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Sunday, April 1, 2012

दोस्त बनकर भी नहीं साथ निभाने वाला

दोस्त बनकर भी नहीं साथ निभाने वाला

July 24, 2005
Lyricist: Ahmed Faraz
Singer: Ghulam Ali
दोस्त बनकर भी नहीं साथ निभाने वाला
वो ही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला।
क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे उससे
वो जो इक शख़्स है मुँह फेर के जाने वाला।
क्या ख़बर थी जो मेरी जाँ में घुला रहता है
है वही मुझको सर-ए-दार भी लाने वाला।
मैंने देखा है बहारों में चमन को जलते
है कोई ख़्वाब की ताबीर बताने वाला।
तुम तक़ल्लुफ़ को भी इख़लास समझते हो ‘फ़राज़’
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला।

मरासिम = Relations, Agreements
सर-ए-दार = At the Tomb
ताबीर = Interpretation
तक़ल्लुफ़ = Formality
इख़लास = Sincerity, Love, Selfless Worship

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