मीडिया को सोने का अंडा देनावाली मुर्गी- निर्मल बाबा
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एक ओर सरेआम निर्मल सिंह नरूला लोगों की आंखों में धूल झोंककर लोगो को ठग रहा है और लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ रहा है और दूसरी और उस जालसाज की सच्चाई सामने लाने की बजाय हमारे तथाकथित आधुनिक टेलीवीजन मीडिया वाले उसको बढ़ावा देने में लगे हैं. आखिर ऐसा क्या कारण है कि टेलीवीजन चैनल सारी सच्चाई जानते हुए निर्मल बाबा को हीरो बनाए हुए घूम रहे हैं?
निर्मल बाबा के निर्मल दरबार का इस वक्त रोजाना 36 टीवी प्रोग्राम के जरिए देश-विदेश में प्रसारण हो रहे हैं. औसतन निर्मल बाबा प्रतिदिन 22 घंटे चैनल पर नजर आता है. टीवी चैनल ताकतवर माध्यम है इसलिए इसका इस्तेमाल करके कुछ समय पहले बाबा रामदेव ने भी अपना योग साम्राज्य और दवाइयों का कारोबार इतना बड़ा कर लिया था कि आज वह देश के रसूखदार लोगों में गिने जा रहे हैं. बाबा ने भी बड़ी चालाकी से इसी टीवी मीडिया का इस्तेमाल करना शुरू किया और आज वह अरबों में खेल रहा है.
किसी एक टीवी चैनल पर आने के लिए निर्मल बाबा चार से आठ लाख रूपये मासिक रूप से अदा करता है. चैनलों के लिए निर्मल बाबा का प्रसारण कोई ज्यादा दिक्कत वाला काम इसलिए नहीं है क्योंकि टीवी चैनलों में पर टेलिमार्केटिंग कंपनियां पहले से ही आधे घण्टे या प्रंद्रह मिनट का एयरटाइम खरीदकर अपने उत्पादों का प्रचार करती रही है. जाहिर है, इसके लिए टेलीवीजन चैनल कहीं से जिम्मेदार नहीं होता है और मिलनेवाले पैसे को भी वह अपने एकाउण्ट में शो कर सकता है.
---------------------कहां कहां है निर्मल बाबा- सब टीवी, स्टार टीवी, हिस्ट्री चैनल, सोनी, आज तक, लाइफ ओके, सहारा वन, एएक्सएन, न्यूज-24, इंडिया टीवी, आइबीएन-7, आजतक तेज, स्टार उत्सव, साधना, सहारा समय, नेपाल1, जी छत्तीसगढ़, सहारा यूपी, सहारा बिहार, सहारा मध्य प्रदेश, सहारा राजस्थान, सहारा समय मुंबई, दिव्य टीवी, सौभाग्य टीवी, दर्शन-24, प्रार्थना उड़िया, पी-7 न्यूज, टोटल टीवी, इंडिया न्यूज हरियाणा, डीवाई-365, कात्यायनी, ए2जेड, कलर्स (केवल अमेरिका में), सोनी (अमेरिका में) और टीवी एशिया (अमेरिका में). —
निर्मलजीत सिंह नरूला उर्फ निर्मल बाबा के इंटरनेट पर तीस लाख से भी अधिक लिंक्स हैं, पर उनका कहीं कोई विवरण उपलब्ध नहीं है. निर्मलजीत से निर्मल बाबा कैसे बने, यह आज भी रहस्य है.
निर्मल बाबा दो भाई हैं. बड़े भाई मंजीत सिंह अभी लुधियाना में रहते हैं. निर्मल बाबा छोटे हैं. पटियाला के सामना गांव के रहनेवाले. 1947 में देश के बंटवारे के समय निर्मल बाबा का परिवार भारत आ गया था. बाबा शादी-शुदा हैं. एक पुत्र और एक पुत्री हैं उनकी.
मेदिनीनगर (झारखंड) के दिलीप सिंह बग्गा की तीसरी बेटी से उनकी शादी हुई. चतरा के सांसद और झारखंड विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी के छोटे साले हैं ये. बकौल श्री नामधारी, 1964 में जब उनकी शादी हुई, तो निर्मल 13-14 वर्ष के थे. 1970-71 में वह मेदिनीनगर (तब डालटनगंज) आये और 81-82 तक वह यहां रहे. रांची में भी उनका मकान था. पर 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के सिख विरोधी दंगे के बाद उन्होंने रांची का मकान बेच दिया और चले गये. रांची के पिस्का मोड़ स्थित पेट्रोल पंप के पास उनका मकान था.
मेदिनीनगर के चैनपुर स्थित कंकारी में ईंट भट्ठा शुरू किया. पर व्यवसाय नहीं चला
गढ़वा में कपड़ा का बिजनेस किया. पर इसमें भी नाकाम रहे
बहरागोड़ा इलाके में माइनिंग का ठेका भी लिया
निर्मल बाबा का झारखंड से पुराना रिश्ता रहा है. खास कर पलामू प्रमंडल से. 1981-82 में वह मेदिनीनगर (तब डालटनगंज) में रह कर व्यवसाय करते थे. चैनपुर थाना क्षेत्र के कंकारी में उनका ईंट-भट्ठा भी हुआ करता था, जो निर्मल ईंट के नाम से चलता था.
उन्हें जानने वाले कहते हैं कि निर्मल का व्यवसाय ठीक नहीं चलता था. तब उनके ससुरालवाले मेदिनीनगर में ही रहते थे. हालांकि अभी उनकी ससुराल का कोई भी सदस्य मेदिनीनगर में नहीं रहता. उनके (निर्मल बाबा के) साले गुरमीत सिंह अरोड़ा उर्फ बबलू का लाईम स्टोन और ट्रांसपोर्ट का कारोबार हुआ करता था.
बबलू के मित्र सुमन जी कहते हैं कि चूंकि बबलू से मित्रता थी, इसलिए निर्मल जी को जानने का मौका मिला था. वह व्यवसाय कर रहे थे. कुछ दिनों तक गढ़वा में रह कर भी उन्होंने व्यवसाय किया था. वहां कपड़ा का बिजनेस किया. पर उसमें भी नाकाम रहे. बहरागोड़ा इलाके में कुछ दिनों तक माइनिंग का ठेका भी लिया. कहते हैं..बहरागोड़ा में ही बाबा को आत्मज्ञान मिला.
इसके बाद से ही वह अध्यात्म की ओर मुड़ गये. वैसे मेदिनीनगर से जाने के बाद कम लोगों से ही उनकी मुलाकात हुई है. जब उनके बारे में लोगों ने जाना, तब यह चर्चा हो रही है. उन्हें जाननेवाले लोग कहते हैं कि यह चमत्कार कैसे हुआ, उन लोगों को कुछ भी पता नहीं.
लेकिन पैसे देकर प्रोग्राम बनानेवाले निर्मल बाबा की यह सच्चाई जब सामने आने लगी तो उसकी लॉ फर्म सेठ एसोसिएट्स नित नये नये नोटिस भेज रही है. इन खुलासों और निर्मल की गंदी सच्चाइयां सामने आने पर मीडियादरबार को निर्मल बाबा पहले ही नोटिस भेज चुका था अब उसने एक और वेबसाइट भड़ास4मीडिया को भी नोटिस भेजा है. साइट ने जानकारी दी है कि निर्मल बाबा की लीगल फर्म ने उसे भी नोटिस भेजा है. साफ है निर्मल के मैनेजर आनलाइन मीडिया को भी मैनेज करने की कोशिश कर रहे हैं.
लेकिन ठग निर्मल की एक सच्चाई और सामने आई है और वह यह कि निर्मल बाबा पैसे देकर सवाल पूछवाता था. हालांकि आज निर्मल दरबार में सवाल पूछने के पांच हजार वसूले जाते हैं और समागम में शामिल होने के दो हजार. लेकिन जब निर्मल ने धर्म का धंधा शुरू किया था तब कहानी दूसरी थी. तब नोएडा के जिस स्टूडियो में निर्मल बाबा अपने प्रोग्राम की शूटिंग करता था वहां पैसे देकर लोगों को बुलाया जाता था और सवाल पूछनेवालों को पांच से दस हजार रूपया दिया जाता था. निर्मल बाबा से सवाल पूछकर पैसा लेनेवाली एक ऐसी ही जूनियर आर्टिस्ट निधि ने खुलासा किया है कि निर्मल बाबा एक प्रोग्राम में सवाल पूछने के लिए दस हजार रूपये देता था.
बहराहल नित नई सच्चाईयों के सामने आने से जल्द ही इस बाबा का ढोंग खुलकर सामने आ जाएगा. तब तक कम से कम सोशल मीडिया और नये मीडिया में मुहिम बंद नहीं होनी चाहिए. देखना यह होगा कि निर्मल के खिलाफ जो सोशल नेटवर्कर और वेबसाइटें जंग का ऐलान किये घूम रहे हैं वे मैदान में डटी रहती हैं या फिर निर्मल बाबा उन्हें भी कर बल छल से पटाने में कामयाब हो जाता है.
धंधा नहीं चला तो निर्मल बाबा हो गया
निर्मल बाबा के बहनोई इंदर सिंह नामधारी जो कि इस वक्त लोकसभा सदस्य हैं
निर्मल बाबा की परत दर परत सच्चाई सामने आनी शुरू हो गयी है. निर्मल बाबा भले ही धर्म की धंधेबाजी के कारण अब चर्चा में आ रहा है लेकिन उसके एक रिश्तेदार इंदर सिंह नामधारी झारखण्ड के ईमानदार और रसूखवाले नेताओं में गिने जाते हैं. निर्मल सिंह इन्हीं इंदर सिंह नामधारी का सगा साला है. यानी नामधारी की पत्नी मलविन्दर कौर का सगा भाई.
निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लोकसभा पहुंचे नामधारी झारखण्ड के दो बार विधानसभा अध्यक्ष भी रह चुके हैं. उनके सामने निर्मल का नाम लेने पर कई राज खुलते हैं. मीडियादरबार के संचालक धीरज भारद्वाज निर्मल बाबा की खोजबीन के दौरान नामधारी से संपर्क करने में कामयाब हो गये और नामधारी ने भी बिना लाग लपेट के स्वीकार कर लिया कि वह उनका सगा साला है, लेकिन उसका जो कुछ भी काला है उससे उनका कोई लेना देना नहीं है. इंदर सिंह नामधारी कहते हैं कि वे खुद कई बार निर्मल को सलाह दे चुके हैं कि वह लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ न करे, लेकिन वह सुनता नहीं है.
नामधारी स्वीकार करते हैं कि शुरुआती दिनों में वे खुद निर्मल नरुला को अपना कैरीयर संवारने में खासी मदद कर चुके हैं। धीरज भारद्वाज से बात करते हुए उन्होंने बताया कि उनके ससुर यानी निर्मल के पिता एसएस नरूला का काफी पहले देहांत हो चुका है और वे बेसहारा हुए निर्मल नरूला की मदद करने के लिए उसे अपने पास ले आए थे। लाइमस्टोन की ठेकेदारी से लेकर कपड़े के कारोबार तक निर्मल को कई छोटे-बड़े धंधों में सफलता नहीं मिली तो वह बाबा बन गया।
जब धीरज भारद्वाज ने नामधारी से निर्मल बाबा के विचारों और चमत्कारों के बारे में पूछा तो उन्होंने साफ कहा कि वे इससे जरा भी इत्तेफाक़ नहीं रखते। उन्होंने कहा कि वे विज्ञान के छात्र रहे हैं तथा इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी कर चुके हैं इसलिए ऐसे किसी भी चमत्कार पर भरोसा नहीं करते। इसके अलावा उनका धर्म भी इस तरह की बातें मानने का पक्षधर नहीं है।
”सिख धर्म के धर्मग्रथों में तो साफ कहा गया है कि करामात कहर का नाम है। इसका मतलब हुआ कि जो भी करामात कर अपनी शक्तियां दिखाने की कोशिश करता है वो धर्म के खिलाफ़ काम कर रहा है। निर्मल को मैंने कई दफ़ा ये बात समझाने की कोशिश भी की, लेकिन उसका लक्ष्य कुछ और ही है। मैं क्या कर सकता हूं?” नामधारी ने सवाल किया। उन्होंने माना कि निर्मल अपने तथाकथित चमत्कारों से जनता से पैसे वसूलने के ‘गलत खेल’ में लगे हुए हैं जो विज्ञान और धर्म किसी भी कसौटी पर जायज़ नही ठहराया जा सकता।
ठेकेदार निर्मलजीत नरूला से निर्मल बाबा तक: निर्मल नरूला उर्फ निर्मल बाबा विवाह के बाद करीब 1974-75 के दौरान झारखंड गया था और वहां उसने लाईम स्टोन का व्यवसाय शुरू किया, मगर उसमें सफल नहीं हुआ. इसके बाद झारखण्ड के ही गढ़वा में कपड़े का व्यवसाय शुरू किया, लेकिन वहां भी सफल नहीं हो सका. एक वक्त ऐसा भी था कि ये निर्मल बाबा काफी परेशानियों से जूझ रहा था. तब बिहार में मंत्री रहे इंदर सिंह नामधारी ने माइनिंग का एक बड़ा काम इसे दिलवाया था. तब यह ठेकेदारी का काम करता था. उसी कार्य के दौरान इस उसके रिश्तेदारों ने प्रचार करना शुरू कर दिया कि बाबा को ज्ञान की प्राप्ति हो गई है.
भारत में “बाबाओं की दुकान” चल रही है। कोई भभूत से चला रहा है, कोई पेट घुमा रहा है, तो कोई जीवन का रहस्य बता रहा है। दुर्भाग्य तो इस देश के 121 करोड़ आवाम का है जिसे अपने माता-पिता को पैर छूकर प्रणाम करने में कमर की हड्डी झुकती नहीं, बाबाओं को “पैर से सर तक छूने” में कोई कसर नहीं, कोई कोताही नहीं। जय हो।
अगर सूचनाएं गलत नहीं है तो आने वाले दिनों में एक बार फिर से दिल्ली का न्यायिक व्यवस्था, कचहरी इन “बाबाओं” की गतिविधियों से जगमगाने वाली है और ये बाबा लोग समाचारपत्र और टीवी चैनलों पर “सुर्खियों” में आनेवाले हैं। लोगों की जीवन जीने का पाठ बढ़ाने वाले आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थाीपक और आध्यावत्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर वैसे अपने ही बयान से विवादों में घिर गए हैं। उन्होंने कहा था कि सरकारी स्कूीलों में पढ़ने वाले बच्चेक ही नक्स ली बनते हैं।
जब धीरज भारद्वाज ने नामधारी से निर्मल बाबा के विचारों और चमत्कारों के बारे में पूछा तो उन्होंने साफ कहा कि वे इससे जरा भी इत्तेफाक़ नहीं रखते। उन्होंने कहा कि वे विज्ञान के छात्र रहे हैं तथा इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी कर चुके हैं इसलिए ऐसे किसी भी चमत्कार पर भरोसा नहीं करते। इसके अलावा उनका धर्म भी इस तरह की बातें मानने का पक्षधर नहीं है।
”सिख धर्म के धर्मग्रथों में तो साफ कहा गया है कि करामात कहर का नाम है। इसका मतलब हुआ कि जो भी करामात कर अपनी शक्तियां दिखाने की कोशिश करता है वो धर्म के खिलाफ़ काम कर रहा है। निर्मल को मैंने कई दफ़ा ये बात समझाने की कोशिश भी की, लेकिन उसका लक्ष्य कुछ और ही है। मैं क्या कर सकता हूं?” नामधारी ने सवाल किया।
उन्होंने माना कि निर्मल अपने तथाकथित चमत्कारों के जरिए जनता से पैसे वसूलने के ‘गलत खेल’ में लगे हुए हैं जो विज्ञान और धर्म किसी भी कसौटी पर जायज़ नही ठहराया जा सकता।
लगता है निर्मल बाबा की थर्ड आई के दायरे के साथ-साथ उनकी मुश्किलें भी बढ़ती जा रही हैं।
छत्तीसगढ़ पुलिस फिलहाल वहां के एक नागरिक की शिक़ायत पर बाबा के ढकोसले की जांच करने में जुटी है। इस पुराने भक्त ने दावा किया है कि उसने टीवी पर बाबा द्वारा बताए गए नुस्खों पर अमल किया था तो उसे फ़ायदा होने की बजाय नुकसान ही हो गया। इतना ही नहीं, इस नाराज़ भक्त ने बाबा पर उसकी संवेदनाओं को ठेस पहुंचाने का भी आरोप लगाया है।
दरअसल छत्तीसगढ़ के सुन्दर नगर में रहने वाले योगेन्द्र शंकर शुक्ला खुद को निर्मल बाबा का कट्टर भक्त मानते थे। उन्होंने बाबा का शो टीवी पर पूरी श्रद्धा पूर्वक देखा और उसमें बताए गए नुस्खों को अमल में भी लाए। शुक्ला का कहना है कि उन्होंने बाबा जी के कहे अनुसार दस रुपए के नए नोटों की गड्डी भी अलमारी में रखी, लेकिन बजाय फ़ायदा होन के उन्हें नुकसान ही होने लगा।
शुक्ला ने रायपुर के डीडी नगर थाने में दी गई तहरीर में लिखा है कि थर्ड आई ऑफ निर्मल बाबा नाम के कार्यक्रम ने उन्हें खासा उद्वेलित किया है क्योंकि इसमें बाबा जी को भगवान के बराबर बताया गया है। उन्होंने बाबा जी के टीवी कार्यक्रमों को समागम में बुलाने के लिए ‘उकसाने वाला’ बताया है और सवाल पूछा है कि अगर वे खुद को भगवान बताते हैं तो दर्शनार्थियों से प्रवेश शुल्क क्यों वसूलते हैं? उन्होंने लिखा है, ‘ईश्वरीय शक्तियां कभी बेची नहीं जातीं। शक्तियां जनकल्याण के लिए होती हैं, न कि धनोपार्जन के लिए।”
शुक्ला ने निर्मल बाबा के उस आह्वान पर भी ऐतराज़ जताया है जिसमें घरों में शिवलिंग न रखने की बात कही गई है। उन्होंने खुद को शिवजी का उपासक बताया है और लिखा है कि बाबा जी के कथनों से उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है। शुक्ला के मुताबिक निर्मल बाबा द्वारा बताए गए उपाय किसी शास्त्र, धर्म या संप्रदाय में उल्लेख नहीं है और वे दुखी जनों के साथ और धोखा कर रहे हैं।
योगेन्द्र शंकर शुक्ला ने पुलिस से अपील की है कि वे थर्ड आई ऑफ निर्मल बाबा को रोकें और बाबा के खिलाफ उचित कार्रवाई करें। जब मीडिया दरबार ने पुलिस अधीक्षक दीपांशु काबरा से संपर्क साधने की कोशिश की तो उन्होंने फोन नहीं उठाया, लेकिन थाना प्रभारी परमानंद शुक्ला ने बताया कि पुलिस ने तहरीर पर तफ्तीश शुरु कर दी है तथा साक्ष्य एकत्रित किए जा रहे हैं।
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एक ओर सरेआम निर्मल सिंह नरूला लोगों की आंखों में धूल झोंककर लोगो को ठग रहा है और लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ रहा है और दूसरी और उस जालसाज की सच्चाई सामने लाने की बजाय हमारे तथाकथित आधुनिक टेलीवीजन मीडिया वाले उसको बढ़ावा देने में लगे हैं. आखिर ऐसा क्या कारण है कि टेलीवीजन चैनल सारी सच्चाई जानते हुए निर्मल बाबा को हीरो बनाए हुए घूम रहे हैं?
निर्मल बाबा के निर्मल दरबार का इस वक्त रोजाना 36 टीवी प्रोग्राम के जरिए देश-विदेश में प्रसारण हो रहे हैं. औसतन निर्मल बाबा प्रतिदिन 22 घंटे चैनल पर नजर आता है. टीवी चैनल ताकतवर माध्यम है इसलिए इसका इस्तेमाल करके कुछ समय पहले बाबा रामदेव ने भी अपना योग साम्राज्य और दवाइयों का कारोबार इतना बड़ा कर लिया था कि आज वह देश के रसूखदार लोगों में गिने जा रहे हैं. बाबा ने भी बड़ी चालाकी से इसी टीवी मीडिया का इस्तेमाल करना शुरू किया और आज वह अरबों में खेल रहा है.
किसी एक टीवी चैनल पर आने के लिए निर्मल बाबा चार से आठ लाख रूपये मासिक रूप से अदा करता है. चैनलों के लिए निर्मल बाबा का प्रसारण कोई ज्यादा दिक्कत वाला काम इसलिए नहीं है क्योंकि टीवी चैनलों में पर टेलिमार्केटिंग कंपनियां पहले से ही आधे घण्टे या प्रंद्रह मिनट का एयरटाइम खरीदकर अपने उत्पादों का प्रचार करती रही है. जाहिर है, इसके लिए टेलीवीजन चैनल कहीं से जिम्मेदार नहीं होता है और मिलनेवाले पैसे को भी वह अपने एकाउण्ट में शो कर सकता है.
---------------------कहां कहां है निर्मल बाबा- सब टीवी, स्टार टीवी, हिस्ट्री चैनल, सोनी, आज तक, लाइफ ओके, सहारा वन, एएक्सएन, न्यूज-24, इंडिया टीवी, आइबीएन-7, आजतक तेज, स्टार उत्सव, साधना, सहारा समय, नेपाल1, जी छत्तीसगढ़, सहारा यूपी, सहारा बिहार, सहारा मध्य प्रदेश, सहारा राजस्थान, सहारा समय मुंबई, दिव्य टीवी, सौभाग्य टीवी, दर्शन-24, प्रार्थना उड़िया, पी-7 न्यूज, टोटल टीवी, इंडिया न्यूज हरियाणा, डीवाई-365, कात्यायनी, ए2जेड, कलर्स (केवल अमेरिका में), सोनी (अमेरिका में) और टीवी एशिया (अमेरिका में). —
निर्मलजीत सिंह नरूला उर्फ निर्मल बाबा के इंटरनेट पर तीस लाख से भी अधिक लिंक्स हैं, पर उनका कहीं कोई विवरण उपलब्ध नहीं है. निर्मलजीत से निर्मल बाबा कैसे बने, यह आज भी रहस्य है.
निर्मल बाबा दो भाई हैं. बड़े भाई मंजीत सिंह अभी लुधियाना में रहते हैं. निर्मल बाबा छोटे हैं. पटियाला के सामना गांव के रहनेवाले. 1947 में देश के बंटवारे के समय निर्मल बाबा का परिवार भारत आ गया था. बाबा शादी-शुदा हैं. एक पुत्र और एक पुत्री हैं उनकी.
मेदिनीनगर (झारखंड) के दिलीप सिंह बग्गा की तीसरी बेटी से उनकी शादी हुई. चतरा के सांसद और झारखंड विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी के छोटे साले हैं ये. बकौल श्री नामधारी, 1964 में जब उनकी शादी हुई, तो निर्मल 13-14 वर्ष के थे. 1970-71 में वह मेदिनीनगर (तब डालटनगंज) आये और 81-82 तक वह यहां रहे. रांची में भी उनका मकान था. पर 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के सिख विरोधी दंगे के बाद उन्होंने रांची का मकान बेच दिया और चले गये. रांची के पिस्का मोड़ स्थित पेट्रोल पंप के पास उनका मकान था.
मेदिनीनगर के चैनपुर स्थित कंकारी में ईंट भट्ठा शुरू किया. पर व्यवसाय नहीं चला
गढ़वा में कपड़ा का बिजनेस किया. पर इसमें भी नाकाम रहे
बहरागोड़ा इलाके में माइनिंग का ठेका भी लिया
निर्मल बाबा का झारखंड से पुराना रिश्ता रहा है. खास कर पलामू प्रमंडल से. 1981-82 में वह मेदिनीनगर (तब डालटनगंज) में रह कर व्यवसाय करते थे. चैनपुर थाना क्षेत्र के कंकारी में उनका ईंट-भट्ठा भी हुआ करता था, जो निर्मल ईंट के नाम से चलता था.
उन्हें जानने वाले कहते हैं कि निर्मल का व्यवसाय ठीक नहीं चलता था. तब उनके ससुरालवाले मेदिनीनगर में ही रहते थे. हालांकि अभी उनकी ससुराल का कोई भी सदस्य मेदिनीनगर में नहीं रहता. उनके (निर्मल बाबा के) साले गुरमीत सिंह अरोड़ा उर्फ बबलू का लाईम स्टोन और ट्रांसपोर्ट का कारोबार हुआ करता था.
बबलू के मित्र सुमन जी कहते हैं कि चूंकि बबलू से मित्रता थी, इसलिए निर्मल जी को जानने का मौका मिला था. वह व्यवसाय कर रहे थे. कुछ दिनों तक गढ़वा में रह कर भी उन्होंने व्यवसाय किया था. वहां कपड़ा का बिजनेस किया. पर उसमें भी नाकाम रहे. बहरागोड़ा इलाके में कुछ दिनों तक माइनिंग का ठेका भी लिया. कहते हैं..बहरागोड़ा में ही बाबा को आत्मज्ञान मिला.
इसके बाद से ही वह अध्यात्म की ओर मुड़ गये. वैसे मेदिनीनगर से जाने के बाद कम लोगों से ही उनकी मुलाकात हुई है. जब उनके बारे में लोगों ने जाना, तब यह चर्चा हो रही है. उन्हें जाननेवाले लोग कहते हैं कि यह चमत्कार कैसे हुआ, उन लोगों को कुछ भी पता नहीं.
आप कल्पना करिए कि अगर नया मीडिया या फिर जिसे आप सोशल मीडिया कहते हैं वह न होता तो निर्मल बाबा का क्या होता? 'टेलीवीजन मीडिया को पैसे के बल पर अपनी जेब में कर चुका निर्मल नरूला उर्फ निर्मल बाबा की पोलखोल इसी नये मीडिया की बदौलत हो पा रही है. नया मीडिया और सोशल मीडिया पर सक्रिय लोग नित नई जानकारियां निकालकर ला रहे हैं और निर्मल की व्यावसायिक गंदगी से रूबरू करवा रहे हैं.
लेकिन पैसे देकर प्रोग्राम बनानेवाले निर्मल बाबा की यह सच्चाई जब सामने आने लगी तो उसकी लॉ फर्म सेठ एसोसिएट्स नित नये नये नोटिस भेज रही है. इन खुलासों और निर्मल की गंदी सच्चाइयां सामने आने पर मीडियादरबार को निर्मल बाबा पहले ही नोटिस भेज चुका था अब उसने एक और वेबसाइट भड़ास4मीडिया को भी नोटिस भेजा है. साइट ने जानकारी दी है कि निर्मल बाबा की लीगल फर्म ने उसे भी नोटिस भेजा है. साफ है निर्मल के मैनेजर आनलाइन मीडिया को भी मैनेज करने की कोशिश कर रहे हैं.
लेकिन ठग निर्मल की एक सच्चाई और सामने आई है और वह यह कि निर्मल बाबा पैसे देकर सवाल पूछवाता था. हालांकि आज निर्मल दरबार में सवाल पूछने के पांच हजार वसूले जाते हैं और समागम में शामिल होने के दो हजार. लेकिन जब निर्मल ने धर्म का धंधा शुरू किया था तब कहानी दूसरी थी. तब नोएडा के जिस स्टूडियो में निर्मल बाबा अपने प्रोग्राम की शूटिंग करता था वहां पैसे देकर लोगों को बुलाया जाता था और सवाल पूछनेवालों को पांच से दस हजार रूपया दिया जाता था. निर्मल बाबा से सवाल पूछकर पैसा लेनेवाली एक ऐसी ही जूनियर आर्टिस्ट निधि ने खुलासा किया है कि निर्मल बाबा एक प्रोग्राम में सवाल पूछने के लिए दस हजार रूपये देता था.
बहराहल नित नई सच्चाईयों के सामने आने से जल्द ही इस बाबा का ढोंग खुलकर सामने आ जाएगा. तब तक कम से कम सोशल मीडिया और नये मीडिया में मुहिम बंद नहीं होनी चाहिए. देखना यह होगा कि निर्मल के खिलाफ जो सोशल नेटवर्कर और वेबसाइटें जंग का ऐलान किये घूम रहे हैं वे मैदान में डटी रहती हैं या फिर निर्मल बाबा उन्हें भी कर बल छल से पटाने में कामयाब हो जाता है.
धंधा नहीं चला तो निर्मल बाबा हो गया
निर्मल बाबा के बहनोई इंदर सिंह नामधारी जो कि इस वक्त लोकसभा सदस्य हैं
निर्मल बाबा की परत दर परत सच्चाई सामने आनी शुरू हो गयी है. निर्मल बाबा भले ही धर्म की धंधेबाजी के कारण अब चर्चा में आ रहा है लेकिन उसके एक रिश्तेदार इंदर सिंह नामधारी झारखण्ड के ईमानदार और रसूखवाले नेताओं में गिने जाते हैं. निर्मल सिंह इन्हीं इंदर सिंह नामधारी का सगा साला है. यानी नामधारी की पत्नी मलविन्दर कौर का सगा भाई.
निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लोकसभा पहुंचे नामधारी झारखण्ड के दो बार विधानसभा अध्यक्ष भी रह चुके हैं. उनके सामने निर्मल का नाम लेने पर कई राज खुलते हैं. मीडियादरबार के संचालक धीरज भारद्वाज निर्मल बाबा की खोजबीन के दौरान नामधारी से संपर्क करने में कामयाब हो गये और नामधारी ने भी बिना लाग लपेट के स्वीकार कर लिया कि वह उनका सगा साला है, लेकिन उसका जो कुछ भी काला है उससे उनका कोई लेना देना नहीं है. इंदर सिंह नामधारी कहते हैं कि वे खुद कई बार निर्मल को सलाह दे चुके हैं कि वह लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ न करे, लेकिन वह सुनता नहीं है.
नामधारी स्वीकार करते हैं कि शुरुआती दिनों में वे खुद निर्मल नरुला को अपना कैरीयर संवारने में खासी मदद कर चुके हैं। धीरज भारद्वाज से बात करते हुए उन्होंने बताया कि उनके ससुर यानी निर्मल के पिता एसएस नरूला का काफी पहले देहांत हो चुका है और वे बेसहारा हुए निर्मल नरूला की मदद करने के लिए उसे अपने पास ले आए थे। लाइमस्टोन की ठेकेदारी से लेकर कपड़े के कारोबार तक निर्मल को कई छोटे-बड़े धंधों में सफलता नहीं मिली तो वह बाबा बन गया।
जब धीरज भारद्वाज ने नामधारी से निर्मल बाबा के विचारों और चमत्कारों के बारे में पूछा तो उन्होंने साफ कहा कि वे इससे जरा भी इत्तेफाक़ नहीं रखते। उन्होंने कहा कि वे विज्ञान के छात्र रहे हैं तथा इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी कर चुके हैं इसलिए ऐसे किसी भी चमत्कार पर भरोसा नहीं करते। इसके अलावा उनका धर्म भी इस तरह की बातें मानने का पक्षधर नहीं है।
”सिख धर्म के धर्मग्रथों में तो साफ कहा गया है कि करामात कहर का नाम है। इसका मतलब हुआ कि जो भी करामात कर अपनी शक्तियां दिखाने की कोशिश करता है वो धर्म के खिलाफ़ काम कर रहा है। निर्मल को मैंने कई दफ़ा ये बात समझाने की कोशिश भी की, लेकिन उसका लक्ष्य कुछ और ही है। मैं क्या कर सकता हूं?” नामधारी ने सवाल किया। उन्होंने माना कि निर्मल अपने तथाकथित चमत्कारों से जनता से पैसे वसूलने के ‘गलत खेल’ में लगे हुए हैं जो विज्ञान और धर्म किसी भी कसौटी पर जायज़ नही ठहराया जा सकता।
ठेकेदार निर्मलजीत नरूला से निर्मल बाबा तक: निर्मल नरूला उर्फ निर्मल बाबा विवाह के बाद करीब 1974-75 के दौरान झारखंड गया था और वहां उसने लाईम स्टोन का व्यवसाय शुरू किया, मगर उसमें सफल नहीं हुआ. इसके बाद झारखण्ड के ही गढ़वा में कपड़े का व्यवसाय शुरू किया, लेकिन वहां भी सफल नहीं हो सका. एक वक्त ऐसा भी था कि ये निर्मल बाबा काफी परेशानियों से जूझ रहा था. तब बिहार में मंत्री रहे इंदर सिंह नामधारी ने माइनिंग का एक बड़ा काम इसे दिलवाया था. तब यह ठेकेदारी का काम करता था. उसी कार्य के दौरान इस उसके रिश्तेदारों ने प्रचार करना शुरू कर दिया कि बाबा को ज्ञान की प्राप्ति हो गई है.
भारत में “बाबाओं की दुकान” चल रही है। कोई भभूत से चला रहा है, कोई पेट घुमा रहा है, तो कोई जीवन का रहस्य बता रहा है। दुर्भाग्य तो इस देश के 121 करोड़ आवाम का है जिसे अपने माता-पिता को पैर छूकर प्रणाम करने में कमर की हड्डी झुकती नहीं, बाबाओं को “पैर से सर तक छूने” में कोई कसर नहीं, कोई कोताही नहीं। जय हो।
अगर सूचनाएं गलत नहीं है तो आने वाले दिनों में एक बार फिर से दिल्ली का न्यायिक व्यवस्था, कचहरी इन “बाबाओं” की गतिविधियों से जगमगाने वाली है और ये बाबा लोग समाचारपत्र और टीवी चैनलों पर “सुर्खियों” में आनेवाले हैं। लोगों की जीवन जीने का पाठ बढ़ाने वाले आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थाीपक और आध्यावत्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर वैसे अपने ही बयान से विवादों में घिर गए हैं। उन्होंने कहा था कि सरकारी स्कूीलों में पढ़ने वाले बच्चेक ही नक्स ली बनते हैं।
झारखंड के वरिष्ठ राजनेता इंदर सिंह नामधारी वैसे तो निर्मल बाबा के
करीबी रिश्तेदार हैं लेकिन उनके कारनामों से जरा भी इत्तेफाक नहीं रखते।
मीडिया दरबार से हुई बातचीत में नामधारी ने साफ कहा कि वे निजी तौर पर कई
बार उन्हें जनता की भावनाओं से न खेलने की सलाह दे चुके हैं।
नामधारी
ने स्वीकार किया कि निर्मल बाबा उनके सगे साले हैं। उन्होंने यह भी माना
कि वे शुरुआती दिनों में निर्मल को अपना करीयर संवारने में खासी मदद कर
चुके हैं। मीडिया दरबार को उन्होंने बताया कि उनके ससुर यानि निर्मल के
पिता एस एस नरूला का काफी पहले देहांत हो चुका है और वे बेसहारा हुए निर्मल
की मदद करने के लिए उसे अपने पास ले आए थे। निर्मल को कई छोटे-बड़े धंधों
में सफलता नहीं मिली तो वह बाबा बन गया।जब धीरज भारद्वाज ने नामधारी से निर्मल बाबा के विचारों और चमत्कारों के बारे में पूछा तो उन्होंने साफ कहा कि वे इससे जरा भी इत्तेफाक़ नहीं रखते। उन्होंने कहा कि वे विज्ञान के छात्र रहे हैं तथा इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी कर चुके हैं इसलिए ऐसे किसी भी चमत्कार पर भरोसा नहीं करते। इसके अलावा उनका धर्म भी इस तरह की बातें मानने का पक्षधर नहीं है।
”सिख धर्म के धर्मग्रथों में तो साफ कहा गया है कि करामात कहर का नाम है। इसका मतलब हुआ कि जो भी करामात कर अपनी शक्तियां दिखाने की कोशिश करता है वो धर्म के खिलाफ़ काम कर रहा है। निर्मल को मैंने कई दफ़ा ये बात समझाने की कोशिश भी की, लेकिन उसका लक्ष्य कुछ और ही है। मैं क्या कर सकता हूं?” नामधारी ने सवाल किया।
उन्होंने माना कि निर्मल अपने तथाकथित चमत्कारों के जरिए जनता से पैसे वसूलने के ‘गलत खेल’ में लगे हुए हैं जो विज्ञान और धर्म किसी भी कसौटी पर जायज़ नही ठहराया जा सकता।
लगता है निर्मल बाबा की थर्ड आई के दायरे के साथ-साथ उनकी मुश्किलें भी बढ़ती जा रही हैं।
छत्तीसगढ़ पुलिस फिलहाल वहां के एक नागरिक की शिक़ायत पर बाबा के ढकोसले की जांच करने में जुटी है। इस पुराने भक्त ने दावा किया है कि उसने टीवी पर बाबा द्वारा बताए गए नुस्खों पर अमल किया था तो उसे फ़ायदा होने की बजाय नुकसान ही हो गया। इतना ही नहीं, इस नाराज़ भक्त ने बाबा पर उसकी संवेदनाओं को ठेस पहुंचाने का भी आरोप लगाया है।
दरअसल छत्तीसगढ़ के सुन्दर नगर में रहने वाले योगेन्द्र शंकर शुक्ला खुद को निर्मल बाबा का कट्टर भक्त मानते थे। उन्होंने बाबा का शो टीवी पर पूरी श्रद्धा पूर्वक देखा और उसमें बताए गए नुस्खों को अमल में भी लाए। शुक्ला का कहना है कि उन्होंने बाबा जी के कहे अनुसार दस रुपए के नए नोटों की गड्डी भी अलमारी में रखी, लेकिन बजाय फ़ायदा होन के उन्हें नुकसान ही होने लगा।
शुक्ला ने रायपुर के डीडी नगर थाने में दी गई तहरीर में लिखा है कि थर्ड आई ऑफ निर्मल बाबा नाम के कार्यक्रम ने उन्हें खासा उद्वेलित किया है क्योंकि इसमें बाबा जी को भगवान के बराबर बताया गया है। उन्होंने बाबा जी के टीवी कार्यक्रमों को समागम में बुलाने के लिए ‘उकसाने वाला’ बताया है और सवाल पूछा है कि अगर वे खुद को भगवान बताते हैं तो दर्शनार्थियों से प्रवेश शुल्क क्यों वसूलते हैं? उन्होंने लिखा है, ‘ईश्वरीय शक्तियां कभी बेची नहीं जातीं। शक्तियां जनकल्याण के लिए होती हैं, न कि धनोपार्जन के लिए।”
शुक्ला ने निर्मल बाबा के उस आह्वान पर भी ऐतराज़ जताया है जिसमें घरों में शिवलिंग न रखने की बात कही गई है। उन्होंने खुद को शिवजी का उपासक बताया है और लिखा है कि बाबा जी के कथनों से उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है। शुक्ला के मुताबिक निर्मल बाबा द्वारा बताए गए उपाय किसी शास्त्र, धर्म या संप्रदाय में उल्लेख नहीं है और वे दुखी जनों के साथ और धोखा कर रहे हैं।
योगेन्द्र शंकर शुक्ला ने पुलिस से अपील की है कि वे थर्ड आई ऑफ निर्मल बाबा को रोकें और बाबा के खिलाफ उचित कार्रवाई करें। जब मीडिया दरबार ने पुलिस अधीक्षक दीपांशु काबरा से संपर्क साधने की कोशिश की तो उन्होंने फोन नहीं उठाया, लेकिन थाना प्रभारी परमानंद शुक्ला ने बताया कि पुलिस ने तहरीर पर तफ्तीश शुरु कर दी है तथा साक्ष्य एकत्रित किए जा रहे हैं।
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