इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू राजवंश में अनैतिकता को नयी ऊँचाई पर पहुचाया. बौद्धिक इंदिरा को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भर्ती कराया गया था लेकिन वहाँ से जल्दी ही पढाई में खराब प्रदर्शन के कारण बाहर निकाल दी गयी. उसके बाद उनको शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय में भर्ती कराया गया था, लेकिन गुरु देव रवीन्द्रनाथ टैगोर उसके दुराचरण के लिए बाहर कर दिया . शान्तिनिकेतन से बहार निकाले जाने के बाद इंदिरा अकेला हो गयी. राजनीतिज्ञ के रूप में पिता राजनीति के साथ व्यस्त था और मां तपेदिक के स्विट्जरलैंड में मर रही थी. उनके इस अकेलेपन का फायदा फ़िरोज़ खान नाम के व्यापारी ने उठाया. फ़िरोज़ खान मोतीलाल नेहरु के घर पे मेहेंगी विदेशी शराब की आपूर्ति किया करता था. फ़िरोज़ खान और इंदिरा के बीच प्रेम सम्बन्ध स्थापित हो गए. महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल डा. श्रीप्रकाश नेहरू ने चेतावनी दी, कि इंदिरा फिरोज खान के साथ अवैध संबंध रहा था. फिरोज खान इंग्लैंड में तो था और इंदिरा के प्रति उसकी बहुत सहानुभूति थी. जल्द ही वह अपने धर्म का त्याग कर, एक मुस्लिम महिला बनीं और लंदन के एक मस्जिद में फिरोज खान से उसकी शादी हो गयी. इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू ने नया नाम मैमुना बेगम रख लिया. उनकी मां कमला नेहरू इस शादी से काफी नाराज़ थी जिसके कारण उनकी तबियत और ज्यादा बिगड़ गयी. नेहरू भी इस धर्म रूपांतरण से खुश नहीं थे क्युकी इससे इंदिरा के प्रधानमंत्री बन्ने की सम्भावना खतरे में आ गयी. तो, नेहरू ने युवा फिरोज खान से कहा कि अपना उपनाम खान से गांधी कर लो. परन्तु इसका इस्लाम से हिंदू धर्म में परिवर्तन के साथ कोई लेना - देना नहीं था. यह सिर्फ एक शपथ पत्र द्वारा नाम परिवर्तन का एक मामला था. और फिरोज खान फिरोज गांधी बन गया है, हालांकि यह बिस्मिल्लाह सरमा की तरह एक असंगत नाम है. दोनों ने ही भारत की जनता को मूर्ख बनाने के लिए नाम बदला था. जब वे भारत लौटे, एक नकली वैदिक विवाह जनता के उपभोग के लिए स्थापित किया गया था. इस प्रकार, इंदिरा और उसके वंश को काल्पनिक नाम गांधी मिला. नेहरू और गांधी दोनों फैंसी नाम हैं. जैसे एक गिरगिट अपना रंग बदलती है, वैसे ही इन लोगो ने अपनी असली पहचान छुपाने के लिए नाम बदले. इंदिरा गांधी के दो बेटे राजीव गांधी और संजय गांधी थे . संजय का मूल नाम संजीव था क्युकी राजीव और संजीव सुनने में अच्छे लगते थे. संजीव ब्रिटेन में कार चोरी करने के आरोप में गिरफ्तार हुआ और उसका पासपोर्ट जब्त किया गया. इंदिरा गांधी की दिशा निर्देश में, भारतीय राजदूत कृष्णा मेनन अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर संजीव से उसका नाम संजय करवा दिया और एक नया पासपोर्ट संजय गाँधी के नाम से बनवा दिया. यह एक ज्ञात तथ्य यह है कि राजीव के जन्म के बाद, इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी अलग - अलग रहते थे, लेकिन उन्होंने छवि ख़राब होने के कारण तलाक नहीं लिया. के.एन. राव की पुस्तक "नेहरू राजवंश" (10:8186092005 ISBN) में यह स्पष्ट रूप से लिखा गया है संजय गांधी फ़िरोज़ गांधी का पुत्र नहीं था, जिसकी पुष्टि के लिए उस पुस्तक में अनेक तथ्यों को सामने रखा गया है. उसमे यह साफ़ तौर पे लिखा हुआ है की संजय गाँधी एक और मुस्लिम मोहम्मद यूनुस नामक सज्जन का बेटा था. दिलचस्प बात यह है की एक सिख लड़की मेनका का विवाह भी संजय गाँधी के साथ मोहम्मद यूनुस के घर में ही हुआ था. यूनुस शादी से नाखुश था क्युकी वह अपनी बहू के रूप में अपनी पसंद की एक मुस्लिम लड़की के साथ उसकी शादी करना चाहता था. मोहम्मद यूनुस ही वह व्यक्ति था जो संजय गाँधी की विमान दुर्घटना के बाद सबसे ज्यादा रोया था. 'यूनुस की पुस्तक "व्यक्ति जुनून और राजनीति" (persons passions and politics )(ISBN-10: 0706910176) में साफ़ लिखा हुआ है की संजय गाँधी के जन्म के बाद उनका खतना पूरे मुस्लिम रीति रिवाज़ के साथ किया गया था. यह एक तथ्य है कि संजय गांधी लगातार अपनी माँ इंदिरा को ब्लाच्क्मैल करते थे की वह उनको असली पिता के बारे में बताये. संजय का अपनी माँ पर एक गहरा भावनात्मक नियंत्रण था जिसका वह अक्सर दुरोपयोग करते थे. इंदिरा गांधी संजय के कुकर्मों की अनदेखी करती थी और संजय परोक्ष रूप से सरकार नियंत्रित करता था. जब संजय गांधी की मृत्यु की खबर इंदिरा गांधी के पास पहुची तो इंदिरा का पहला सवाल था "संजय की चाभी और घडी कहाँ है ??". नेहरू - गांधी वंश के बारे में कुछ गहरे रहस्य उन चीजों में छुपे थे. विमान दुर्घटना का होना भी आज तक एक रहस्य ही है. यह एक नया विमान था जो गोता मारकर जमीन पर गिरा और उसमे तब तक कोई विस्फोट या आग नहीं थी जब तक वह जमीन पर नहीं गिरा. यह तब होता है जब विमान में ईंधन ख़त्म हो जाता है. लेकिन उड़ान रजिस्टर से पता चलता है कि ईंधन टैंक उड़ान से पहले फुल किया गया था. इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री कार्यालय के अनुचित प्रभाव का उपयोग कर इस दुर्घटना की जांच होने से रोक ली जो अपने आप में संदेहास्पद है. कैथरीन फ्रैंक की पुस्तक "the life of Indira Nehru Gandhi (ISBN: 9780007259304) में इंदिरा गांधी के अन्य प्रेम संबंधों के कुछ पर प्रकाश डाला है. यह लिखा है कि इंदिरा का पहला प्यार शान्तिनिकेतन में जर्मन शिक्षक के साथ था. बाद में वह एमओ मथाई, (पिता के सचिव) धीरेंद्र ब्रह्मचारी (उनके योग शिक्षक) के साथ और दिनेश सिंह (विदेश मंत्री) के साथ भी अपने प्रेम संबंधो के लिए प्रसिद्द हुई. पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने इंदिरा गांधी के मुगलों के लिए संबंध के बारे में एक दिलचस्प रहस्योद्घाटन किया अपनी पुस्तक "profiles and letters " (ISBN: 8129102358) में किया. यह कहा गया है कि 1968 में इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री के रूप में अफगानिस्तान की सरकारी यात्रा पर गयी थी . नटवर सिंह एक आईएफएस अधिकारी के रूप में इस दौरे पे गए थे. दिन भर के कार्यक्रमों के होने के बाद इंदिरा गांधी को शाम में सैर के लिए बाहर जाना था . कार में एक लंबी दूरी जाने के बाद, इंदिरा गांधी बाबर की कब्रगाह के दर्शन करना चाहती थी, हालांकि यह इस यात्रा कार्यक्रम में शामिल नहीं किया गया. अफगान सुरक्षा अधिकारियों ने उनकी इस इच्छा पर आपत्ति जताई पर इंदिरा अपनी जिद पर अड़ी रही . अंत में वह उस कब्रगाह पर गयी . यह एक सुनसान जगह थी. वह बाबर की कब्र पर सर झुका कर आँखें बंद करके कड़ी रही और नटवर सिंह उसके पीछे खड़े थे . जब इंदिरा ने उसकी प्रार्थना समाप्त कर ली तब वह मुड़कर नटवर से बोली "आज मैंने अपने इतिहास को ताज़ा कर लिया (Today we have had our brush with history ". यहाँ आपको यह बता दे की बाबर मुग़ल साम्राज्य का संस्थापक था, और नेहरु खानदान इसी मुग़ल साम्राज्य से उत्पन्न हुआ. इतने सालो से भारतीय जनता इसी धोखे में है की नेहरु एक कश्मीरी पंडित था....जो की सरासर गलत तथ्य है. ~ * ~ * ~ * ~ * ~ * ~ यह गिनती करना मुश्किल है आज कितने उच्च शिक्षा के संस्थानों कैसे राजीव गांधी के नाम पर चल रहे हैं लेकिन सच यह है की खुद राजीव गांधी कम क्षमता का एक व्यक्ति था. 1962 से 1965 तक, वह ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज में एक यांत्रिक अभियांत्रिकी पाठ्यक्रम के लिए नामांकित किया गया था. लेकिन, वह कैम्ब्रिज की डिग्री के बिना छोड़ दिया, क्योंकि वह परीक्षा पारित नहीं कर सका. अगले साल 1966 में, वह इंपीरियल कॉलेज, लंदन, गया लेकिन यहाँ भी डिग्री के बिना ही उनको जाना पड़ा. ऊपर में के.एन. राव ने कहा कि पुस्तक का आरोप है कि राजीव गांधी एक कैथोलिक बन गए सानिया माइनो शादी करने के लिए. राजीव रॉबर्टो बन गया. उनके बेटे का नाम Raul और बेटी का नाम Bianca है. काफी चतुराई से एक ही नाम राहुल और प्रियंका के रूप में भारत के लोगों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं. व्यक्तिगत आचरण में राजीव हमेशा ही एक मुगल राजा की तरह था. वह 15 अगस्त 1988 को लाल किले की प्राचीर से गरज कर बोला था : "हमारा प्रयास भारत को 250-300 साल पहले वाली ऊंचाई तक ले जाने के लिए होना चाहिए". यह तो औरंगजेब और उसके जेज़िया गुरु का शाशन काल था जो की नंबर एक का मंदिर विध्वंसक था. " भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के बाद लन्दन में उनका पत्रकार सम्मेलन बहुत जानकारीपूर्ण था. इस पत्रकार सम्मेलन में राजीव दावा है कि वह एक पारसी है और हिन्दू नहीं है . फिरोज खान के पिता और राजीव गांधी के पैतृक दादा गुजरात के जूनागढ़ क्षेत्र से एक मुस्लिम सज्जन था. नवाब खान के नाम से यह मुस्लिम पंसारीने एक पारसी महिला को मुस्लिम बनाकर उससे शादी की थी. इस स्रोत से पता चलता है की वोह अपने आप को पारसी क्यों कहते थे. ध्यान रहे कि उनका कोई पारसी पूर्वज नहीं था . उनकी दादी ने पारसी धर्म को त्याग दिया और नवाब खान शादी के बाद मुस्लिम बन गयी थी . हैरानी की बात है, पारसी राजीव गांधी का वैदिक संस्कार के अनुसार भारतीय जनता का पूरा ध्यान में रखते हुए अंतिम संस्कार किया गया था. ~ * ~ * ~ * ~ * ~ * ~ डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी लिखते हैं कि सोनिया गांधी के नाम एंटोनिया माइनो था. उसके पिता एक मेसन था. वह कुख्यात इटली के फासिस्ट शासन के एक कार्यकर्ता था और वह रूस में पांच साल की कैद की सेवा की. वास्तव में सोनिया गांधी ने कभी पांचवी कक्षा के ऊपर अध्ययन नहीं किया है. वह एक अंग्रेजी शिक्षण कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय परिसर में लेनोक्स स्कूल नाम की दुकान से कुछ अंग्रेजी सीखी है. इस तथ्य से वह प्रतिष्ठित कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन करने का दावा करती थी परन्तु जब डॉक्टर स्वामी ने उनके इस झूठ पर प्रश्न किये, तो सोनिया ने चुप्पी साध ली और बाद में कह दिया की उनके द्वारा cambridge university में डिग्री की बात एक "प्रिंटिंग मिस्टेक" है. उसके बाद सोनिया ने कभी cambridge university में पढने की बात नहीं स्वीकारी. सत्य यह है की कुछ अंग्रेजी सीखने के बाद, वह कैम्ब्रिज शहर में एक रेस्तरां में एक वेट्रेस थी . सोनिया गांधी ब्रिटेन में जिस रेस्तरां में एक वेट्रेस थी वहां माधवराव सिंधिया अक्सर आते थे क्युकी वह उस समय cambridge में शिक्षा ले रहे थे. माधवराव सिंधिया से सोनिया के गर्म रिश्ते थे जो उसकी शादी के बाद भी जारी रहे . 1982 की एक रात 2 बजे आईआईटी दिल्ली मुख्य गेट के पास एक दुर्घटना हुई थी, जिसमे पुलीस ने श्री सिंधिया के साथ सोनिया को नशे की हालत में कार से बाहर निकाला था. जब इंदिरा गांधी और राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे तब प्रधानमंत्री के सुरक्षा कर्मी नई दिल्ली और चेन्नई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों में प्राचीन मंदिर की मूर्तियां, और अन्य प्राचीन वस्तुओं को भारतीय खजाने के बक्सों में इटली भेजने जाते थे. मुख्यमंत्री और बाद में संस्कृति प्रभारी मंत्री के रूप में अर्जुन सिंह इस लूट का आयोजन करते थे. सीमा से अनियंत्रित, वे इटली में पहुंचा दिए जाते थे जहाँ उन्हें Etnica और Ganpati नाम के दो शो रूम्स में बेचा जाता था. ये दोनों शो रूम्स सोनिया गांधी की बहन Alessandra माइनो विंची के नाम पर हैं. इंदिरा गांधी की मृत्यु उसके दिल या दिमाग में गोलियों के कारण नहीं हुई बल्कि वह खून की कमी के कारण मरी थी. इंदिरा गाँधी को गोली लगने के बाद जब उनका काफी खून बह चूका था उस समय सोनिया ने अजीब जोर देकर कहा है कि खून बह रहा इंदिरा गांधी को डा. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में ले जाया जाना चाहिए ना की एम्स में जो एक आपात प्रोटोकॉल के लिए और ठीक इस तरह की घटनाओं के इलाज के लिए उपयुक्त है. इस प्रकार 24 बहुमूल्य मिनट बर्बाद कर दिए गए . यह संदिग्ध है कि यह सोनिया गांधी की अपरिपक्वता या तेजी से सत्ता में उसके पति को लाने के लिए एक चाल थी. राजेश पायलट और माधव राव सिंधिया के प्रधानमंत्री के पद के लिए मजबूत दावेदार थे और वे सोनिया गांधी के सत्ता के लिए अपने रास्ते में पत्थर थे. उन दोनों के रहस्यमय दुर्घटनाओं में मृत्यु हो गई. इस बात के प्रचुर तथ्य मौजूद हैं की मायिनो परिवार ने लिट्टे के साथ अनुबंध किया था जिससे उनकी राजीव हत्याकांड में भूमिका संदेहास्पद बनती है . आजकल, सोनिया गांधी काफी एमडीएमके, पीएमके और द्रमुक जैसे जो राजीव गांधी के हत्यारों की स्तुति के साथ राजनीतिक गठबंधन में अडिग है. कोई भारतीय विधवा कभी अपने पति के हत्यारों के साथ ऐसा नहीं कर सकती. ऐसी परिस्थितियों में कई हैं, और एक शक बढ़ा. राजीव की हत्या में सोनिया की भागीदारी में एक जांच आवश्यक है. (ISBN 81-220-0591-8) - तुम डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी पुस्तक "आशातीत प्रश्न और अनुत्तरित प्रश्न राजीव गांधी की हत्या पढ़ सकते हैं. यह इस तरह के षड्यंत्र का संकेत होता है. ~ * ~ * ~ * ~ * ~ * ~ इटली के कानून के अनुसार राहुल और प्रियंका इटालियन नागरिक हैं क्युकी उन दोनों के जन्म के समय सोनिया गाँधी एक इटालियन नागरिक थी. 1992 में, सोनिया गांधी इतालवी नागरिकता कानून के अनुच्छेद 17 के तहत इटली की उसकी नागरिकता को पुनर्जीवित किया . राहुल गांधी के इतालवी उसकी हिन्दी की तुलना में बेहतर है. राहुल गांधी एक इतालवी नागरिक तथ्य यह है कि 27 सितंबर 2001 को वह एक इतालवी पासपोर्ट पर यात्रा करने के लिए बोस्टन हवाई अड्डे, संयुक्त राज्य अमेरिका में एफबीआई द्वारा गिरफ्तार किया गया था से प्रासंगिक है. यदि भारत में एक कानून बना है कि कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर विदेशी मूल के एक व्यक्ति को नहीं लाया जा सकता तो राहुल गांधी को स्वचालित रूप से प्रधानमंत्री पद के लिए अयोग्य हैं. ~ * ~ * ~ * ~ * ~ * ~ स्कूली शिक्षा समाप्त करने के बाद, राहुल गांधी नई दिल्ली में सेंट स्टीफंस कॉलेज में प्रवेश मिल गया, योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि राइफल शूटिंग के खेल कोटे पर. 1989-90 में कुछ दिन दिल्ली में रहने के बाद राहुल ने 1994 में रोलिंस कॉलेज फ्लोरिडा जो एक christianचैरिटी द्वारा चलाया जाने वाला सी ग्रेड का कॉलेज है , से बी.ए. किया. बस एक बीए करने के लिए अमेरिका जाने की ज़रूरत किसी को नहीं होती. इसलिए अगले ही वर्ष, 1995 में उसे एम. फिल मिला ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज से . इस डिग्री की वास्तविकता आप इसी से समझ सकते हैं की उन्हें ये डिग्री बिना एमए किये हुवे मिल गयी. इसके पीछे Amaratya सेन की मदद का हाथ माना जाता है. आप में से कई मशहूर फिल्म 'मुन्नाभाई एमबीबीएस " देख ही चुके हैं . 2008 में राहुल गांधी ने कानपुर में चन्द्र शेखर आजाद विश्वविद्यालय के छात्रों की रैली के लिए एक सभागार का उपयोग करने से रोका गया था. बाद में, विश्वविद्यालय के कुलपति वी.के. सूरी, को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल द्वारा अपदस्थ किया गया था. 26/11 के दौरान जब पूरे देश के बारे में कैसे मुंबई आतंक से निपटने के लिए तनाव में था, राहुल गांधी आराम से प्रातः 5 बजे तक अपने दोस्तों के साथ जश्न मना रहा था . राहुल गांधी कांग्रेस के सदस्यों के लिए तपस्या की सलाह है. वे कहते हैं, यह सभी नेताओं का कर्तव्य है तपस्या हो. दूसरी ओर वह एक पूरी तरह सुसज्जित जिम वाले एक मंत्री वाले बंगला में रहते हैं . इसके अलावा वह दिल्ली के दो सबसे मेहेंगे ५ स्टार जिम के नियमित सदस्य भी हैं, राहुल गांधी की चेन्नई यात्रा 2009 में तपस्या के लिए अभियान के लिए पार्टी के 1 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किये . इस तरह की विसंगतियों से पता चलता है कि राहुल गांधी द्वारा की गई पहलों का कितना महत्व है. 2007 उत्तर प्रदेश में चुनाव अभियान के दौरान राहुल गांधी ने कहा कि "अगर नेहरू - गांधी परिवार का कोई भी सदस्य उस समय सक्रिय होता तो बाबरी मस्जिद कभी न गिरती." इस कथन से उनका अपने पूर्वजों के लिए एक वफादारी के रूप में अपने मुसलमान संबद्धता का पता चलता है. 31 दिसंबर, 2004 को जॉन एम., itty, केरल के अलाप्पुझा जिले में एक सेवानिवृत्त कॉलेज के प्रोफेसर, दलील देते है कि केरल में एक रिसॉर्ट में तीन दिनों के लिए एक साथ रहने के लिए राहुल गांधी और उसकी प्रेमिका Juvenitta उर्फ वेरोनिका के खिलाफ कार्रवाई लिया जाना चाहिए. यह अनैतिक तस्करी अधिनियम के तहत एक आपराधिक अपमान के रूप में वे शादी नहीं कर रहे. वैसे भी, एक और विदेशी बहू के सहिष्णु भारतीयों पर राज कर रही है. स्विस पत्रिका Schweizer है Illustrierte 11 वीं नवम्बर 1991 अंक से पता चला है कि राहुल गांधी अपनी मां सोनिया गांधी द्वारा नियंत्रित अमेरिकी 2 अरब डॉलर के लायक खातों के लाभार्थी था. 2006 में स्विस बैंकिंग एसोसिएशन से एक रिपोर्ट से पता चला है कि भारतीय नागरिकों की संयुक्त जमा के रूप में अभी तक किसी भी अन्य देश, 1.4 खरब अमरीकी डॉलर का एक कुल, एक भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) से अधिक का आंकड़ा अधिक से अधिक कर रहे हैं. इस राजवंश ने भारत के आधे से अधिक नियम. केंद्र की उपेक्षा कर, बाहर के 28 राज्यों और 7 संघ शासित प्रदेशों की, उनमें से आधे से अधिक समय के किसी भी बिंदु पर कांग्रेस सरकार है. तक राजीव गांधी ने भारत में मुगल शासन के साथ सोनिया गांधी, रोम भारत पर शासन करना शुरू कर दिया था. ~ * ~ * ~ * ~ * ~ * ~ इस लेख लिखने के पीछे उद्देश्य भारतीय नागरिको को उनके प्रिय नेताओ के बारे में जागरूक करना है और यह बताना है की किस तरह एक परिवार सदियों से इस देश को खोकला करता आ रहा है और हम भारतीय चुपचाप उनकी गुलामी करते जा रहे हैं. सबूत के समर्थन की कमी की वजह से इस लेख में कई अन्य चौंकाने वाला तथ्य नहीं प्रस्तुत कर रहे हैं. इन सभी तथ्यों की पुष्टि के लिए आप डॉक्टर सुभ्रमनियम स्वामी की पुस्तकों या उनकी वेबसाइट देख सकते हैं.
कोयला घोटाला अब स़िर्फ संसद के बीच बहस का विषय नहीं रह गया है, बल्कि पूरे देश का विषय हो गया है. सारे देश के लोग कोयला घोटाले को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि इसमें पहली बार देश के सबसे शक्तिशाली पद पर बैठे व्यक्ति का नाम सामने आया है. मनमोहन सिंह कोयला मंत्री थे और यह फैसला चाहे स्क्रीनिंग कमेटी का रहा हो या सेक्रेट्रीज का, मनमोहन सिंह के दस्तखत किए बिना यह अमल में आ ही नहीं सकता था. मनमोहन सिंह कहते हैं कि वह पाक-सा़फ हैं. अपनी नज़र में हर व्यक्ति पाक-सा़फ होता है. आज तक किसी अपराधी ने, न अदालत के बाहर और अंदर यह कहा कि वह अपराधी है. हम मनमोहन सिंह को अपराधी नहीं कह रहे हैं, बल्कि अपराधियों के समूह का शहंशाह कह रहे हैं. मनमोहन सिंह ने सारे प्रजातांत्रिक तरीकों को समाप्त करने का शायद फैसला ले लिया है. इसलिए उनकी पार्टी के एक सांसद संवैधानिक संस्था सीएजी पर सवाल उठा रहे हैं. पहले मनमोहन सिंह की पार्टी के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने सीएजी का मजाक उड़ाया और कहा कि सीएजी को शून्य बढ़ाने की आदत हो गई है. अब कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह कहते हैं कि सीएजी के पद पर आसीन विनोद राय की आकांक्षा पुराने सीएजी टी एन चतुर्वेदी जैसी हो गई है. अगर कांग्रेस पार्टी की बात मानें तो दिग्विजय सिंह का सार्वजनिक अपमान कांग्रेस पार्टी द्वारा ही हुआ. उनसे कहा गया कि वह कोई बयान नहीं देंगे और अब अगर उन्होंने कोई बयान दिया है तो यह मानना चाहिए कि उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के कहने से बयान दिया है.
इसका मतलब कांग्रेस पार्टी ने कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल यानी महालेखा परीक्षक नामक संस्था को बर्बाद करने की तैयारी कर ली है. बर्बाद इस अर्थ में कि उस पर हमला बोलकर उसकी इतनी साख गिरा दो कि आगे आने वाली उसकी किसी भी रिपोर्ट पर लोग भरोसा न करें. अगर दिग्विजय सिंह ने सोनिया गांधी के कहने पर बयान दिया है तो पूरी कांग्रेस पार्टी सीएजी के खिला़फ लामबंद हो गई है. कांग्रेस पार्टी की एक आदत है कि जब वह किसी से राजनीतिक रूप से नहीं लड़ सकती या साक्ष्य के आधार पर नहीं लड़ सकती तो वह उसकी व्यक्तिगत छवि धूमिल करती है. व्यक्तिगत छवि का मतलब, जिस तरह मौजूदा महालेखा परीक्षक विनोद राय पर यह आरोप लगा दिया गया कि उनकी महत्वाकांक्षा टी एन चतुर्वेदी की तरह लोकसभा में आने या फिर राज्यपाल बनने की है.
कांग्रेस पार्टी आज तक किसी के साथ राजनीतिक रूप से नहीं लड़ पाई. विश्वनाथ प्रताप सिंह का सामना भी कांग्रेस पार्टी ने सेंट किट्स के बैंक में एक फर्ज़ी एकाउंट खोलकर किया था. हर मामले में कांग्रेस ने हमेशा मुंह की खाई और अब भी वह मुंह की खाने वाली है. मुझे तो खुशी यह है कि इंदिरा गांधी के जमाने तक कांग्रेस पार्टी राजनीतिक लड़ाई लड़ती थी. मुझे नहीं याद कि इंदिरा जी ने कभी किसी व्यक्ति पर व्यक्तिगत आरोप लगाए हों. लेकिन इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी के जमाने में पहली बार वी पी सिंह पर घिनौने आरोप लगाए गए, व्यक्तिगत आरोप लगाए गए. अब कांग्रेस पार्टी के महासचिव और प्रवक्ता सीएजी पर घिनौने आरोप लगा रहे हैं. मुझे पूरी आशा है, बल्कि जिस तरह गांव में लिखते हैं कि आशा ही नहीं, वरन् पूर्ण विश्वास है कि अब जनरल वी के सिंह पर भी व्यक्तिगत आरोप लगाए जाएंगे. बाबा रामदेव और अन्ना हजारे इसकी मिसाल बन चुके हैं. अन्ना हजारे पर किस तरह के और कैसे आरोप लगते हैं, उसके उदाहरण हमारे सामने हैं. कांग्रेस पार्टी सौ रुपये की चूक को घपला और छब्बीस लाख करोड़ रुपये के घपले को चूक बताने में माहिर है. जिस तरह कांग्रेस पार्टी के सारे मंत्री कोयला घोटाले में जीरो लॉस की बात कर रहे हैं, यह वैसा ही है, जैसा 2-जी घोटाले में कपिल सिब्बल ने जीरो लॉस बताया था.
कांग्रेस यह क्यों नहीं समझती कि देश के लोग उसके इन बयानों का मजाक उड़ा रहे हैं. राज्यों में होने वाले चुनाव के नतीजे कांग्रेस पार्टी को क्यों कोई सीख नहीं दे रहे हैं, क्या सोनिया गांधी का दिमाग सचमुच बंद हो गया है, क्या उन्होंने सोचना-समझना बंद कर दिया है? यह मैं इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि अपनी हार से कोई पार्टी सबक न ले, ऐसा दुनिया में बहुत कम होता है. लेकिन हमारे देश में कांग्रेस पार्टी लगातार यह कमाल करती जा रही है. कांग्रेस पार्टी सोचती है कि जनता गलत है और वह सही. लेकिन जब मैं कांग्रेस पार्टी कहता हूं, तो कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को उसमें शामिल नहीं करता, क्योंकि कांग्रेस पार्टी का मतलब आज की तारीख में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और कुछ हद तक प्रियंका गांधी हैं. इसके बाद अगर नाम जोड़ें तो अहमद पटेल, मोतीलाल वोरा, जर्नादन द्विवेदी और उनके लिए शूटर का काम करने वाले दिग्विजय सिंह हैं. कुछ आईएएस अफसर हैं, जो उन्हें राय देते हैं, लेकिन उनका पार्टी के फैसलों में उन जगहों पर दखल होता है, जिन फैसलों का सीधा रिश्ता सोनिया गांधी या राहुल गांधी से होता है. प्रधानमंत्री कार्यालय में पुलक चटर्जी एक ऐसा ही नाम है.
कांग्रेस पार्टी आज तक किसी के साथ राजनीतिक रूप से नहीं लड़ पाई. विश्वनाथ प्रताप सिंह का सामना भी कांग्रेस पार्टी ने सेंट किट्स के बैंक में एक फर्ज़ी एकाउंट खोलकर किया था. हर मामले में कांग्रेस ने हमेशा मुंह की खाई और अब भी वह मुंह की खाने वाली है. मुझे तो खुशी यह है कि इंदिरा गांधी के जमाने तक कांग्रेस पार्टी राजनीतिक लड़ाई लड़ती थी.
अगर सोनिया गांधी ने सोच लिया है कि यह चुनाव हारना है और इस चुनाव में हार के बाद अगला चुनाव कांग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ जीत पाएगी तो सोनिया गांधी का सोचना शायद सही हो सकता है, लेकिन कांग्रेस के लिए यह सोचना बहुत खतरनाक है. पिछली बार भी कांग्रेस पार्टी ने जिस तरह चुनाव लड़ा था, उसका सीधा मतलब था कि वह चुनाव हारना चाहती है. चूंकि उसे पूरा अंदाजा था कि देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ेगी, क्योंकि उसने यूपीए-1 में देश की आर्थिक स्थिति संभालने के लिए कुछ नहीं किया था, लेकिन वह चुनाव भारतीय जनता पार्टी और लालकृष्ण आडवाणी की महान बुद्धिमानी की वजह से कांग्रेस पार्टी जीत गई और भारतीय जनता पार्टी की हालत खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे वाली हो गई. क्या कांग्रेस पार्टी को देश का, देश में रहने वालों का, ग़रीबों का, जो लोग उसे वोट देते हैं उनका, कुछ भी ख्याल नहीं है? अगर ख्याल है तो कम से कम जो घोटाले साबित हो चुके हैं या साबित हो रहे हैं, उन पर तो ईमानदारी से जांच कराने की बात करनी चाहिए. अगर महालेखा नियंत्रक के कार्यालय में छब्बीस लाख करोड़ को पहले दस लाख करोड़ और फिर एक दशमलव आठ छह लाख करोड़ में तब्दील किया गया तो उसे सीएजी का एहसान मानना चाहिए कि उसने कोयले घोटाले को बहुत कम बताकर लिखा. हम बार-बार कह रहे हैं कि यह घोटाला छब्बीस लाख करोड़ का है और सीएजी सरकार को बचाने की कोशिश कर रही है. और सरकार है कि वह सीएजी पर ही जूता उठाकर खड़ी हो गई है.
यह सच है कि दो तरह के लोग होते हैं. एक वे, जो ज़िंदा रहते हुए भी अपना नाम करना चाहते हैं और चाहते हैं कि मरने के बाद भी इतिहास उन्हें अच्छे आदमी की तरह याद करे. दूसरे वे होते हैं, जो जिंदा रहते हुए अच्छा-बुरा करते हैं और उन्हें इतिहास की कोई परवाह नहीं होती. कांग्रेस पार्टी लगभग ऐसी ही पार्टी है, जिसे इतिहास में क्या दर्जा मिलेगा, इसकी उसे परवाह नहीं है. जब तक इंदिरा गांधी जीवित थीं, तब तक कांग्रेस पार्टी को यह परवाह थी कि वह देश में लोकतंत्र की अलमबरदार के रूप में जानी जाए. ग़रीबों के लिए इंदिरा गांधी ने कम से कम सोचा, लोगों को सपने दिखाए. ग़रीबी हटाओ का नारा उन्हीं का था, जिसने उन्हें चुनाव भी जिता दिया, लेकिन आज की कांग्रेस पार्टी तो कुछ करना ही नहीं चाहती. कांग्रेस को लेकर दु:ख इसलिए है कि देश का बहुत बड़ा वर्ग भारतीय जनता पार्टी के साथ खुद को नहीं जोड़ पाता. भारतीय जनता पार्टी का रहन-सहन, चाल-ढाल, बोलचाल और देश के ग़रीबों के साथ उसका रिश्ता कुछ इतना सामंतवादी है कि लोग उसके साथ खड़े होने में हिचकते हैं. इस मनोवैज्ञानिक दीवार को न भारतीय जनता पार्टी तोड़ना चाहती है और न कांग्रेस पार्टी एक नई दीवार बनने देना चाहती है. विधानसभा चुनाव में आए नतीजे कांग्रेस पार्टी को डरा नहीं रहे.
कांग्रेस कार्यकर्ताओं में बुरी तरह गुस्सा व्याप्त है, ऐसा इसलिए, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके नेतृत्व द्वारा गलत निर्णय लेने या निर्णय लेने में असावधानी बरतने से कांग्रेस पार्टी को नुकसान होने वाला है. ज़मीन पर, गांव के स्तर पर और बूथ के स्तर पर दिल्ली में बैठे नेता नहीं लड़ते. लोगों के मान, अपमान, बातों, गुस्से और गालियों का सामना कार्यकर्ताओं को करना पड़ता है. वह कार्यकर्ता, जो कांग्रेस को जिताने के लिए जी-जान एक किए रहता है. वही कार्यकर्ता कांग्रेस पार्टी से दूर हो रहा है. इसकी शायद न राहुल गांधी को चिंता है और न सोनिया गांधी को चिंता है कि कार्यकर्ता उनसे दूर हो रहा है और उसे दूर जाने से उन्हें रोकना चाहिए. उनके चिंता न करने की वजह से कार्यकर्ता भाग रहा है, दूसरी पार्टियों में जगह तलाश रहा है. वहां पर उसे जगह नहीं मिलती, उसके बाद भी वह दूसरी पार्टियों के दरवाजे खटखटा रहा है.
दूसरी तऱफ विपक्ष है और विपक्ष का मतलब अगर भारतीय जनता पार्टी है तो वह भी सीएजी का सम्मान बचाने के लिए कुछ नहीं कर रही. बाकी जितने राजनीतिक दल हैं, उन्होंने पता नहीं क्यों खुद को गिनती से बाहर कर लिया है. अगर मैं नाम लूं तो शरद यादव का ले सकता हूं, मुलायम सिंह यादव का ले सकता हूं, राम विलास पासवान इसमें आते हैं, भले ही वह अकेले राज्यसभा के सदस्य हों, मायावती हैं, नीतीश कुमार हैं. ये सारे नेता खुद को विपक्ष के दायरे से बाहर क्यों मानने लगे हैं, ये लोग एक कॉम्प्लेक्स में क्यों जी रहे हैं, हीनभावना में क्यों जी रहे हैं कि जब कोई रिएक्शन देना होगा तो अगर भारतीय जनता पार्टी का प्रवक्ता देगा तो ठीक और अगर नहीं देगा तो हम खामोश रहेंगे.
लोकतांत्रिक संस्थाओं की, लोकतांत्रिक प्रक्रिया की या लोकतंत्र में लोगों के दु:ख और तकलीफ की बातें इन दोनों को समझ में नहीं आएंगी तो हमें यह बताने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि इतनी समझ इन सारे नेताओं में है कि वे समझ लें कि जनता उन्हें सबक सिखाने वाली है. लोगों की नज़रों में कांग्रेस पार्टी और भारतीय जनता पार्टी एक तरह की राजनीति करती है, पर वे बाकी विपक्षी दलों को राजनीति करते नहीं देखना चाहते. लोग उन्हें वोट नहीं देते हैं, उसी तरह, जिस तरह एक साधु को अपना सरपंच नहीं बनाते या अपना एमएलए नहीं बनाते, लेकिन एक साधु से यह अपेक्षा करते हैं कि वह जब कहेगा, सही बात कहेगा. जब कहेगा, धर्म की बात कहेगा और जब कहेगा लोगों को, उनके जीवन को आध्यात्मिक तौर पर ऊंचा उठाने की बात कहेगा. अगर साधु कोई दूसरी बात करता है तो लोग उसे अपने यहां से भगा देते हैं. जो ग़ैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई विपक्ष है, वह उसी साधु की तरह है. उनसे लोग अपने हित की बातें सुनना चाहते हैं, उनसे अपनी तरक्की की, अपनी अच्छाई की बातें सुनना चाहते हैं. वोट देने में कभी उनका पक्ष लेते हैं और कभी उन्हें अनदेखा कर देते हैं. इसके बावजूद उनका चुप रहना लोगों को पसंद नहीं है. यह बात विपक्षी शायद नहीं समझते. हो सकता है, आज के नेतृत्व के बाद जो नेतृत्व आएगा, कभी तो आएगा, वह इस बात को समझे. अगर ये लोग इस बात को नहीं समझेंगे तो इस देश के लोगों का लोकतंत्र से भरोसा धीरे-धीरे उठना स्वाभाविक है.
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