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Saturday, September 15, 2012

कोयला घोटाला अब स़िर्फ संसद के बीच बहस का विषय नहीं रह गया है

यह खामोशी देश के लिए खतरनाक है :

कोयला घोटाला अब स़िर्फ संसद के बीच बहस का विषय नहीं रह गया है, बल्कि पूरे देश का विषय हो गया है. सारे देश के लोग कोयला घोटाले को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि इसमें पहली बार देश के सबसे शक्तिशाली पद पर बैठे व्यक्ति का नाम सामने आया है. मनमोहन सिंह कोयला मंत्री थे और यह फैसला चाहे स्क्रीनिंग कमेटी का रहा हो या सेक्रेट्रीज का, मनमोहन सिंह के दस्तखत किए बिना यह अमल में आ ही नहीं सकता था. मनमोहन सिंह कहते हैं कि वह पाक-सा़फ हैं. अपनी नज़र में हर व्यक्ति पाक-सा़फ होता है. आज तक किसी अपराधी ने, न अदालत के बाहर और अंदर यह कहा कि वह अपराधी है. हम मनमोहन सिंह को अपराधी नहीं कह रहे हैं, बल्कि अपराधियों के समूह का शहंशाह कह रहे हैं. मनमोहन सिंह ने सारे प्रजातांत्रिक तरीकों को समाप्त करने का शायद फैसला ले लिया है. इसलिए उनकी पार्टी के एक सांसद संवैधानिक संस्था सीएजी पर सवाल उठा रहे हैं. पहले मनमोहन सिंह की पार्टी के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने सीएजी का मजाक उड़ाया और कहा कि सीएजी को शून्य बढ़ाने की आदत हो गई है. अब कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह कहते हैं कि सीएजी के पद पर आसीन विनोद राय की आकांक्षा पुराने सीएजी टी एन चतुर्वेदी जैसी हो गई है. अगर कांग्रेस पार्टी की बात मानें तो दिग्विजय सिंह का सार्वजनिक अपमान कांग्रेस पार्टी द्वारा ही हुआ. उनसे कहा गया कि वह कोई बयान नहीं देंगे और अब अगर उन्होंने कोई बयान दिया है तो यह मानना चाहिए कि उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के कहने से बयान दिया है.

इसका मतलब कांग्रेस पार्टी ने कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल यानी महालेखा परीक्षक नामक संस्था को बर्बाद करने की तैयारी कर ली है. बर्बाद इस अर्थ में कि उस पर हमला बोलकर उसकी इतनी साख गिरा दो कि आगे आने वाली उसकी किसी भी रिपोर्ट पर लोग भरोसा न करें. अगर दिग्विजय सिंह ने सोनिया गांधी के कहने पर बयान दिया है तो पूरी कांग्रेस पार्टी सीएजी के खिला़फ लामबंद हो गई है. कांग्रेस पार्टी की एक आदत है कि जब वह किसी से राजनीतिक रूप से नहीं लड़ सकती या साक्ष्य के आधार पर नहीं लड़ सकती तो वह उसकी व्यक्तिगत छवि धूमिल करती है. व्यक्तिगत छवि का मतलब, जिस तरह मौजूदा महालेखा परीक्षक विनोद राय पर यह आरोप लगा दिया गया कि उनकी महत्वाकांक्षा टी एन चतुर्वेदी की तरह लोकसभा में आने या फिर राज्यपाल बनने की है.

कांग्रेस पार्टी आज तक किसी के साथ राजनीतिक रूप से नहीं लड़ पाई. विश्वनाथ प्रताप सिंह का सामना भी कांग्रेस पार्टी ने सेंट किट्‌स के बैंक में एक फर्ज़ी एकाउंट खोलकर किया था. हर मामले में कांग्रेस ने हमेशा मुंह की खाई और अब भी वह मुंह की खाने वाली है. मुझे तो खुशी यह है कि इंदिरा गांधी के जमाने तक कांग्रेस पार्टी राजनीतिक लड़ाई लड़ती थी. मुझे नहीं याद कि इंदिरा जी ने कभी किसी व्यक्ति पर व्यक्तिगत आरोप लगाए हों. लेकिन इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी के जमाने में पहली बार वी पी सिंह पर घिनौने आरोप लगाए गए, व्यक्तिगत आरोप लगाए गए. अब कांग्रेस पार्टी के महासचिव और प्रवक्ता सीएजी पर घिनौने आरोप लगा रहे हैं. मुझे पूरी आशा है, बल्कि जिस तरह गांव में लिखते हैं कि आशा ही नहीं, वरन्‌ पूर्ण विश्वास है कि अब जनरल वी के सिंह पर भी व्यक्तिगत आरोप लगाए जाएंगे. बाबा रामदेव और अन्ना हजारे इसकी मिसाल बन चुके हैं. अन्ना हजारे पर किस तरह के और कैसे आरोप लगते हैं, उसके उदाहरण हमारे सामने हैं. कांग्रेस पार्टी सौ रुपये की चूक को घपला और छब्बीस लाख करोड़ रुपये के घपले को चूक बताने में माहिर है. जिस तरह कांग्रेस पार्टी के सारे मंत्री कोयला घोटाले में जीरो लॉस की बात कर रहे हैं, यह वैसा ही है, जैसा 2-जी घोटाले में कपिल सिब्बल ने जीरो लॉस बताया था.

कांग्रेस यह क्यों नहीं समझती कि देश के लोग उसके इन बयानों का मजाक उड़ा रहे हैं. राज्यों में होने वाले चुनाव के नतीजे कांग्रेस पार्टी को क्यों कोई सीख नहीं दे रहे हैं, क्या सोनिया गांधी का दिमाग सचमुच बंद हो गया है, क्या उन्होंने सोचना-समझना बंद कर दिया है? यह मैं इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि अपनी हार से कोई पार्टी सबक न ले, ऐसा दुनिया में बहुत कम होता है. लेकिन हमारे देश में कांग्रेस पार्टी लगातार यह कमाल करती जा रही है. कांग्रेस पार्टी सोचती है कि जनता गलत है और वह सही. लेकिन जब मैं कांग्रेस पार्टी कहता हूं, तो कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को उसमें शामिल नहीं करता, क्योंकि कांग्रेस पार्टी का मतलब आज की तारीख में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और कुछ हद तक प्रियंका गांधी हैं. इसके बाद अगर नाम जोड़ें तो अहमद पटेल, मोतीलाल वोरा, जर्नादन द्विवेदी और उनके लिए शूटर का काम करने वाले दिग्विजय सिंह हैं. कुछ आईएएस अफसर हैं, जो उन्हें राय देते हैं, लेकिन उनका पार्टी के फैसलों में उन जगहों पर दखल होता है, जिन फैसलों का सीधा रिश्ता सोनिया गांधी या राहुल गांधी से होता है. प्रधानमंत्री कार्यालय में पुलक चटर्जी एक ऐसा ही नाम है.

कांग्रेस पार्टी आज तक किसी के साथ राजनीतिक रूप से नहीं लड़ पाई. विश्वनाथ प्रताप सिंह का सामना भी कांग्रेस पार्टी ने सेंट किट्‌स के बैंक में एक फर्ज़ी एकाउंट खोलकर किया था. हर मामले में कांग्रेस ने हमेशा मुंह की खाई और अब भी वह मुंह की खाने वाली है. मुझे तो खुशी यह है कि इंदिरा गांधी के जमाने तक कांग्रेस पार्टी राजनीतिक लड़ाई लड़ती थी.

अगर सोनिया गांधी ने सोच लिया है कि यह चुनाव हारना है और इस चुनाव में हार के बाद अगला चुनाव कांग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ जीत पाएगी तो सोनिया गांधी का सोचना शायद सही हो सकता है, लेकिन कांग्रेस के लिए यह सोचना बहुत खतरनाक है. पिछली बार भी कांग्रेस पार्टी ने जिस तरह चुनाव लड़ा था, उसका सीधा मतलब था कि वह चुनाव हारना चाहती है. चूंकि उसे पूरा अंदाजा था कि देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ेगी, क्योंकि उसने यूपीए-1 में देश की आर्थिक स्थिति संभालने के लिए कुछ नहीं किया था, लेकिन वह चुनाव भारतीय जनता पार्टी और लालकृष्ण आडवाणी की महान बुद्धिमानी की वजह से कांग्रेस पार्टी जीत गई और भारतीय जनता पार्टी की हालत खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे वाली हो गई. क्या कांग्रेस पार्टी को देश का, देश में रहने वालों का, ग़रीबों का, जो लोग उसे वोट देते हैं उनका, कुछ भी ख्याल नहीं है? अगर ख्याल है तो कम से कम जो घोटाले साबित हो चुके हैं या साबित हो रहे हैं, उन पर तो ईमानदारी से जांच कराने की बात करनी चाहिए. अगर महालेखा नियंत्रक के कार्यालय में छब्बीस लाख करोड़ को पहले दस लाख करोड़ और फिर एक दशमलव आठ छह लाख करोड़ में तब्दील किया गया तो उसे सीएजी का एहसान मानना चाहिए कि उसने कोयले घोटाले को बहुत कम बताकर लिखा. हम बार-बार कह रहे हैं कि यह घोटाला छब्बीस लाख करोड़ का है और सीएजी सरकार को बचाने की कोशिश कर रही है. और सरकार है कि वह सीएजी पर ही जूता उठाकर खड़ी हो गई है.

यह सच है कि दो तरह के लोग होते हैं. एक वे, जो ज़िंदा रहते हुए भी अपना नाम करना चाहते हैं और चाहते हैं कि मरने के बाद भी इतिहास उन्हें अच्छे आदमी की तरह याद करे. दूसरे वे होते हैं, जो जिंदा रहते हुए अच्छा-बुरा करते हैं और उन्हें इतिहास की कोई परवाह नहीं होती. कांग्रेस पार्टी लगभग ऐसी ही पार्टी है, जिसे इतिहास में क्या दर्जा मिलेगा, इसकी उसे परवाह नहीं है. जब तक इंदिरा गांधी जीवित थीं, तब तक कांग्रेस पार्टी को यह परवाह थी कि वह देश में लोकतंत्र की अलमबरदार के रूप में जानी जाए. ग़रीबों के लिए इंदिरा गांधी ने कम से कम सोचा, लोगों को सपने दिखाए. ग़रीबी हटाओ का नारा उन्हीं का था, जिसने उन्हें चुनाव भी जिता दिया, लेकिन आज की कांग्रेस पार्टी तो कुछ करना ही नहीं चाहती. कांग्रेस को लेकर दु:ख इसलिए है कि देश का बहुत बड़ा वर्ग भारतीय जनता पार्टी के साथ खुद को नहीं जोड़ पाता. भारतीय जनता पार्टी का रहन-सहन, चाल-ढाल, बोलचाल और देश के ग़रीबों के साथ उसका रिश्ता कुछ इतना सामंतवादी है कि लोग उसके साथ खड़े होने में हिचकते हैं. इस मनोवैज्ञानिक दीवार को न भारतीय जनता पार्टी तोड़ना चाहती है और न कांग्रेस पार्टी एक नई दीवार बनने देना चाहती है. विधानसभा चुनाव में आए नतीजे कांग्रेस पार्टी को डरा नहीं रहे.

कांग्रेस कार्यकर्ताओं में बुरी तरह गुस्सा व्याप्त है, ऐसा इसलिए, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके नेतृत्व द्वारा गलत निर्णय लेने या निर्णय लेने में असावधानी बरतने से कांग्रेस पार्टी को नुकसान होने वाला है. ज़मीन पर, गांव के स्तर पर और बूथ के स्तर पर दिल्ली में बैठे नेता नहीं लड़ते. लोगों के मान, अपमान, बातों, गुस्से और गालियों का सामना कार्यकर्ताओं को करना पड़ता है. वह कार्यकर्ता, जो कांग्रेस को जिताने के लिए जी-जान एक किए रहता है. वही कार्यकर्ता कांग्रेस पार्टी से दूर हो रहा है. इसकी शायद न राहुल गांधी को चिंता है और न सोनिया गांधी को चिंता है कि कार्यकर्ता उनसे दूर हो रहा है और उसे दूर जाने से उन्हें रोकना चाहिए. उनके चिंता न करने की वजह से कार्यकर्ता भाग रहा है, दूसरी पार्टियों में जगह तलाश रहा है. वहां पर उसे जगह नहीं मिलती, उसके बाद भी वह दूसरी पार्टियों के दरवाजे खटखटा रहा है.

दूसरी तऱफ विपक्ष है और विपक्ष का मतलब अगर भारतीय जनता पार्टी है तो वह भी सीएजी का सम्मान बचाने के लिए कुछ नहीं कर रही. बाकी जितने राजनीतिक दल हैं, उन्होंने पता नहीं क्यों खुद को गिनती से बाहर कर लिया है. अगर मैं नाम लूं तो शरद यादव का ले सकता हूं, मुलायम सिंह यादव का ले सकता हूं, राम विलास पासवान इसमें आते हैं, भले ही वह अकेले राज्यसभा के सदस्य हों, मायावती हैं, नीतीश कुमार हैं. ये सारे नेता खुद को विपक्ष के दायरे से बाहर क्यों मानने लगे हैं, ये लोग एक कॉम्प्लेक्स में क्यों जी रहे हैं, हीनभावना में क्यों जी रहे हैं कि जब कोई रिएक्शन देना होगा तो अगर भारतीय जनता पार्टी का प्रवक्ता देगा तो ठीक और अगर नहीं देगा तो हम खामोश रहेंगे.

लोकतांत्रिक संस्थाओं की, लोकतांत्रिक प्रक्रिया की या लोकतंत्र में लोगों के दु:ख और तकलीफ की बातें इन दोनों को समझ में नहीं आएंगी तो हमें यह बताने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि इतनी समझ इन सारे नेताओं में है कि वे समझ लें कि जनता उन्हें सबक सिखाने वाली है. लोगों की नज़रों में कांग्रेस पार्टी और भारतीय जनता पार्टी एक तरह की राजनीति करती है, पर वे बाकी विपक्षी दलों को राजनीति करते नहीं देखना चाहते. लोग उन्हें वोट नहीं देते हैं, उसी तरह, जिस तरह एक साधु को अपना सरपंच नहीं बनाते या अपना एमएलए नहीं बनाते, लेकिन एक साधु से यह अपेक्षा करते हैं कि वह जब कहेगा, सही बात कहेगा. जब कहेगा, धर्म की बात कहेगा और जब कहेगा लोगों को, उनके जीवन को आध्यात्मिक तौर पर ऊंचा उठाने की बात कहेगा. अगर साधु कोई दूसरी बात करता है तो लोग उसे अपने यहां से भगा देते हैं. जो ग़ैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई विपक्ष है, वह उसी साधु की तरह है. उनसे लोग अपने हित की बातें सुनना चाहते हैं, उनसे अपनी तरक्की की, अपनी अच्छाई की बातें सुनना चाहते हैं. वोट देने में कभी उनका पक्ष लेते हैं और कभी उन्हें अनदेखा कर देते हैं. इसके बावजूद उनका चुप रहना लोगों को पसंद नहीं है. यह बात विपक्षी शायद नहीं समझते. हो सकता है, आज के नेतृत्व के बाद जो नेतृत्व आएगा, कभी तो आएगा, वह इस बात को समझे. अगर ये लोग इस बात को नहीं समझेंगे तो इस देश के लोगों का लोकतंत्र से भरोसा धीरे-धीरे उठना स्वाभाविक है.

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