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Saturday, September 22, 2012

पहले तो कुरानमें से महम्मद के बारेमें लिखे गये खराब वर्णन या प्रसंग को निकलवा दो

आग्रह को स्वीकार करते हुए उस ब्लॉग को पढ़ा जिसमे श्री राम राज्य के बारे में पूर्णतया अंट शंट बाते लिखी गयी है. उसको मैंने पढ़ा और कमेन्ट भी किया लेकिन जब निचे कमेन्ट पढ़ा तो मुझे वो ज्ञान के भण्डार लगे अतः मैने सोचा की क्यों न आप लोगो तक उस हरामखोर का ब्लॉग और उस पर दिए गए कुछ चुनिन्दा और अच्छे जबाब आपके पास प्रेषित करू..अतः मै उसे संकलित करके आप पाठक बंधुओ के सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हु ..
मुल्ले द्वारा लिखा ब्लॉग..
आजकल कुछ तथाकथित भ्रष्ट नेता अध्यात्मिक चोला ओढ़कर ,देश की बहुसंख्यक जनसँख्या को प्रायोजित करते हुए , धार्मिक उन्माद और विद्रोही पैशाचिक हिंसा के लिए प्रेरित करते हुए ,देश में धार्मिक वितृष्णा,और अलगावबाद का धुंआ फैला रहे हैं.
ये लोग एडोल्फ हिटलर की तर्ज पर नाज़ीवाद/नस्लवाद/शुद्द आर्यन जातिवाद जैसा उग्र और हिंसक अभियान चलाकर देश से “अल्पसंख्यक नस्लों/जातियों/धर्मों को समूल समाप्ति” का “दिव्यस्वप्न” देख रहे हैं,और एक पूर्व नियोजित षड्यंत्र के तहत ये भारत में “पुन: राम राज्य स्थापना” के महान धार्मिक कार्य के लिए लोगों को सम्मोहित करते उन्हें हिंसा और हत्या जैसे जघन्य पाप करने के लिए उकसा रहे हैं.
अब हम वास्तविक राम राज के विषय में विचार करते हैं,जहां एक घाट पर सिंह और बकरी आदि एक साथ पानी पीते थे,उस राज में जानवरों की सोच और जीवन शैली इतनी अहिंसक और शांतिपूर्ण थी,ऐसे राम राज को लाने के लिए हम हिंसा,हत्या और अत्याचार को माध्यम बना रहे हैं,क्या हम हिंसा के बल पर पहले जैसा राम राज प् सकते हैं? शायद कभी नहीं.
इनकी सोच में “राम राज” एक हिंसक और विघटनकारी राज रहा होगा .शायद वैसा राम राज,जहां एकलव्य को अपनी ऊँगली इसलिए गुरु दक्षिणा में देनी पड़ती है,क्योंकि वो अछूत और निम्न वर्ग से सम्बंधित था.
ऐसा राम राज जहां अस्पृश्य और अछूत जातियों को अलग बर्गीकृत किया जाता था,उन्हें मंदिरों में प्रवेश वर्जित हो ,वेदों के शव्द सुनने का अधिकार न हो,यदि सुन लें तो उनके कानों में पिघला सीसा दाल दिए जाने जैसे दंड विधान हों.जहाँ सत्य के लिए शम्बूक को गर्दन कटानी पड़ जाए.
ऐसा राम राज्य जहां रावण का प्रचंड प्रकोप हो,स्त्रियों का खुलेआम अपहरण करे,और जहां अपनी ही स्त्री को पाने के लिए,एक भीषण युद्ध करना पड़े,जहां स्त्रियों की अस्मिता और सुरक्षा सदैव दांव पर लगी हो.जहां राक्षस हों,दैत्य हों,सूपनखा हो,रावण हों और असुरों का बोलबाला हो.
क्या ऐसा राम राज हो? जहां एक भगवान् एक स्वर्ण मृग की मारीचिका को पहचानने में अक्षम हो,स्वर्ण मोह में उस मृग को पाने के लिए दौड़ पड़े,और जंगल में अपनी स्त्री को असुरक्षित छोड़ जाने में भी किंचित संकोच न करे.बस भाग पड़े,सोने की चाह में.
ऐसा राम राज,जहां खुद भगवान् की स्त्री सुरक्षित नहीं,उसका अपहरण कर लिया जाए,भगवन अपनी स्त्री की सुरक्षा न कर सके………….और एक धोभी के लांछन को सुनकर अपनी निष्पाप स्त्री को अकेला घर से निकाल दे.
एक भगवान् सोना जैसी भौतिक वस्तु को पाने के लिए दौड़ पड़े,अपनी स्त्री को जंगल में असहाय छोड़कर,……………..यदि स्वर्णमृग के पीछे भागने में भगवान् का मोह मात्र सोना पाने की अदम लालसा न भी रही हो,तो दूसरा उद्देश उसका शिकार मांस के लिए करना रहा होगा…………….ऐसा राज जहां भगवान् खुद जीव हत्या या जीवों के प्रति हिंसा पर उतारू हो…..वो राम राज चाहिए इन्हें.
पर यहाँ ये प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है,कि “राम राज्य” कैसा था,यहाँ मेरा उद्देश्य किसी धर्म अथवा समुदाय के प्रति बुरी भावना,अथवा नकारात्मक सोच रखने से नहीं है,मै विश्व के सभी धर्मों के प्रति पूरी निष्ठां,आस्था और सम्मान रखता हूँ,मेरा विचार है,कि विश्व का कोई भी धर्म बुरा नहीं है,सभी धर्म मानव कल्याण और शान्ति का समर्थन करते हैं,विश्व के किसी भी धर्म में ,दुसरे धर्मों के प्रति अनादर,विद्वेष,वितृष्णा का भाव नहीं है.
किसी भी धर्म के नियम सिद्धांत ,दूसरे धर्म के लोगों की हत्या करना,उन्हें यातना देना,उनकी संपत्तियों को नुक्सान पहुंचाने का समर्थन नहीं करते,और सभी धर्मों को यदि गंभीरता पूर्वक अध्यन किया जाए,तो एक अद्भुद और अप्रत्याशित परिणाम मिलता है,कि सभी धर्मों का मूल उत्पत्ति एक ही स्थान और उद्देश्य से है,सभी एक दूसरे से जुड़े हैं,अथवा आश्रित हैं.

ये उस हरामखोर की लेखनी है इतना पढ़कर आप लोग उसकी मानसिक स्थिति जान गए होंगे पर मै राष्ट्रवादी मित्रो का जबाब अब प्रेषित करता हु..
सबसे अच्छा जबाब श्री वासुदेव त्रिपाठी जी ने दिया है जो निम्नवत है..
एक कहावत कहते हैं- आसमान की ओर मुंह करके थूकोगे तो थूक आकर मुंह पर ही गिरेगा…!! ये कहावत यदि कभी सुनी होती तो शायद आप आसमान पर थूकने की मूर्खता नहीं करते। रामराज्य की स्थापना करने वाले सभी धर्मों के नाश का सपना देखते हैं…, दारुल-इस्लाम जिनकी आस्था का केंद्र हो उनके मन में रामराज्य को लेकर यह भय बैठना स्वाभाविक ही है। स्त्री का अपहरण और युद्ध रामराज्य मे नहीं रावणराज्य मे हुआ था और उस रावण राज्य का अंत करके रामराज्य की स्थापना हुई थी। बाकी धर्म संबंधी व्याख्या उस व्यक्ति से करना मूर्खता होगी जिसे एकलव्य और स्वर्णमृग तक के विषय में मउआ-मूरी कुछ नहीं पता… दुनिया तो नहीं दिखाई देगी लेकिन दुनिया देखने के आँखें और प्रकाश होना आवश्यक है यह नीचे कुछ मित्रों ने स्पष्ट कर दिया है।
रामराज्य का अर्थ सदैव रावणराज्य का अन्त करना रहा है और आज भी है। इसका किसी जाति या व्यक्ति से बैर नहीं है। इसका बैर गजनवी जैसे उन हत्यारों से है जो अरब की लुटेरी मानसकिता लेकर आते हैं और यहाँ हजारों सोमनाथ तोड़कर लाशों को रौंदते हुए लूट का सामान ऊंटों पर भरकर अल्लाह-हु-अकबर चीखते हुए चल देते हैं, अथवा तैमूर जैसे उन लुटेरों से रामराज्य का वैर है जो गाँवों मे आग लगाकर की गयी लूट से अमीर बनने का ख्वाब लेकर आते हैं। रामराज्य का विरोध मोहम्मद गोरी जैसे दगाबाजों और सिकंदर लोदी जैसे भेंडियों से भी है। रामराज्य बाबर जैसे जिहादियों का भी घोर शत्रु है मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाना जिनका दीन रहा है। अकबर जैसे मीनाबाजारी छिछोरे बलात्कारी, गुरु का सर कटवा लेने वाले नराधम जहाँगीर अथवा गुरु के दो मासूम बच्चों को जिंदा दीवार मे चुनवा देने वाले औरंगजेब जैसे दरिंदे भी इस रामराज्य को झेल नहीं सकते। ऐसे मे रामराज्य से उनके पेट मे दर्द होना स्वाभाविक ही है जो आज भी इन नरधमों को अपना नेता आदर्श, मसीहा मानते हैं।
रामराज्य तो प्राणिमात्र के परस्पर प्रेम की कहानी है जिसे “सब नर करहि परस्पर प्रीती” जैसे शब्दों मे गाया जाता है… इसे वे कैसे सहन कर सकते हैं जिनके लिए एक किताब ही आखिरी दीवार हो जिसके पार देखना, उनके लिए दोज़ख की आग मे जाना है। आप इनकी आयतों पर विश्वास नहीं करते या कर पाते तो ये आपको दोज़ख की आग मे हमेशा के लिए जलाने की धमकी देते हैं (कुरान- अल-बकरा 24/126/161/162… आले-इमरान 10-12… अल-निसा 51-57… अल-आराफ़ 40)। आपको ये चिंता सता रही है कि खुदा को सोने के हिरण से मोह कैसे हो गया… जबकि ऐसा हुआ नहीं इसका प्रमाण स्वयं रामायण ही है, और यदि आपको फिर भी लगता है तो भी फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वो खुदा एक आम आदमी का जीवन जीने मे न शरमाता है और न झुँझलाता है। फिक्र थोड़ी उस खुदा पर फरमाइए जो एक खूंखार तानाशाह की तरह चिढ़ उठता है यदि कोई उसे किसी और रूप मे पूजे… किसी और को खुदा मान ले। ये तानाशाह खुदा इतने पर दोज़ख की आग मे भून डालने का फरमान सुना डालता है। उसके लिए हत्या लूट बलात्कार सब कुछ क्षम्य है लेकिन अपनी तानाशाही को चुनौती (शिर्क) बर्दाश्त नहीं… ये सबसे बड़ा पाप है ( सूरा अल-निसा 48)। और ज्यादा तो फिक्र तो आपको तब होनी चाहिए जब ये खुदा यहूदियों-ईसाइयों को मुसलमानों का खुला दुश्मन बताते हुए उन्हें गरियाने मे अल-माइदा जैसे सूरे के सूरे उतार डालता है। काफिरों के कत्ल का हुक्म दे डालता है… यही नहीं उनके माल को भी लूटने का आदेश देता है। गनीमत का माल कही जाने वाली लूट को कुरान मे जगह जगह हलाल (जायज़) कहा ही गया है, इसे लेते भी कैसे थे… tabari (8-122) देखिये- मुहम्मद ने बंधक बनाए गए खैबर के मुखिया से माल उगलबाने के लिए आदेश दिया कि इसे तब तक प्रताड़ित करो जब तक ये बता न दे इसके पास क्या है। जुबैर ने उसकी छती पर जलती हुई आग रख दी जब तक वो मर नहीं गया.! तब अल्लाह के पैगम्बर ने उसे मुसलमानो को दे दिया जिन्होंने उसक सर काट डाला।
धोबी के लांछन को सुनकर राम ने सीता को निकाल दिया इतना तो आपने वाल्मीकीय रामायण से उठाकर कुछ मुल्ले-मौलवियों या सेकुलरिस्टों से सुनकर रख दिया लेकिन उसके बाद की कहानी कहने क्या एक और नबी उतरेंगे.?? अगर इतनी ही कहानी मे रहना चाहते हैं तो भी चलिए श्रीराम ने प्रजाहित मे अपनी पत्नी के साथ अन्याय किया इतना ही तो कह सकते हैं आप?? अब थोड़ी उसकी भी फिक्र कर लीजिए जब अपने मुंह बोले बेटे जैद की बीबी पर खुदा के फरिश्ते का दिल आ जाता है और अल्लाह फौरन आयत नाज़िल कर देता है जैद की बीबी जैनब अब जैद को हराम और पैगम्बर को हलाल हो जाती है। यहाँ मैं किसी तरह सीमा उल्लंघन नहीं कर रहा हूँ… आपको पता ही होगा यह सूरा अल-अहज़ाब आयत 37-39 की कहानी है जिसमे अल्लाह अपने रसूल की दिल की बात प्रकट करता है। यहाँ तक भी गनीमत थी… लेकिन जंग में औरतों को बतौर लूट और गनीमत का माल उठा ले आना और उन्हें रखैल बनाकर संभोग करना या फिर बेंच देना कितना जायज़ है..?? जंग मे हाथ लगी 17 साल की खैबर औरत सैफीया के बारे मे तो सहीह बुखारी (5:59:512) कहती है- पहले वो दहया के हिस्से में गई थी लेकिन फिर उसे अल्लाह के रसूल ने ले लिया था। सैफ़िया के बदले उसे 9-10 साल की सैफ़िया की दो भतीजी दे दी गईं थी ऐसा सहीह मुस्लिम बताती है। कुरान सूरा अल-निसा आयत 24 भी तो खुली जंग मे हाथ लगी औरतों के उपभोग की छूट देती है भले ही वे विवाहित हों.! आपको ये सोचकर भी उस खुदा की मानसिकता के बारे में चिंता नहीं होती कि ये आयत कैसे उतरी थी.? हदीस अबू-दाऊद (2150) बताती है कि ये आयत तब उतरी जब मुसलमानों ने अल्लाह के पैगम्बर से जंग मे हाथ लगी औरतों के उनके बन्दी पतियों के सामने संभोग करने की इच्छा जाहिर की। खुदा ने पर्मिशन दे दी ऐसे बलात्कार की और आपको ऐसे खुदा पर सोच नहीं आया..?? सहीह मुस्लिम (किताब 8, आयत 3371) मे मुसलमान अल्लाह के रसूल से पूंछते हैं कि हमने कुछ बेहतरीन अरब औरते बंधक बनाई हैं, हम चाहते हैं कि हम उनके साथ अज्ल (बाह्य वीर्यपात) संभोग करना चाहते हैं ताकि वो गर्भवती न हों क्योंकि हम उन्हें बैंचकर दाम चाहते हैं। (रसूल ने अज्ल से तो मना किया {इसीलिए मुसलमान गर्भनिरोध नहीं करते और जनसंख्या बिस्फोट करते जा रहे हैं} लेकिन बंधक औरतों के साथ संभोग या बैंचने से नहीं! क्योंकि यह लूट का हलाल माल था, इन्हें लौंडी कहते हैं। यह शब्द मेरा नहीं कुरान का है)
….क्षमा चाहता हूँ मित्र..!! मैं आपके लेख से बड़ी प्रतिकृया लिख गया… देखा तो रुकना पड़ा… वरना जानकारी तो अभी बहुत बाकी है… जैसे संभोग करने से मना करने पर औरत को फरिश्तों द्वारा शाप दिया जाना (बुखारी)… उसे कमरे मे बंद कर देना… मारना (कुरान अल-निसा, 34)..! अमूमन मैं राजनैतिक मुद्दों पर ही बोलता हूँ, सम्प्रदायगत बहस मे पड़कर लोगों की आँखें खोलकर दिल तोड़ता नहीं हूँ किन्तु फिर भी आप जबाब मे मुझे मेहर और हिस्सेदारी की दूकानदारी मत बताइएगा…. या फिर अपना कोई जाकिर नाइक स्टाइल का जोड़-तोड़…क्योंकि मैंने सूरा-बकरा की आयत 106 भी पड़ी है और मुझे ये भी पता है तक़या क्या होता है। रामराज्य कभी भी नस्ल के आधार पर कत्ल की नहीं सोच सकता क्योंकि गोरी-गजनी के दीवाने आज भले ही शरीयत का शोर मचा रहे हों किन्तु फिर भी वे हमारी ही नस्ल के हैं जिहादी अत्याचारियों ने जिनके बापों की गर्दन पर तलवार रखके अथवा माँओं को गनीमत का माल समझकर बलात्कार के द्वारा मुसलमान बनाया था। दमिश्क मे आज भी एक खंभे पर लिखा है कि यहाँ हिन्दुस्तानी औरतें 2-2 दीनार मे बेंची गईं। रामराज्य तो नस्ल क्या मनुष्य मात्र के परस्पर प्रेम का साक्षात्कार है- “बयरु न कर काहू सन कोई” और “सब नर करहिं परस्पर प्रीती”
…साभार!!
इसके बाद मैंने भी अपनी अल्प बुद्धि से जबाब देने की कोसिस की जो की निम्नवत है..
सर्व प्रथम आप ने कहा की राम राज्य में एकलव्य की अंगुली कटी गयी.. हसी आती है आप के ज्ञान पर.. और वैसे भी द्रोणाचार्य कभी हिन्दुओ के सम्माननीय नहीं रहे ..
फिर कहा की एक सुदर को वेद पाठ सुनने पर उसके कान में सीसा डाला गया .. ये बात न तो बाल्मीकि रामायण में है न ही राम चरित मानस में है ये पेरियार की लिखित तमिल रामायण में है अतः लगता है की आपने रामायण तो कभी पढ़ी नहीं बल्कि उसका क्रिटिक्स पढ़ा है..
तीसरा आप ने कहा की श्री राम ने स्वर्ण मृग के कारन अपने पत्नी को असुरक्च्चित छोड़ दिया ये भी आप के अल्प ज्ञान को दर्शाता है राम उस मृग के पीछे से जाने से मन कर रहे थे पर माता सीता के असीम अनुरोध पर उनकी इच्छा के कारन उस मृग के पीछे गए
चौथी बात आप ने कही की वो खुद राजा थे और अपनी पत्नी को नहीं बचा पाए परन्तु आपकी नीच बुद्धि में ये बात मई डाल दू की उस समय न तो वो राजा थे न राजकुमार वन में आदिकालीन जीवन बिता रहे थे और साधन हिन् होने के बावजूद भी उन्होंने अपनी पत्नी को बचने के लिए युद्ध किया ..
फिर आपने लिखा की एक औरत के लिए उन्होंने इतना बढ़ा युद्ध किया किन्तु मामला एक औरत का नहीं होता यदि एक औरत के अपहरण पर आप चुप रहेंगे तो अगले दिन अगली औरत का अपहरण होगा इसलिए आप की ये बात विवेकशील ज्ञान से परे है..
फिर आप ने लिखा की भारत में सुद्रो को बहुत परेशां किया गया है.. लेकिन आपको याद दिला दू की भारत में महाभारत को लिखने वाले द्वैपायन व्यास जन्म से सुदर थे पर महान ब्रह्मण का दर्ज़ा उन्हें मिला…
रामायण के रचयिता श्री बाल्मीकि जी भी जन्म और कर्म से पहले सुदर थे पर बाद में महान ब्रह्मण का दर्ज़ा मिला
भारत में शंकराचार्य परंपरा के जनक श्री आदि शानाकराचार्य के गुरु वाराणसी के चंडाल नरेश थे
महान कृष्णभक्त आदरणीया मीरा बाई के गुरुदेव संत रविदास जी थे वो भी एक सुदर थे जबकि मीरा बाई राजपरिवार की थी..
अतः आप जान बुझकर उलटी पुलती बाते न करे भारत में सुदरता की जन्म आधारित शुरात करने वाले मुल्ले है .. सन ८०० से पहले पूर्णतया कर्म आधारित व्यवस्था थी उदहारण के लिए
सम्राट चन्द्रगुप्त सम्राट अशोक महेंद्र इत्यादी जाती से कोइरी थे पर राजा बने
सम्राट आदिगुप्त समुद्रगुप्त कुमार गुप्त जाती से वैश्य थे पर सन ७०० तक राजा रहे …
अतः झूठ का प्रचार और प्रसार बंद करो…. वैसे तुम मुल्ला लग रहे हो और मुल्लो में झूठ बोलना धर्म में शामिल है जिसे ताकईया कहते है सायद तुम उसी काम में लगे हो….

इसके बाद श्री दिनेश जी ने कमेन्ट किया है जो निम्नवत है…
धर्म न माने आपका, उसका कर दो कत्ल।
हमें खुदा ने किसलिये, दी है ऐसी अक्ल??
पाप करो पाओ क्षमा, बढ़ेंगे निश्चित पाप।
न्यायी कैसे बन गये, अरे खुदा जी आप।।
पहिले भारी पाप कर, फिर ले माफी माँग।
धर्म ग्रन्थ में है लिखा, खुदा करेगा माफ।।
लेकर तेरे नाम को, शत्रु दुख, ले प्राण।
नाम खुदा का कर रहे, वह पापी बदनाम।।
दिल में मुहर लगाय के, पापी दिया बनाय।
दोष नहीं कुछ जीव का, पापी खुदा कहाय।।
जो उसके अनुयायी हैं, बस उसको उपदेश।
मारो, काटो, लूट लो, दूजे मत के शेष।।
क्षमा पाप से यदि करे, सब पापी बन जाय।
इसीलिये संसार में बढ़ हुआ अन्याय।।
करे प्रसंशा स्वयं की, वह कैसा भगवान।
मुझको तो ऐसा लगे, खुदा में है अभिमान।।
मेरे मत के लोग ही, जा पायेंगे स्वर्ग।
दूजे मत के वास्ते, बना दिया क्यों नर्क?
दूजे मत अनुयायी जो, काफिर देंय पुकार।
ऐसे तो बन जायगा, काफिर यह संसार।।
जिसको चाहे दे दया, जिसपर चाहे क्रोध।
पक्षपात यदि जो करे, नहीं खुदा के योग्य।।
मारा मेरे भक्त को, दोजख में दे डाल।
मारे मेरे शत्रु को, स्वर्ग जाय, तत्काल।।
दुष्ट हो अपने धर्म का, उसको मित्र बनाय।
सज्जन दूजे धर्म का, उसके पास न जाय।।
दूजे मत का इसलिये, उसको दिया डुबाय।
जो उसके अनुयायी हैं, उसको पार कराय।।
करवाये भगवान सब, पुण्य होय या पाप।
फल क्यों न पाये खुदा, चाहे हो अपराध??
पक्षपात कहलायगा, फल यदि खुदा न पाय।
क्षमा खुदा को यदि मिला, तो यह कैसा न्याय।।
जिस फल से पापी बने, लगा दिया क्यों वृक्ष।
जिसके खाने के लिये, बात नहीं स्पष्ट।।
यदि स्वयं के वास्ते, तो कारण बतलाय।
आदम से पहिले उसे, खुदा नहीं क्यों खाय।।
बारह झरने थे झरे, शिला पे डण्डा मार।
ऐसा होता अब नहीं, क्यों विकसित संसार??
निन्दित बंदर बनोगे, कहकर दिया डराय।
झूठ और छल खुदा जी, आप कहाँ से पाय।।
हुक्म दिया औ हो गया, कैसे हुआ बताय।
किसको दिया था हुक्म ये, मेरी समझ न आय।।
पाक स्थल जो बनाया, क्यों न प्रथम बनाय।
प्रथम जरूरत नहीं क्या, या फिर सुधि न आय।।
नहरें चलती स्वर्ग में, शुद्ध बीबियाँ पाय।
इससे अच्छा स्वर्ग तो, पृथ्वी पर मिल जाय।।
कैसे जन्मी बीबियाँ, स्वर्ग में, आप बताय।
रात कयामत पूर्व ही, उन्हे था लिया बुलाय।।
औ उनके खाविन्द क्यों, नहीं साथ में आय?
नियम कयामत तोड़कर, किया है कैसा न्याय??
रहे सदा को बीबियाँ, पुरुष न रहे सदैव।
खुदा हमारे प्रश्न का शीघ्र ही उत्तर देव??
मृत्य को जो जीवित करे, औ जीवित को मृत्य।
मेरा यह है मानना, नहीं ईश्वरीय कृत्य।।
किससे बोला था खुदा, किसको दिया सुनाय?
बिना तर्क की बात को, कैसे माना जाय?
खुदा न करते बात अब, कैसे करते पूर्व??
तर्कहीन बातें बता, हमको समझे मूर्ख।।
हो जा कहा तो हो गया, पर कैसे बतलाय?
क्योंकि पहिले था नहीं, कुछ भी खुदा सिवाय।।
बिना तर्क की बात को, कैसे माना जाय??
तौबा से ईश्वर मिले, और छूटते पाप।
इसी सोच की वजह से, बहुत बड़े अपराध।।
ईश्वर वैदक है नहीं, यह सच लीजै मान।
सच होता तो बोलिए, क्यों रोगी भगवान??
जड़ पृथ्वी, आकाश है, सुने न कोई बात।
क्या ईश्वर अल्पज्ञ था, उसे नहीं था ज्ञात??
बही लिखे वह कर्म की, क्या है साहूकार?
रोग भूल का क्या उसे, इस पर करें विचार??
आयु पूर्व हजार थी, अब क्यों है सौ साल?
व्यर्थ किताबें धार्मिक, मेरा ऐसा ख्याल।।
सच सच खुदा बताइये, क्यों जनमा शैतान?
तेरी इच्छा के विरुध, क्यों बहकाया इंसान??
बात न माने आपकी, नहीं था तुमको ज्ञात।
तुमने उस शैतान को, क्यों न किया समाप्त??
मुर्दे जीवित थे किये, अब क्यों न कर पाय?
मुर्दे जीवित जो किये, पुनर्जन्म कहलाय।।
कहीं कहे धीरे कहो, कहते कहीं पुकार।
यकीं आपकी बात पर, करूँ मैं कौन प्रकार??
अपने नियम को तोड़ दे, मरे मैं डाले जान।
लेय परीक्षा कर्म की, कैसा तूँ भगवान??
हमें चिताता है खुदा, काफिर देय डिगाय।
कैसे ये बतला खुदा, तूँ सर्वज्ञ कहाय??
बिना दूत के क्या खुदा, हमें न देता ज्ञान?
सर्वशक्ति, सर्वज्ञ वह, मैं कैसे लूँ मान??
बिना पुकारे न सुने, मैं लूँ बहरा मान।
मन का जाने हाल न, कैसा तूँ भगवान??
व्यापक हो सकता नहीं, जो है आँख दिखाय।
वह जादूगर मानिये, चमत्कार दिखलाय।।
पहुँचाया इक देश में ईश्वर ने पैगाम।
ईश्वर मानव की कृति लगता है इल्जाम।।
श्री भरोदिया जी ने भी अपने अपने कमेन्ट को इसमें शामिल करने का आग्रह किया है अतः मै उसे भी आप लोगो के सम्मुख रख रहा हु
सैमा बहेन नमस्कार
पहले तो मैं आप को दाद देता हुं की आप समाज को सुधारने का जजबा रखती है, वरना बूरके में कैद करनेवाले समाज में ये बहुत मुश्कोल हो जाता है । धर्म समाज का बहुत बडा अंग है । और धर्मों को सुधारना जरूरी भी है ।
लेकिन शरुआत हमेशां घर से करनी चाहिए । अपना घर पहले सुधर जाए तो दुसरे घर को सुधारना आसान बन जाता है । कोइ ताना तो ना मारे पहेले आपना संभाल ।
आप को एक बात बताना चाहुंगा । भारत की बात नही है, विदेश का एक मुल्ला ईस्लाम से तंग आकर ख्रिस्ति बन गया । क्यों की वो मुल्ला था तो कुरान असली भाषामें पढ सकता था. उसने शब्दसः अंगेजीमें अनुवाद कर दिया । पूरा का पूरा कुरान नेट पर रख दिया । कोमेंट देनेवालों ने गालियों की बौछार कर दी । कुरान में ऐसे खराब प्रसंग होते हैं किसी को मानने में नही आ रहा था । या तो मान के भी अंधश्रध्धा के कारण विरोध कर रहे थे ।
बहेन जी, पहले तो कुरानमें से महम्मद के बारेमें लिखे गये खराब वर्णन या प्रसंग को निकलवा दो । वो सब लिखा गया था तब प्रजा बहुत ही जाहिल थी आज के मुकाबले । लिखते समय सामाजिक परिस्थियां रही होगी । और लिखने वाले आज के मुल्ला के मुकाबले बहुत ही पिछडे हुए थी । वो पूराने थे तो ईसी वजह से अहोभाव मे आ कर सर पे नही बैठाया जा सकता । हर काल खंडमें मौजुदा मुल्ला ही सही साबित हो सकता है । उन की ही जिम्मेदारी होती है धर्म को सही दिशा देने की । हम या आप कुछ नही कर सकते ।
हालांकि ये मूल लेखन नहीं है और मैंने बिना पूछे लोगो के विचार यहाँ पर संकलित किया है अतः उन लोगो से माफी परन्तु ज्ञानवर्धक लगा इसलिय पोस्ट कर दे रहा हु…..अन्त में मै उस मुल्ले लेखक का नाम भी लिख दे रहा हु जिसकी बदौलत उसके पैगम्बर की इज्जत उसी के ब्लॉग पर डूब गयी..MALIK SAIMA …

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