Singer: Ghulam Ali
तुम आ गए हो ऐ शह-ए-ख़ूबाँ ख़ुशामदीद
महका है आज दिल का गुलिस्ताँ ख़ुशामदीद।
उतरा है मेरी रूह के आँगन मे सैल-ए-नूर
गुरबत कदे में जश्न-ए-चरागाँ ख़ुशामदीद।
मिस्ल-ए-नसीम सुबह-ए-चमन हों सुबक खराम
इक इक क़दम नवेद-ए-बहाराँ ख़ुशामदीद।
जज़्बों को फिर यक़ीन की दौलत मिली आज
वजह-ए-करार-ए-क़ल्ब परीशाँ ख़ुशामदीद।
बरसों के बाद दिल में उजालों की है नुमू
मेहर-ए-मुनीर नैयर ताबाँ ख़ुशामदीद।
जाना तुम्हारी चश्म-ए-मोहब्बत का फ़ैज़ है
‘आशूर’ भी है आज ग़ज़लफ़ाँ ख़ुशामदीद।

ख़ूबाँ = The fair, The beautiful, Sweetheart, Lady-love
ख़ुशामदीद = Welcome
सैल = Short for सैलाब = Flood, Deluge, Torrent
नूर = Bright, Light, Luminescence, Luster, Refulgence
गुरबत = Exile
कद = A retreat, A den, A cavern
मिस्ल = Analogous, Example, Like, Record, Resembling
नसीम = Gentle Breeze, Zephyr
सुबक खराम = Jink
नवेद = Good News
नवेद-ए-बहाराँ = Call of Spring
क़ल्ब = Heart
वजह-ए-करार-ए-क़ल्ब = The reason of the calmness of the heart
परीशाँ = Having the disposition of a fairy, Like fairy
नुमू = Growth
मेहर-ए-मुनीर = Sunlight
नैयर = Lightsome, Luminous
ताबाँ = Hot, Burning, Light, Luminous, Shining, Radiant
चश्म = Eye
फ़ैज़ = Favour

दिल में और तो क्या रखा है

दिल में और तो क्या रखा है

July 25, 2005
Lyricist: Nasir Kazmi
Singer: Ghulam Ali
दिल में और तो क्या रखा है
तेरा दर्द छुपा रखा है।
इतने दुखों की तेज़ हवा में
दिल का दीप जला रखा है।
इस नगरी के कुछ लोगों ने
दुख का नाम दवा रखा है।
वादा-ए-यार की बात न छेड़ो
ये धोखा भी खा रखा है।
भूल भी जाओ बीती बातें
इन बातों में क्या रखा है।
चुप चुप क्यों रहते हो ‘नासिर’
ये क्या रोग लगा रखा है।

दुख की लहर ने छेड़ा होगा

दुख की लहर ने छेड़ा होगा

July 26, 2005
Lyricist: Nasir Kazmi
Singer: Ghulam Ali
दुख की लहर ने छेड़ा होगा
याद ने कंकड़ फेंका होगा।
आज तो मेरा दिल कहता है
तू इस वक़्त अकेला होगा।
मेरे चूमे हुए हाथों से
औरों के ख़त लिखता होगा।
यादों की जलती शबनम से
फूल-सा मुखड़ा धोया होगा।
मोती जैसी शकल बनाकर
आइने को तकता होगा।
मैं तो आज बहुत रोया हूँ
तू भी शायद रोया होगा।
‘नासिर’ तेरा मीत पुराना
तुझको याद तो आता होगा।

अपनी ग़ज़लों में तेरा हुस्न सुनाऊँ आ जा

अपनी ग़ज़लों में तेरा हुस्न सुनाऊँ आ जा

July 26, 2005
Lyricist:
Singer: Ghulam Ali
अपनी ग़ज़लों में तेरा हुस्न सुनाऊँ आ जा
आ ग़म-ए-यार तुझे दिल में बसाऊँ आ जा।
बिन किए बात तुझे बात सुनाकर दिल की
तेरी आँखों में हया रंग सजाऊँ आ जा।
अनछुए होंठ तेरे एक कली से छू कर
उसको मफ़हूम नज़ाक़त से मिलाऊँ आ जा।
मैंने माना कि तू साक़ी है मैं मैकश तेरा
आज तू पी मैं तुझे जाम पिलाऊँ आ जा।
हीर वारिस की सुनाऊँ मैं तुझे शाम ढले
तुझमें सोए हुए जज़्बों को जगाऊँ आ जा।
ऐं मेरे सीने में हर आन धड़कती ख़ुशबू
आ मेरे दिल में तुझे तुझसे मिलाऊँ आ जा।

मफ़हूम = To be taken to mean, Understood
हीर वारिस की: This is an explanation and not a meaning. The famous Punjabi poetry “Heer Ranjha” was written by Warris Shah. This is what is being referred to here.
आन = Moment

जो भी दुख याद न था याद आया

जो भी दुख याद न था याद आया

July 27, 2005
Lyricist: Ahmed Faraz
Singer: Ghulam Ali
जो भी दुख याद न था याद आया
आज क्या जानिए क्या याद आया।
याद आया था बिछड़ना तेरा
फिर नहीं याद कि क्या याद आया।
हाथ उठाए था कि दिल बैठ गया
जाने क्या वक़्त-ए-दुआ याद आया।
जिस तरह धुंध में लिपटे हुए फूल
इक इक नक़्श तेरा याद आया।
ये मोहब्बत भी है क्या रोग ‘फ़राज़’
जिसको भूले वो सदा याद आया।

बहारों के चमन याद आ गया है

बहारों के चमन याद आ गया है

July 28, 2005
Lyricist: Rifat Sultan
Singer: Ghulam Ali
अब मैं समझा तेरे रुखसार पे तिल का मतलब
दौलत-ए-हुस्न पे दरबान बिठा रखा है।

बहारों के चमन याद आ गया है
मुझे वो गुलबदन याद आ गया है।
लचकती शाख ने जब सर उठाया
किसी का बाँकपन याद आ गया है।
मेरी ख़ामोशियों पर हँसने वालों
मुझे वो कमसुख़न याद ऐ गया है।
तेरी सूरत को जब देखा है मैंने
उरूज-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न याद आ गया है।
मिले वो बन कर अजनबी तो ‘रिफ़त’
जमाने का चलन याद आ गया है।

Do not know what उरूज-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न mean. Any help?

बाँकपन = Slyness
कमसुख़न = One who speaks less
उरूज = Ascent

लुत्फ़ जो उसके इंतज़ार में है

लुत्फ़ जो उसके इंतज़ार में है

July 30, 2005
लुत्फ़ जो उसके इंतज़ार में है
वो कहाँ मौसम-ए-बहार में है।
हुस्न जितना है गाहे-गाहे में
कब मुलाकात बार-बार में है।
जान-ओ-दिल से मैं हारता ही रहूँ
गर तेरी जीत मेंरी हार में है।
ज़िन्दगी भर की चाहतों का सिला
दिल में पैवस्त मू के ख़ार में है।
क्या हुआ गर खुशी नहीं बस में
मुसकुराना तो इख़्तियार में है।

पैवस्त = Absorb, Attach, Join
मू = Hair
ख़ार = A linen covering for a woman’s head, throat, and chin
इख़्तियार = Choice, Control, Influence, Option, Right

वही पलकों का झपकना वही जादू तेरे

वही पलकों का झपकना वही जादू तेरे

July 31, 2005
Lyricist: Nazeer Qaisar
Singer: Ghulam Ali
वही पलकों का झपकना वही जादू तेरे
सारे अंदाज़ चुरा लाई है ख़ुशबू तेरे।
तुझसे मैं जिस्म चुराता था मगर इल्म न था
मेरे साये से लिपट जाएँगे बाज़ू तेरे ।
तेरी आँखों में पिघलती रही सूरत मेरी।
मेरी तसवीर पे गिरते रहे आँसू तेरे।
और कुछ देर अगर तेज़ हवा चलती रही
मेरी बाँहों में बिखर जाएँगे गेसू तेरे।

मैं नज़र से पी रहा हूँ

मैं नज़र से पी रहा हूँ

August 2, 2005
Lyricist: Anwar Mirzapuri
Singer: Ghulam Ali
अपनी आवाज़ की लर्ज़िश पे तो क़ाबू पा लूँ
प्यार के बोल तो होठों से निकल जाते है
अपने तेवर तो सँभालो कोई ये न कहे
दिल बदलते हैं तो चेहरे भी बदल जाते हैं।

मैं नज़र से पी रहा हूँ ये समाँ बदल न जाए
न झुकाओ तुम निग़ाहें कहीं रात ढल न जाए।
मेरे अश्क भी हैं इसमें ये शराब उबल न जाए
मेरा जाम छूने वाले तेरा हाथ जल न जाए।
मेरी ज़िन्दग़ी के मालिक मेरे दिल पे हाथ रखना
तेरे आने की खुशी में मेरा दन निकल न जाए।
अभी रात कुछ है बाकी न उठा नक़ाब साकी
तेरा रिन्द गिरते गिरते कहीं फिर सँभल न जाए।
इसी ख़ौफ़ से नशेमन न बना सका मैं ‘अनवर’
कि निग़ाह-ए-अहल-ए-गुलशन कहीं फिर बदल न जाए।

लर्ज़िश = Quiver
रिन्द = Drunkard
अहल = Inhabitant, People, Residents

करूँ ना याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे

करूँ ना याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे

August 1, 2005
Lyricist: Ahmed Faraz
Singer: Ghulam Ali
करूँ ना याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे,
गज़ल बहाना करूँ और गुनगुनाऊँ उसे।
वो ख़ार-ख़ार है शाख-ए-गुलाब की मानिंद
मैं ज़ख़्म-ज़ख़्म हूँ फिर भी गले लगाऊँ उसे।
ये लोग तज़किरे करते हैं अपने प्यारों के
मैं किससे बात करूँ और कहाँ से लाऊँ उसे।
जो हमसफ़र सरे मंज़िल बिछड़ रहा है ‘फ़राज़’
अजब नहीं है अगर याद भी न आऊँ उसे।

तज़किरे (तज़किरा) = Mention, Talk about

मेरी नज़र से न हो दूर एक पल के लिए

मेरी नज़र से न हो दूर एक पल के लिए

August 3, 2005
Lyricist: Qateel Shifai
Singer: Ghulam Ali
इसका रोना नहीं क्यों तुमने किया दिल बरबाद
इसका ग़म है कि बहुत देर में बरबाद किया।

मेरी नज़र से न हो दूर एक पल के लिए
तेरा वज़ूद है लाज़िम मेरी ग़ज़ल के लिए।
कहाँ से ढूँढ़ के लाऊँ चराग से वो बदन
तरस गई हैं निग़ाहें कँवल-कँवल के लिए।
कि कैसा तजर्बा मुझको हुआ है आज की रात
बचा के धड़कनें रख ली हैं मैंने कल के लिए।

क्या बेमुरौव्वत ख़ल्क़ है सब जमा है बिस्मिल के पास
तनहा मेरा क़ातिल रहा कोई नहीं क़ातिल के पास।

‘क़तील’ ज़ख़्म सहूँ और मुसकुराता रहूँ
बने हैं दायरे क्या-क्या मेरे अमल के लिए।

लाज़िम = Essential, Important, Necessary
ख़ल्क़ = World

मेरा जो हाल हो सो हो

मेरा जो हाल हो सो हो

August 4, 2005
Lyricist: Jigar Muradabadi
Singer: Ghulam Ali
मेरा जो हाल हो सो हो बर्क़-ए-नज़र गिराए जा
मैं यों ही नालाँकश रहूँ तू यों ही मुसकुराए जा।
दिल के हर-एक गोशा में आग-सी इक लगाए जा
मुतरब-ए-आतिशी नवा हाँ इसी धुन में गाए जा।
जितनी भी आज पी सकूँ उज़्र न कर पिलाए जा
मस्त नज़र का वास्ता मस्त-नजर बनाए जा।
लुत्फ़ से हो कि कहर से होगा कभी तो रू-ब-रू
उसका जहाँ पता चले शोर वहीं मचाए जा।
इश्क को मुतमा-इन न रख हुस्न के एतमाद पे
वो तुझे आज़मा चुका तू उसे आज़माए जा।

बर्क़ = Lightning
नालाँकश = One who is Lamenting
गोशा = Angle, Cell, Corner, Lobe, Privacy
मुतरब = मुतरिब = Singer
आतिशी = Of fire, Passionate
नवा = Sound
उज़्र = Excuse, Objection
मुतमा-इन = Satisfied, Content
एतमाद = ऐतमाद = Faith, Confidence

जब भी आती है तेरी याद कभी शाम के बाद

जब भी आती है तेरी याद कभी शाम के बाद

August 5, 2005
Lyricist: Krishan Adeeb
Singer: Mehdi Hasan
जब भी आती है तेरी याद कभी शाम के बाद
और बढ़ जाती है अफ़सुरदादिली शाम के बाद।
अब इरादों पे भरोसा है न तौबा पे यकीन
मुझको ले जाए कहाँ तिश्नालबी शाम के बाद।
यूँ तो हर लम्हा तेरी याद को बोझल गुज़रा
दिल को महसूस हुई तेरी कमी शाम के बाद।
मैं घोल रंगत-ए-रोशन करता हूँ बयाबानी
वरना डँस जाएगी ये तीरा-शबी शाम के बाद
दिल धड़कने की सदा थी कि तेरे कदमों की
किसकी आवाज़ सरे जाम सुनी शाम के के बाद।
यूँ तो कुछ शाम से पहले भी उदासी थी ‘अदीब’
अब तो कुछ और बढ़ी दिल की लगी शाम के बाद।

अफ़सुरदादिली = Disappointment Of The Heart
तिश्ना = Thirst, Desire
तीरा = तीरागी = Darkness; तीरा-शबी = Darkness of Night
लगी = Longing, Love

जब कोई प्यार से बुलाएगा

जब कोई प्यार से बुलाएगा

August 6, 2005
Lyricist:
Singer: Mehdi Hasan
जब कोई प्यार से बुलाएगा
तुमको एक शख़्स याद आएगा।
लज़्ज़त-ए-ग़म से आशना होकर
अपने महबूब से जुदा हो कर
दिल कहीं जब सुकून न पाएगा
तुमको एक शख़्स याद आएगा।
तेरे लब पे नाम होगा प्यार का
शमा देखकर जलेगा दिल तेरा
जब कोई सितारा टिमटिमाएगा
तुमको एक शख़्स याद आएगा।
ज़िन्दग़ी के दर्द को सहोगे तुम
दिल का चैन ढूँढ़ते रहोगे तुम
ज़ख़्म-ए-दिल जब तुम्हें सताएगा
तुमको एक शख़्स याद आएगा।

ज़िन्दग़ी में तो सभी प्यार किया करते हैं

ज़िन्दग़ी में तो सभी प्यार किया करते हैं

August 7, 2005
Lyricist: Qateel Shifai
Singer: Mehdi Hasan
ज़िन्दग़ी में तो सभी प्यार किया करते हैं
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा।
तू मिला है तो ये अहसास हुआ है मुझको
ये मेरी उम्र मोहब्बत के लिए थोड़ी है।
इक ज़रा-सा ग़म-ए-दौराँ का भी हक़ है जिसपर
मैंने वो साँस भी तेरे लिए रख छोड़ी है।
तुझ पे हो जाऊँगा क़ुर्बान तुझे चाहूँगा
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा।
अपना जज़्बात में नग़मात रचाने के लिए
मैंने धड़कन की तरह दिल में बसाया है तुझे।
मैं तसव्वुर भी जुदाई का भला कैसे करूँ
मैंने क़िस्मत की लकीरों से चुराया है तुझे।
प्यार का बन के निगाह-बान तुझे चाहूँगा
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा।
तेरी हर चाप से जलते हैं ख़यालों में चिराग
जब भी तू आए जगाता हुआ जादू आए।
तुझको छू लूँ तो फिर ऐ जान-ए-तमन्ना मुझको
देर तक अपने बदन से तेरी खुशबू आए।
तू बहारों का है उनवान तुझे चाहूँगा।
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा।

तसव्वुर = Contemplation, Fancy, Idea,Imagination
निगाह-बान = Guard, Janitor, Keeper, Protector
उनवान = Form, Label, Legend, Preface, Title

तेरे भीगे बदन की खुशबू से

तेरे भीगे बदन की खुशबू से

August 8, 2005
Lyricist: Kaleem Usmani
Singer: Mehdi Hasan
तेरे भीगे बदन की खुशबू से लहरें भी हुईं मस्तानी सी
तेरा ज़ुल्फ़ को छूकर आज हुई ख़ामोश हवा दीवानी सी।
ये रूप का कुंदन दहका हुआ ये जिस्म का चंदन महका हुआ
इलज़ाम न देना फिर मुझको हो जाए अगर नादानी सी।
बिखरा हुआ काजल आँखों में तूफ़ान की हलचल साँसों में
ये नर्म लबों की ख़ामोशी पलकों में छुपी हैरानी सी।

जो थके थके से थे हौसले

जो थके थके से थे हौसले

August 9, 2005
Lyricist:
Singer: Mehdi Hasan
जो ग़म-ए-हबीब से दूर थे वो ख़ुद अपनी आग में जल गए
जो ग़म-ए-हबीब को पा गए वो ग़मों से हँस के निकल गए।

जो थके थके से थे हौसले वो शबाब बन के मचल गए
जो नज़र नज़र से गले मिली तो बुझे चिराग भी जल गए।
ये शिक़स्त-ए-दीद की करवटें भी बड़ी लतीफ़-ओ-ज़मील
मैं नज़र झुका के तड़प गया वो नज़र बचा के निकल गए।
न ख़िज़ाँ में है कोई तीरगी न बहार में है कोई रोशनी
ये नज़र-नज़र के चिराग हैं कहीं बुझ गए कहीं जल गए।
जो सँभल-सँभल के बहक गए वो फ़रेब ख़ुर्द-ए-राह थे
वो मक़ाम इश्क को पा गए जो बहक बहक के सँभल गए।
जो खिले हुए हैं रविश-रविश वो हज़ार हुस्न-ए-चमन सही
मग़र उन गुलों का जवाब क्या जो क़दम-क़दम पे कुचल गए।
न है शायर अब ग़म-ए-नौ-ब-नौ न वो दाग़-ए-दिल न वो आरज़ू
जिन्हें एतमाद-ए-बहार था वो ही फूल रंग बदल गए।

हबीब = Beloved, Sweetheart
शिक़स्त = Breach, Breakage, Defeat
दीद = Sight
लतीफ़ = Juicy, Pleasant
ज़मील = Bonny, Attractive, Appealing
ख़िज़ाँ = Autumn, Decay
तीरगी = Darkness
ख़ुर्द = Little
रविश = The narrow pathways of the garden
नौ-ब-नौ = New, Fresh, Raw
एतमाद = Faith

तू मेरे साथ न चल

तू मेरे साथ न चल

August 10, 2005
Lyricist: Hasrat Jaipuri
Singer: Hussain Brothers
तू मेरे साथ न चल, ऐ मेरी रूह-ए-ग़ज़ल
लोग बदनाम न कर दें तू इरादों को बदल।
मैंने माना कि बहुत प्यार किया है तूने
साथ ही जीने का इकरार है तूने
मान ले बात मेरी देख तू इस राह न चल।
साथ देखेंगे तो फिर लोग कहेंगे क्या-क्या
सोच ले, सोच ले इलज़ाम धरेंगे क्या-क्या
ऐ मेरी परदा-नशीं देख न परदे से निकल।
अपनी उलफ़त पे कभी आँच न आ जाए कहीं
तेरी रुसवाई हो ये बात गँवारा ही नहीं।
देख नादान न बन, होश में आ, यूँ न मचल।

नज़र मुझसे मिलाती हो

नज़र मुझसे मिलाती हो

August 11, 2005
Lyricist: Hasrat Jaipuri
Singer: Hussain Brothers
नज़र मुझसे मिलाती हो तो तुम शरमा-सी जाती हो
इसी को प्यार कहते हैं, इसी को प्यार कहते हैं।
जबाँ ख़ामोश है लेकिन निग़ाहें बात करती हैं
अदाएँ लाख भी रोको अदाएँ बात करती हैं।
नज़र नीची किए दाँतों में उँगली को दबाती हो।
इसी को प्यार कहते हैं, इसी को प्यार कहते हैं।
छुपाने से मेरी जानम कहीं क्या प्यार छुपता है
ये ऐसा मुश्क है ख़ुशबू हमेशा देता रहता है।
तुम को सब जानती हो फिर भी क्यों मुझको सताती हो?
इसी को प्यार कहते हैं, इसी को प्यार कहते हैं।
तुम्हारी प्यार का ऐसे हमें इज़हार मिलता है
हमारा नाम सुनते ही तुम्हारा रंग खिलता है
और फिर साज़-ए-दिल पे तुम हमारे गीत गाती हो।
इसी को प्यार कहते हैं, इसी को प्यार कहते हैं।
तुम्हारे घर में जब आऊँ तो छुप जाती हो परदे में
मुझे जब देख ना पाओ तो घबराती हो परदे में
ख़ुद ही चिलमन उठा कर फिर इशारों से बुलाती हो।
इसी को प्यार कहते हैं, इसी को प्यार कहते हैं।

कह रहा है आपका हर शख़्स दीवाना हमें

कह रहा है आपका हर शख़्स दीवाना हमें

August 12, 2005
Lyricist: Hasrat Jaipuri
Singer: Hussain Brothers
नूर-ए-अनवर से अँधेरे को मिटाया आपने
और क़िस्मत का सितारा जगमगाया आपने।
ख़ुशबू-ए-अफ़ज़ल ज़माना हमको कहता है मग़र
आज हम जो कुछ भी हैं हमको बनाया आपने।

कह रहा है आपका हर शख़्स दीवाना हमें
आप ही के नाम से दुनिया ने पहचाना हमें।
आपके दम से ही क़ायम है निज़ाम-ए-ज़िन्दग़ी
एक पल के वास्ते भी छोड़ न जाना हमें।
दोस्तों का प्यार, हसरत और फिर उसका करम
अहल-ए-फ़न अहल-ए-नज़र हर बज़्म ने जाना हमें।

नूर = Luminescence, Luster
अनवर = Light
अफ़ज़ल = Prime
निज़ाम = Arrangement, Establishment, Order, Organisation
अहल = One who is, Resident, Member
बज़्म = Gathering

इश्क जब एक तरफ़ हो तो सज़ा देता है

इश्क जब एक तरफ़ हो तो सज़ा देता है

August 13, 2005
Lyricist: Hasrat Jaipuri
Singer: Hussain Brothers
इश्क जब एक तरफ़ हो तो सज़ा देता है
और जब दोनों तरफ़ हो तो मज़ा देता है।
अपने माथे पे ये बिंदिया की चमक रहने दो
ये सितारा मुझे मंज़िल के पता देता है।
ऐ नमकपाश तेरी साँवली सूरत की क़सम
दिल का हर ज़ख़्म तुझे दिल से दुआ देता है।
तू मुझे प्यार से देखे या न देखे ज़ालिम
तेरा अंदाज़ मोहब्बत का पता देता है।
मैं किसी ज़ाम का मोहताज नहीं हूँ ‘हसरत’
मेरा साकी मुझे आँखों से पिला देता है।

वादियाँ-वादियाँ, रास्ते-रास्ते

वादियाँ-वादियाँ, रास्ते-रास्ते

August 14, 2005
Lyricist:
Singer: Runa Laila
वादियाँ-वादियाँ, रास्ते-रास्ते
मारे मारे फिरे हम तेरे वास्ते।
आबशारों से पूछा कहाँ हैं सनम
और नज़ारों के जा जा के पकड़े क़दम
इन बहारों ने फ़रमाया क्या जाने हम
खा रहा है हमें अब जुदाई का ग़म।
छाले पड़ते गए भागते-भागते।
मचली जाएँ लटें, लिपटी जाए हवा
जलता जाए बदन, रोती जाए वफ़ा
बेवफ़ा मत सता मिल भी जा आ भी जा
कि ख़ता क्या बता क्यों ये दे दी सज़ा।
आँखें पथरा गईं जागते-जागते।

जब प्यार नहीं है तो भुला क्यों नहीं देते

जब प्यार नहीं है तो भुला क्यों नहीं देते

August 15, 2005
Lyrics: Hasrat Jaipuri
Singer: Hussain Brothers
जब प्यार नहीं है तो भुला क्यों नहीं देते?
ख़त किसलिए रखे हैं जला क्यों नहीं देते?
किस वास्ते लिखा है हथेली पे मेरा नाम
मैं हर्फ़ ग़लत हूँ तो मिटा क्यों नहीं देते?
लिल्लाह शब-ओ-रोज़ की उलझन से निकालो
तुम मेरे नहीं हो तो बता क्यों नहीं देते?
रह रह के न तड़पाओ ऐ बेदर्द मसीहा
हाथों से मुझे ज़हर पिला क्यों नहीं देते?
जब इसकी वफ़ाओं पे यकीं तुमको नहीं है
‘हसरत’ को निग़ाहों से गिरा क्यों नहीं देते?

हर्फ = Syllable, Letter
शब-ओ-रोज़ = Night and Day

वफ़ा का नाम ज़माने में आम कर जाऊँ

वफ़ा का नाम ज़माने में आम कर जाऊँ

August 16, 2005
Lyrics:
Singer: Runa Laila
वफ़ा का नाम ज़माने में आम कर जाऊँ
फिर उसके बाद मैं ज़िंदा रहूँ कि मर जाऊँ।
इलाही मुझको अता कर सदाक़तों के चिराग़
मैं उनकी रोशनी लेकर नगर-नगर जाऊँ।
तेरी जमीं पे न हो नाम नफ़रतों का कहीं
मोहब्बतों के फ़साने सुनूँ जिधर जाऊँ।
मेरे वज़ूद ये भी तो एक मसरफ़ है
दिलों में प्यार की मानिंद मैं उतर जाऊँ।
मज़ा तो जब है कि दुश्मन भी मुझको याद करे
मिसाल प्यार की ऐसी मैं छोड़ कर जाऊँ।
अता कर = Give
सदाक़त = Truth
मसरफ़ = Outlay

चराग़-ओ-आफ़ताब ग़ुम

चराग़-ओ-आफ़ताब ग़ुम

August 17, 2005
Lyrics: Sudarshan Faakir
Singer: Jagjeet Singh
चराग़-ओ-आफ़ताब ग़ुम बड़ी हसीन रात थी
शबाब की नक़ाब गुम बड़ी हसीन रात थी।
मुझे पिला रहे थे वो कि ख़ुद ही शमाँ बुझ गई
गिलास ग़ुम,शराब ग़ुम बड़ी हसीन रात थी।
लिखा था जिस किताब कि इश्क़ तो हराम है
हुई वही किताब ग़ुम बड़ी हसीन रात थी।
लबों से लब जो मिल गए,लबों से लब ही सिल गए
सवाल ग़ुम जवाब ग़ुम बड़ी हसींन रीत थी।

सुरमई शाम के उजालों से

सुरमई शाम के उजालों से

August 18, 2005
Lyrics:
Singer: Runa Laila
सुरमई शाम के उजालों से जब भी सज-धज के रात आती है
बेवफ़ा, बेरहम ओ बेदर्दी जाने क्यों तेरी याद आती है।
इस जवानी ने क्या सज़ा पाई, रेशमी सेज हाय तनहाई,
शोख़ जज़्बात ले हैं अँगड़ाई,आँखें बोझल हैं नींद हरजाई,
तेरी तस्वीर तेरी परछाईं दे के आवाज़ फिर बुलाती है।
आज भी लम्हे वो मोहब्बत के गर्म साँसों से लिपटे रहते हैं,
अब भी अरमान तेरी चाहत के महकी ज़ुल्फ़ों में सिमटे रहते हैं,
तुझको भूलें तो कैसे भूलें हम बस यही सोच अब सताती है।
वो भी क्या दिन थे जब कि हम दोनों मरने-जीने का वादा करते थे
जाम हो ज़हर का कि अमृत का साथ पीने का वादा करते थे।
ये भी क्या दिन हैं क्या क़यामत है ग़म तो ग़म है ख़ुशी भी खाती है।

कह दो इस रात से कि रुक जाए

कह दो इस रात से कि रुक जाए

August 19, 2005
Lyrics: Noor Dewasi
Singer: Runa Laila
कह दो इस रात से कि रुक जाए दर्द-ए-दिल मिन्नतों से सोया है
ये वही दर्द जिसे ले कर लैला तड़पी थी मजनू रोया है।
मैं भी इस दर्द की पुजारिन हूँ ये न मिलता तो कब की मर जाती
इसके इक-इक हसीन मोती को रात-दिन पलकों में पिरोया है।
यो वही दर्द है जिसे ग़ालिब जज़्ब करते थे अपनी गज़लों में
मीर ने जब से इसको अपनाया दामन-ए-ज़ीस्त को भिगोया है।

मेरी मानो यारों मुझको

मेरी मानो यारों मुझको

October 16, 2005
Lyrics:
Singer: Bhupinder Singh
मेरी मानो यारों मुझको आज न रोको पीने से
बेहोशी में मरना अच्छा होश में आ कर जीने से।
मैं प्यासा हूँ मुझे पिलाओ
जलते हैं जब दिल के घाव
आता हूँ मैखाने में,
जाम नहीं भरते तो आओ
कतरा कतरा ही टपकाओ
तुम मेरे पैमाने में
खाली जाम लगा रखा है मेरे अपने सीने से।
आज मेरे आँसू ना पोछो
अपने  हाल पे रो लेने दो
मुझ आवारा पागल को,
कैसे गले लगा लोगे तुम
कितनी देर सँभालोगे तुम
मय की ख़ाली बोतल को।
ठोकर मारो मुझे गिरा दो तुम अहसास के ज़ीने से।

कैसे-कैसे लोग हमारे जी को जलाने आ जाते हैं

कैसे-कैसे लोग हमारे जी को जलाने आ जाते हैं

October 18, 2005
Lyrics: Munir Niazi
Singer: Mehdi Hasan
कैसे-कैसे लोग हमारे जी को जलाने आ जाते हैं,
अपने-अपने ग़म के फ़साने हमें सुनाने आ जाते हैं।
मेरे लिए ये ग़ैर हैं और मैं इनके लिए बेगाना हूँ
फिर एक रस्म-ए-जहाँ है जिसे निभाने आ जाते हैं।
इनसे अलग मैं रह नहीं सकता इस बेदर्द ज़माने में
मेरी ये मजबूरी मुझको याद दिलाने आ जाते हैं।
सबकी सुनकर चुप रहते हैं, दिल की बात नहीं कहते
आते-आते जीने के भी लाख बहाने आ जाते हैं।

नवाज़िश करम शुक्रिया मेहरबानी

नवाज़िश करम शुक्रिया मेहरबानी

October 19, 2005
Lyrics: Himayat Ali Shaer
Singer: Mehdi Hasan
नवाज़िश, करम, शुक्रिया मेहरबानी
मुझे बख़्श दी आपने ज़िन्दगानी।
जवानी की जलती हुई दोपहर में
ये ज़ुल्फ़ों के साये घनेरे-घनेरे
अजब धूप छाँव का आलम है तारी
महकता उजाला चमकते अँधेरे
ज़मीं का फ़ज़ा हो गई आसमानी
लबों की ये कलियाँ खिली-अधखिली सी
ये मख़मूर आँखें गुलाबी-गुलाबी
बदन का ये कुंदन सुनहरा-सुनहरा
ये कद है कि छूटी हुई माहताबी
हमेशा सलामत रहे या जवानी।

नवाज़िश = Kindness, Favor
तारी = Spreading, Happening
करम = Benevolence, Benignity
मख़मूर = Drunk, Intoxicated

गुलशन-गुलशन शोला-ए-ग़ुल की

गुलशन-गुलशन शोला-ए-ग़ुल की

October 25, 2005
Lyrics: Asghar Saleem
Singer: Mehdi Hasan
गुलशन-गुलशन शोला-ए-ग़ुल की ज़ुल्फ़-ए-सबा की बात चली
हर्फ़-ए-जुनूँ की बंद-गिराँ की ज़ुल्म-ओ-सज़ा की बात चली।
ज़िंदा-ज़िंदा शोर-ए-जुनूँ है मौसम-ए-गुल के आने से
महफ़िल-महफ़िल अबके बरस अरबाब-ए-वफ़ा की बात चली।
अहद-ए-सितम है देखें हम आशुफ़्ता-सरों पर क्या गुजरे
शहर में उसके बंद-ए-क़बा के रंग-ए-हिना की बात चली।
एक हुआ दीवाना एक ने सर तेशे से फोड़ लिया
कैसे-कैसे लोग थे जिनसे रस्म-ए-वफ़ा की बात चली।

सबा=Breeze, wind
हर्फ़-ए-जुनूँ  = A word that describes craziness
अरबाब = Friends
अहद-ए-सितम = Days of Tyranny/Cruelty
आशुफ़्ता = Perplexed, Careworn, Distracted, Confused
आशुफ़्ता-सर = Mentally Deranged
क़बा = Gown, Long Coat Like Garment (I think it has been used in the sense of बुर्का here)
बंद-ए-क़बा = Locked in the gown/बुर्का
तेशे = Axe

जब से तूने मुझे दीवाना बना रखा है

जब से तूने मुझे दीवाना बना रखा है

November 6, 2005
Lyrics: Nasir Haquim
Singer: Abida Parveen
जब से तूने मुझे दीवाना बना रखा है
संग पर शख़्स ने हाथों में उठा रखा है।
उसके दिल पर भी कड़ी इश्क में गुज़री होगी
नाम जिसने भी मोहब्बत का सज़ा रखा है।
पत्थरों आज मेरे सर पर बरसते क्यों हो?
मैंने तुमको भी कभी अपना ख़ुदा रखा है।
पी जा अय्याम की तलख़ी को भी हँस के ‘नासिर’
ग़म को सहने में भी क़ुदरत ने मज़ा रखा है।

अय्याम = Life
तलख़ी = Bitternetss

तुमको देखे हुए ग़ुज़रे हैं ज़माने आओ

तुमको देखे हुए ग़ुज़रे हैं ज़माने आओ

November 6, 2005
Lyrics:
Singer: Abida Parveen
तुमको देखे हुए ग़ुज़रे हैं ज़माने आओ
उम्र-ए-रफ़्ता का कोई ख़्वाब दिखाने आओ
मैं सराबों में भटकता रहूँ सहरा-सहरा
तुम मेरी प्यास को आईना दिखाने आओ।
अजनबयती ने कई दाग़ दिए हैं दिल को
आशनाई का कोई ज़ख़्म लगाने आओ।
मिलना चाहा तो किए तुमने बहाने क्या-क्या
अब किसी रोज़ न मिलने के बहाने आओ।

सराब = Mirage
सहरा = Desert
उम्र-ए-रफ़्ता = Past

आए कुछ अब्र कुछ शराब आए

आए कुछ अब्र कुछ शराब आए

November 6, 2005
Lyrics: Faiz Ahmed Faiz
Singer: Mehdi Hasan
आए कुछ अब्र कुछ शराब आए
उसके बाद आए जो अज़ाब आए।
बाम-ए-मीना से माहताब तेरे
दस्त-ए-साकी में आफ़ताब आए।
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बेहिसाब आए।
हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चरागाँ हो
सामने फिर वो फिर बेनक़ाब आए।
‘फ़ैज़’ थी राह सर-बसर मंज़िल
हम जहाँ पहुँचे क़ामयाब आए।

अब्र = Cloud
अज़ाब = Agony, Anguish, Pain, Punishment
बाम = Terrace, Rooftop
मीना = Enamel
दस्त = Hands
सर-बसर = Wholly, Entirely

कल चौदहवीं की रात थी

कल चौदहवीं की रात थी

November 6, 2005
Lyrics: Ibn-e-Insha
Singer: Abida Parveen
कल चौदहवीं की रात थी,
शब भर रहा चर्चा तेरा।
कुछ ने कहा ये चाँद है,
कुछ ने कहा चेहरा तेरा।
हम भी वहीं मौज़ूद थे,
हमसे भी सब पूछा किए।
हम हँस दिए हम चुप रहे
मंज़ूर था पर्दा तेरा।
इस शहर में किससे मिलें
हमसे तो छूटी महफ़िलें।
हर शख़्स तेरा नाम ले
हर शख़्स दीवाना तेरा।
कूचे को तेरे छोड़ कर
जोगी ही बन जाएँ मग़र,
जंगल तेरे, पर्वत तेरे
बस्ती तेरी, सहरा तेरा।
बेदर्द सुननी हो तो चल
कहता है क्या अच्छी गज़ल
आशिक तेरा, रुसवा तेरा
शायर तेरा ‘इंशा’ तेरा।

पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है

पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है

November 17, 2005
Lyrics: Meer Taqi Meer
Singer: Mehdi Hasan
पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है
जाने-ना-जाने गुल ही ना जाने, बाग तो सारा जाने है।
चारागरी बीमारी-ए-दिल की रस्म-ए-शहर-ए-हुस्न नहीं
वरना दिलबर नादाँ भी इस दर्द का चारा जाने है।
महर-ओ-वफ़ा-ओ-लुत्फ़-ओ-इनायत एक से वाक़िफ़ इनमें नहीं
और तो सब कुछ तन्ज़-ओ-किनाया रम्ज़-ओ-इशारा जाने है।
महर = Affection
चारागरी = Healing of Wounds and Pain
तन्ज़ = Jest, Laugh, Quirk, Satire, Sarcasm
किनाया = Riddle
रम्ज़ = Secret, Mysterious

ख़ुदा करे कि मोहब्बत में ये मक़ाम आए

ख़ुदा करे कि मोहब्बत में ये मक़ाम आए

November 17, 2005
Lyrics: Tasleem Faazli
Singer: Mehdi Hasan
ख़ुदा करे कि मोहब्बत में ये मक़ाम आए
किसी का नाम लूँ लब पे तुम्हारा नाम आए।
कुछ इस तरह से जिए ज़िन्दग़ी बसर न हुई
तुम्हारे बाद किसी रात की सहर न हुई
सहर नज़र से मिले ज़ुल्फ़ ले के शाम आए।
ख़ुद अपने घर में वो मेहमान बन के आए हैं
सितम तो देखिए अनजान बन के आए हैं
हमारे दिल की तड़प आज कुछ तो काम आए।
वही है साज़ वही गीत है वही मंज़र
हर एक चीज़ वही है नहीं है तुम वो मगर
उसी तरह से निग़ाहें उठें, सलाम आए।

सता-सता के हमें

सता-सता के हमें

November 18, 2005
Lyrics: Wafa Roomani
Singer: Mehdi Hasan
सता-सता के हमें अश्कबार करती है
तुम्हारी याद बहुत बेक़रार करती है।
वो दिन जो साथ गुज़ारे थे प्यार में हमने
तलाश उनको नज़र बार-बार करती है।
ग़िला नहीं जो नसीबों ने कर दिया है जुदा
तेरी जुदाई भी अब हमको प्यार करती है।
कनारे बैठ के जिसके किए थे कौल-ओ-क़रार
नदी वो अब भी तेरा इंतज़ार करती है।

ख़ुदा करे कि मोहब्बत में ये मक़ाम आए

ख़ुदा करे कि मोहब्बत में ये मक़ाम आए

November 17, 2005
Lyrics: Tasleem Faazli
Singer: Mehdi Hasan
ख़ुदा करे कि मोहब्बत में ये मक़ाम आए
किसी का नाम लूँ लब पे तुम्हारा नाम आए।
कुछ इस तरह से जिए ज़िन्दग़ी बसर न हुई
तुम्हारे बाद किसी रात की सहर न हुई
सहर नज़र से मिले ज़ुल्फ़ ले के शाम आए।
ख़ुद अपने घर में वो मेहमान बन के आए हैं
सितम तो देखिए अनजान बन के आए हैं
हमारे दिल की तड़प आज कुछ तो काम आए।
वही है साज़ वही गीत है वही मंज़र
हर एक चीज़ वही है नहीं है तुम वो मगर
उसी तरह से निग़ाहें उठें, सलाम आए।

Chhupaa Lo Yoo Dil Mein Pyaar Meraa

Chhupaa Lo Yoo Dil Mein Pyaar Meraa
Hide My Love In Your Heart

Ke Jaise Mandir Mein Lau Diye Kee
Like A Candle Flame Of The Lamp In The Temple

Tum Apane Charanon Mein Rakh Lo Muz Ko
Keep Me At Your Feet

Tumhaare Charanon Kaa Ful Hoo Mai
I Am The Flower At Your Feet

Mai Sar Zukaye Khadee Hoo Praeetam
I Am Standing With My Head Bowed, Beloved

Ke Jaise Mandir Mein Lau Diye Kee
Like A Candle Flame Of The Lamp In The Temple


Ye Sach Hain Jeenaa Thaa Paap Tum Been
This Was True That Living Without You Was A Sin

Ye Paap Maine Kiyaa Hain Ab Tak
I Have Sinned So Far

Magar Thee Man Mein Chhabee Tumhaaree
But There Was An Image Of You In My Mind

Ke Jaise Mandir Mein Lau Diye Kee
Like A Candle Flame Of The Lamp In The Temple


Fir Aag Birahaa Kee Mat Lagaanaa
Then DonT Spark The Fire Of Seperation

Ke Jal Ke Main Raakh Ho Chukee Hoon
That I Have Burned To Ashes From

Ye Raakh Maathe Par Maine Rakh Lee
I Have Placed These Ashes On My Forehead

Ke Jaise Mandir Mein Lau Diye Kee
Like A Candle Flame Of The Lamp In The Temple

फूल ही फूल खिल उठे मेरे पैमाने में

फूल ही फूल खिल उठे मेरे पैमाने में

November 19, 2005
Lyrics: Saleem Gilani
Singer: Mehdi Hasan
फूल ही फूल खिल उठे मेरे पैमाने में
आप क्या आए बहार आ गई मैख़ाने में।
आप कुछ यूँ मेरे आइना-ए-दिल में आए
जिस तरह चाँद उतर आया हो पैमाने में
आप के नाम से ताबिंदा है उनवान-ए-हयात
वर्ना कुछ बात नहीं थी मेरे अफ़साने में।

ताबिंदा = Bright, Illuminated
उनवान = Title
हयात = Life, Existence

मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो

मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो

November 19, 2005
Lyrics: Masroor Anwar
Singer: Mehdi Hasan
मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो
मुझे तुम कभी भी भुला न सकोगे।
न जाने मुझे क्यों यक़ीं हो चला है
मेरे प्यार को तुम मिटा न सकोगे।
मेरी याद होगी जिधर जाओगे तुम
कभी नग़मा बन के, कभी बन के आँसू।
तड़पता मुझे हर तरफ पाओगे तुम।
शमा जो जलाई है मेरी वफ़ा ने
बुझाना भी चाहो बुझा न सकोगे।
कभी नाम बातों में आया जो मेरा
तो बेचैन हो-हो के दिल थाम लोगे।
निग़ाहों में छाएगा ग़म का अँधेरा।
किसी ने जो पूछा सबब आँसुओं का
बताना भी चाहो बता न सकोगे।

हम तो हैं परदेश में देश में निकला होगा चाँद

हम तो हैं परदेश में देश में निकला होगा चाँद

November 20, 2005
Lyrics: Dr. Rahi Masoon Raza
Singer: Abida Parveen
हम तो हैं परदेश में देश में निकला होगा चाँद
अपनी रात की छत पे कितना तनहा होगा चाँद।
चाँद बिना हर शब यों बीती जैसे युग बीते
मेरे बिना किस हाल में होगा कैसा होगा चाँद।

आ पिया मोरे नैनन में मैं पलक ढाँप तोहे लूँ
ना मैं देखूँ और को, ना तोहे देखन दूँ।

रात ने ऐसा पेंच लगाया टूटी हाथ से डोर
आँगन वाले नीम में जाकर अटका होगा चाँद।

तक़लीफ़-ए-हिज्र दे गई राहत

तक़लीफ़-ए-हिज्र दे गई राहत कभी-कभी

November 20, 2005
Lyrics:
Singer: Abida Parveen
तक़लीफ़-ए-हिज्र दे गई राहत कभी-कभी
बदला है यों भी रंग-ए-मोहब्बत कभी-कभी।
दिल मे तेरी जफ़ा को सहारा समझ लिया
गुज़री है यों भी हम पे मुसीबत कभी-कभी।
दुनिया समझ न ले तेरे ग़म की नज़ाकतें
करता हूँ ज़ेर-ए-लब शिक़ायत कभी-कभी।
है जिस तरफ़ निग़ाह तवज्जो उधर नहीं
होती है बेरुख़ी भी इनायत कभी-कभी।
आई शब-ए-फिराक़ तो घबरा गए ‘शजी’
आती है ज़िन्दगी में क़यामत कभी-कभी।

Is शजी the name of the lyricist? Any idea?

ज़ेर = Defeated, Weak , Under
ज़ेर-ए-लब = Humming, In A Whisper, Undertone
तवज्जो = Attention
फिराक़   = Separation, Anxiety

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

November 22, 2005
Lyrics: Mirza Ghalib
Singer: Chitra Singh
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता।
तेरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूठ जाना
कि खुशी से मर न जाते ग़र ऐतबार होता।
ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह
कोई चारासाज होता कोई ग़म-गुसार होता
कहूँ किससे मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता।
कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीमकश को
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता।

विसाल = Union
नासेह = Councellor
चारासाज = Healer
ग़म-गुसार = Sympathizer

ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो

ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो

April 29, 2006
Lyrics: Sudarshan Faakir
Singer: Jagjit Singh, Chitra Singh
ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो,
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी।
मग़र मुझको लौटा दो बचपन का सावन,
वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी।
मोहल्ले की सबसे निशानी पुरानी,
वो बुढ़िया जिसे बच्चे कहते थे नानी,
वो नानी की बातों में परियों का डेरा,
वो चेहरे की झुर्रियों में सदियों का फेरा,
भुलाए नहीं भूल सकता है कोई,
वो छोटी-सी रातें वो लम्बी कहानी।
कड़ी धूप में अपने घर से निकलना
वो चिड़िया, वो बुलबुल, वो तितली पकड़ना,
वो गुड़िया की शादी पे लड़ना-झगड़ना,
वो झूलों से गिरना, वो गिर के सँभलना,
वो पीपल के पल्लों के प्यारे-से तोहफ़े,
वो टूटी हुई चूड़ियों की निशानी।
कभी रेत के ऊँचे टीलों पे जाना
घरौंदे बनाना,बना के मिटाना,
वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी,
वो ख़्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी,
न दुनिया का ग़म था, न रिश्तों का बंधन,
बड़ी खूबसूरत थी वो ज़िन्दगानी।

जो भी बुरा भला है अल्लाह जानता है

जो भी बुरा भला है अल्लाह जानता है

April 29, 2006
Lyrics: Akhtar
Singer: Jagjit Singh, Lata Mangeshkar
जो भी बुरा भला है अल्लाह जानता है,
बंदे के दिल में क्या है अल्लाह जानता है।
ये फर्श-ओ-अर्श क्या है अल्लाह जानता है,
पर्दों में क्या छिपा है अल्लाह जानता है।
जाकर जहाँ से कोई वापस नहीं है आता,
वो कौन सी जगह है अल्लाह जानता है
नेक़ी-बदी को अपने कितना ही तू छिपाए,
अल्लाह को पता है अल्लाह जानता है।
ये धूप-छाँव देखो ये सुबह-शाम देखो
सब क्यों ये हो रहा है अल्लाह जानता है।
क़िस्मत के नाम को तो सब जानते हैं लेकिन
क़िस्मत में क्या लिखा है अल्लाह जानता है।

आँखों के इंतज़ार का दे कर हुनर चला गया

आँखों के इंतज़ार का दे कर हुनर चला गया

July 26, 2006
Lyrics: Hasan Kamaal
Singer: Asha Bhosle
आँखों के इंतज़ार का दे कर हुनर चला गया,
चाहा था एक शख़्स को जाने किधर चला गया।
दिन की वो महफिलें गईं, रातों के रतजगे गए
कोई समेट कर मेरे शाम-ओ-सहर चला गया।
झोंका है एक बहार का रंग-ए-ख़याल यार भी,
हर-सू बिखर-बिखर गई ख़ुशबू जिधर चला गया।
उसके ही दम से दिल में आज धूप भी चाँदनी भी है,
देके वो अपनी याद के शम्स-ओ-क़मर चला गया
कूचा-ब-कूचा दर-ब-दर कब से भटक रहा है दिल,
हमको भुला के राह वो अपनी डगर चला गया।

हर-सू = In all directions
शम्स-ओ-क़मर = Sun and Moon

हमें कोई ग़म नहीं था ग़म-ए-आशिक़ी से पहले

हमें कोई ग़म नहीं था ग़म-ए-आशिक़ी से पहले

August 19, 2006
Lyrics:
Singer: Mehdi Hasan
हमें कोई ग़म नहीं था ग़म-ए-आशिक़ी से पहले
न थी दुश्मनी किसी से तेरी दोस्ती से पहले।
है ये मेरी बदनसीबी तेरा क्या कुसूर इसमें
तेरे ग़म ने मार डाला मुझे ज़िन्दग़ी से पहले।
मेरा प्यार जल रहा है अरे चाँद आज छुप जा
कभी प्यार था हमें भी तेरी चाँदनी से पहले।
मैं कभी न मुसकुराता जो मुझे ये इल्म होता
कि हज़ारों ग़म मिलेंगे मुझे इक खुशी से पहले।
ये अजीब इम्तिहाँ है कि तुम्हीं को भूलना है
मिले कब थे इस तरह हम तुम्हें बेदिली से पहले।

उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पे रौनक

उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पे रौनक

August 25, 2006
Lyrics: Mirza Ghalib
Singer: Jagjit Singh
उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पे रौनक
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।
देखिए पाते हैं उशशाक़ बुतों से क्या फ़ैज़
इक बराह्मन ने कहा है कि ये साल अच्छा है।
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीकत लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है।

अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं

अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं

September 3, 2006
Lyrics: Nida Fazli
Singer: Jagjit Singh
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं,
रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं।
पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है,
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं।
वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से
किसको मालूम कहाँ के हैं, किधर के हम हैं।
चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब
सोचते रहते हैं किस राहग़ुज़र के हम हैं।

प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है

प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है

September 9, 2006
Lyrics: Hasti
Singer: Jagjit Singh
प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है
नये परिन्दों को उड़ने में वक़्त तो लगता है।
जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था,
लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है।
गाँठ अगर पड़ जाए तो फिर रिश्ते हों या डोरी,
लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है।
हमने इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल तो ढूँढ़ लिया है,
गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है।

मुसाफ़िर हैं हम तो

मुसाफ़िर हैं हम तो

September 13, 2006
Lyrics: Hasrat Jaipuri
Singer : Hussain Brothers
मुसाफ़िर हैं हम तो चले जा रहे हैं बड़ा ही सुहाना ग़ज़ल का सफ़र है।
पता पूछते हो तो इतना पता है हमारा ठिकाना गुलाबी नगर है।
ग़ज़ल ही हमारा अनोखा जहाँ है ग़ज़ल प्यार की वो हसीं दासताँ है।
इसे जो भी सुनता है, वो झूमता है वो जादू है इसमें कुछ ऐसा असर है।
ना कोई थकन है, न कोई ख़लिश है मोहब्बत की जाने ये कैसी कशिश है।
जिसे देखिए वो चला जा रहा है, जहान-ए-ग़ज़ल की सुहानी डगर है।
वली, मीर, मोमिन ने इसको निखारा जिगर, दाग़, ग़ालिब ने इसको सँवारा।
इसे मोसिक़ी ने गले से लगाया ग़ज़ल आज दुनिया के पेश-ए-नज़र है।
यही है हमारा ताल्लुक़ ग़ज़ल से हम इसके लिए ये हमारे लिए है।
ये अपनी कहानी ज़माने में ‘हसरत’ सभी को पता है, सभी को ख़बर है।

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया है मेरे आगे

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया है मेरे आगे

September 18, 2006
Lyrics: Mirza Ghalib
Singer: Jagjit Singh
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया है मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे।
होता है निहाँ गर्द में सहरा मेरे होते
घिसता है जबीं ख़ाक पे दरिया मेरे आगे।
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे।
ईमान मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र
काबा मेरे पीछे है कलीसा मेरे आगे।
गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है
रहने दो अभी सागर-ओ-मीना मेरे आगे।

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल = Children’s Playground
शब-ओ-रोज़ = Night and Day
निहाँ = निहान = Hidden, Buried, Latent
जबीं = जबीन = Brow, Forehead
कुफ़्र = Infidelity, Profanity, Impiety
कलीसा = Church
जुम्बिश = Movement, Vibration
सागर = Wine Goblet, Ocean, Wine-Glass, Wine-Cup
मीना = Wine Decanter, Container

हर एक बात पे कहते हो

हर एक बात पे कहते हो

October 17, 2006
Lyrics: Mirza Ghalib
Singer: 1. Ghulam Ali 2. Jagjit Singh – Chaitra Singh
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है?
तुम ही कहो कि ये अंदाज़-ए-ग़ुफ़्तगू क्या है?
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है? (Jagjit Singh)
जो आँख ही से न टपके तो फिर लहू क्या है? (Ghulam Ali)
चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन
हमारी जेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है?
जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा,
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है?
रही ना ताक़त-ए-गुफ़्तार और हो भी
तो किस उम्मीद पे कहिए कि आरज़ू क्या है?

ग़ुफ़्तगू = Conversation
अंदाज़-ए-ग़ुफ़्तगू = Style of Conversation
पैराहन = Shirt, Robe, Clothe
हाजत-ए-रफ़ू = Need of mending (हाजत = Need)
गुफ़्तार = Conversation
ताक़त-ए-गुफ़्तार = Strength for Conversation

हवा का ज़ोर भी

हवा का ज़ोर भी

October 18, 2006
Lyrics:
Singer:
हवा का ज़ोर भी काफ़ी बहाना होता है
अगर चिराग किसी को जलाना होता है।
ज़ुबानी दाग़ बहुत लोग करते रहते हैं,
जुनूँ के काम को कर के दिखाना होता है।
हमारे शहर में ये कौन अजनबी आया
कि रोज़ _____ सफ़र पे रवाना होता है।
कि तू भी याद  नहीं आता ये तो होना था
गए दिनों को सभी को भुलाना होता है।

मिल मिल के बिछड़ने का मज़ा क्यों नहीं देते

मिल मिल के बिछड़ने का मज़ा क्यों नहीं देते

October 18, 2006
Lyrics:
Singer:
मिल मिल के बिछड़ने का मज़ा क्यों नहीं देते?
हर बार कोई ज़ख़्म नया क्यों नहीं देते?
ये रात, ये तनहाई, ये सुनसान दरीचे
चुपके से मुझे आके सदा क्यों नहीं देते।
है जान से प्यारा मुझे ये दर्द-ए-मोहब्बत
कब मैंने कहा तुमसे दवा क्यों नहीं देते।
गर अपना समझते हो तो फिर दिल में जगह दो
हूँ ग़ैर तो महफ़िल से उठा क्यों नहीं देते।

वो किसी का हो गया है, उसको क्यों कर ढूँढ़िये

वो किसी का हो गया है, उसको क्यों कर ढूँढ़िये

October 18, 2006
Lyrics: Arun Makhmoor
Singer: Raj Kumar Rizvi
वो किसी का हो गया है, उसको क्यों कर ढूँढ़िये?
दिल से आज जो गया है, उसको क्यों कर ढूँढ़िये?
ज़िन्दग़ी सीम आब है कब हाथ आई है भला
मिल के भी जो खो गया है उसको क्यों कर ढूँढ़िये?
प्यार की ख़ातिर जो रोया ज़िन्दग़ी की शाम तक
ले के नफ़रत से गया है उसको क्यों कर ढूँढ़िये?
ढूँढ़कर लाया था दुनिया भर की खुशियाँ जो कभी
ढूँढ़ने ख़ुद को गया है उसको क्यों कर ढूँढ़िये?
ढूँढ़िये ‘मख़मूर’ उसको जो कहीं दुनिया में हो
दिल की तह तक जो गया है उसको क्यों कर ढूँढ़िये?

सीम आब = Mercury

Friday, March 30, 2012

गली-गली तेरी याद बिछी है

गली-गली तेरी याद बिछी है

January 23, 2008
Lyrics:
Singer: Ghulam Ali
गली-गली तेरी याद बिछी है, प्यार रस्ता देख के चल
मुझसे इतनी वहशत है तो मेरी हदों से से दूर निकल।
एक समय तेरा फूल-सा नाज़ुक हाथ था मेरे शानों पर
एक ये वक़्त कि मैं तनहा और दुख के काँटों का जंगल।
याद है अब तक तुझसे बिछड़ने की वो अँधेरी शाम मुझे
तू ख़ामोश खड़ा था लेकिन बातें करता था काजल।
मेरा मुँह क्या देख रहा है, देख उस काली रात तो देख
मैं वही तेरा हमराही हूँ, साथ मेरे चलना है तो चल।

हमको किसके ग़म ने मारा, ये कहानी फिर सही

हमके किसके ग़म ने मारा

January 23, 2008
Lyrics:
Singer: Ghulam Ali
दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा मैंने तुझे याद किया
इसका रोना नहीं क्यों तुमने किया दिल बरबाद
इसका ग़म है कि बहुत देर में बरबाद किया

हमको किसके ग़म ने मारा, ये कहानी फिर सही
किसने तोड़ा दिल हमारा, ये कहानी फिर सही।
दिल के लुटने का सबब पूछो न सबके सामने
नाम आएगा तुम्हारा, ये कहानी फिर सही।
नफ़रतों के तीर खाकर दोस्तों के शहर में
हमने किस-किस को पुकारा, ये कहानी फिर सही।
क्या बताएँ प्यार की बाज़ी वफ़ा की राह में
कौन जीता कौन हारा, ये कहानी फिर सही।

दर्द-ओ-ग़म का ना रहा नाम तेरे आने से

दर्द-ओ-ग़म का ना रहा नाम तेरे आने से

January 24, 2008
Lyrics: Jurat
Singer: Ghulam Ali
दर्द-ओ-ग़म का ना रहा नाम तेरे आने से
दिल को क्या आ गया आराम तेरे आने से।
शुक्र-सद-शुक्र के लबरेज़ हुआ ऐ साकी
मय-ए-इशरत से मेरा जाम तेरे आने से।
सहर-ए-ईद ख़जिल जिससे हो ऐ माह-ए-लका
वस्ल की फूली है ये शाम तेरे आने से।
-
Don’t know what लबरेज़ and लका mean. Also am not sure if ख़जिल means shamed. Any help?
-
शुक्र = Thanks
सद = Hundred
इशरत = Delight, Enjoyment
मय-ए-इशरत = Wine of Delight
ख़जिल = Shamed (??)
माह = Moon
वस्ल = Union

साकी शराब ला

साकी शराब ला

January 24, 2008
Lyrics: Adam
Singer: Ghulam Ali
साकी शराब ला कि तबीयत उदास है
मुतरिब रबाब उठा कि तबीयत उदास है।
चुभती है कल वो जाम-ए-सितारों की रोशनी
ऐ चाँद डूब जा कि तबीयत उदास है।
शायद तेरे लबों की चटक से हो जी बहाल
ऐ दोस्त मुसकुरा कि तबीयत उदास है।
है हुस्न का फ़ुसूँ भी इलाज-ए-फ़सुर्दगी।
रुख़ से नक़ाब उठा कि तबीयत उदास है।
मैंने कभी ये ज़िद तो नहीं की पर आज शब
ऐ महजबीं न जा कि तबीयत उदास है।
-
Don’t know what रबाब means. Any help?
-
मुतरिब = Singer
फ़ुसूँ = Magic
फ़सुर्दगी = Disappointment

पुकारती है ख़ामोशी

पुकारती है ख़ामोशी

January 24, 2008
Lyrics: Dagh Dehalvi
Singer: Ghulam Ali
पुकारती है ख़ामोशी मेरी फुगाँ की तरह
निग़ाहें कहती हैं सब राज़-ए-दिल जबाँ की तरह।
जला के दाग़-ए-मोहब्बत ने दिल को ख़ाक किया
बहार आई मेरे बाग़ में खिज़ाँ की तरह।
तलाश-ए-यार में छोड़ी न सरज़मीं कोई,
हमारे पाँवों में चक्कर है आसमाँ की तरह।
छुड़ा दे कैद से ऐ कैद हम असीरों को
लगा दे आग चमन में भी आशियाँ की तरह।
हम अपने ज़ोफ़ के सदके बिठा दिया ऐसा
हिले ना दर से तेरे संग-ए-आसताँ की तरह।
-
फुगाँ = Cry of Distress
असीर = Prisoner
ज़ोफ़ = Weakness
संग = Stone
आसताँ = Threshold

कोई समझाए ये क्या रंग है मैख़ाने का

कोई समझाए ये क्या रंग है मैख़ाने का

January 24, 2008
Lyrics: Allama Iqbal
Singer: Ghulam Ali
कोई समझाए ये क्या रंग है मैख़ाने का
आँख साकी की उठे नाम हो पैमाने का।
गर्मी-ए-शमा का अफ़साना सुनाने वालों
रक्स देखा नहीं तुमने अभी परवाने का।
चश्म-ए-साकी मुझे हर गाम पे याद आती है,
रास्ता भूल न जाऊँ कहीं मैख़ाने का।
अब तो हर शाम गुज़रती है उसी कूचे में
ये नतीजा हुआ ना से तेरे समझाने का।
मंज़िल-ए-ग़म से गुज़रना तो है आसाँ ‘इक़बाल’
इश्क है नाम ख़ुद अपने से गुज़र जाने का।
-
रक्स = Dance
चश्म = Eye
गाम = Step

ऐसे चुप है

ऐसे चुप है

January 24, 2008
Lyrics: Ahmed Faraz
Singer: Ghulam Ali
ऐसे चुप है कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे,
तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे।
अपने ही साये से हर गाम लरज़ जाता हूँ,
रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे।
कितने नादाँ हैं तेरे भूलने वाले कि तुझे
याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे।
मंज़िलें दूर भी हैं, मंज़िलें नज़दीक भी हैं,
अपने ही पाँवों में ज़ंजीर पड़ी हो जैसे।
आज दिल खोल के रोए हैं तो यों खुश हैं ‘फ़राज़’
चंद लमहों की ये राहत भी बड़ी हो जैसे।

गाम = Step
लरज़ = Shake

1.      rone  se  aur ishq meiN  be_baak ho gaye
dhoye gaye ham 'eise ki bas paak ho gaye

[ be_baak = outspoken/bold, paak = pure/clean/holy ]

2. sarf-e-baha-e-mai hue aalaat-e-maikashee
the; ye hee do hisaab, so yoN paak ho gaye

[ sarf = expenditure, baha = value/price, mai = bar,
aalaat = instruments/apparatus, maikashee = boozing ]

3. ruswa-e-dahar go hue aawaargee se tum
baare tabeeyatoN ke to chaalaak ho gaye

[ dahar = world, baare = atlast ]

4. kehta hai kaun naala-e-bulbul ko be_asar
parde meiN gul ke laakh jigar chaak ho gaye

[ chaak = slit/torn ]

5. pooche hai kya wujood-o-adam 'ehl-e-shauq ka
aap apnee aag se KHas-o-KHaashaak ho gaye

[ wujood = existence, adam = non existence,
KHas-o-Khaashaak = destroyed ]

6. karne gaye the; usse taGHaaful ka ham gila
kee ek hee nigaah ki bas KHaak ho gaye

[ taGHaaful = negligence, gila = complaint, KHaak = dust/ashes ]

7. is DHang se uTHaayee kal usne 'Asad' ki laash
dushman bhee jisko dekhke GHamnaak ho gaye

[ GHamnaak = grief stricken ]

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1.      shauq  har rang raqeeb-e-sar-o-saamaaN  niklaa
qais tasveer ke parde meiN bhee uriyaaN niklaa

[ raqeeb = opponent, sar-o-saamaaN = with belongings,
qais = 'majanooN', uriyaaN = nude ]

2. zaKHm ne daad na dee, tangee-e-dil ki yaarab !
teer bhee seena-e-bismil se par_afshaaN niklaa

[ daad = justice, seena-e-bismil = wounded heart, par = wings,
afshaaN = rattle ]

3. boo-e-gul, naala-e-dil, dood-e-charaaGH-e-mehfil
jo teree bazm se nikla, so parishaaN niklaa

[ boo = fragrance, gul = flower, naalaa = cry, dood = smoke, esp.
from a lamp that's been extinguished ]

4. thee nau_aamoz_fana'a himmat-e-dushwaar_pasand
saKHt mushkil hai ki yah kaam bhee aasaaN nikla

[ nau_aamoz = beginner, dushwaar = difficult ]

5. dil meiN fir giryaaN ne ik shor uThaaya 'GHalib'
aah jo qatra na nikla tha, so toofaaN nikla

[ giryaaN = weeping, qatra = drop ]

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1. Taskin ko ham na roen jo zauq-e-nazr mile,
Huraan-e-khuld mein teri surat magar mile.

2. Apni gali mein mujhko na kar dafan baad-e-qatal,
Mere pate se khalaq ko kyon tera ghar mile?

3. Saqi gari ki sharm karo aaj warna ham,
Har shab piya hi karte hain, mai jis qadar mile.

4. Tujh se to kuchh kalaam nahin lekin ai nadim!
Mera salaam kaheyo agar naama bar mile.

5. Tum ko bhi ham dikhaenge Majnun ne kya kiya,
Fursat kashaakash-e-gham-e-pinhaan se gar mile.

6. Laazim nahin ke khizar ki ham pairwi karen,
Maana ke ek bazurg hamen ham safar mile.

7. Ai saaknaan-e-kucha-e-dildaar dekhna,
Tum ko kahin jo Ghalib-e-aashufta sar mile.


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1.      us bazm meiN mujhe naheeN bantee haya kiye
baiThaa raha agarche ishaare huwa kiye

2. dil hee to hai, siyaasat-e-darbaaN se Dar gaya
maiN, aur jaaooN dar se tere bin sada kiye ?

[ siyaasat = politics, darbaaN = doorkeeper/sentry, dar = door,
sada = sound, here it means conversation ]

3. rakhta firooN hooN KHirqa-o-sajjaada rahn meiN
muddat huee hai daavat-e-aab-o-hawa kiye

[ KHirqa = a patched garment, sajjaada = a prayer carpet,
rahn = mortgage, aab-o-hawa = climate ]

4. be_sarfa hee guzartee hai, ho garche umr-e-KHijr
hazarat bhee kal kahenge ki ham kya kiya kiye ?

[ be_sarfa = simple life, umr-e-KHijr = everlasting life ]

5. maqdoor ho to KHaak se poochchooN, ke 'ei laeem
toone woh ganj haay giraaN_maaya kya kiye ?

[ maqdoor = capable, KHaak = dust/earth, laeem = miserly,
ganj = treasure/wealth, giraaN_maaya = valuble/precious ]

6. kis roz tohamataiN na taraasha kiye 'adoo
kis din hamaare sar pe na aare chala kiye

[ tohamataiN = accusitions, 'adoo = enemy ]

7. sohbat meiN GHair kee na paDee ho kaheeN yeh KHoo
dene laga hai bose baGHair iltijaa kiye

[ sohbat = company, KHoo = habit, bose = kisses, iltijaa = request ]

8. zid kee hai aur baat magar KHoo buree naheeN
bhoole se usne saikDoN waade-wafa kiye

[ KHoo = habit ]

10. 'GHalib' tumheeN kaho ki milega jawaab kya ?
maana ki tum kaha kiye, aur woh suna kiye

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1.      woh  aake KHwaab meiN taskeen-e-iztiraab to de
wale mujhe tapish-e-dil, mazaal-e-KHwaab to de

[ taskeen = satisfaction, iztiraab = anxiety, tapish = burn/passion,
mazaal = strength ]

2. kare hai qatl lagaawat meiN tera ro dena
teree tarah koee teGH-e-nigah ko aab to de

[ lagaawat = affection, tegh = sword, aab = cool ]

3. dikhaake jumbish-e-lab hee tamaam kar hamko
na de jo bosa, to muNh se kaheeN jawaab to de

[ jumbish = motion/vibration, bosa = kiss ]

4. pila de oak se saaqee jo hamse nafrat hai
pyaala gar naheeN deta na de, sharaab to de

[ oak = palm of the hand contracted so as to hold water ]

5. 'Asad' KHushee se mere haath paaNv phool gaye
kaha jo usne zara mere paaNv daab to de

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1.      woh  firaaq aur  woh wisaal  kahaaN ?
woh shab-o-roz-o-maah-o-saal kahaaN ?

[ firaaq = separation, wisaal = meeting, shab = night,
roz = day, maah = month, saal = year ]

2. fursat-e-kaarobaar-e-shauq kise ?
zauq-e-nazzaraa-e-jamaal kahaaN ?

[ zauq = delight/joy, jamaal = beauty ]

3. dil to dil wo dimaaGH bhee na rahaa
shor-e-sauda-e-KHatt-o-KHaal kahaaN ?

4. thee woh ik shaKHs ke tasavvur se
ab woh raanaai-e-KHayaal kahaaN ?

[ tasavvur = imagination, raanaai-e-KHayaal = tender thoughts ]

5. 'eisa aasaaN naheeN lahoo rona
dil meiN taaqat jigar meiN haal kahaaN ?

[ haal = spiritual ecstasy ]

6. hamse chooTa qamaar_KHaana-e-ishq
waaN jo jawaiN, girah meiN maal kahaaN ?

[ qamaar_khaana = casino, girah = knot/joint ]

7. fikr-e-duniyaaN meiN sar khapaata hooN
maiN kahaaN aur ye wabaal kahaaN ?

[ wabaal = calamity ]

8. muzmahil ho gaye quwa'a 'GHalib'
wo anaasir meiN 'eitdaal kahaaN ?

[ muzmahil = exhausted/idle, quwa'a = limbs, anaasir = elements,
'eitdaal = moderation ]

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1.      maze  jahaan  ke apnee  nazar meiN  KHaak naheeN
siwaay KHoon-e-jigar, so jigar meiN KHaak naheeN

2. magar GHubaar huve par hawa uDaa le jaaye
wagarna taab-o-tavaaN baal-o-par meiN KHaak naheeN

[ GHubaar = clouds of dust, taab-o-tavaaN = courage/strength,
bal-o-par = feathers & wings ]

3. yeh kis bahisht_shamaail kee aamad-aamad hai ?
ke GHair jalva-e-gul rahguzar meiN KHaak naheeN

[ bahisht = heaven, shamaail = habits, aamad = arrival,
jalva-e-gul = display of flowers, rahguzar = path ]

4. bhala use; na sahee, kuchch mujhee ko raham aataa
asar mere nafas-e-be_asar meiN KHaak naheeN

[ nafas = breath ]

5. KHayaal-e-jalva-e-gul se KHaraab hai maikash
sharaabKHane ke deewar-o-dar meiN KHaak naheeN

6. huwa hooN ishq ki GHaaratgaree se sharminda
siwaay hasrat-e-taameer ghar meiN KHaak naheeN

[ GHaaratgree = destructiveness, taameer = construction ]

7. hamaare sher haiN ab sirf dil_lagee ke 'Asad'
khulaa ki faayda arz-e-hunar meiN KHaak naheeN

[ arz-e-hunar = display of talents ]

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1. meharbaaN ho ke bulaa lo mujhe chaaho jis waqt
maiN gayaa waqt nahiN hooN ke phir aa bhi na sakooN

2. zauf meiN taanaa-e-aGHyaar ka shikwaa kyaa hai?
baat kuchh sar to nahiN hai ke uThaa bhi na sakooN

[ zauf = weakness, taana = taunt, aGHayaar = enemy,
shikawa = complaint ]

3. zahar miltaa hi nahiN mujhko sitam_gar warnaa
kyaa qasam hai tere milne ki ke khaa bhi na sakooN

[ sitamgar = oppressor ]

Note: This GHazal is often confused with another GHazal written by Ameer Minai, because they happen to be hamradeef GHazals (i.e. the shers have the same ending words for the second line). Click here to see the version by Ameer.
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1.      miltee hai  KHoo-e-yaar se  naar  iltihaab meiN
kaafir hooN gar na miltee ho raahat 'azaab meiN

[ KHoo-e-yaar = lover's nature/behavior/habit, naar = fire,
iltihaab = flame, 'azaab = sorrow ]

2. kab se hooN, kya bataaooN jahaan-e-KHaraab meiN ?
shab haaye hijr ko bhee rakhooN gar hisaab meiN

[ jahaan-e-KHaraab = world of problems, shab = night,
hijr = separation ]

3. taa fir na intezaar meiN neeNd aaye 'umr bhar
aane ka 'ahad kar gaye aaye jo KHwaab meiN

[ taa = so that, 'ahad = promise ]

4. qaasid ke aate-aate KHat ik aur likh rakhooN
maiN jaanta hooN jo woh likhenge jawaab meiN

[ qaasid = messenger ]

5. mujh tak kab unkee bazm meiN aata tha daur-e-jaam
saaqee ne kuchch mila na diya ho sharaab meiN

[ bazm = meeting/"mehafil", saaqee = bar tender ]

6. jo munkir-e-wafa ho fareb us pe kya chale ?
kyooN badGHumaaN hooN dost se dushman ke baab meiN ?

[ munkir-e-wafa = one who denies loyalty, fareb = illusion/fraud
badGHumaaN = suspicious, baab = company ]

7. maiN muztarib hooN wasl meiN KHauf-e-raqeeb se
Daala hai tumko weham ne kis pech-o-taab meiN

[ muztarib = anxious/disturbed, wasl = meeting with the lover,
KHauf = fear, raqeeb = opponent, pech-o-taab = predicament ]

8. mai aur haz'z-e-wasl, KHudaa_saaz baat hai
jaaN nazr denee bhool gaya iztiraab meiN

[ mai = bar, haz'z-e-wasl = joy of meeting, KHudaa_saaz = god's gift,
iztiraab = anxiety ]

9. hai tevaree chaDee huee andar naqaab ke
hai ik shikan paDee huee tarf-e-naqaab meiN

[ shikan = wrinkle, tarf = eyelid ]

10. laakhauN lagaav, ik churaana nigaah ka
laakhauN banaav, ik bigaaDna itaab meiN

[ itaab = anger ]

11. woh naala_dil meiN KHas ke baraabar jagah na paaye
jis naale se shigaaf paDe aaftaab meiN

[ naala_dil = crying heart, KHas = hay/grass, shigaaf = crack,
aaftaab = sun/face ]

12. woh sehar muddaa talbee meiN na kaam aaye
jis sehar se safina ravaaN ho saraab meiN

[ sehar = magic, muddaa talbee = fulfillment of a desire,
safina = boat, ravaaN = move, saraab = mirage ]

13. 'GHalib' chutee sharaab, par ab bhee kabhee-kabhee
peeta hooN roz-e-abr -o- shab-e-maahtaab meiN

[ abr = clouds, roz-e-abr = cloudy day, maahtaab = moon ]

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1.      muddat  huee hai yaar ko mehmaaN kiye hue
josh-e-qadah se bazm chiraaGHaaN kiye hue

[ qadah = goblet ]

2. karta hooN jama'a fir jigar-e-laKHt-laKHt ko
arsa hua hai daawat-e-mizhgaaN kiye hue

[ laKHt = piece, mizhgaaN = eyelid ]

3. fir waz'a-e-'ehtiyaat se rukane laga hai dam
barsoN hue haiN chaak girebaaN kiye hue

[ waz'a = conduct/behaviour, 'ehtiyaat = care, chaak = torn,
girebaaN = collar ]

4. fir garm_naala haay sharar_baar hai nafas
muddat huee hai sair-e-chiraaGHaaN kiye hue

[ sharar_baar = raining sparks of fire, nafas = breath ]

5. fir pursish-e-jaraahat-e-dil ko chala hai ishq
saamaan-e-sad_hazaar namakdaaN kiye hue

[ pursish = enquiry, jaraahat (or jiraahat) = surgery, sad = hundred,
namakdaaN = container to keep salt ]

6. fir bhar raha hai KHaama-e-mizhgaaN ba_KHoon-e-dil
saaz-e-chaman_taraazee-e-daamaaN kiye hue

[ KHaama = pen, mizhgaaN = eyelid, saaz = disposition,
taraazee = consenting ]

7. baa_ham_digar hue haiN dil-o-deeda fir raqeeb
nazzaara-o-KHayaal ka saamaaN kiye hue

[ ham_digar = mutual/in between, saamaaN = confront ]

8. dil fir tawaaf-e-koo-e-malaamat ko jaai hai
pindaar ka saman_kada weeraaN kiye hue

[ tawaaf = circuit, koo = lane/street, malaamat = rebuke/blame,
pindaar = pride/arrogance, saman_kada = house of jasmine flowers,
here it means temple ]

9. fir shauq kar raha hai KHareedaar kee talab
arz-e-mata'a-e-'aql-o-dil-o-jaaN kiye hue

[ talab = search, mata'a = valuables ]

10. dauDe hai fir harek gul-o-laala par KHayaal
sad_gul_sitaaN nigaah ka saamaaN kiye hue

11. fir chaahta hooN naama-e-dildaar kholna
jaaN nazr-e-dil_farebee-e-unwaaN kiye hue

[ naama-e-dildaar = love letter, unwaaN = title/preface ]

12. maange hai fir kisee ko lab-e-baam par hawas
zulf-e-siyaah ruKH pe pareshaaN kiye hue

[ lab-e-baam = the corner of a terrace, siyaah = black/dark ]

13. chaahe fir kisee ko muqaabil meiN aarzoo
soorme se tez dashna-e-mizhgaaN kiye hue

[ muqaabil = confronting, dashna = dagger, mizhgaaN = eyelids ]

14. ik nau_bahaar-e-naaz ko taaqe hai fir nigaah
chehra furoGH-e-mai se gulistaaN kiye hue

[ nau_bahaar-e-naaz = lover, furoGH = light/bright ]

15. fir jee meiN hai ki dar pe kisee ke paDe rahaiN
sar zar-e-baar-e-minnat-e-darbaaN kiye hue

[ zar = money/wealth, baar = burden/load, minnat = supplicate ]

16. jee DhoonDta hai fir wohee fursat ke raat din
baiTHe rahaiN tasavvur-e-jaanaaN kiye hue

[ tasavvur = imagination ]

17. 'GHalib' hameiN na cheD ki fir josh-e-ashq se
baiTHe haiN ham tahayya-e-toofaaN kiay hue

[ tahayya = determined ]

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1.      na tha kuchch to KHuda tha, kuchch na hota to KHuda hota
duboya mujhko hone ne, na hota maiN to kya hota ?

2. huaa jab GHam se yooN behis to GHam kya sar ke kaTne ka
na hota gar juda tan se to zaanooN par dhaRa hota

[ behis = shocked/stunned, zaanooN = knee ]

3. huee muddat ke 'GHalib' mar gaya par yaad aata hai
wo har ek baat pe kehana, ke yooN hota to kya hota ?

[ muddat = duration/period ]

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1.      naqsh fariyaadee hai kiskee shoKHee-e-tehreer ka
kaaGHazee hai pairhan har paikar-e-tasweer ka

[ naqsh = copy/print, fariyaad = complaint, tehreer = hand
writing, kaaGHazee = delicate, pairhan = dress,
paikar = appearance ]

2. kaave-kaave saKHt_jaanee haay tanhaaee na pooch
subah karna shaam ka laana hai joo-e-sheer ka

[ kaave-kaave = hard work, saKHt_jaanee = tough life,
joo = canal/stream, sheer = milk, joo-e-sheer = to create a
canal of milk, here means to perform an impossible task ]

3. jazba-e-be_iKHtiyaar-e-shauq dekha chaahiye
seena-e-shamsheer se baahar hai dam shamsheer ka

[ iKHtiyaar = authority/power, shamsheer = sword ]

4. aagahee daam-e-shuneedan jis qadar chaahe bichaaye
mudda'a 'anqa hai apne aalam-e-taqreer ka

[ aagahee = knowledge/intution, daam = net/trap,
shuneed = conversation, 'anqa = rare, aalam = world/universe,
taqreer = speech/discourse ]

5. bus ke hooN 'GHalib' aseeree meiN bhee aatish zer-e-pa
moo-e-aatish_deeda hai halqa meree zanjeer ka

[ aseeree = imprisonment/captivity, zer-e-pa = under the feet,
moo = hair, aatish_deeda = roasted on fire, halqa = ring/circle ]


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1.      nuktaacheeN hai GHam-e-dil usko sunaaye na bane
kya bane baat jahaaN baat banaaye na bane

[ nuktaacheeN = critic/sweetheart ]

2. maiN bulaata to hooN usko magar 'ei jazba-e-dil
uspe ban jaaye kuchch 'eisee ki bin aaye na bane

3. khel samjha hai kaheeN choD na de, bhool na jaay
kaash ! yooN bhee ho ki bin mere sataaye na bane

4. GHair firta hai liye yooN tere KHat ko ki agar
koee pooche ki yeh kya hai ? to chipaaye na bane

5. is nazaakat ka bura ho, woh bhale haiN to kya
haaNth aaye to unhaiN haaNth lagaaye na bane

[ nazaakat = elegance ]

6. keh sake kaun ki yeh jalwaa_garee kiskee hai
parda choDa hai woh usne ki uTHaaye na bane

[ jalwaa_garee = manifestation ]

7. maut kee raah na dekhooN ki bin aaye na rahe
tumko chaahooN ki na aao, to bulaaye na bane

8. bojh woh sar pe gira hai ki uTHaaye na uTHe
kaam woh aan paDa hai, ki banaaye na bane

9. ishq par zor naheeN, hai ye woh aatish 'GHalib'
ki lagaaye na lage aur bujhaaye na bane

[ aatish = fire ]

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