इस्लाम का विरोध: क्या कहते हैं विशेषज्ञ
मैलिस रूथवन, लेखक, ‘इस्लाम इन द वर्ल्ड एंड फंडामेन्टलिज़म – ए शॉर्ट इन्ट्रोडक्शन’ ---
फिल्म के विरोध में हुई हिंसा के पीछे कुछ हद तक तो राजनीतिक अवसरवादिता थी, लेकिन इस तथ्य को भी नहीं नकारा जा सकता कि करीब 14 सदियों से मुसलमानों के ज़हन में बनी पैगंबर मोहम्मद की प्रतिष्ठा की रक्षा करने के प्रयासों को जनसमर्थन मिलेगा.
लेकिन ये समझना ज़रूरी है कि इस छवि का सार्वजनिक तौर पर अपमान करने और आधुनिक काल में विद्वानों द्वारा उसपर सवाल उठाने में फर्क है.
इतिहासकार टॉम हॉलैंड ने अपनी किताब और टेलिविज़न पर प्रसारित कार्यक्रम में पैगंबर से जुड़े कुछ तथ्यों पर सवाल उठाया तो इस्लामी विद्वानों ने उसका विरोध ज़रूर किया लेकिन बेनगाज़ी से काबुल तक दंगे नहीं भड़के.
इससे साफ होता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुद्दे पर दो अलग रास्ते अपनाने की ज़रूरत है.
एड हुसैन, संयुक्त राष्ट्र की विदेश मामलों की परिषद में मध्य पूर्व अध्ययन के सीनियर फेलो, और ‘द इस्लामिस्ट’ पुस्तक के लेखक ---
मैं एक मुसलमान हूं और पश्चिम में रहता हूं लेकिन मुझे इन दोनों में कोई अंतर्विरोध नहीं दिखता.
लिखने-बोलने पर कैथोलिक चर्च के नियंत्रण को खत्म कर ही हम इस स्थिति में पहुंचे हैं जब आपको अभिव्यक्ति की आज़ादी है.
एक ऐसा समाज जहां पहली बार बड़ी संख्या में मुसलमानों और यहूदियों का प्रवेश हुआ और उन्हें पूरी धार्मिक आजादी मिली.
खुद पर सेंसरशिप लगाना इन्हीं उपलब्धियों को बदलने जैसा है.
जिस तरह से पश्चिमी देशों में मुसलमान स्वतंत्र हैं, उसी तरह से पूर्वी देशों में ईसाइयों और दूसरे धर्मावलंबियों को भी आजादी होनी चाहिए.
जेन किनिनमॉन्ट, सीनियर रिसर्च फेलो, चैथम हाउस --‘इनोसेंस ऑफ मुस्लिम्स’ फिल्म को लेकर इस्लामी देशों में हो रहे प्रदर्शन सिर्फ आंशिक हैं. इन प्रदर्शनों ने दर्शाया है कि लाखों लोग, बिना ये जाने कि यू ट्यूब पर पोस्ट किए एक खराब वीडियो का किसी देश की सरकार से संबंध है भी या नहीं, पश्चिमी देशों की सरकारों पर इस्लाम विरोधी एजेंडा चलाने का इलज़ाम लगाने को तत्पर हैं.पश्चिमी देशों की सरकारों और वहां के राजनयिकों को इस सामग्री के अन्य लोगों को ठेस पहुंचाने वाला होने की ओर सजग होना चाहिए.लेकिन इंटरनेट पर धार्मिक, नस्ली या दूसरे विवादास्पद मुद्दों पर डाली जा रही अपमानजनक सामग्री के लिए उन्हें ज़िम्मेदार नहीं माना जा सकता.ये सिर्फ बोलने की आजादी भर नहीं है बल्कि तकनीक की वास्तविकता भी है.
जिलियन यॉर्क, निदेशक, अभिव्यक्ति की अंतरराष्ट्रीय आज़ादी, इलेक्ट्रॉनिक फ्रंटियर फाउंडेशन ---जब कोई विचार रखे जाने पर हिंसा भड़क उठती है, तो उस वक्त आत्म-संयंम बरतने के विचार को बल मिलता है.हम अब एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां न्यू यॉर्क में कही बात कायरो में भी देखी-सुनी जाती है, ऐसे में अल्पसंख्यकों के विचारों को ध्यान में रखते हुए अपनी बात को ज़्यादा संवेदनशीलता से कहने का दबाव बढ़ता है.
लेकिन पैगंबर मोहम्मद के लिए आज दिया जा रहा ये तर्क कल किसी तानाशाह के लिए भी दिया जा सकता है.
यूरोप के कई हिस्सों में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान किए गए यहूदियों के नरसंहार के विपरीत कुछ कहना जुर्म माना जाता है, जिसके चलते अन्य समुदाय भी ऐसी पाबंदी की मांग करते रहे हैं.वहीं अमरीका में नफरत को हवा देने वाले भाषण या अन्य अभिव्यक्ति को गैर-कानूनी नहीं माना जाता.
मेरे ख्याल से ऐसे भाषणों का जवाब दरअसल और भाषण तथा चर्चा ही हैं.एल्मर ब्रोक, यूरोपीय संसद के जर्मन सदस्य, अंतरराष्ट्रीय मामलों की समिति के अध्यक्ष
पैगंबर मोहम्मद का अपमान करनेवाली फिल्म ग़लत ही नहीं घृणास्पद है.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वहीं खत्म हो जाती है जहां उसकी आड़ में लोग देशों और समुदायों के बीच नफरत पैदा करने की कोशिश करते हैं.
वहीं मैं फिल्म के बाद हुई हिंसा और खूनखराबे को भी गलत मानता हूं.
यूरोप को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की नीति अपनाने पर गर्व है, लेकिन वो सब करना ज़रूरी नहीं होता जिसकी आज़ादी दी जाती है.
हम ये भी समझते हैं कि इंटरनेट के दौर में जानकारी को रोकना मुनासिब नहीं है.
इसलिए रास्ता है धार्मिक पूर्वाग्रहों और द्वेष को कम करना, ये कोशिश दोनों तरफ होनी चाहिए
Tuesday, September 25, 2012
Sunday, September 23, 2012
गुजरात आज महिलाओं के लिए काम करने की सबसे सुरक्षित जगह बन गया है।
अगले जनम मोहे गुजरात ही भेजो
अगले जनम मोहे गुजरात ही भेजोशुक्रवार, जून 22, 2012, 14:19 [IST]
"यात्रा नारियास्तु पूज्यंते रामंते तत्रा देवता" इस प्रसिद्ध श्लोक में महिला की पूजा देवी के रूप में करने की बात कही गई है। गुजरात एक ऐसी जगह है, जहां वाकई में महिलाओं को पूजा जाता है, उनका सम्मान किया जाता है और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए सबसे ज्यादा प्रयास किये गये हैं। देश की सबसे बड़ी समस्या कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ सबसे बड़ी सफलता यहां मिली है।
मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में कहा था, "कन्या भ्रूण की हत्या करने के बजाये, बेटी के जन्म को परिवार का गर्व मानो।" बेटी-बचाओ के साथ नरेंद्र मोदी ने तमाम अभियान शुरू किये। गुजरात आज महिलाओं के लिए काम करने की सबसे सुरक्षित जगह बन गया है। राज्य में बीपीओ की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। इस राज्य में महिलाओं की सुरक्षा को एक ड्यूटी की तरह निभाया जाता है। वहीं अगर अन्य राज्यों में देखें तो कन्या भ्रूण हत्या के साथ-साथ बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों की संख्या ज्यादा है।
करीब एक दशक पहले नरेंद्र मोदी ने 'बेटी-बचाओ' अभियान शुरू किया था। साल दर साल मोदी ने समाज के हर तबके से कन्या के जीवन का महत्व समझने की अपील की। इसके साथ-साथ गुजरात के स्वास्थ्य मंत्रालय ने वेबसाइट www.betivadhaao.com लॉन्च की। इस वेबसाइट के माध्यम से लोगों को अपनी शिकायतें दर्ज करने का प्लेटफॉर्म प्रदान किया गया। इसके माध्यम से प्री-नेटल डायगनॉस्टिक टेक्नीक (रेग्युलेशन एंड प्रीवेंशन ऑफ मिसयूज़) अधिनियम 1994 के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन हुआ, जिसमें इससे संबंधित मुद्दों पर चर्चा हुई।
कुपोषण की समस्या भी हल हो सकती है, लेकिन उसके लिए एक बड़ी शुरुआत की जरूरत है। यह अफसोस की बात है कि देश में तमाम जगह हैं, जहां बेटियों को पैदा होने से पहले मार दिया जाता है। हाल ही में हरियाणा के यमुनानगर में एक महिला डॉक्टर को गिरफ्तार किया गया, जिस पर आरोप था कि वो कन्या भ्रूण हत्या का बिजनस कर रही थी। उसे स्वास्थ्य विभाग की रेड में पकड़ा गया। एक और खबर आयी कि जलगांव के एक डॉक्टर को भ्रूण का लिंग बताने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
और तो और जब भारत में महिलाओं के कंधों पर पुरुषों की जिम्मेदारियां लाद दी जाती हैं, तब कार्यस्थल पर उनकी सुरक्षा एक महत्वपूर्ण मुद्दा होती है। गुजरात की बात करें तो इस राज्य ने साबित कर दिया कि यह महिलाओं के लिए काम करने के लिए सबसे सुरक्षित स्थान है। हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण में वडोडरा दूसरा सबसे सुरक्षित स्थान बताया गया। पहले स्थान पर शिमला था। यह सर्वेक्षण 37 शहरों पर किया गया, जिसमें 6,167 लोगों ने भाग लिया। वडोडरा में सबसे कम क्राइम रेट है और यहां आज तक कोई आतंक हमला नहीं हुआ।
गांधीनगर स्थित एक बीपीओ में सीनियर मैनेजर (सेवा) के रूप में कार्यरत महिला ने गुजरात के बारे में कहा, "गुजरात में बीपीओ उद्योग के बढ़ने का एक सबसे बड़ा कारण यही है कि यहां पर महिलाएं सुरक्षित हैं। बीपीओ कंपनियों में काम करने वाली महिलाएं हमेंशा सुरक्षित शहर चुनती हैं।" पिछले कुछ वर्षों में गुजरात में 20 बीपीओ कंपनियां जुड़ी हैं।
बीपीओ केंद्रों में नाइट शिफ्ट में काम ज्यादा होता है, क्योंकि उनके ज्यादातर क्लाइंट अमेरिका में होते हैं। ज्यादातर कंपनियां महिलाओं को इसलिए नौकरी पर रखती हैं, क्योंकि वो उनकी समस्याएं ज्यादा अच्छी तरह समझती हैं।
गुजरात की सीआईडी (क्राइम) की महिला सेल ने एक विशेष अभियान- 'सवचेती मज सुरक्षा' शुरू किया। इसके तहत महिलाओं के खिलाफ अपराध और यौन उत्पीड़न के प्रति लोगों को जागरूक किया गया। यह अभियान गांव-गांव, शहर-शहर चलाया गया। खास तौर से शिक्षण संस्थानों में।
दूसरी तरफ तमाम अन्य शहरों की बात करें तो दिल्ली रेप कैपिटल बन चुका है। राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के 35 शहरों में से दिल्ली (3,886) में देश का 16 प्रतिशत क्राइम होता है। वहीं हैदराबाद में (1,964) 8.1 प्रतिशत रहा। विजयवाड़ा, जयपुर, फरीदाबाद, लखनऊ, विशाखापट्नम और आगरा में क्राइम रेट तेजी से बढ़ा है।
दिल्ली में कुल अपराध के 23 फीसदी मामले रेपके, 37.7 फीसदी मामले अपहरण के, 14.6 फीसदी दहेज हत्या और 16.5 फीसदी उत्पीड़न के मामले। हैदराबाद में 12.2 फीसदी मामले पति और रिश्तेदारों द्वारा दी जाने वाली यातनाओं के मामले होते हैं। विजयवाड़ा में 16 फीसदी मामले छेड़खानी के और कोलकाता में 7 में से 3 मामले महिला उत्पीड़न के होते हैं।
एक बार अगर महिला की इज्जत लुट गई तो वो कभी वापस नहीं आती। मोदी सरकार के लिए यह गर्व की बात है कि गुजरात ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए इतने बेहतरीन इंतजाम किये हैं।
ASCII codes and symbols - text-symbols
ASCII codes and symbols - text-symbols
ASCII codes and symbols
ASCII codes (American Standard Code for Information Interchange) as they are seen under english Windows. On second picture - you can find Russian/Ukrainian Windows console ASCII codes.
You can type most of ASCII symbols by using Alt Codes.
English ASCII list
Frequently used ASCII codes: #10#13 — Indicates a new line &crarr
#7 — bell (computer beeps)
#26 — Ctrl+Z →
#8 — backspace
#127 — delete
#27 — escape
#32 — space
#9 — tab
#160 — a
#163 — c
#65 — A
#68 — C
#42 — *
Russian ASCII list:
ASCII codes to remember
#10#13 ASCII code that indicates a new line
#8 ASCII code of backspace character
#27 ESCape ascii
#65 A ASCII character code
#160 a ASCII character code
#32 space character's code
#7 bell ASCII code (computer beeps when trying to print that character)I recommend you to remember ASCII code for "a" and "A" character code, as they're most oftenly needed.
ASCII Control Codes:
- NUL (null)
- SOH (start of heading)
- STX (start of text)
- ETX (end of text)
- EOT (end of transmission) - Not the same as ETB
- ENQ (enquiry)
- ACK (acknowledge)
- BEL (bell) - Caused teletype machines to ring a bell. Causes a beep
in many common terminals and terminal emulation programs.- BS (backspace) - Moves the cursor (or print head) move backwards (left)
one space.- TAB (horizontal tab) - Moves the cursor (or print head) right to the next
tab stop. The spacing of tab stops is dependent
on the output device, but is often either 8 or 10.- LF (NL line feed, new line) - Moves the cursor (or print head) to a new
line. On Unix systems, moves to a new line
AND all the way to the left.- VT (vertical tab)
- FF (form feed) - Advances paper to the top of the next page (if the
output device is a printer).- CR (carriage return) - Moves the cursor all the way to the left, but does
not advance to the next line.- SO (shift out) - Switches output device to alternate character set.
- SI (shift in) - Switches output device back to default character set.
- DLE (data link escape)
- DC1 (device control 1)
- DC2 (device control 2)
- DC3 (device control 3)
- DC4 (device control 4)
- NAK (negative acknowledge)
- SYN (synchronous idle)
- ETB (end of transmission block) - Not the same as EOT
- CAN (cancel)
- EM (end of medium)
- SUB (substitute)
- ESC (escape)
- FS (file separator)
- GS (group separator)
- RS (record separator)
- US (unit separator)
Brief
American Standard Code for Information Interchange (ASCII) [æski] - is a character encoding based on English alphabet. Work on ASCII started in 60s with the most recent update in 1986. The ASCII character encoding - or a compatible extension - is used on nearly all common computers, especially personal computers and workstations. At the start encoding was 7-bit (had 128 characters) but with time it was extended to 8-bits (256 characters). ASCII's second part (characters 127-255) is now bound to language. That's why you can see a difference between ASCII characters in english and russian ascii code as shown.
HOW to enter ascii characters by code in browser, notepad, or console?
You can do that by holding ALT key and inputting code of the character you want on the NumPad at the same time. Example: Hold ALT key and press (while holding ALT) next buttons on the NumPad of your keyboard (but enable Num Lock first) 1 then 6 then 9. You have inputted character '©'.
Lowcase word ASCII list:
97 a 98 b 99 c 100 d 101 e 102 f 103 g 104 h 105 i 106 j 107 k 108 l 109 m 110 n 111 o 112 p 113 q 114 r 115 s 116 t 117 u 118 v 119 w 120 x 121 y 122 z
Upcase word ASCII list:
65 A 66 B 67 C 68 D 69 E 70 F 71 G 72 H 73 I 74 J 75 K 76 L 77 M 78 N 79 O 80 P 81 Q 82 R 83 S 84 T 85 U 86 V 87 W 88 X 89 Y 90 Z
Saturday, September 22, 2012
Alt shortcuts list
Alt shortcuts list - alt-codes.org
Alt shortcuts list
Alt codes by name
The next table contains most frequently used text symbols you can input using alt codes, with their names listed.
code symbol description 0176 ° Degree sign 0133 … Three dots 0131 ƒ Function, florin 0134 † Cross sign, dagger 0135 ‡ Double dagger 0137 ‰ Permil, permile, per mile 0140 Œ OE sign, fish 0156 œ Small ce 0191 ¿ Upside question alt symbol 0151 — Dash 0198 Æ Aelig big, AE alt symbol 0230 æ Small aelig, ae alt symbol 0163 £ Pound sign, GBP 0128 € Euro sign, EUR 0165 ¥ Peace, Yen sign, JPY 0162 ¢ Cent sign 0215 × Middle X, x times, multiply alt symbol 21 § Section symbol 15 ☼ Sun, lamp 27 ← Left arrow 26 → Right arrow 29 ↔ Two sided left right arrow alt symbol 24 ↑ Up arrow 25 ↓ Down arrow 23 ↨ Up down double arrow alt symbol 3 ♥ Text heart alt symbol 6 ♠ Spades card alt symbol 11 ♂ Man, male, Mars alt symbol 11 ¶ Paragraph alt symbol
code symbol description 0189 ½ Half, 1/2 0188 ¼ One forth, 1/4 0190 ¾ 3/4 0177 ± Plus - minus, plusminus alt symbol 0179 ³ 3-d degree, third degree alt symbol 0178 ² Second degree, 2-nd alt symbol 0185 ¹ First degree 0186 º Zero degree 0169 © Copyright, copy, C alt symbol 0174 ® Registered, register alt symbol 0153 ™ Trademark, trade, TM alt symbol 0216 Ø Not in, O, zero 0221 Ý Latin Y 127 Δ Delta, difference 7 • Middot, middle point 0208 Ð Big D, Lick, Big tongue 0222 Þ Lick, tongue 30 ▲ Triangle up 31 ▼ Triangle down 16 ► Triangle right 17 ◄ Triangle left 1 ☺ White smiley face, smile alt symbol 2 ☻ Black smiley face, smile alt symbol 13 ♪ Music note alt symbol #1 14 ♫ #2 4 ♦ Diams, Lozenge card 5 ♣ Shamrock, Clubs card 12 ♀ Woman, female, Venus 12 ‼ Attention symbol
पहले तो कुरानमें से महम्मद के बारेमें लिखे गये खराब वर्णन या प्रसंग को निकलवा दो
आग्रह को स्वीकार करते हुए उस ब्लॉग को पढ़ा जिसमे श्री राम राज्य के बारे में पूर्णतया अंट शंट बाते लिखी गयी है. उसको मैंने पढ़ा और कमेन्ट भी किया लेकिन जब निचे कमेन्ट पढ़ा तो मुझे वो ज्ञान के भण्डार लगे अतः मैने सोचा की क्यों न आप लोगो तक उस हरामखोर का ब्लॉग और उस पर दिए गए कुछ चुनिन्दा और अच्छे जबाब आपके पास प्रेषित करू..अतः मै उसे संकलित करके आप पाठक बंधुओ के सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हु ..
मुल्ले द्वारा लिखा ब्लॉग..
आजकल कुछ तथाकथित भ्रष्ट नेता अध्यात्मिक चोला ओढ़कर ,देश की बहुसंख्यक जनसँख्या को प्रायोजित करते हुए , धार्मिक उन्माद और विद्रोही पैशाचिक हिंसा के लिए प्रेरित करते हुए ,देश में धार्मिक वितृष्णा,और अलगावबाद का धुंआ फैला रहे हैं.
ये लोग एडोल्फ हिटलर की तर्ज पर नाज़ीवाद/नस्लवाद/शुद्द आर्यन जातिवाद जैसा उग्र और हिंसक अभियान चलाकर देश से “अल्पसंख्यक नस्लों/जातियों/धर्मों को समूल समाप्ति” का “दिव्यस्वप्न” देख रहे हैं,और एक पूर्व नियोजित षड्यंत्र के तहत ये भारत में “पुन: राम राज्य स्थापना” के महान धार्मिक कार्य के लिए लोगों को सम्मोहित करते उन्हें हिंसा और हत्या जैसे जघन्य पाप करने के लिए उकसा रहे हैं.
अब हम वास्तविक राम राज के विषय में विचार करते हैं,जहां एक घाट पर सिंह और बकरी आदि एक साथ पानी पीते थे,उस राज में जानवरों की सोच और जीवन शैली इतनी अहिंसक और शांतिपूर्ण थी,ऐसे राम राज को लाने के लिए हम हिंसा,हत्या और अत्याचार को माध्यम बना रहे हैं,क्या हम हिंसा के बल पर पहले जैसा राम राज प् सकते हैं? शायद कभी नहीं.
इनकी सोच में “राम राज” एक हिंसक और विघटनकारी राज रहा होगा .शायद वैसा राम राज,जहां एकलव्य को अपनी ऊँगली इसलिए गुरु दक्षिणा में देनी पड़ती है,क्योंकि वो अछूत और निम्न वर्ग से सम्बंधित था.
ऐसा राम राज जहां अस्पृश्य और अछूत जातियों को अलग बर्गीकृत किया जाता था,उन्हें मंदिरों में प्रवेश वर्जित हो ,वेदों के शव्द सुनने का अधिकार न हो,यदि सुन लें तो उनके कानों में पिघला सीसा दाल दिए जाने जैसे दंड विधान हों.जहाँ सत्य के लिए शम्बूक को गर्दन कटानी पड़ जाए.
ऐसा राम राज्य जहां रावण का प्रचंड प्रकोप हो,स्त्रियों का खुलेआम अपहरण करे,और जहां अपनी ही स्त्री को पाने के लिए,एक भीषण युद्ध करना पड़े,जहां स्त्रियों की अस्मिता और सुरक्षा सदैव दांव पर लगी हो.जहां राक्षस हों,दैत्य हों,सूपनखा हो,रावण हों और असुरों का बोलबाला हो.
क्या ऐसा राम राज हो? जहां एक भगवान् एक स्वर्ण मृग की मारीचिका को पहचानने में अक्षम हो,स्वर्ण मोह में उस मृग को पाने के लिए दौड़ पड़े,और जंगल में अपनी स्त्री को असुरक्षित छोड़ जाने में भी किंचित संकोच न करे.बस भाग पड़े,सोने की चाह में.
ऐसा राम राज,जहां खुद भगवान् की स्त्री सुरक्षित नहीं,उसका अपहरण कर लिया जाए,भगवन अपनी स्त्री की सुरक्षा न कर सके………….और एक धोभी के लांछन को सुनकर अपनी निष्पाप स्त्री को अकेला घर से निकाल दे.
एक भगवान् सोना जैसी भौतिक वस्तु को पाने के लिए दौड़ पड़े,अपनी स्त्री को जंगल में असहाय छोड़कर,……………..यदि स्वर्णमृग के पीछे भागने में भगवान् का मोह मात्र सोना पाने की अदम लालसा न भी रही हो,तो दूसरा उद्देश उसका शिकार मांस के लिए करना रहा होगा…………….ऐसा राज जहां भगवान् खुद जीव हत्या या जीवों के प्रति हिंसा पर उतारू हो…..वो राम राज चाहिए इन्हें.
पर यहाँ ये प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है,कि “राम राज्य” कैसा था,यहाँ मेरा उद्देश्य किसी धर्म अथवा समुदाय के प्रति बुरी भावना,अथवा नकारात्मक सोच रखने से नहीं है,मै विश्व के सभी धर्मों के प्रति पूरी निष्ठां,आस्था और सम्मान रखता हूँ,मेरा विचार है,कि विश्व का कोई भी धर्म बुरा नहीं है,सभी धर्म मानव कल्याण और शान्ति का समर्थन करते हैं,विश्व के किसी भी धर्म में ,दुसरे धर्मों के प्रति अनादर,विद्वेष,वितृष्णा का भाव नहीं है.
किसी भी धर्म के नियम सिद्धांत ,दूसरे धर्म के लोगों की हत्या करना,उन्हें यातना देना,उनकी संपत्तियों को नुक्सान पहुंचाने का समर्थन नहीं करते,और सभी धर्मों को यदि गंभीरता पूर्वक अध्यन किया जाए,तो एक अद्भुद और अप्रत्याशित परिणाम मिलता है,कि सभी धर्मों का मूल उत्पत्ति एक ही स्थान और उद्देश्य से है,सभी एक दूसरे से जुड़े हैं,अथवा आश्रित हैं.ये उस हरामखोर की लेखनी है इतना पढ़कर आप लोग उसकी मानसिक स्थिति जान गए होंगे पर मै राष्ट्रवादी मित्रो का जबाब अब प्रेषित करता हु..
सबसे अच्छा जबाब श्री वासुदेव त्रिपाठी जी ने दिया है जो निम्नवत है..
एक कहावत कहते हैं- आसमान की ओर मुंह करके थूकोगे तो थूक आकर मुंह पर ही गिरेगा…!! ये कहावत यदि कभी सुनी होती तो शायद आप आसमान पर थूकने की मूर्खता नहीं करते। रामराज्य की स्थापना करने वाले सभी धर्मों के नाश का सपना देखते हैं…, दारुल-इस्लाम जिनकी आस्था का केंद्र हो उनके मन में रामराज्य को लेकर यह भय बैठना स्वाभाविक ही है। स्त्री का अपहरण और युद्ध रामराज्य मे नहीं रावणराज्य मे हुआ था और उस रावण राज्य का अंत करके रामराज्य की स्थापना हुई थी। बाकी धर्म संबंधी व्याख्या उस व्यक्ति से करना मूर्खता होगी जिसे एकलव्य और स्वर्णमृग तक के विषय में मउआ-मूरी कुछ नहीं पता… दुनिया तो नहीं दिखाई देगी लेकिन दुनिया देखने के आँखें और प्रकाश होना आवश्यक है यह नीचे कुछ मित्रों ने स्पष्ट कर दिया है।
रामराज्य का अर्थ सदैव रावणराज्य का अन्त करना रहा है और आज भी है। इसका किसी जाति या व्यक्ति से बैर नहीं है। इसका बैर गजनवी जैसे उन हत्यारों से है जो अरब की लुटेरी मानसकिता लेकर आते हैं और यहाँ हजारों सोमनाथ तोड़कर लाशों को रौंदते हुए लूट का सामान ऊंटों पर भरकर अल्लाह-हु-अकबर चीखते हुए चल देते हैं, अथवा तैमूर जैसे उन लुटेरों से रामराज्य का वैर है जो गाँवों मे आग लगाकर की गयी लूट से अमीर बनने का ख्वाब लेकर आते हैं। रामराज्य का विरोध मोहम्मद गोरी जैसे दगाबाजों और सिकंदर लोदी जैसे भेंडियों से भी है। रामराज्य बाबर जैसे जिहादियों का भी घोर शत्रु है मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाना जिनका दीन रहा है। अकबर जैसे मीनाबाजारी छिछोरे बलात्कारी, गुरु का सर कटवा लेने वाले नराधम जहाँगीर अथवा गुरु के दो मासूम बच्चों को जिंदा दीवार मे चुनवा देने वाले औरंगजेब जैसे दरिंदे भी इस रामराज्य को झेल नहीं सकते। ऐसे मे रामराज्य से उनके पेट मे दर्द होना स्वाभाविक ही है जो आज भी इन नरधमों को अपना नेता आदर्श, मसीहा मानते हैं।
रामराज्य तो प्राणिमात्र के परस्पर प्रेम की कहानी है जिसे “सब नर करहि परस्पर प्रीती” जैसे शब्दों मे गाया जाता है… इसे वे कैसे सहन कर सकते हैं जिनके लिए एक किताब ही आखिरी दीवार हो जिसके पार देखना, उनके लिए दोज़ख की आग मे जाना है। आप इनकी आयतों पर विश्वास नहीं करते या कर पाते तो ये आपको दोज़ख की आग मे हमेशा के लिए जलाने की धमकी देते हैं (कुरान- अल-बकरा 24/126/161/162… आले-इमरान 10-12… अल-निसा 51-57… अल-आराफ़ 40)। आपको ये चिंता सता रही है कि खुदा को सोने के हिरण से मोह कैसे हो गया… जबकि ऐसा हुआ नहीं इसका प्रमाण स्वयं रामायण ही है, और यदि आपको फिर भी लगता है तो भी फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वो खुदा एक आम आदमी का जीवन जीने मे न शरमाता है और न झुँझलाता है। फिक्र थोड़ी उस खुदा पर फरमाइए जो एक खूंखार तानाशाह की तरह चिढ़ उठता है यदि कोई उसे किसी और रूप मे पूजे… किसी और को खुदा मान ले। ये तानाशाह खुदा इतने पर दोज़ख की आग मे भून डालने का फरमान सुना डालता है। उसके लिए हत्या लूट बलात्कार सब कुछ क्षम्य है लेकिन अपनी तानाशाही को चुनौती (शिर्क) बर्दाश्त नहीं… ये सबसे बड़ा पाप है ( सूरा अल-निसा 48)। और ज्यादा तो फिक्र तो आपको तब होनी चाहिए जब ये खुदा यहूदियों-ईसाइयों को मुसलमानों का खुला दुश्मन बताते हुए उन्हें गरियाने मे अल-माइदा जैसे सूरे के सूरे उतार डालता है। काफिरों के कत्ल का हुक्म दे डालता है… यही नहीं उनके माल को भी लूटने का आदेश देता है। गनीमत का माल कही जाने वाली लूट को कुरान मे जगह जगह हलाल (जायज़) कहा ही गया है, इसे लेते भी कैसे थे… tabari (8-122) देखिये- मुहम्मद ने बंधक बनाए गए खैबर के मुखिया से माल उगलबाने के लिए आदेश दिया कि इसे तब तक प्रताड़ित करो जब तक ये बता न दे इसके पास क्या है। जुबैर ने उसकी छती पर जलती हुई आग रख दी जब तक वो मर नहीं गया.! तब अल्लाह के पैगम्बर ने उसे मुसलमानो को दे दिया जिन्होंने उसक सर काट डाला।
धोबी के लांछन को सुनकर राम ने सीता को निकाल दिया इतना तो आपने वाल्मीकीय रामायण से उठाकर कुछ मुल्ले-मौलवियों या सेकुलरिस्टों से सुनकर रख दिया लेकिन उसके बाद की कहानी कहने क्या एक और नबी उतरेंगे.?? अगर इतनी ही कहानी मे रहना चाहते हैं तो भी चलिए श्रीराम ने प्रजाहित मे अपनी पत्नी के साथ अन्याय किया इतना ही तो कह सकते हैं आप?? अब थोड़ी उसकी भी फिक्र कर लीजिए जब अपने मुंह बोले बेटे जैद की बीबी पर खुदा के फरिश्ते का दिल आ जाता है और अल्लाह फौरन आयत नाज़िल कर देता है जैद की बीबी जैनब अब जैद को हराम और पैगम्बर को हलाल हो जाती है। यहाँ मैं किसी तरह सीमा उल्लंघन नहीं कर रहा हूँ… आपको पता ही होगा यह सूरा अल-अहज़ाब आयत 37-39 की कहानी है जिसमे अल्लाह अपने रसूल की दिल की बात प्रकट करता है। यहाँ तक भी गनीमत थी… लेकिन जंग में औरतों को बतौर लूट और गनीमत का माल उठा ले आना और उन्हें रखैल बनाकर संभोग करना या फिर बेंच देना कितना जायज़ है..?? जंग मे हाथ लगी 17 साल की खैबर औरत सैफीया के बारे मे तो सहीह बुखारी (5:59:512) कहती है- पहले वो दहया के हिस्से में गई थी लेकिन फिर उसे अल्लाह के रसूल ने ले लिया था। सैफ़िया के बदले उसे 9-10 साल की सैफ़िया की दो भतीजी दे दी गईं थी ऐसा सहीह मुस्लिम बताती है। कुरान सूरा अल-निसा आयत 24 भी तो खुली जंग मे हाथ लगी औरतों के उपभोग की छूट देती है भले ही वे विवाहित हों.! आपको ये सोचकर भी उस खुदा की मानसिकता के बारे में चिंता नहीं होती कि ये आयत कैसे उतरी थी.? हदीस अबू-दाऊद (2150) बताती है कि ये आयत तब उतरी जब मुसलमानों ने अल्लाह के पैगम्बर से जंग मे हाथ लगी औरतों के उनके बन्दी पतियों के सामने संभोग करने की इच्छा जाहिर की। खुदा ने पर्मिशन दे दी ऐसे बलात्कार की और आपको ऐसे खुदा पर सोच नहीं आया..?? सहीह मुस्लिम (किताब 8, आयत 3371) मे मुसलमान अल्लाह के रसूल से पूंछते हैं कि हमने कुछ बेहतरीन अरब औरते बंधक बनाई हैं, हम चाहते हैं कि हम उनके साथ अज्ल (बाह्य वीर्यपात) संभोग करना चाहते हैं ताकि वो गर्भवती न हों क्योंकि हम उन्हें बैंचकर दाम चाहते हैं। (रसूल ने अज्ल से तो मना किया {इसीलिए मुसलमान गर्भनिरोध नहीं करते और जनसंख्या बिस्फोट करते जा रहे हैं} लेकिन बंधक औरतों के साथ संभोग या बैंचने से नहीं! क्योंकि यह लूट का हलाल माल था, इन्हें लौंडी कहते हैं। यह शब्द मेरा नहीं कुरान का है)
….क्षमा चाहता हूँ मित्र..!! मैं आपके लेख से बड़ी प्रतिकृया लिख गया… देखा तो रुकना पड़ा… वरना जानकारी तो अभी बहुत बाकी है… जैसे संभोग करने से मना करने पर औरत को फरिश्तों द्वारा शाप दिया जाना (बुखारी)… उसे कमरे मे बंद कर देना… मारना (कुरान अल-निसा, 34)..! अमूमन मैं राजनैतिक मुद्दों पर ही बोलता हूँ, सम्प्रदायगत बहस मे पड़कर लोगों की आँखें खोलकर दिल तोड़ता नहीं हूँ किन्तु फिर भी आप जबाब मे मुझे मेहर और हिस्सेदारी की दूकानदारी मत बताइएगा…. या फिर अपना कोई जाकिर नाइक स्टाइल का जोड़-तोड़…क्योंकि मैंने सूरा-बकरा की आयत 106 भी पड़ी है और मुझे ये भी पता है तक़या क्या होता है। रामराज्य कभी भी नस्ल के आधार पर कत्ल की नहीं सोच सकता क्योंकि गोरी-गजनी के दीवाने आज भले ही शरीयत का शोर मचा रहे हों किन्तु फिर भी वे हमारी ही नस्ल के हैं जिहादी अत्याचारियों ने जिनके बापों की गर्दन पर तलवार रखके अथवा माँओं को गनीमत का माल समझकर बलात्कार के द्वारा मुसलमान बनाया था। दमिश्क मे आज भी एक खंभे पर लिखा है कि यहाँ हिन्दुस्तानी औरतें 2-2 दीनार मे बेंची गईं। रामराज्य तो नस्ल क्या मनुष्य मात्र के परस्पर प्रेम का साक्षात्कार है- “बयरु न कर काहू सन कोई” और “सब नर करहिं परस्पर प्रीती”
…साभार!!
इसके बाद मैंने भी अपनी अल्प बुद्धि से जबाब देने की कोसिस की जो की निम्नवत है..
सर्व प्रथम आप ने कहा की राम राज्य में एकलव्य की अंगुली कटी गयी.. हसी आती है आप के ज्ञान पर.. और वैसे भी द्रोणाचार्य कभी हिन्दुओ के सम्माननीय नहीं रहे ..
फिर कहा की एक सुदर को वेद पाठ सुनने पर उसके कान में सीसा डाला गया .. ये बात न तो बाल्मीकि रामायण में है न ही राम चरित मानस में है ये पेरियार की लिखित तमिल रामायण में है अतः लगता है की आपने रामायण तो कभी पढ़ी नहीं बल्कि उसका क्रिटिक्स पढ़ा है..
तीसरा आप ने कहा की श्री राम ने स्वर्ण मृग के कारन अपने पत्नी को असुरक्च्चित छोड़ दिया ये भी आप के अल्प ज्ञान को दर्शाता है राम उस मृग के पीछे से जाने से मन कर रहे थे पर माता सीता के असीम अनुरोध पर उनकी इच्छा के कारन उस मृग के पीछे गए
चौथी बात आप ने कही की वो खुद राजा थे और अपनी पत्नी को नहीं बचा पाए परन्तु आपकी नीच बुद्धि में ये बात मई डाल दू की उस समय न तो वो राजा थे न राजकुमार वन में आदिकालीन जीवन बिता रहे थे और साधन हिन् होने के बावजूद भी उन्होंने अपनी पत्नी को बचने के लिए युद्ध किया ..
फिर आपने लिखा की एक औरत के लिए उन्होंने इतना बढ़ा युद्ध किया किन्तु मामला एक औरत का नहीं होता यदि एक औरत के अपहरण पर आप चुप रहेंगे तो अगले दिन अगली औरत का अपहरण होगा इसलिए आप की ये बात विवेकशील ज्ञान से परे है..
फिर आप ने लिखा की भारत में सुद्रो को बहुत परेशां किया गया है.. लेकिन आपको याद दिला दू की भारत में महाभारत को लिखने वाले द्वैपायन व्यास जन्म से सुदर थे पर महान ब्रह्मण का दर्ज़ा उन्हें मिला…
रामायण के रचयिता श्री बाल्मीकि जी भी जन्म और कर्म से पहले सुदर थे पर बाद में महान ब्रह्मण का दर्ज़ा मिला
भारत में शंकराचार्य परंपरा के जनक श्री आदि शानाकराचार्य के गुरु वाराणसी के चंडाल नरेश थे
महान कृष्णभक्त आदरणीया मीरा बाई के गुरुदेव संत रविदास जी थे वो भी एक सुदर थे जबकि मीरा बाई राजपरिवार की थी..
अतः आप जान बुझकर उलटी पुलती बाते न करे भारत में सुदरता की जन्म आधारित शुरात करने वाले मुल्ले है .. सन ८०० से पहले पूर्णतया कर्म आधारित व्यवस्था थी उदहारण के लिए
सम्राट चन्द्रगुप्त सम्राट अशोक महेंद्र इत्यादी जाती से कोइरी थे पर राजा बने
सम्राट आदिगुप्त समुद्रगुप्त कुमार गुप्त जाती से वैश्य थे पर सन ७०० तक राजा रहे …
अतः झूठ का प्रचार और प्रसार बंद करो…. वैसे तुम मुल्ला लग रहे हो और मुल्लो में झूठ बोलना धर्म में शामिल है जिसे ताकईया कहते है सायद तुम उसी काम में लगे हो….इसके बाद श्री दिनेश जी ने कमेन्ट किया है जो निम्नवत है…
धर्म न माने आपका, उसका कर दो कत्ल।
हमें खुदा ने किसलिये, दी है ऐसी अक्ल??
पाप करो पाओ क्षमा, बढ़ेंगे निश्चित पाप।
न्यायी कैसे बन गये, अरे खुदा जी आप।।
पहिले भारी पाप कर, फिर ले माफी माँग।
धर्म ग्रन्थ में है लिखा, खुदा करेगा माफ।।
लेकर तेरे नाम को, शत्रु दुख, ले प्राण।
नाम खुदा का कर रहे, वह पापी बदनाम।।
दिल में मुहर लगाय के, पापी दिया बनाय।
दोष नहीं कुछ जीव का, पापी खुदा कहाय।।
जो उसके अनुयायी हैं, बस उसको उपदेश।
मारो, काटो, लूट लो, दूजे मत के शेष।।
क्षमा पाप से यदि करे, सब पापी बन जाय।
इसीलिये संसार में बढ़ हुआ अन्याय।।
करे प्रसंशा स्वयं की, वह कैसा भगवान।
मुझको तो ऐसा लगे, खुदा में है अभिमान।।
मेरे मत के लोग ही, जा पायेंगे स्वर्ग।
दूजे मत के वास्ते, बना दिया क्यों नर्क?
दूजे मत अनुयायी जो, काफिर देंय पुकार।
ऐसे तो बन जायगा, काफिर यह संसार।।
जिसको चाहे दे दया, जिसपर चाहे क्रोध।
पक्षपात यदि जो करे, नहीं खुदा के योग्य।।
मारा मेरे भक्त को, दोजख में दे डाल।
मारे मेरे शत्रु को, स्वर्ग जाय, तत्काल।।
दुष्ट हो अपने धर्म का, उसको मित्र बनाय।
सज्जन दूजे धर्म का, उसके पास न जाय।।
दूजे मत का इसलिये, उसको दिया डुबाय।
जो उसके अनुयायी हैं, उसको पार कराय।।
करवाये भगवान सब, पुण्य होय या पाप।
फल क्यों न पाये खुदा, चाहे हो अपराध??
पक्षपात कहलायगा, फल यदि खुदा न पाय।
क्षमा खुदा को यदि मिला, तो यह कैसा न्याय।।
जिस फल से पापी बने, लगा दिया क्यों वृक्ष।
जिसके खाने के लिये, बात नहीं स्पष्ट।।
यदि स्वयं के वास्ते, तो कारण बतलाय।
आदम से पहिले उसे, खुदा नहीं क्यों खाय।।
बारह झरने थे झरे, शिला पे डण्डा मार।
ऐसा होता अब नहीं, क्यों विकसित संसार??
निन्दित बंदर बनोगे, कहकर दिया डराय।
झूठ और छल खुदा जी, आप कहाँ से पाय।।
हुक्म दिया औ हो गया, कैसे हुआ बताय।
किसको दिया था हुक्म ये, मेरी समझ न आय।।
पाक स्थल जो बनाया, क्यों न प्रथम बनाय।
प्रथम जरूरत नहीं क्या, या फिर सुधि न आय।।
नहरें चलती स्वर्ग में, शुद्ध बीबियाँ पाय।
इससे अच्छा स्वर्ग तो, पृथ्वी पर मिल जाय।।
कैसे जन्मी बीबियाँ, स्वर्ग में, आप बताय।
रात कयामत पूर्व ही, उन्हे था लिया बुलाय।।
औ उनके खाविन्द क्यों, नहीं साथ में आय?
नियम कयामत तोड़कर, किया है कैसा न्याय??
रहे सदा को बीबियाँ, पुरुष न रहे सदैव।
खुदा हमारे प्रश्न का शीघ्र ही उत्तर देव??
मृत्य को जो जीवित करे, औ जीवित को मृत्य।
मेरा यह है मानना, नहीं ईश्वरीय कृत्य।।
किससे बोला था खुदा, किसको दिया सुनाय?
बिना तर्क की बात को, कैसे माना जाय?
खुदा न करते बात अब, कैसे करते पूर्व??
तर्कहीन बातें बता, हमको समझे मूर्ख।।
हो जा कहा तो हो गया, पर कैसे बतलाय?
क्योंकि पहिले था नहीं, कुछ भी खुदा सिवाय।।
बिना तर्क की बात को, कैसे माना जाय??
तौबा से ईश्वर मिले, और छूटते पाप।
इसी सोच की वजह से, बहुत बड़े अपराध।।
ईश्वर वैदक है नहीं, यह सच लीजै मान।
सच होता तो बोलिए, क्यों रोगी भगवान??
जड़ पृथ्वी, आकाश है, सुने न कोई बात।
क्या ईश्वर अल्पज्ञ था, उसे नहीं था ज्ञात??
बही लिखे वह कर्म की, क्या है साहूकार?
रोग भूल का क्या उसे, इस पर करें विचार??
आयु पूर्व हजार थी, अब क्यों है सौ साल?
व्यर्थ किताबें धार्मिक, मेरा ऐसा ख्याल।।
सच सच खुदा बताइये, क्यों जनमा शैतान?
तेरी इच्छा के विरुध, क्यों बहकाया इंसान??
बात न माने आपकी, नहीं था तुमको ज्ञात।
तुमने उस शैतान को, क्यों न किया समाप्त??
मुर्दे जीवित थे किये, अब क्यों न कर पाय?
मुर्दे जीवित जो किये, पुनर्जन्म कहलाय।।
कहीं कहे धीरे कहो, कहते कहीं पुकार।
यकीं आपकी बात पर, करूँ मैं कौन प्रकार??
अपने नियम को तोड़ दे, मरे मैं डाले जान।
लेय परीक्षा कर्म की, कैसा तूँ भगवान??
हमें चिताता है खुदा, काफिर देय डिगाय।
कैसे ये बतला खुदा, तूँ सर्वज्ञ कहाय??
बिना दूत के क्या खुदा, हमें न देता ज्ञान?
सर्वशक्ति, सर्वज्ञ वह, मैं कैसे लूँ मान??
बिना पुकारे न सुने, मैं लूँ बहरा मान।
मन का जाने हाल न, कैसा तूँ भगवान??
व्यापक हो सकता नहीं, जो है आँख दिखाय।
वह जादूगर मानिये, चमत्कार दिखलाय।।
पहुँचाया इक देश में ईश्वर ने पैगाम।
ईश्वर मानव की कृति लगता है इल्जाम।।
श्री भरोदिया जी ने भी अपने अपने कमेन्ट को इसमें शामिल करने का आग्रह किया है अतः मै उसे भी आप लोगो के सम्मुख रख रहा हु
सैमा बहेन नमस्कार
पहले तो मैं आप को दाद देता हुं की आप समाज को सुधारने का जजबा रखती है, वरना बूरके में कैद करनेवाले समाज में ये बहुत मुश्कोल हो जाता है । धर्म समाज का बहुत बडा अंग है । और धर्मों को सुधारना जरूरी भी है ।
लेकिन शरुआत हमेशां घर से करनी चाहिए । अपना घर पहले सुधर जाए तो दुसरे घर को सुधारना आसान बन जाता है । कोइ ताना तो ना मारे पहेले आपना संभाल ।
आप को एक बात बताना चाहुंगा । भारत की बात नही है, विदेश का एक मुल्ला ईस्लाम से तंग आकर ख्रिस्ति बन गया । क्यों की वो मुल्ला था तो कुरान असली भाषामें पढ सकता था. उसने शब्दसः अंगेजीमें अनुवाद कर दिया । पूरा का पूरा कुरान नेट पर रख दिया । कोमेंट देनेवालों ने गालियों की बौछार कर दी । कुरान में ऐसे खराब प्रसंग होते हैं किसी को मानने में नही आ रहा था । या तो मान के भी अंधश्रध्धा के कारण विरोध कर रहे थे ।
बहेन जी, पहले तो कुरानमें से महम्मद के बारेमें लिखे गये खराब वर्णन या प्रसंग को निकलवा दो । वो सब लिखा गया था तब प्रजा बहुत ही जाहिल थी आज के मुकाबले । लिखते समय सामाजिक परिस्थियां रही होगी । और लिखने वाले आज के मुल्ला के मुकाबले बहुत ही पिछडे हुए थी । वो पूराने थे तो ईसी वजह से अहोभाव मे आ कर सर पे नही बैठाया जा सकता । हर काल खंडमें मौजुदा मुल्ला ही सही साबित हो सकता है । उन की ही जिम्मेदारी होती है धर्म को सही दिशा देने की । हम या आप कुछ नही कर सकते ।
हालांकि ये मूल लेखन नहीं है और मैंने बिना पूछे लोगो के विचार यहाँ पर संकलित किया है अतः उन लोगो से माफी परन्तु ज्ञानवर्धक लगा इसलिय पोस्ट कर दे रहा हु…..अन्त में मै उस मुल्ले लेखक का नाम भी लिख दे रहा हु जिसकी बदौलत उसके पैगम्बर की इज्जत उसी के ब्लॉग पर डूब गयी..MALIK SAIMA …
COMPUTER Memory Units ~ Its So Long Then You Know it !!
पीसी में ब्राउजर हिस्ट्री कैसे डिलीट करें?
रोज ढेरों इंटरनेट फाइलें सर्च करने के बाद हम अक्सर लैपटॉप या फिर पीसी को शटडाउन कर देतें हैं और अगले दिन फिर से रोज की तरह इंटरनेट का प्रयोग करने लगते हैं लेकिन अगर आप इंटरनेट का प्रयोग अपने पर्सनल पीसी में कर रहें हैं तो कोई बात नहीं लेकिन साइबर कैफे या फिर किसी दूसरे पीसी में इंटरनेट प्रयोग करने पर थोड़ा ध्यान देना जरूरी है। क्या आप जानते हैं इंटरनेट में नेट सर्फिंग के दौरान ब्राउज की गई फाइलों की हिस्ट्री सेव होती रहती है जो शुरुआत में तो पीसी में कोई असर नहीं डालती लेकिन धीरे धीरे जैसे इसका साइज थोड़ा ज्यादा होने लगता है ये आपके पीसी की स्पीड को कम कर देती है इसलिए समय-समय पर पीसी की हिस्ट्री को डिलीट करते रहने चाहिए।
फॉयर फॉक्स में हिस्ट्री डिलीट करने के लिए दो तरीके हैं पहला आप डायरेक्ट ctrl+h की दबाएंगे तो लेफ्ट में हिस्ट्री का पैनल ओपेन हो जाएगा। जिसमें आप दिन के हिसाब से चाहें तो पूरी हिस्ट्री डीलीट कर सकते हैं।
एक दुष्ट मुल्ले के ब्लॉग पर राष्ट्रवादी मित्रो द्वारा दिया गया उत्तर–एक संकलन « ghumantu
Saturday, September 15, 2012
DRIVER_IRQL_NOT_LESS_OR_EQUAL - Windows 7
DRIVER_IRQL_NOT_LESS_OR_EQUAL - Windows 7
There are many reasons why your system may crash due to a DRIVER_IRQL_NOT_LESS_OR_EQUAL STOP or BSOD (Blue Screen of Death) error, so this guide will provide some common tips that may solve the problem, along with some troubleshooting advice.
This error message means that the system attempted to access pageable memory using a kernel interrupt request level (IRQL) that was too high. This is one of the most common errors and has many possible causes, but the most common scenarios are:
- Faulty drivers
- Hardware issue
- Anti-virus software problem
- Overclocking too far
If you notice any filenames mentioned on the blue screen, googling for the filename may indicate if it is attached to any driver or software package. This can pinpoint the driver which you need to update. SCSI, Network and graphics drivers are often the offenders if this is a driver problem - so you can try updating all your drivers manually if it is difficult to track down the problem.
It is possible to analyse a "dump file" which contains more detailed information about the crash. These dump file are located in C:\Windows\MiniDump and can be opened using diagnostic packages or posted to the forums for analysis by an expert. This extra information will often provide a good clue to the BSOD crash.
If you aren't able to boot in to Windows 7 to fix the problem, you may be able to boot using safe mode (press F8 during startup, or follow this guide) and access Windows again. If this still doesn't work, try selecting the "Last known good configuration" option. If this also fails, using system restore to roll back your system a few days may be a valid option. You can use your Windows 7 installation DVD to boot to the recovery options menu, then select "System Restore".
Hardware issues are more difficult to diagnose, but if you have resorted to a clean install of Windows 7 and the problem still occurs, then it is a possibility. Memory is a frequent culprit, so you can use a tool like MemTest (or the Windows 7 memory diagnostics) to check your RAM for problems. Replacing components is often the only foolproof way to check for faults.
Memory Testing - Windows 7
Memtest86+ Memory Testing - Windows 7
If you require a more detailed memory test than that provided by the default Windows Memory Diagnostics, Memtest86+ is an excellent option. It is a well maintained, freeware application which can run on almost any hardware. This is a useful tool to run when troubleshooting suspect memory problems.
First, visit the Memtest86+ homepage to download the software. If you have a blank USB stick, it is recommended that you download the Auto-Installer for USB Key version. Otherwise, you can download the Pre-Compiled Bootable ISO and burn it to CD.If you are creating a USB version:
Once downloaded, open up the zip file and run the .exe file to begin the installation process. You'll need accept the license agreement, then insert a blank USB drive and make sure the "format" box is checked (this will remove any data on the USB drive). When you are ready, click the Create button:
If you are creating the CD ISO version:
Open the zip download and extract the ISO file, then right click the ISO file and select Open With > Windows Disc Image Burner. Insert a blank CD, select the appropriate drive and then click Burn:
Now, restart your computer and boot from the CD/USB Drive. Within a few moments, memtest86+ will load and immediately begin testing. You can leave this running for as long as you like, but wait for around 10 passes without fault before stopping the test, just to be sure. This could take many hours, so it is suggested to leave the test running overnight:
If you have any errors, it would be beneficial to detect which stick(s) of memory (or slots) are causing the problem. You will need to test all memory sticks individually (where there are no motherboard requirements for matched pairs).
Each stick should be tested in a new slot, so that if errors occur you can isolate if the problem is due to a memory stick or slot. For example, if RAM stick #2 fails in slot #2, try stick #1 in slot #2, then stick #2 in slot #1. This swapping should then be able to identify the problem further.
How to use CHKDSK (Check Disk) - Windows 7
How to use CHKDSK (Check Disk) - Windows 7
Windows 7 includes a disk checking tool called CHKDSK which is similar to the "scandisk" tool from older versions of Windows. This application scans your hard drives for errors such as lost sectors, bad sectors and corruption.
You can launch CHKDSK using two methods (the former being the easiest):
Graphical Interface:
Open the Computer option from the start menu, which will display all of the drives available to scan on your PC:
Then, right click on the drive you wish to scan for errors and select Properties:
Now click the Tools menu, then Check Now under the error-checking section:
You have several options within the check disk tool. It is always recommended you leave the "automatically fix file system errors" box checked, as this repairs and problems found. If you want to perform a deeper scan, tick "scan for and attempt recovery of bad sectors". This second option takes longer, but is worth doing if you suspect a drive problem. Once you are configured, click Start:
If you try to check a disk that is currently in use, you will receive a message asking if you wish to schedule a scan. Accepting this will perform the scan next time you restart your PC:
Command Prompt Method:
Alternatively, you can use the command prompt to perform a scan on a drive letter of your choice by running "chkdsk x:" where x is your drive letter. The manual scan options are:
- /F Fixes errors on the disk.
- /V On FAT/FAT32: Displays the full path and name of every file on the disk. On NTFS: Displays cleanup messages if any.
- /R Locates bad sectors and recovers readable information (implies /F).
- /L:size NTFS only: Changes the log file size to the specified number of kilobytes. If size is not specified, displays current size.
- /X Forces the volume to dismount first if necessary. All opened handles to the volume would then be invalid (implies /F).
- /I NTFS only: Performs a less vigorous check of index entries.
- /C NTFS only: Skips checking of cycles within the folder structure.
- /B NTFS only: Re-evaluates bad clusters on the volume (implies /R)
"CHKDSK x: /F /R" would perform a full scan (including bad sectors) and attempt to fix them.
कोयला घोटाला अब स़िर्फ संसद के बीच बहस का विषय नहीं रह गया है
यह खामोशी देश के लिए खतरनाक है :
कोयला घोटाला अब स़िर्फ संसद के बीच बहस का विषय नहीं रह गया है, बल्कि पूरे देश का विषय हो गया है. सारे देश के लोग कोयला घोटाले को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि इसमें पहली बार देश के सबसे शक्तिशाली पद पर बैठे व्यक्ति का नाम सामने आया है. मनमोहन सिंह कोयला मंत्री थे और यह फैसला चाहे स्क्रीनिंग कमेटी का रहा हो या सेक्रेट्रीज का, मनमोहन सिंह के दस्तखत किए बिना यह अमल में आ ही नहीं सकता था. मनमोहन सिंह कहते हैं कि वह पाक-सा़फ हैं. अपनी नज़र में हर व्यक्ति पाक-सा़फ होता है. आज तक किसी अपराधी ने, न अदालत के बाहर और अंदर यह कहा कि वह अपराधी है. हम मनमोहन सिंह को अपराधी नहीं कह रहे हैं, बल्कि अपराधियों के समूह का शहंशाह कह रहे हैं. मनमोहन सिंह ने सारे प्रजातांत्रिक तरीकों को समाप्त करने का शायद फैसला ले लिया है. इसलिए उनकी पार्टी के एक सांसद संवैधानिक संस्था सीएजी पर सवाल उठा रहे हैं. पहले मनमोहन सिंह की पार्टी के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने सीएजी का मजाक उड़ाया और कहा कि सीएजी को शून्य बढ़ाने की आदत हो गई है. अब कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह कहते हैं कि सीएजी के पद पर आसीन विनोद राय की आकांक्षा पुराने सीएजी टी एन चतुर्वेदी जैसी हो गई है. अगर कांग्रेस पार्टी की बात मानें तो दिग्विजय सिंह का सार्वजनिक अपमान कांग्रेस पार्टी द्वारा ही हुआ. उनसे कहा गया कि वह कोई बयान नहीं देंगे और अब अगर उन्होंने कोई बयान दिया है तो यह मानना चाहिए कि उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के कहने से बयान दिया है.
इसका मतलब कांग्रेस पार्टी ने कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल यानी महालेखा परीक्षक नामक संस्था को बर्बाद करने की तैयारी कर ली है. बर्बाद इस अर्थ में कि उस पर हमला बोलकर उसकी इतनी साख गिरा दो कि आगे आने वाली उसकी किसी भी रिपोर्ट पर लोग भरोसा न करें. अगर दिग्विजय सिंह ने सोनिया गांधी के कहने पर बयान दिया है तो पूरी कांग्रेस पार्टी सीएजी के खिला़फ लामबंद हो गई है. कांग्रेस पार्टी की एक आदत है कि जब वह किसी से राजनीतिक रूप से नहीं लड़ सकती या साक्ष्य के आधार पर नहीं लड़ सकती तो वह उसकी व्यक्तिगत छवि धूमिल करती है. व्यक्तिगत छवि का मतलब, जिस तरह मौजूदा महालेखा परीक्षक विनोद राय पर यह आरोप लगा दिया गया कि उनकी महत्वाकांक्षा टी एन चतुर्वेदी की तरह लोकसभा में आने या फिर राज्यपाल बनने की है.
कांग्रेस पार्टी आज तक किसी के साथ राजनीतिक रूप से नहीं लड़ पाई. विश्वनाथ प्रताप सिंह का सामना भी कांग्रेस पार्टी ने सेंट किट्स के बैंक में एक फर्ज़ी एकाउंट खोलकर किया था. हर मामले में कांग्रेस ने हमेशा मुंह की खाई और अब भी वह मुंह की खाने वाली है. मुझे तो खुशी यह है कि इंदिरा गांधी के जमाने तक कांग्रेस पार्टी राजनीतिक लड़ाई लड़ती थी. मुझे नहीं याद कि इंदिरा जी ने कभी किसी व्यक्ति पर व्यक्तिगत आरोप लगाए हों. लेकिन इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी के जमाने में पहली बार वी पी सिंह पर घिनौने आरोप लगाए गए, व्यक्तिगत आरोप लगाए गए. अब कांग्रेस पार्टी के महासचिव और प्रवक्ता सीएजी पर घिनौने आरोप लगा रहे हैं. मुझे पूरी आशा है, बल्कि जिस तरह गांव में लिखते हैं कि आशा ही नहीं, वरन् पूर्ण विश्वास है कि अब जनरल वी के सिंह पर भी व्यक्तिगत आरोप लगाए जाएंगे. बाबा रामदेव और अन्ना हजारे इसकी मिसाल बन चुके हैं. अन्ना हजारे पर किस तरह के और कैसे आरोप लगते हैं, उसके उदाहरण हमारे सामने हैं. कांग्रेस पार्टी सौ रुपये की चूक को घपला और छब्बीस लाख करोड़ रुपये के घपले को चूक बताने में माहिर है. जिस तरह कांग्रेस पार्टी के सारे मंत्री कोयला घोटाले में जीरो लॉस की बात कर रहे हैं, यह वैसा ही है, जैसा 2-जी घोटाले में कपिल सिब्बल ने जीरो लॉस बताया था.
कांग्रेस यह क्यों नहीं समझती कि देश के लोग उसके इन बयानों का मजाक उड़ा रहे हैं. राज्यों में होने वाले चुनाव के नतीजे कांग्रेस पार्टी को क्यों कोई सीख नहीं दे रहे हैं, क्या सोनिया गांधी का दिमाग सचमुच बंद हो गया है, क्या उन्होंने सोचना-समझना बंद कर दिया है? यह मैं इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि अपनी हार से कोई पार्टी सबक न ले, ऐसा दुनिया में बहुत कम होता है. लेकिन हमारे देश में कांग्रेस पार्टी लगातार यह कमाल करती जा रही है. कांग्रेस पार्टी सोचती है कि जनता गलत है और वह सही. लेकिन जब मैं कांग्रेस पार्टी कहता हूं, तो कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को उसमें शामिल नहीं करता, क्योंकि कांग्रेस पार्टी का मतलब आज की तारीख में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और कुछ हद तक प्रियंका गांधी हैं. इसके बाद अगर नाम जोड़ें तो अहमद पटेल, मोतीलाल वोरा, जर्नादन द्विवेदी और उनके लिए शूटर का काम करने वाले दिग्विजय सिंह हैं. कुछ आईएएस अफसर हैं, जो उन्हें राय देते हैं, लेकिन उनका पार्टी के फैसलों में उन जगहों पर दखल होता है, जिन फैसलों का सीधा रिश्ता सोनिया गांधी या राहुल गांधी से होता है. प्रधानमंत्री कार्यालय में पुलक चटर्जी एक ऐसा ही नाम है.
कांग्रेस पार्टी आज तक किसी के साथ राजनीतिक रूप से नहीं लड़ पाई. विश्वनाथ प्रताप सिंह का सामना भी कांग्रेस पार्टी ने सेंट किट्स के बैंक में एक फर्ज़ी एकाउंट खोलकर किया था. हर मामले में कांग्रेस ने हमेशा मुंह की खाई और अब भी वह मुंह की खाने वाली है. मुझे तो खुशी यह है कि इंदिरा गांधी के जमाने तक कांग्रेस पार्टी राजनीतिक लड़ाई लड़ती थी.
अगर सोनिया गांधी ने सोच लिया है कि यह चुनाव हारना है और इस चुनाव में हार के बाद अगला चुनाव कांग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ जीत पाएगी तो सोनिया गांधी का सोचना शायद सही हो सकता है, लेकिन कांग्रेस के लिए यह सोचना बहुत खतरनाक है. पिछली बार भी कांग्रेस पार्टी ने जिस तरह चुनाव लड़ा था, उसका सीधा मतलब था कि वह चुनाव हारना चाहती है. चूंकि उसे पूरा अंदाजा था कि देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ेगी, क्योंकि उसने यूपीए-1 में देश की आर्थिक स्थिति संभालने के लिए कुछ नहीं किया था, लेकिन वह चुनाव भारतीय जनता पार्टी और लालकृष्ण आडवाणी की महान बुद्धिमानी की वजह से कांग्रेस पार्टी जीत गई और भारतीय जनता पार्टी की हालत खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे वाली हो गई. क्या कांग्रेस पार्टी को देश का, देश में रहने वालों का, ग़रीबों का, जो लोग उसे वोट देते हैं उनका, कुछ भी ख्याल नहीं है? अगर ख्याल है तो कम से कम जो घोटाले साबित हो चुके हैं या साबित हो रहे हैं, उन पर तो ईमानदारी से जांच कराने की बात करनी चाहिए. अगर महालेखा नियंत्रक के कार्यालय में छब्बीस लाख करोड़ को पहले दस लाख करोड़ और फिर एक दशमलव आठ छह लाख करोड़ में तब्दील किया गया तो उसे सीएजी का एहसान मानना चाहिए कि उसने कोयले घोटाले को बहुत कम बताकर लिखा. हम बार-बार कह रहे हैं कि यह घोटाला छब्बीस लाख करोड़ का है और सीएजी सरकार को बचाने की कोशिश कर रही है. और सरकार है कि वह सीएजी पर ही जूता उठाकर खड़ी हो गई है.
यह सच है कि दो तरह के लोग होते हैं. एक वे, जो ज़िंदा रहते हुए भी अपना नाम करना चाहते हैं और चाहते हैं कि मरने के बाद भी इतिहास उन्हें अच्छे आदमी की तरह याद करे. दूसरे वे होते हैं, जो जिंदा रहते हुए अच्छा-बुरा करते हैं और उन्हें इतिहास की कोई परवाह नहीं होती. कांग्रेस पार्टी लगभग ऐसी ही पार्टी है, जिसे इतिहास में क्या दर्जा मिलेगा, इसकी उसे परवाह नहीं है. जब तक इंदिरा गांधी जीवित थीं, तब तक कांग्रेस पार्टी को यह परवाह थी कि वह देश में लोकतंत्र की अलमबरदार के रूप में जानी जाए. ग़रीबों के लिए इंदिरा गांधी ने कम से कम सोचा, लोगों को सपने दिखाए. ग़रीबी हटाओ का नारा उन्हीं का था, जिसने उन्हें चुनाव भी जिता दिया, लेकिन आज की कांग्रेस पार्टी तो कुछ करना ही नहीं चाहती. कांग्रेस को लेकर दु:ख इसलिए है कि देश का बहुत बड़ा वर्ग भारतीय जनता पार्टी के साथ खुद को नहीं जोड़ पाता. भारतीय जनता पार्टी का रहन-सहन, चाल-ढाल, बोलचाल और देश के ग़रीबों के साथ उसका रिश्ता कुछ इतना सामंतवादी है कि लोग उसके साथ खड़े होने में हिचकते हैं. इस मनोवैज्ञानिक दीवार को न भारतीय जनता पार्टी तोड़ना चाहती है और न कांग्रेस पार्टी एक नई दीवार बनने देना चाहती है. विधानसभा चुनाव में आए नतीजे कांग्रेस पार्टी को डरा नहीं रहे.
कांग्रेस कार्यकर्ताओं में बुरी तरह गुस्सा व्याप्त है, ऐसा इसलिए, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके नेतृत्व द्वारा गलत निर्णय लेने या निर्णय लेने में असावधानी बरतने से कांग्रेस पार्टी को नुकसान होने वाला है. ज़मीन पर, गांव के स्तर पर और बूथ के स्तर पर दिल्ली में बैठे नेता नहीं लड़ते. लोगों के मान, अपमान, बातों, गुस्से और गालियों का सामना कार्यकर्ताओं को करना पड़ता है. वह कार्यकर्ता, जो कांग्रेस को जिताने के लिए जी-जान एक किए रहता है. वही कार्यकर्ता कांग्रेस पार्टी से दूर हो रहा है. इसकी शायद न राहुल गांधी को चिंता है और न सोनिया गांधी को चिंता है कि कार्यकर्ता उनसे दूर हो रहा है और उसे दूर जाने से उन्हें रोकना चाहिए. उनके चिंता न करने की वजह से कार्यकर्ता भाग रहा है, दूसरी पार्टियों में जगह तलाश रहा है. वहां पर उसे जगह नहीं मिलती, उसके बाद भी वह दूसरी पार्टियों के दरवाजे खटखटा रहा है.
दूसरी तऱफ विपक्ष है और विपक्ष का मतलब अगर भारतीय जनता पार्टी है तो वह भी सीएजी का सम्मान बचाने के लिए कुछ नहीं कर रही. बाकी जितने राजनीतिक दल हैं, उन्होंने पता नहीं क्यों खुद को गिनती से बाहर कर लिया है. अगर मैं नाम लूं तो शरद यादव का ले सकता हूं, मुलायम सिंह यादव का ले सकता हूं, राम विलास पासवान इसमें आते हैं, भले ही वह अकेले राज्यसभा के सदस्य हों, मायावती हैं, नीतीश कुमार हैं. ये सारे नेता खुद को विपक्ष के दायरे से बाहर क्यों मानने लगे हैं, ये लोग एक कॉम्प्लेक्स में क्यों जी रहे हैं, हीनभावना में क्यों जी रहे हैं कि जब कोई रिएक्शन देना होगा तो अगर भारतीय जनता पार्टी का प्रवक्ता देगा तो ठीक और अगर नहीं देगा तो हम खामोश रहेंगे.
लोकतांत्रिक संस्थाओं की, लोकतांत्रिक प्रक्रिया की या लोकतंत्र में लोगों के दु:ख और तकलीफ की बातें इन दोनों को समझ में नहीं आएंगी तो हमें यह बताने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि इतनी समझ इन सारे नेताओं में है कि वे समझ लें कि जनता उन्हें सबक सिखाने वाली है. लोगों की नज़रों में कांग्रेस पार्टी और भारतीय जनता पार्टी एक तरह की राजनीति करती है, पर वे बाकी विपक्षी दलों को राजनीति करते नहीं देखना चाहते. लोग उन्हें वोट नहीं देते हैं, उसी तरह, जिस तरह एक साधु को अपना सरपंच नहीं बनाते या अपना एमएलए नहीं बनाते, लेकिन एक साधु से यह अपेक्षा करते हैं कि वह जब कहेगा, सही बात कहेगा. जब कहेगा, धर्म की बात कहेगा और जब कहेगा लोगों को, उनके जीवन को आध्यात्मिक तौर पर ऊंचा उठाने की बात कहेगा. अगर साधु कोई दूसरी बात करता है तो लोग उसे अपने यहां से भगा देते हैं. जो ग़ैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई विपक्ष है, वह उसी साधु की तरह है. उनसे लोग अपने हित की बातें सुनना चाहते हैं, उनसे अपनी तरक्की की, अपनी अच्छाई की बातें सुनना चाहते हैं. वोट देने में कभी उनका पक्ष लेते हैं और कभी उन्हें अनदेखा कर देते हैं. इसके बावजूद उनका चुप रहना लोगों को पसंद नहीं है. यह बात विपक्षी शायद नहीं समझते. हो सकता है, आज के नेतृत्व के बाद जो नेतृत्व आएगा, कभी तो आएगा, वह इस बात को समझे. अगर ये लोग इस बात को नहीं समझेंगे तो इस देश के लोगों का लोकतंत्र से भरोसा धीरे-धीरे उठना स्वाभाविक है.
Friday, September 14, 2012
इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू राजवंश में अनैतिकता को नयी ऊँचाई पर पहुचाया
इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू राजवंश में अनैतिकता को नयी ऊँचाई पर पहुचाया. बौद्धिक इंदिरा को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भर्ती कराया गया था लेकिन वहाँ से जल्दी ही पढाई में खराब प्रदर्शन के कारण बाहर निकाल दी गयी. उसके बाद उनको शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय में भर्ती कराया गया था, लेकिन गुरु देव रवीन्द्रनाथ टैगोर उसके दुराचरण के लिए बाहर कर दिया . शान्तिनिकेतन से बहार निकाले जाने के बाद इंदिरा अकेला हो गयी. राजनीतिज्ञ के रूप में पिता राजनीति के साथ व्यस्त था और मां तपेदिक के स्विट्जरलैंड में मर रही थी. उनके इस अकेलेपन का फायदा फ़िरोज़ खान नाम के व्यापारी ने उठाया. फ़िरोज़ खान मोतीलाल नेहरु के घर पे मेहेंगी विदेशी शराब की आपूर्ति किया करता था. फ़िरोज़ खान और इंदिरा के बीच प्रेम सम्बन्ध स्थापित हो गए. महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल डा. श्रीप्रकाश नेहरू ने चेतावनी दी, कि इंदिरा फिरोज खान के साथ अवैध संबंध रहा था. फिरोज खान इंग्लैंड में तो था और इंदिरा के प्रति उसकी बहुत सहानुभूति थी. जल्द ही वह अपने धर्म का त्याग कर, एक मुस्लिम महिला बनीं और लंदन के एक मस्जिद में फिरोज खान से उसकी शादी हो गयी. इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू ने नया नाम मैमुना बेगम रख लिया. उनकी मां कमला नेहरू इस शादी से काफी नाराज़ थी जिसके कारण उनकी तबियत और ज्यादा बिगड़ गयी. नेहरू भी इस धर्म रूपांतरण से खुश नहीं थे क्युकी इससे इंदिरा के प्रधानमंत्री बन्ने की सम्भावना खतरे में आ गयी. तो, नेहरू ने युवा फिरोज खान से कहा कि अपना उपनाम खान से गांधी कर लो. परन्तु इसका इस्लाम से हिंदू धर्म में परिवर्तन के साथ कोई लेना - देना नहीं था. यह सिर्फ एक शपथ पत्र द्वारा नाम परिवर्तन का एक मामला था. और फिरोज खान फिरोज गांधी बन गया है, हालांकि यह बिस्मिल्लाह सरमा की तरह एक असंगत नाम है. दोनों ने ही भारत की जनता को मूर्ख बनाने के लिए नाम बदला था. जब वे भारत लौटे, एक नकली वैदिक विवाह जनता के उपभोग के लिए स्थापित किया गया था. इस प्रकार, इंदिरा और उसके वंश को काल्पनिक नाम गांधी मिला. नेहरू और गांधी दोनों फैंसी नाम हैं. जैसे एक गिरगिट अपना रंग बदलती है, वैसे ही इन लोगो ने अपनी असली पहचान छुपाने के लिए नाम बदले. इंदिरा गांधी के दो बेटे राजीव गांधी और संजय गांधी थे . संजय का मूल नाम संजीव था क्युकी राजीव और संजीव सुनने में अच्छे लगते थे. संजीव ब्रिटेन में कार चोरी करने के आरोप में गिरफ्तार हुआ और उसका पासपोर्ट जब्त किया गया. इंदिरा गांधी की दिशा निर्देश में, भारतीय राजदूत कृष्णा मेनन अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर संजीव से उसका नाम संजय करवा दिया और एक नया पासपोर्ट संजय गाँधी के नाम से बनवा दिया. यह एक ज्ञात तथ्य यह है कि राजीव के जन्म के बाद, इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी अलग - अलग रहते थे, लेकिन उन्होंने छवि ख़राब होने के कारण तलाक नहीं लिया. के.एन. राव की पुस्तक "नेहरू राजवंश" (10:8186092005 ISBN) में यह स्पष्ट रूप से लिखा गया है संजय गांधी फ़िरोज़ गांधी का पुत्र नहीं था, जिसकी पुष्टि के लिए उस पुस्तक में अनेक तथ्यों को सामने रखा गया है. उसमे यह साफ़ तौर पे लिखा हुआ है की संजय गाँधी एक और मुस्लिम मोहम्मद यूनुस नामक सज्जन का बेटा था. दिलचस्प बात यह है की एक सिख लड़की मेनका का विवाह भी संजय गाँधी के साथ मोहम्मद यूनुस के घर में ही हुआ था. यूनुस शादी से नाखुश था क्युकी वह अपनी बहू के रूप में अपनी पसंद की एक मुस्लिम लड़की के साथ उसकी शादी करना चाहता था. मोहम्मद यूनुस ही वह व्यक्ति था जो संजय गाँधी की विमान दुर्घटना के बाद सबसे ज्यादा रोया था. 'यूनुस की पुस्तक "व्यक्ति जुनून और राजनीति" (persons passions and politics )(ISBN-10: 0706910176) में साफ़ लिखा हुआ है की संजय गाँधी के जन्म के बाद उनका खतना पूरे मुस्लिम रीति रिवाज़ के साथ किया गया था. यह एक तथ्य है कि संजय गांधी लगातार अपनी माँ इंदिरा को ब्लाच्क्मैल करते थे की वह उनको असली पिता के बारे में बताये. संजय का अपनी माँ पर एक गहरा भावनात्मक नियंत्रण था जिसका वह अक्सर दुरोपयोग करते थे. इंदिरा गांधी संजय के कुकर्मों की अनदेखी करती थी और संजय परोक्ष रूप से सरकार नियंत्रित करता था. जब संजय गांधी की मृत्यु की खबर इंदिरा गांधी के पास पहुची तो इंदिरा का पहला सवाल था "संजय की चाभी और घडी कहाँ है ??". नेहरू - गांधी वंश के बारे में कुछ गहरे रहस्य उन चीजों में छुपे थे. विमान दुर्घटना का होना भी आज तक एक रहस्य ही है. यह एक नया विमान था जो गोता मारकर जमीन पर गिरा और उसमे तब तक कोई विस्फोट या आग नहीं थी जब तक वह जमीन पर नहीं गिरा. यह तब होता है जब विमान में ईंधन ख़त्म हो जाता है. लेकिन उड़ान रजिस्टर से पता चलता है कि ईंधन टैंक उड़ान से पहले फुल किया गया था. इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री कार्यालय के अनुचित प्रभाव का उपयोग कर इस दुर्घटना की जांच होने से रोक ली जो अपने आप में संदेहास्पद है. कैथरीन फ्रैंक की पुस्तक "the life of Indira Nehru Gandhi (ISBN: 9780007259304) में इंदिरा गांधी के अन्य प्रेम संबंधों के कुछ पर प्रकाश डाला है. यह लिखा है कि इंदिरा का पहला प्यार शान्तिनिकेतन में जर्मन शिक्षक के साथ था. बाद में वह एमओ मथाई, (पिता के सचिव) धीरेंद्र ब्रह्मचारी (उनके योग शिक्षक) के साथ और दिनेश सिंह (विदेश मंत्री) के साथ भी अपने प्रेम संबंधो के लिए प्रसिद्द हुई. पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने इंदिरा गांधी के मुगलों के लिए संबंध के बारे में एक दिलचस्प रहस्योद्घाटन किया अपनी पुस्तक "profiles and letters " (ISBN: 8129102358) में किया. यह कहा गया है कि 1968 में इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री के रूप में अफगानिस्तान की सरकारी यात्रा पर गयी थी . नटवर सिंह एक आईएफएस अधिकारी के रूप में इस दौरे पे गए थे. दिन भर के कार्यक्रमों के होने के बाद इंदिरा गांधी को शाम में सैर के लिए बाहर जाना था . कार में एक लंबी दूरी जाने के बाद, इंदिरा गांधी बाबर की कब्रगाह के दर्शन करना चाहती थी, हालांकि यह इस यात्रा कार्यक्रम में शामिल नहीं किया गया. अफगान सुरक्षा अधिकारियों ने उनकी इस इच्छा पर आपत्ति जताई पर इंदिरा अपनी जिद पर अड़ी रही . अंत में वह उस कब्रगाह पर गयी . यह एक सुनसान जगह थी. वह बाबर की कब्र पर सर झुका कर आँखें बंद करके कड़ी रही और नटवर सिंह उसके पीछे खड़े थे . जब इंदिरा ने उसकी प्रार्थना समाप्त कर ली तब वह मुड़कर नटवर से बोली "आज मैंने अपने इतिहास को ताज़ा कर लिया (Today we have had our brush with history ". यहाँ आपको यह बता दे की बाबर मुग़ल साम्राज्य का संस्थापक था, और नेहरु खानदान इसी मुग़ल साम्राज्य से उत्पन्न हुआ. इतने सालो से भारतीय जनता इसी धोखे में है की नेहरु एक कश्मीरी पंडित था....जो की सरासर गलत तथ्य है. ~ * ~ * ~ * ~ * ~ * ~ यह गिनती करना मुश्किल है आज कितने उच्च शिक्षा के संस्थानों कैसे राजीव गांधी के नाम पर चल रहे हैं लेकिन सच यह है की खुद राजीव गांधी कम क्षमता का एक व्यक्ति था. 1962 से 1965 तक, वह ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज में एक यांत्रिक अभियांत्रिकी पाठ्यक्रम के लिए नामांकित किया गया था. लेकिन, वह कैम्ब्रिज की डिग्री के बिना छोड़ दिया, क्योंकि वह परीक्षा पारित नहीं कर सका. अगले साल 1966 में, वह इंपीरियल कॉलेज, लंदन, गया लेकिन यहाँ भी डिग्री के बिना ही उनको जाना पड़ा. ऊपर में के.एन. राव ने कहा कि पुस्तक का आरोप है कि राजीव गांधी एक कैथोलिक बन गए सानिया माइनो शादी करने के लिए. राजीव रॉबर्टो बन गया. उनके बेटे का नाम Raul और बेटी का नाम Bianca है. काफी चतुराई से एक ही नाम राहुल और प्रियंका के रूप में भारत के लोगों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं. व्यक्तिगत आचरण में राजीव हमेशा ही एक मुगल राजा की तरह था. वह 15 अगस्त 1988 को लाल किले की प्राचीर से गरज कर बोला था : "हमारा प्रयास भारत को 250-300 साल पहले वाली ऊंचाई तक ले जाने के लिए होना चाहिए". यह तो औरंगजेब और उसके जेज़िया गुरु का शाशन काल था जो की नंबर एक का मंदिर विध्वंसक था. " भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के बाद लन्दन में उनका पत्रकार सम्मेलन बहुत जानकारीपूर्ण था. इस पत्रकार सम्मेलन में राजीव दावा है कि वह एक पारसी है और हिन्दू नहीं है . फिरोज खान के पिता और राजीव गांधी के पैतृक दादा गुजरात के जूनागढ़ क्षेत्र से एक मुस्लिम सज्जन था. नवाब खान के नाम से यह मुस्लिम पंसारीने एक पारसी महिला को मुस्लिम बनाकर उससे शादी की थी. इस स्रोत से पता चलता है की वोह अपने आप को पारसी क्यों कहते थे. ध्यान रहे कि उनका कोई पारसी पूर्वज नहीं था . उनकी दादी ने पारसी धर्म को त्याग दिया और नवाब खान शादी के बाद मुस्लिम बन गयी थी . हैरानी की बात है, पारसी राजीव गांधी का वैदिक संस्कार के अनुसार भारतीय जनता का पूरा ध्यान में रखते हुए अंतिम संस्कार किया गया था. ~ * ~ * ~ * ~ * ~ * ~ डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी लिखते हैं कि सोनिया गांधी के नाम एंटोनिया माइनो था. उसके पिता एक मेसन था. वह कुख्यात इटली के फासिस्ट शासन के एक कार्यकर्ता था और वह रूस में पांच साल की कैद की सेवा की. वास्तव में सोनिया गांधी ने कभी पांचवी कक्षा के ऊपर अध्ययन नहीं किया है. वह एक अंग्रेजी शिक्षण कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय परिसर में लेनोक्स स्कूल नाम की दुकान से कुछ अंग्रेजी सीखी है. इस तथ्य से वह प्रतिष्ठित कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन करने का दावा करती थी परन्तु जब डॉक्टर स्वामी ने उनके इस झूठ पर प्रश्न किये, तो सोनिया ने चुप्पी साध ली और बाद में कह दिया की उनके द्वारा cambridge university में डिग्री की बात एक "प्रिंटिंग मिस्टेक" है. उसके बाद सोनिया ने कभी cambridge university में पढने की बात नहीं स्वीकारी. सत्य यह है की कुछ अंग्रेजी सीखने के बाद, वह कैम्ब्रिज शहर में एक रेस्तरां में एक वेट्रेस थी . सोनिया गांधी ब्रिटेन में जिस रेस्तरां में एक वेट्रेस थी वहां माधवराव सिंधिया अक्सर आते थे क्युकी वह उस समय cambridge में शिक्षा ले रहे थे. माधवराव सिंधिया से सोनिया के गर्म रिश्ते थे जो उसकी शादी के बाद भी जारी रहे . 1982 की एक रात 2 बजे आईआईटी दिल्ली मुख्य गेट के पास एक दुर्घटना हुई थी, जिसमे पुलीस ने श्री सिंधिया के साथ सोनिया को नशे की हालत में कार से बाहर निकाला था. जब इंदिरा गांधी और राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे तब प्रधानमंत्री के सुरक्षा कर्मी नई दिल्ली और चेन्नई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों में प्राचीन मंदिर की मूर्तियां, और अन्य प्राचीन वस्तुओं को भारतीय खजाने के बक्सों में इटली भेजने जाते थे. मुख्यमंत्री और बाद में संस्कृति प्रभारी मंत्री के रूप में अर्जुन सिंह इस लूट का आयोजन करते थे. सीमा से अनियंत्रित, वे इटली में पहुंचा दिए जाते थे जहाँ उन्हें Etnica और Ganpati नाम के दो शो रूम्स में बेचा जाता था. ये दोनों शो रूम्स सोनिया गांधी की बहन Alessandra माइनो विंची के नाम पर हैं. इंदिरा गांधी की मृत्यु उसके दिल या दिमाग में गोलियों के कारण नहीं हुई बल्कि वह खून की कमी के कारण मरी थी. इंदिरा गाँधी को गोली लगने के बाद जब उनका काफी खून बह चूका था उस समय सोनिया ने अजीब जोर देकर कहा है कि खून बह रहा इंदिरा गांधी को डा. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में ले जाया जाना चाहिए ना की एम्स में जो एक आपात प्रोटोकॉल के लिए और ठीक इस तरह की घटनाओं के इलाज के लिए उपयुक्त है. इस प्रकार 24 बहुमूल्य मिनट बर्बाद कर दिए गए . यह संदिग्ध है कि यह सोनिया गांधी की अपरिपक्वता या तेजी से सत्ता में उसके पति को लाने के लिए एक चाल थी. राजेश पायलट और माधव राव सिंधिया के प्रधानमंत्री के पद के लिए मजबूत दावेदार थे और वे सोनिया गांधी के सत्ता के लिए अपने रास्ते में पत्थर थे. उन दोनों के रहस्यमय दुर्घटनाओं में मृत्यु हो गई. इस बात के प्रचुर तथ्य मौजूद हैं की मायिनो परिवार ने लिट्टे के साथ अनुबंध किया था जिससे उनकी राजीव हत्याकांड में भूमिका संदेहास्पद बनती है . आजकल, सोनिया गांधी काफी एमडीएमके, पीएमके और द्रमुक जैसे जो राजीव गांधी के हत्यारों की स्तुति के साथ राजनीतिक गठबंधन में अडिग है. कोई भारतीय विधवा कभी अपने पति के हत्यारों के साथ ऐसा नहीं कर सकती. ऐसी परिस्थितियों में कई हैं, और एक शक बढ़ा. राजीव की हत्या में सोनिया की भागीदारी में एक जांच आवश्यक है. (ISBN 81-220-0591-8) - तुम डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी पुस्तक "आशातीत प्रश्न और अनुत्तरित प्रश्न राजीव गांधी की हत्या पढ़ सकते हैं. यह इस तरह के षड्यंत्र का संकेत होता है. ~ * ~ * ~ * ~ * ~ * ~ इटली के कानून के अनुसार राहुल और प्रियंका इटालियन नागरिक हैं क्युकी उन दोनों के जन्म के समय सोनिया गाँधी एक इटालियन नागरिक थी. 1992 में, सोनिया गांधी इतालवी नागरिकता कानून के अनुच्छेद 17 के तहत इटली की उसकी नागरिकता को पुनर्जीवित किया . राहुल गांधी के इतालवी उसकी हिन्दी की तुलना में बेहतर है. राहुल गांधी एक इतालवी नागरिक तथ्य यह है कि 27 सितंबर 2001 को वह एक इतालवी पासपोर्ट पर यात्रा करने के लिए बोस्टन हवाई अड्डे, संयुक्त राज्य अमेरिका में एफबीआई द्वारा गिरफ्तार किया गया था से प्रासंगिक है. यदि भारत में एक कानून बना है कि कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर विदेशी मूल के एक व्यक्ति को नहीं लाया जा सकता तो राहुल गांधी को स्वचालित रूप से प्रधानमंत्री पद के लिए अयोग्य हैं. ~ * ~ * ~ * ~ * ~ * ~ स्कूली शिक्षा समाप्त करने के बाद, राहुल गांधी नई दिल्ली में सेंट स्टीफंस कॉलेज में प्रवेश मिल गया, योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि राइफल शूटिंग के खेल कोटे पर. 1989-90 में कुछ दिन दिल्ली में रहने के बाद राहुल ने 1994 में रोलिंस कॉलेज फ्लोरिडा जो एक christianचैरिटी द्वारा चलाया जाने वाला सी ग्रेड का कॉलेज है , से बी.ए. किया. बस एक बीए करने के लिए अमेरिका जाने की ज़रूरत किसी को नहीं होती. इसलिए अगले ही वर्ष, 1995 में उसे एम. फिल मिला ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज से . इस डिग्री की वास्तविकता आप इसी से समझ सकते हैं की उन्हें ये डिग्री बिना एमए किये हुवे मिल गयी. इसके पीछे Amaratya सेन की मदद का हाथ माना जाता है. आप में से कई मशहूर फिल्म 'मुन्नाभाई एमबीबीएस " देख ही चुके हैं . 2008 में राहुल गांधी ने कानपुर में चन्द्र शेखर आजाद विश्वविद्यालय के छात्रों की रैली के लिए एक सभागार का उपयोग करने से रोका गया था. बाद में, विश्वविद्यालय के कुलपति वी.के. सूरी, को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल द्वारा अपदस्थ किया गया था. 26/11 के दौरान जब पूरे देश के बारे में कैसे मुंबई आतंक से निपटने के लिए तनाव में था, राहुल गांधी आराम से प्रातः 5 बजे तक अपने दोस्तों के साथ जश्न मना रहा था . राहुल गांधी कांग्रेस के सदस्यों के लिए तपस्या की सलाह है. वे कहते हैं, यह सभी नेताओं का कर्तव्य है तपस्या हो. दूसरी ओर वह एक पूरी तरह सुसज्जित जिम वाले एक मंत्री वाले बंगला में रहते हैं . इसके अलावा वह दिल्ली के दो सबसे मेहेंगे ५ स्टार जिम के नियमित सदस्य भी हैं, राहुल गांधी की चेन्नई यात्रा 2009 में तपस्या के लिए अभियान के लिए पार्टी के 1 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किये . इस तरह की विसंगतियों से पता चलता है कि राहुल गांधी द्वारा की गई पहलों का कितना महत्व है. 2007 उत्तर प्रदेश में चुनाव अभियान के दौरान राहुल गांधी ने कहा कि "अगर नेहरू - गांधी परिवार का कोई भी सदस्य उस समय सक्रिय होता तो बाबरी मस्जिद कभी न गिरती." इस कथन से उनका अपने पूर्वजों के लिए एक वफादारी के रूप में अपने मुसलमान संबद्धता का पता चलता है. 31 दिसंबर, 2004 को जॉन एम., itty, केरल के अलाप्पुझा जिले में एक सेवानिवृत्त कॉलेज के प्रोफेसर, दलील देते है कि केरल में एक रिसॉर्ट में तीन दिनों के लिए एक साथ रहने के लिए राहुल गांधी और उसकी प्रेमिका Juvenitta उर्फ वेरोनिका के खिलाफ कार्रवाई लिया जाना चाहिए. यह अनैतिक तस्करी अधिनियम के तहत एक आपराधिक अपमान के रूप में वे शादी नहीं कर रहे. वैसे भी, एक और विदेशी बहू के सहिष्णु भारतीयों पर राज कर रही है. स्विस पत्रिका Schweizer है Illustrierte 11 वीं नवम्बर 1991 अंक से पता चला है कि राहुल गांधी अपनी मां सोनिया गांधी द्वारा नियंत्रित अमेरिकी 2 अरब डॉलर के लायक खातों के लाभार्थी था. 2006 में स्विस बैंकिंग एसोसिएशन से एक रिपोर्ट से पता चला है कि भारतीय नागरिकों की संयुक्त जमा के रूप में अभी तक किसी भी अन्य देश, 1.4 खरब अमरीकी डॉलर का एक कुल, एक भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) से अधिक का आंकड़ा अधिक से अधिक कर रहे हैं. इस राजवंश ने भारत के आधे से अधिक नियम. केंद्र की उपेक्षा कर, बाहर के 28 राज्यों और 7 संघ शासित प्रदेशों की, उनमें से आधे से अधिक समय के किसी भी बिंदु पर कांग्रेस सरकार है. तक राजीव गांधी ने भारत में मुगल शासन के साथ सोनिया गांधी, रोम भारत पर शासन करना शुरू कर दिया था. ~ * ~ * ~ * ~ * ~ * ~ इस लेख लिखने के पीछे उद्देश्य भारतीय नागरिको को उनके प्रिय नेताओ के बारे में जागरूक करना है और यह बताना है की किस तरह एक परिवार सदियों से इस देश को खोकला करता आ रहा है और हम भारतीय चुपचाप उनकी गुलामी करते जा रहे हैं. सबूत के समर्थन की कमी की वजह से इस लेख में कई अन्य चौंकाने वाला तथ्य नहीं प्रस्तुत कर रहे हैं. इन सभी तथ्यों की पुष्टि के लिए आप डॉक्टर सुभ्रमनियम स्वामी की पुस्तकों या उनकी वेबसाइट देख सकते हैं.
कोयला घोटाला अब स़िर्फ संसद के बीच बहस का विषय नहीं रह गया है, बल्कि पूरे देश का विषय हो गया है. सारे देश के लोग कोयला घोटाले को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि इसमें पहली बार देश के सबसे शक्तिशाली पद पर बैठे व्यक्ति का नाम सामने आया है. मनमोहन सिंह कोयला मंत्री थे और यह फैसला चाहे स्क्रीनिंग कमेटी का रहा हो या सेक्रेट्रीज का, मनमोहन सिंह के दस्तखत किए बिना यह अमल में आ ही नहीं सकता था. मनमोहन सिंह कहते हैं कि वह पाक-सा़फ हैं. अपनी नज़र में हर व्यक्ति पाक-सा़फ होता है. आज तक किसी अपराधी ने, न अदालत के बाहर और अंदर यह कहा कि वह अपराधी है. हम मनमोहन सिंह को अपराधी नहीं कह रहे हैं, बल्कि अपराधियों के समूह का शहंशाह कह रहे हैं. मनमोहन सिंह ने सारे प्रजातांत्रिक तरीकों को समाप्त करने का शायद फैसला ले लिया है. इसलिए उनकी पार्टी के एक सांसद संवैधानिक संस्था सीएजी पर सवाल उठा रहे हैं. पहले मनमोहन सिंह की पार्टी के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने सीएजी का मजाक उड़ाया और कहा कि सीएजी को शून्य बढ़ाने की आदत हो गई है. अब कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह कहते हैं कि सीएजी के पद पर आसीन विनोद राय की आकांक्षा पुराने सीएजी टी एन चतुर्वेदी जैसी हो गई है. अगर कांग्रेस पार्टी की बात मानें तो दिग्विजय सिंह का सार्वजनिक अपमान कांग्रेस पार्टी द्वारा ही हुआ. उनसे कहा गया कि वह कोई बयान नहीं देंगे और अब अगर उन्होंने कोई बयान दिया है तो यह मानना चाहिए कि उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के कहने से बयान दिया है.
इसका मतलब कांग्रेस पार्टी ने कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल यानी महालेखा परीक्षक नामक संस्था को बर्बाद करने की तैयारी कर ली है. बर्बाद इस अर्थ में कि उस पर हमला बोलकर उसकी इतनी साख गिरा दो कि आगे आने वाली उसकी किसी भी रिपोर्ट पर लोग भरोसा न करें. अगर दिग्विजय सिंह ने सोनिया गांधी के कहने पर बयान दिया है तो पूरी कांग्रेस पार्टी सीएजी के खिला़फ लामबंद हो गई है. कांग्रेस पार्टी की एक आदत है कि जब वह किसी से राजनीतिक रूप से नहीं लड़ सकती या साक्ष्य के आधार पर नहीं लड़ सकती तो वह उसकी व्यक्तिगत छवि धूमिल करती है. व्यक्तिगत छवि का मतलब, जिस तरह मौजूदा महालेखा परीक्षक विनोद राय पर यह आरोप लगा दिया गया कि उनकी महत्वाकांक्षा टी एन चतुर्वेदी की तरह लोकसभा में आने या फिर राज्यपाल बनने की है.
कांग्रेस पार्टी आज तक किसी के साथ राजनीतिक रूप से नहीं लड़ पाई. विश्वनाथ प्रताप सिंह का सामना भी कांग्रेस पार्टी ने सेंट किट्स के बैंक में एक फर्ज़ी एकाउंट खोलकर किया था. हर मामले में कांग्रेस ने हमेशा मुंह की खाई और अब भी वह मुंह की खाने वाली है. मुझे तो खुशी यह है कि इंदिरा गांधी के जमाने तक कांग्रेस पार्टी राजनीतिक लड़ाई लड़ती थी. मुझे नहीं याद कि इंदिरा जी ने कभी किसी व्यक्ति पर व्यक्तिगत आरोप लगाए हों. लेकिन इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी के जमाने में पहली बार वी पी सिंह पर घिनौने आरोप लगाए गए, व्यक्तिगत आरोप लगाए गए. अब कांग्रेस पार्टी के महासचिव और प्रवक्ता सीएजी पर घिनौने आरोप लगा रहे हैं. मुझे पूरी आशा है, बल्कि जिस तरह गांव में लिखते हैं कि आशा ही नहीं, वरन् पूर्ण विश्वास है कि अब जनरल वी के सिंह पर भी व्यक्तिगत आरोप लगाए जाएंगे. बाबा रामदेव और अन्ना हजारे इसकी मिसाल बन चुके हैं. अन्ना हजारे पर किस तरह के और कैसे आरोप लगते हैं, उसके उदाहरण हमारे सामने हैं. कांग्रेस पार्टी सौ रुपये की चूक को घपला और छब्बीस लाख करोड़ रुपये के घपले को चूक बताने में माहिर है. जिस तरह कांग्रेस पार्टी के सारे मंत्री कोयला घोटाले में जीरो लॉस की बात कर रहे हैं, यह वैसा ही है, जैसा 2-जी घोटाले में कपिल सिब्बल ने जीरो लॉस बताया था.
कांग्रेस यह क्यों नहीं समझती कि देश के लोग उसके इन बयानों का मजाक उड़ा रहे हैं. राज्यों में होने वाले चुनाव के नतीजे कांग्रेस पार्टी को क्यों कोई सीख नहीं दे रहे हैं, क्या सोनिया गांधी का दिमाग सचमुच बंद हो गया है, क्या उन्होंने सोचना-समझना बंद कर दिया है? यह मैं इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि अपनी हार से कोई पार्टी सबक न ले, ऐसा दुनिया में बहुत कम होता है. लेकिन हमारे देश में कांग्रेस पार्टी लगातार यह कमाल करती जा रही है. कांग्रेस पार्टी सोचती है कि जनता गलत है और वह सही. लेकिन जब मैं कांग्रेस पार्टी कहता हूं, तो कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को उसमें शामिल नहीं करता, क्योंकि कांग्रेस पार्टी का मतलब आज की तारीख में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और कुछ हद तक प्रियंका गांधी हैं. इसके बाद अगर नाम जोड़ें तो अहमद पटेल, मोतीलाल वोरा, जर्नादन द्विवेदी और उनके लिए शूटर का काम करने वाले दिग्विजय सिंह हैं. कुछ आईएएस अफसर हैं, जो उन्हें राय देते हैं, लेकिन उनका पार्टी के फैसलों में उन जगहों पर दखल होता है, जिन फैसलों का सीधा रिश्ता सोनिया गांधी या राहुल गांधी से होता है. प्रधानमंत्री कार्यालय में पुलक चटर्जी एक ऐसा ही नाम है.
कांग्रेस पार्टी आज तक किसी के साथ राजनीतिक रूप से नहीं लड़ पाई. विश्वनाथ प्रताप सिंह का सामना भी कांग्रेस पार्टी ने सेंट किट्स के बैंक में एक फर्ज़ी एकाउंट खोलकर किया था. हर मामले में कांग्रेस ने हमेशा मुंह की खाई और अब भी वह मुंह की खाने वाली है. मुझे तो खुशी यह है कि इंदिरा गांधी के जमाने तक कांग्रेस पार्टी राजनीतिक लड़ाई लड़ती थी.
अगर सोनिया गांधी ने सोच लिया है कि यह चुनाव हारना है और इस चुनाव में हार के बाद अगला चुनाव कांग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ जीत पाएगी तो सोनिया गांधी का सोचना शायद सही हो सकता है, लेकिन कांग्रेस के लिए यह सोचना बहुत खतरनाक है. पिछली बार भी कांग्रेस पार्टी ने जिस तरह चुनाव लड़ा था, उसका सीधा मतलब था कि वह चुनाव हारना चाहती है. चूंकि उसे पूरा अंदाजा था कि देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ेगी, क्योंकि उसने यूपीए-1 में देश की आर्थिक स्थिति संभालने के लिए कुछ नहीं किया था, लेकिन वह चुनाव भारतीय जनता पार्टी और लालकृष्ण आडवाणी की महान बुद्धिमानी की वजह से कांग्रेस पार्टी जीत गई और भारतीय जनता पार्टी की हालत खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे वाली हो गई. क्या कांग्रेस पार्टी को देश का, देश में रहने वालों का, ग़रीबों का, जो लोग उसे वोट देते हैं उनका, कुछ भी ख्याल नहीं है? अगर ख्याल है तो कम से कम जो घोटाले साबित हो चुके हैं या साबित हो रहे हैं, उन पर तो ईमानदारी से जांच कराने की बात करनी चाहिए. अगर महालेखा नियंत्रक के कार्यालय में छब्बीस लाख करोड़ को पहले दस लाख करोड़ और फिर एक दशमलव आठ छह लाख करोड़ में तब्दील किया गया तो उसे सीएजी का एहसान मानना चाहिए कि उसने कोयले घोटाले को बहुत कम बताकर लिखा. हम बार-बार कह रहे हैं कि यह घोटाला छब्बीस लाख करोड़ का है और सीएजी सरकार को बचाने की कोशिश कर रही है. और सरकार है कि वह सीएजी पर ही जूता उठाकर खड़ी हो गई है.
यह सच है कि दो तरह के लोग होते हैं. एक वे, जो ज़िंदा रहते हुए भी अपना नाम करना चाहते हैं और चाहते हैं कि मरने के बाद भी इतिहास उन्हें अच्छे आदमी की तरह याद करे. दूसरे वे होते हैं, जो जिंदा रहते हुए अच्छा-बुरा करते हैं और उन्हें इतिहास की कोई परवाह नहीं होती. कांग्रेस पार्टी लगभग ऐसी ही पार्टी है, जिसे इतिहास में क्या दर्जा मिलेगा, इसकी उसे परवाह नहीं है. जब तक इंदिरा गांधी जीवित थीं, तब तक कांग्रेस पार्टी को यह परवाह थी कि वह देश में लोकतंत्र की अलमबरदार के रूप में जानी जाए. ग़रीबों के लिए इंदिरा गांधी ने कम से कम सोचा, लोगों को सपने दिखाए. ग़रीबी हटाओ का नारा उन्हीं का था, जिसने उन्हें चुनाव भी जिता दिया, लेकिन आज की कांग्रेस पार्टी तो कुछ करना ही नहीं चाहती. कांग्रेस को लेकर दु:ख इसलिए है कि देश का बहुत बड़ा वर्ग भारतीय जनता पार्टी के साथ खुद को नहीं जोड़ पाता. भारतीय जनता पार्टी का रहन-सहन, चाल-ढाल, बोलचाल और देश के ग़रीबों के साथ उसका रिश्ता कुछ इतना सामंतवादी है कि लोग उसके साथ खड़े होने में हिचकते हैं. इस मनोवैज्ञानिक दीवार को न भारतीय जनता पार्टी तोड़ना चाहती है और न कांग्रेस पार्टी एक नई दीवार बनने देना चाहती है. विधानसभा चुनाव में आए नतीजे कांग्रेस पार्टी को डरा नहीं रहे.
कांग्रेस कार्यकर्ताओं में बुरी तरह गुस्सा व्याप्त है, ऐसा इसलिए, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके नेतृत्व द्वारा गलत निर्णय लेने या निर्णय लेने में असावधानी बरतने से कांग्रेस पार्टी को नुकसान होने वाला है. ज़मीन पर, गांव के स्तर पर और बूथ के स्तर पर दिल्ली में बैठे नेता नहीं लड़ते. लोगों के मान, अपमान, बातों, गुस्से और गालियों का सामना कार्यकर्ताओं को करना पड़ता है. वह कार्यकर्ता, जो कांग्रेस को जिताने के लिए जी-जान एक किए रहता है. वही कार्यकर्ता कांग्रेस पार्टी से दूर हो रहा है. इसकी शायद न राहुल गांधी को चिंता है और न सोनिया गांधी को चिंता है कि कार्यकर्ता उनसे दूर हो रहा है और उसे दूर जाने से उन्हें रोकना चाहिए. उनके चिंता न करने की वजह से कार्यकर्ता भाग रहा है, दूसरी पार्टियों में जगह तलाश रहा है. वहां पर उसे जगह नहीं मिलती, उसके बाद भी वह दूसरी पार्टियों के दरवाजे खटखटा रहा है.
दूसरी तऱफ विपक्ष है और विपक्ष का मतलब अगर भारतीय जनता पार्टी है तो वह भी सीएजी का सम्मान बचाने के लिए कुछ नहीं कर रही. बाकी जितने राजनीतिक दल हैं, उन्होंने पता नहीं क्यों खुद को गिनती से बाहर कर लिया है. अगर मैं नाम लूं तो शरद यादव का ले सकता हूं, मुलायम सिंह यादव का ले सकता हूं, राम विलास पासवान इसमें आते हैं, भले ही वह अकेले राज्यसभा के सदस्य हों, मायावती हैं, नीतीश कुमार हैं. ये सारे नेता खुद को विपक्ष के दायरे से बाहर क्यों मानने लगे हैं, ये लोग एक कॉम्प्लेक्स में क्यों जी रहे हैं, हीनभावना में क्यों जी रहे हैं कि जब कोई रिएक्शन देना होगा तो अगर भारतीय जनता पार्टी का प्रवक्ता देगा तो ठीक और अगर नहीं देगा तो हम खामोश रहेंगे.
लोकतांत्रिक संस्थाओं की, लोकतांत्रिक प्रक्रिया की या लोकतंत्र में लोगों के दु:ख और तकलीफ की बातें इन दोनों को समझ में नहीं आएंगी तो हमें यह बताने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि इतनी समझ इन सारे नेताओं में है कि वे समझ लें कि जनता उन्हें सबक सिखाने वाली है. लोगों की नज़रों में कांग्रेस पार्टी और भारतीय जनता पार्टी एक तरह की राजनीति करती है, पर वे बाकी विपक्षी दलों को राजनीति करते नहीं देखना चाहते. लोग उन्हें वोट नहीं देते हैं, उसी तरह, जिस तरह एक साधु को अपना सरपंच नहीं बनाते या अपना एमएलए नहीं बनाते, लेकिन एक साधु से यह अपेक्षा करते हैं कि वह जब कहेगा, सही बात कहेगा. जब कहेगा, धर्म की बात कहेगा और जब कहेगा लोगों को, उनके जीवन को आध्यात्मिक तौर पर ऊंचा उठाने की बात कहेगा. अगर साधु कोई दूसरी बात करता है तो लोग उसे अपने यहां से भगा देते हैं. जो ग़ैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई विपक्ष है, वह उसी साधु की तरह है. उनसे लोग अपने हित की बातें सुनना चाहते हैं, उनसे अपनी तरक्की की, अपनी अच्छाई की बातें सुनना चाहते हैं. वोट देने में कभी उनका पक्ष लेते हैं और कभी उन्हें अनदेखा कर देते हैं. इसके बावजूद उनका चुप रहना लोगों को पसंद नहीं है. यह बात विपक्षी शायद नहीं समझते. हो सकता है, आज के नेतृत्व के बाद जो नेतृत्व आएगा, कभी तो आएगा, वह इस बात को समझे. अगर ये लोग इस बात को नहीं समझेंगे तो इस देश के लोगों का लोकतंत्र से भरोसा धीरे-धीरे उठना स्वाभाविक है.
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अजय देवगन के साथ किया गूगल पर साक्षात्कार मोदी जी के साथ |
नरेंद्र मोदी ने कहा, 'ट्रैफिक बढ़ गया और लाखों की तादाद में लोग आ गए जिस कारण सिस्टम क्रैश हो गया। मैं गूगल प्लस का आभारी हूं उसने मुझे आपसे बात करने का मौका दिया। मैं देख रहा हूं कि वो किस तरह से ट्रैफिक को मैनेज कर रहे थे। इतनी दिक्कत तो सड़क पर खड़े ट्रैफिक पुलिस कर्मियों को भी नहीं होती होगी जितनी दिक्कत ट्रैफिक क्लियर करने में इन्हें हुई।'
पहला सवाल गुड़गांव के पवन ने पूछा उन्होंने उन्होंने युवा युग की बात उठाते हुए कहा कि ऐसा लग रहा है कि भारत चीन से पीछे छूट गया है? आपकी राय क्या है?
नरेंद्र मोदीः देश के करोड़ों युवाओं के मन में ये पीड़ा है कि हमारा देश आगे क्यों नहीं बढ़ रहा है। मैं समझता हूं कि यह दर्द अपने आप में बड़ी शक्ति है। 21वीं सदी एशिया की है और क्या वो चीन की सदी बनेगी या भारत की इस पर बहस हो रही है। 21वीं सदी ज्ञान की सदी है और मैं मन से मानता हूं कि इस सदी में भारत नेतृत्व करेगा और विश्व कल्याण के मार्ग पर जाएगा। ये बात सही है कि हमारा देश विश्व का सबसे युवा देश है। 65 प्रतिशत आबादी 35 वर्ष से कम है। यदि हम युवाओं की स्किल डेवलवमेंट करेंगे तो हम सही दिशा में जा सकेंगे। यह बात सही है कि चीन ने स्किल डेवलवमेंट पर बहुत काम किया है लेकिन गुजरात में हमने पूरा फोकस स्किल डेवलपमेंट पर ही किया है और इसके कारण हमारे पास एक वर्कफोर्स तैयार हो रहा है। मुझे विश्वास है कि भारत विश्व गुरु बनेगा और भारत की युवा शक्ति विश्व को लीड करेगी।
लंदन से एक दर्शक ने मोदी से सेक्यूलरिज्म की परिभाषा पूछी तो उन्होंने जवाब दिया, 'आपने बड़ा सनातन सवाल पूछा है। सेक्यूलरिज्म पर हमारे देश में खूब बहस होती है। डिक्शनरी में सेक्यूलरिज्म की जो परिभाषा है वो हिंदुस्तान में कहीं नहीं है। मेरे लिए सेक्यूलरिज्म के मायने इंडिया फर्स्ट है। भारत सबसे पहले जिसके मन में हैं वो सबसे बड़ा सेक्यूलर है। वोट बैंक की राजनीति ने हमारे सेक्यूलरिज्म को बहुत खोखला कर दिया है। जिस दिन वोट बैंक की राजनीति समाप्त हो जाएगी उस दिन विश्व भारत के सेक्यूलरिज्म को सलाम करेगा।'
बेंगलुरु से एक दर्शक ने सवाल किया, 'युवा राजनीति में नहीं आना चाह रहा है, अगर वो आना भी चाहता है तो परिवार नहीं आने देता, इस पर आपकी राय क्या है?
देखिये राजनीति अपने आप में खराब नहीं है, यही देखा जाये तो भगवान कृष्ण जो करते थे वो सब राजनीति ही थी। भगवान राम जो करते थे वो भी राजनीति ही थी। भगवान बुद्ध राजपरिवार में ही पैदा हुए थे। महात्मा गांधी देश को जगाने के लिए राजनीति में ही आए थे। राजनीति बुरी चीज नहीं है। लेकिन दुर्भाग्य से हमारे देश में आजादी की ललक को जिंदा नहीं रखा जा सका।
नरेंद्र मोदी ने जवाब दिया, 'देश के युवाओं को अगर स्वराज के निर्माण में हिस्सेदार बनाया होता तो ये दूरी नहीं होती। आज विशेष प्रयास करके राजनीति में आने का प्रयास करना होता है वो नहीं होता। आज से 40 साल पहले देश का जो नेतृत्व उभर कर आया वो या तो स्वतंत्रता संग्रामी थे या फिर कला से जुड़े लोग थे लेकिन धीरे धीरे परिवारों से, जातियों से , बंदूक की नोक से नेता पैदा होने लगे। यह बुराइयां आई हैं और इन्हें दूर करने के लिए युवाओं को नेतृत्व में आना ही होगा। मैं स्वयं बहुत सी सामान्य परिवार से आता हूं। मेरे परिवार में कोई राजनीति का र भी नहीं जानता था लेकिन मैं हिम्मत के साथ समाज के लिए कुछ करने के लिए निकल पड़ा और काम कर रहा हूं। राजनीति बहुत ही निर्णायक पोजीशन पर होती है। मैं युवाओं को निमंत्रण देता हूं कि राजनीति में आओ। अनुभव से कहता हूं कि कुछ बनने के सपने देखने के लिए राजनीति में नहीं आना चाहिए बल्कि कुछ करने के मकसद से राजनीति में आना चाहिए। आप कुछ करने के उद्देश्य से आएंगे तो कुछ बन भी जाएंगे। राजनीति मक्खन पर लकीर करने वाला खेल नहीं हैं यह पत्थर पर लकीर करने वाला खेल है और पत्थर पर लकीर देश के युवा खीचेंगे।
Sunday, September 9, 2012
मनमोहन सिंह को इतना फायदा वे दस करोड़ के आदमी हो गये हैं।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं। उनके राज में लाखों करोड़ के घपले घोटाले सामने आ रहे हैं। उनके राज में मंहगाई नित नये रिकार्ड तोड़ रही है। लेकिन यह रिकार्डतोड़ मंहगाई मनमोहन सिंह के लिए फायदे का सौदा साबित हो रही है।
उनकी संपत्तियों का इस साल का जो व्यौरा सामने आया है उसमें कहा गया है कि उनकी संपत्तियों की कीमत बढ़कर दोगुनी हो गयी है। सब मंहगाई का परिणाम है। उनके पास जो अचल संपत्तियां हैं, मंहगाई के कारण उनकी कीमत बढ़ रही है इसलिए कम से कम इस मंहगाई से मनमोहन सिंह को इतना फायदा हुआ है कि अपनी अचल संपत्तियों की बढ़ी कीमतों के कारण वे दस करोड़ के आदमी हो गये हैं।
मनमोहन सिंह की संपत्ति पिछले साल की तुलना में दोगुना बढ़ कर करीब 10.73 करोड़ की रूपये हो गई है। उनके कई मंत्रिमंडलीय सहयोगी उनसे कहीं अधिक अमीर हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय की वेबसाइट पर मंत्रियों की संपत्ति की अद्यतन सूची के अनुसार, अमीर कैबिनेट मंत्रियों में जहां प्रफुल पटेल की संपत्ति 52 करोड़ रूपये की है वहीं कपिल सिब्बल के पास 45 करोड़ की संपत्ति है। शरद पवार की संपत्ति 22 करोड़ रूपये की है तो कैबिनेट मंत्रियों की सूची में संपत्ति के नाम पर रक्षा मंत्री ए के एंटनी का नाम सबसे नीचे है। उनकी संपत्ति करीब 55 लाख रूपये है।
मनमोहन सिंह ने अपने रिहायशी संपत्ति, बैंक में जमा राशि और एक मारूति 800 कार को अपनी संपत्ति के तौर पर दर्शाया है। सिंह के चंडीगढ़ और दिल्ली स्थित दो फ्लैटों की कीमत 7.27 करोड़ रूपये है वहीं स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के विभिन्न खातों में उनकी सावधि जमा राशि और निवेशों की राशि करीब 3.46 करोड़ रूपये है। उन्होंने अपनी संपत्ति 10,73,88,730.81 रूपये (करीब 19.73 करोड़ रूपये) की घोषित की है।
पिछले साल प्रधानमंत्री ने अपनी कुल संपत्ति 5.11 करोड़ रूपये की घोषित की थी। तब उनके चंडीगढ़ और वसंत कुंज स्थित फ्लैटों की कीमत 1.78 करोड़ रूपये थी और उनके पास 2.75 लाख रूपये मूल्य के 150.80 ग्राम सोने के गहने थे। प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों ने बताया कि सिंह की संपत्ति तो वही है लेकिन सरकार की मंजूरी प्राप्त एक आकलनकर्ता द्वारा किए गए आकलन के अनुसार, उस संपत्ति का मूल्य बढ़ गया है। सिंह की मारूति 800 की कीमत केवल 21,033 रूपये दर्शाई गई है। वह 150.80 ग्राम सोने के गहनों के मालिक भी हैं लेकिन इनकी कीमत उनकी संपत्ति की घोषणा और देनदारी नहीं दर्शाई गई है। प्रधानमंत्री का असम के दिसपुर में एक बैंक खाता भी है जिसमें उनके मात्र 6,515.78 रूपये जमा हैं।
सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनाने के लिए 6 दावेदार नेताओं का कत्ल-------
सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनाने के लिए 6 दावेदार नेताओं का कत्ल-------
चर्च द्वारा योजनाबद्ध तरीके से एक फासीवादी इटालियन स्टीफैनो व पाओला माईनों की औलाद एडवीज एंटोनिया अलवीना माईनो उर्फ सोनिया गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाकार गांधी परिवार की विरासत पर कब्जे के साथ ही शहीदों द्वारा 1857 से 1947 तक किए गए संघर्ष व बलिदानों के परिमामस्वारूप भारतीयों के हाथों आई सत्ता को भारतीयों वोले तो हिन्दूओं से छीन कर सीधे चर्च के हाथों तक पहुंचाना।
ये कहानी शुरू होती है राजीब गांधी जी के पढ़ाई के लिए विदेश जाने के साथ ही। जैसे ही राजीब गांधी जी पढ़ाई के लिए लन्दन पहुंचे चर्च ने उन्हें अपने जाल में फंसाने के लिए जाल बुनना शुरू कर दिया। अपने इस जाल को अंजाम तक पहुंचाने के लिए चर्च की निगाह पड़ी लुसियाना इटली में कैथोलिक परिवार में जन्मी व कैथोलिक स्कूल में पढ़ाई कर रही फासीवादी स्टीफैनो व पाओला माईनों की औलाद एडवीज एंटोनिया अलवीना माईनो पर । चर्च ने एंटोनिया को 1964 में Cambridge शहर के The bell education Trust में अंग्रेजी सीखने के नाम पर प्रवेश दिलवाया। राजीब गांधी जी को अपने षडयन्त्र में फांसने के उद्देश्य से चर्च नें 1965 में राजीब गांधी जी की मुलाकात एडवीज एंटोनिया अलवीना माईनो से ग्रीक रैस्तरां में करवाई।
1968 में इन्दिरा गांधी जी जो कि पूरी तरह इस विदेशी अंग्रेज से राजीब गांधी जी की शादी के विरूद्ध थीं पर ततकालीन सोवियतसंघ से दबाबा वनवाकर एडवीज एंटोनिया अलवीना माईनो की शादी भोले-भाले राजीब गांधी जी से करवा दी गई। इतिहास गवाह है कि चर्च ने कभी भी विदेशी भूमि पर कब्जा जमाने के लिए संयम का परिचय नहीं दिया ।यहां भी शादी तो हो गई लोकिन चर्च का भारत पर सीधे राज करने का जो षडयन्त्र था उसे अन्जाम तक पहुंचाने के लिए जरूरी था एडवीज एंटोनिया अलवीना माईनो को कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचाना।
1965 में एडवीज एंटोनिया अलवीना माईनो व राजीब गांधी को साथ लाने के एकदम बाद ही चर्च ने जनवरी 1966 में सोवियत संघ के तासकंद में एक मुसलिम के माध्यम से लाल बहादुर शास्त्री जी को जहर देकर मरवा दिया। मतलब चर्च ने भारत पर कब्जे की ओर पहला कदम आगे बढ़ाया।
चर्च के दबाब व प्रभाव के परिमामस्वारूप ही लाल बहादुर शास्त्री जी का पोस्टमार्टम तक नहीं कवाया गया जबकि उनकी विधवा पत्नी ललिता शास्त्री जी लगातार पोस्टमार्टम की मांग करती रहीं ---- आप तो जानते ही हैं कि आज भी भारत में चर्च के आगे किसी की भी नहीं चलती ---- जो भी ,र्चच के मार्ग में आया उसे चर्च ने विना कोई समय गंवाय ठिकाने लगा दिया।
शास्त्री जी के कत्ल के बाद चर्च ने एडवीज एंटोनिया अलवीना माईनो के भारत में 15 वर्ष पूरे होने का इन्तजार शुरू किया क्योंकि 15 वर्ष भारत में नागरिकता के लिए एक आवस्यक शर्त है। साथ ही इस समय में शास्त्री जी की मौत पर उठा बबाल भी ठंडा हो गया। इसके साथ ही चर्च ने अपने अगले सिकार की खोज जारी रखी।
भारत पर कब्जे की चर्च की राह में सबसे बड़ी रूकाबट बनकर उभरे प्रखर देशभक्त संजय गांधी जी।
23 जून 1980 को सफदरगंज हबाई अड्डे के पास संजय गांधी जी को चर्च ने एक विमान दुर्घटना में कत्ल करवा दिया। सारे देश में शोर मचा दिया कि इन्दिरा गांधी ने अपने बेटे को मरवा दिया । हर जगह गली मुहल्ले चौराहे पर एक ही चर्चा कि इन्दिरा गांधी जी ने कुर्सी के लिए अपने ही बेटे को मरवा दिया। इस देश में चर्च की अपवाह फैलाओ मशीनरी जो कि 1947 से पहले से ही काम कर रही है उसकी देश के हर कोने तक पकड़ है। इसी अपवाह फैलाओ मशीनरी के षडयन्त्र का सिकार होकर भारतीयों ने चर्च के इसारे पर किए जा रहे कत्लों को दुर्धटनायें मानने की बेबकूफी की ।
बैसे भी भारतीय विशेषकर हिन्दु राजनितीक रूप से बेबकूफ हैं ये किसी को भी बताने जताने की अबस्यकता नहीं। जो हिन्दू मुसलमानों व ईसाईयों द्वारा देश के कई हिस्सों से बेदखल कर दिए जाने के बाबजूद आज भी अपने ही हिन्दू भाईयों के हक छीन कर अल्पसंख्यबाद के नाम पर उन्हीं कातिल मुसलमानों व इसाई को देकर इन कातिलों को ताकतबर बनाने पर तुले हों वो मूर्ख नहीं तो और क्या हैं ?
1980 संजय गांधी जी के कत्ल के बाद चर्च ने रूख किया इन्दिरा गांधी जी की ओर जिन्हें 1984 में कत्ल करवा दिया गया।
फिर 21 मई 1991 को राजीब गांधी जी का भी कत्ल करवाकर एडवीज एंटोनिया अलवीना माईनो को कांग्रेस के अध्यक्ष के पद पर पहूंचने का मार्ग साफ होग गया।
लोगों को असलियत पता न चल जाए इसके लिए कुछ दिन नौटंकी करने के बाद एडवीज एंटोनिया अलवीना माईनो उर्फ सोनिया गांधी को 1998 में कांग्रेस के पहले दलित कांग्रेस अध्यक्ष सीता राम केसरी जी को अनमानजनक रूप से हटाकर अध्यक्ष बना दिया गया।
1999 में कांग्रेस के तीन ताकतवर नेताओं सरद पवार, पूर्ण ए संगमा व तारिक अनवर ने कांग्रेस पर चर्च द्वारा विदेशी नेतृत्व थोपने के विरोध में एडवीज एंटोनिया अलवीना माईनो के विरूद्ध क्रांति का विगुल बजा दिया। लेकिन गुलाम मानसिकता से ग्रस्त कांग्रेसियों के सहयोग व भाजपा की मूर्खता के फलस्वारूप चर्च ने इन नेताओं को ठिकाने लगाकर इस क्रांति को दबाने में असफलता हासिल की । इसके वाद चर्च को डर सताने लगा । चर्च को लगा कि माधवराव सिंधिया व राजेश पायलट जैसे जनता से जुड़ें नेता कभी भी कांग्रेस के अध्यक्षपद के लिए दावेदारी पेसकर चर्च के सारे किए कराय पर पानी फेर सकते हैं। इसी समस्या का समाधान करने किए चर्च ने
11 जून 2000 को राजेश पायलट जी को कार दुर्घटना में मरवा दिया व बाद में एक जहाज दुर्घटना का सहारा लेकर माध्वराव सिंधिया जी को भी कत्ल करवा दिया गया।
इस तरह अब कांग्रेस में कोई भी ऐसा नेता न बचा जो चर्च की एजेंट एडवीज एंटोनिया अलवीना माईनो उर्फ सोनिया गांधी के लिए खतरा उत्पन्न कर सके। अब आप सोचो जरा कि क्या ये संयोग हो सकता है कि एक विदेशी एजेंट के रास्ते में रूकावट पैदा करने में सक्षम आधा दर्ज लोग अपने आप दुर्घटनाओं का सिकार हो जायें। हमारे विचार में तो ये चर्च द्वारा किए गए कत्ल हैं, अपनी एंजेंट इटालियन ईसाई एडवीज एंटोनिया अलवीना माईनो को ,भारत में स्थापित करने के लिए.......अगर आप अलग राय रखते हैं तो हमें अपनी राय से अबगत जरूर करवाना।
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