संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के कार्यकाल
के बारे में जब कभी इतिहास लिखा जाएगा तो कोई तटस्थ इतिहासकार प्रधानमंत्री
डॉ. मनमोहन सिंह और उनकी ‘गॉडमदर’ सोनिया गांधी को भ्रष्टाचार और
अकर्मण्यता के लिए शायद माफ भी कर दे। लेकिन कोई भी ईमानदार इतिहासकार
मनमोहन को इस देश की सर्वोच्च संस्थाओं के भ्रष्टाचारी सांप्रदायिककरण के
लिए माफ नहीं करेगा। शीर्ष पर बैठकर जिस तरह से मनमोहन सिंह ने भ्रष्टाचार
और अल्पसंख्यक की अतिवादिता का उदाहरण प्रस्तुत किया है उसे इस देश का
इतिहास कभी माफ नहीं कर पायेगा।
भ्रष्टाचार भक्त हैं मनमोहन: मनमोहन सिंह के कार्यकाल में
सर्वोच्च न्यायालय को जस्टिस बालाकृष्णन जैसा परम भ्रष्ट प्रधान न्यायाधीश
मिला। संप्रग के कार्यकाल में संसद में नोट लहराए गए जिसमें रिश्वत देने
वाले कानून की पकड़ से अनछुए रह गए, जबकि भ्रष्टाचार उजागर करने वालों को
तिहाड़ जेल भेज दिया गया। मनमोहनी युग में ही भ्रष्टाचार रोकने के लिए ईजाद
किए गए मुख्य सतर्कता आयुक्त के पद पर पी.जे. थॉमस जैसा भ्रष्ट अफसर
नियुक्त किया गया। बालाकृष्णन आज दिन तक क्यों बचे हुए हैं? क्योंकि वे
अनुसूचित जाति से आते हैं। थॉमस सीवीसी के पद पर क्यों नियुक्त किए गए?
क्योंकि वे अल्पसंख्यक समुदाय से हैं। संसद में नोट कांड का मुख्य सूत्रधार
कानून की पकड़ से क्यों बाहर है? क्योंकि वह अल्पसंख्यक समुदाय का
प्रतिनिधि है। प्रधानमंत्री स्वयं अल्पसंख्यक समुदाय से हैं। उपराष्ट्रपति
अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश
एस.एच. कापड़िया अल्पसंख्यक समुदाय के हैं। भावी प्रधान न्यायाधीश भी
अल्पसंख्यक समुदाय के हैं। संप्रग की अध्यक्षा सोनिया गांधी खुद अल्पसंख्यक
समुदाय से हैं। कांग्रेस की ओर से भावी प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी
अल्पसंख्यक समुदाय का है। भावी राष्ट्रपति के लिए किसी अल्पसंख्यक
उम्मीदवार की तलाश है। राकांपा और समाजवादी पार्टी की ओर से तो राष्ट्रपति
पद के लिए अल्पसंख्यक समुदाय के उम्मीदवार की मांग भी उठने लगी है। अभी-अभी
सर्वोच्च न्यायालय का शिक्षा का अधिकार पर जो फैसला आया है उसमें
अल्पसंख्यक संस्थाओं को मुक्त रखा गया है।हिन्दू हित का हनन: प्रधानमंत्री स्वयं बारंबार बयान देते आए हैं कि इस देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है। संसद में अल्पसंख्यक अधिकारों से संबंधित कुछ विधेयक प्रलंबित हैं। यदि वे पारित हो गए तेा इस देश में बहुसंख्यक यानी हिन्दू समुदाय कानूनन दोयम दर्जे का नागरिक हो जाएगा। संभव है कि इन तर्क सम्मत तथ्यों को भी तमाम लोग हिन्दुत्व के नजरिए से देख कर खारिज कर दें। लेकिन मनमोहन सिंह ने जिस अंदाज में भारत की सेना को अल्पसंख्यकवाद में अटकाया है उसकी परिणति अकल्पनीय है। मनमोहन सिंह ने सैन्य प्रमुख की नियुक्ति के मामले में भ्रष्टाचार के कोढ़ में अल्पसंख्यकवाद की खाज का रोग लगा बीमारी को असाध्य बना दिया है। भारत में सेना, प्रशासन और न्यायपालिका में वैसे भी योग्यता और कार्यकौशल की बजाय उम्र के आधार पर पदोन्नति मिलने की परंपरा है। अधिकांश नियुक्तियों में राजनीतिक प्रश्रय का महत्वपूर्ण योगदान हुआ करता है। संप्रग के कार्यकाल में योग्यता और जन्म तिथि से भी कहीं ज्यादा एक परिवार विशेष की तिजोरी भरने की क्षमता के आधार पर नियुक्तियां होने लगीं। नियुक्ति की इस नीति के पीछे सीधा सा गणित है कि जो व्यक्ति भ्रष्ट होगा उस पर दबाव बनाकर मनचाहे फैसले कराए जा सकते हैं। ईमानदार अफसर/ न्यायाधीश/ जनरल अड़ सकता है जिससे सत्ता के असीम उपभोग में बाधा खड़ी हो सकती है। मनमोहन सिंह ने नियुक्तियों में इतने गड़बड़झाले किए हैं कि सबकी बात करने बैठ गए तो शोध प्रबंध तैयार जो जाएगा। उन्होंने सबसे घटिया हरकत की है सेना प्रमुख की नियुक्ति में सांप्रदायिककरण करने की।
सेना, संबंध और सत्यानाश: मनमोहन सिंह के कार्यकाल में सेना के एक प्रमुख हुए जनरल जे.जे. सिंह। जनरल जे.जे. सिंह भी प्रधानमंत्री की तरह अल्पसंख्यक समुदाय से रहे। उन्होंने अपनी कुर्सी न केवल अपने परम मित्र दीपक कपूर को दी बल्कि दीपक कपूर के बाद सेनाप्रमुख बननेवाले बहुसंख्यक समुदाय के वी.के. सिंह के कार्यकाल को कम करने का षड्यंत्र भी रचा। जनरल जे.जे. सिंह के इस अन्याय को शह देने का काम अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले रक्षामंत्री ए.के. एंटनी ने किया। जनरल वी.के. सिंह का कार्यकाल कम क्यों किया गया? क्योंकि वे हथियार सौदागरों की लॉबी में अलोकप्रिय रहे हैं। जनरल वी.के. सिंह के समर्थन में सांसदों का जो अभियान चला उसकी भी विडंबना रही कि वह एक जाति विशेष के लोगों द्वारा संचालित रहा। जनरल जे.जे. सिंह जनरल वी.के. सिंह का कार्यकाल किसके लिए कम कराना चाहते थे? तो अल्पसंख्यक समुदाय के उन बिक्रमजीत सिंह के लिए जिनकी रिश्तेदारी पाकिस्तानियों से बताई जाती रही है। बिक्रमजीत के बाद भी सेनाप्रमुख का पद अल्पसंख्यक समुदाय के पास रहे इसके लिए लेफ्टिनेंट जनरल दलबीर सिंह सुहाग के खिलाफ जारी जांच को ‘मैनेज’ कर उन्हें क्लीनचिट भी दिलाई गई। जनरल वी.के. सिंह के खिलाफ दुष्प्रचार अभियान चलाने का जिम्मा भी एक अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल तेजिंदर सिंह को दिया गया। तेजिंदर सिंह वही अधिकारी हैं जिन्होंने जनरल वी.के. सिंह को टट्रा-वेक्ट्रा के वाहनों की डील के लिए 14 करोड़ रुपयों की रिश्वत की पेशकश की थी। तेजिंदर सिंह के खिलाफ जनरल वी.के. सिंह ने रक्षामंत्री ए.के. एंटनी से मौखिक शिकायत की, फिर भी एंटनी ने मामले की सीबीआई जांच क्यों नहीं कराई? इसमें भी एक अल्पसंख्यक कोण है। सेना, सीबीआई और आईबी के सूत्र दावा करते हैं कि जनरल वी.के. सिंह को संप्रग अध्यक्षा सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वड्रा का संरक्षण प्राप्त है।
सबसे बड़ा दलाल रॉबर्ट वड्रा: रॉबर्ट वड्रा भी अल्पसंख्यक समुदाय के हैं। ये सूत्र दावा करते हैं कि जनरल जे.जे. सिंह, दीपक कपूर, तेजिंदर सिंह के परिजनों ने बड़े पैमाने पर नेशनल कैपिटल रीजन (एनसीआर) में महंगी जायदादों में निवेश किया है। हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के एक रिश्तेदार जिसका उपनाम भी हुड्डा है जो कि मेजर हुड्डा केनाम से कुख्यात है, के माध्यम से बैंकॉक, दुबई और लंदन में तमाम हथियार सौदागरों से मीटिंग हेाती रही है। इस तरह की तमाम मीटिंग में गृहमंत्री पी. चिदंबरम का बेटा कार्तिक चिदंबरम, रॉबर्ट वड्रा और सेना अफसरों के परिजनों के मौजूद होने की खबरें आती रही हैं। रिसर्च एंड एनालायसिस विंग (रॉ) में जिन दिनों एक अल्पसंख्यक समुदाय का अधिकारी शीर्ष पर था उसी समय रॉबर्ट वड्रा को एयरपोर्ट सुरक्षा जांच से मुक्त रखने का नोटिफिकेशन जारी हुआ। बताया जाता है कि यह छूट सिर्फ इसलिए दी गई है ताकि रॉबर्ट आसानी से सीक्रेट दस्तावेज और मोटी रकम देश से अंदर-बाहर लाने-ले जाने में सहूलियत पा सकें। चूंकि ए.के. एंटनी खुद रॉबर्ट-कार्तिक-तेजिंदर त्रिकोण को जानते थे इसलिए वे जनरल वी.के. सिंह की रिपोर्ट पर भी वे मौन साधे रहे। दिल्ली की अफसरशाही की जानकारी रखने वाले बताते हैं कि चिदंबरम ने तेजिंदर सिंह को खुफिया एजेंसी नेशनल टेक्रिकल रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (एनटीआरओ) का प्रमुख बनाने का भी प्रयास किया था। एनटीआरओ टेलिफोन, टैपिंग, इंटरनेट मॉनिटरिंग की केंद्रीय एजेंसी है।
संधू का षड्यंत्र: जनरल वी.के. सिंह द्वारा दिल्ली की ओर फौज की टुकड़ियों के संचालन की खबर ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित होने की खबर के पीछे भी एक अल्पसंख्यक कोण चर्चा में है। कुछ विशेषज्ञें ने अपने ‘ब्लॉग’ में इंटेलिजेंस ब्यूरो के प्रमुख नेहचल संधू को खबरें फैलाने में संलिप्त माना है। संयोग से नेहचल संधू भी अल्पसंख्यक समुदाय से हैं। तेजिंदर सिंह, मेजर हुड्डा और रॉबर्ट वड्रा का नाम एनटीआरओ, रॉ और एवियेशन रिसर्च सर्विस के लिए महंगे उपकरणों की खरीद के सौदों से भी जोड़ा जाता रहा है। भारत में जाति, धर्म के आधार पर प्रशासन में नियुक्तियां होती रही हैं। उसका दुष्परिणाम भी यह देश झेलता रहा है, पर रॉ, आईबी और सेना में इस तरह की नियुक्तियों क प्रचलन नहीं रहा है।
1960 के दशक में पं. जवाहर लाल नेहरू ने पूर्वी कमान पर अपने एक रिश्तेदार बी.एम. कौल को कमांड सौंपने की गलती की थी। बी.एम. कौल के पास दुर्गम क्षेत्र में युद्ध का कोई कौशल न होने का मामला सैन्य अफसरों ने उठाया था। तत्कालीन रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन और पं. नेहरू ने योग्यता की बजाय रिश्तेदारी और मैत्री को तरजीह देने की गलती की। परिणामस्वरूप भारतीय सेना को चीन के हाथों दारुण पराजय का सामना करना पड़ा। पं. नेहरू के काल का दुखांत हुआ। पचास साल बाद एक बार फिर सैन्य नियुक्तियों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। भ्रष्टाचारी अल्पसंख्यकवाद नीति निर्धारण में सिर चढ़कर बोल रहा है। पाकिस्तान की वर्तमान दुर्दशा का क्या कारण है? पाकिस्तान की प्रशासनिक और सैन्य हुकूमत पर अल्पसंख्यक पंजाबी समुदाय का पूर्ण नियंत्रण पाकिस्तान को नरकिस्तान बना चुका है। पाकिस्तान में पैदा हुए मनमोहन सिंह और इटली की पैदाइश सोनिया गांधी भारतीय तंत्र को जिस भ्रष्टाचारी अल्पसंख्यकवाद में उलझा रही हैं उसका परिणाम इस सार्वभौम राष्ट्र को निश्चित तौर पर झेलना पड़ेगा।
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