Friday, August 31, 2012
मैनेजमेंट गुरू स्टीफन कोवे के सिद्धांत
मैनेजमेंट गुरू स्टीफन कोवे के सिद्धांत
एडवर्ड डे बोनो, पीटर एफ ड्रकर और फिलिप कोटलर इन सबमें कौन-सी बात समान है? ये सब ऐसे लीडर हैं, जिनके कामों ने कुछ वर्षों में दुनियाभर में बिजनेस करने के तौर-तरीकों को बदल दिया है। हाल में आयी नई किताब बिजनेस गुरु दैट चेंज्ड द वर्ल्ड में सभी बड़े मैनेजमेंट गुरुओं के सिद्धांतों को शामिल किया गया है। यहां हम इस किताब से मैनेजमेंट गुरू स्टीफन कोवे के सिद्धांतों को दे रहे हैं, जिन्हें आप नौकरी या बिजनेस दोनों जगह अमल में ला सकते हैं।
पहल करें
परिस्थितियों के शिकार न बनें। विभिन्न कार्यक्रमों और उत्पन्न स्थितियों को अपने नियंत्रण में बनाए रखने के लिए नए तरीकों को आजमाएं। अपनी क्षमताओं का विस्तार करें। आप पहल करने में आगे रहते हैं या परिस्थितियों के शिकार बनते हैं, इसकी जांच करने के लिए स्टीफन अपने वाक्यों पर ध्यान देने के लिए कहते हैं। मैं ऐसा ही हूं, मैं इसमें कुछ भी नहीं कर सकता, उसने मुझे पागल बना रखा है, मैं भावनाओं पर काबू नहीं रख पाता, मुझे यह काम करना पड़ता है, मुझे खुद से कुछ करने की स्वतंत्रता नहीं है आदि वाक्य आपको परिस्थितियों का शिकार बताते हैं। यदि आपके साथ ऐसा है तो इस पर ध्यान दें।
पहले समझों और फिर समझ विकसित करें
इस आदत पर पकड़ बनाने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप सुनें। स्टीफन कहते हैं, अपने सहयोगियों, परिवार, दोस्तों, ग्राहकों को सुनें, पर आपका उद्देश्य उनकी बात का जवाब देना, उन्हें अपनी बात से सहमत कराना या जोड़-तोड़ करना नहीं होना चाहिए। दूसरों को सुनें, क्योंकि आप जानना चाहते हैं कि दूसरे लोग स्थितियों को किस तरह देखते हैं। यहां समानुभूति का कौशल विकसित करना जरूरी है। दूसरे के स्तर पर जाकर बातों को सुनने का अर्थ यह नहीं है कि आप उनकी बातों से सहमत हैं। इसका मतलब दूसरों को बौद्धिक व भावनात्मक स्तर पर समझना है।
आपसी तालमेल
यह शब्द गलत अर्थ ग्रहण कर लेता है, जब आप इसे अधिक कीमतों पर अधिग्रहण की नीतियों के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। स्टीफन आपसी तालमेल में रचनात्मक सहयोग के सिद्धांत पर जोर देने की बात करते हैं। उनके अनुसार विभिन्न टुकड़ों में बंटे होने से बेहतर है उसे पूर्ण रूप में हासिल करना। ऐसी नीति में व्यक्ति अपने से जुड़े हर पक्ष की उपयोगी दक्षताओं और संभावनाओं को साथ लेने और इस्तेमाल करने पर जोर देता है। इस आदत का विस्तार करने पर नतीजे 2+2 =4 न होकर पांच से अधिक मिलते हैं।
जो काम पहले करना जरूरी है, उसे पहले करें
इस आदत का विकास करने पर आप स्व-प्रबंधन सीखते हैं। जो चीज पहले की जानी है, उसे पहले करना यह खुद को व्यवस्थित करने का सही तरीका है। मुख्य चीजें क्या हैं, उनका निर्णय करना और उनका प्रबंधन करना एक तरह से अपनी योजना को क्रियान्वित करने के लिए जरूरी अनुशासन का पालन करना है। ऐसे में आप अपने कामों को चार भागों में बांट लें। महत्वपूर्ण, गैर महत्वपूर्ण, तुरंत किए जाने वाले कार्य, महत्वपूर्ण पर बाद में किए जा सकने वाले कार्य। इस तरह कामों को प्रभावी ढंग से कर सकेंगे।
जीत और केवल जीत
स्टीफन कहते हैं जीत और सिर्फ जीत के बारे में ही सोचें। इससे मानवीय संबंधों का आधार तय होता है। जीत-जीत के अलावा जीत-हार, हार-जीत, हार-हार की श्रेणी बनती है। वह कहते हैं, जब नजरिया जीत-जीत का होता है, तब आपका आशय होता है कि मैं जीतना चाहता हूं और मैं दूसरे पक्ष की भी जीत चाहता हूं। यदि आप दूसरे पक्ष के साथ अपनी बातचीत को इस स्थिति में नहीं बांट पाते हैं तो उसके साथ इस बात पर सहमत हो जाएं कि फिलहाल डील नहीं हो सकती। भविष्य में यदि स्थिति बनेगी तो ऐसा करेंगे। जीत-जीत वाली श्रेणी में सभी के लिए फायदे की संभावनाएं निहित होती हैं। सफलता सामूहिक सोच के साथ सहज रूप से आगे बढ़ती है। इसमें डील किसी एक की जीत या हार पर आधारित नहीं होती।
आरी की धार तेज करें
स्टीफन इस आदत को एक कहानी से समझाते हैं, जिसके अनुसार भले ही आपको लकड़ी काटने का काम करते हुए वर्षो हो गए हों, पर यदि आप बीच-बीच में ब्रेक लेकर आरी की धार को तेज नहीं करते तो वही काम करने में आपको अधिक समय लगेगा। कहने का आशय है कि आप खुद को आरी मानते हुए बीच-बीच में ब्रेक लेकर खुद को विकसित करने पर ध्यान दें। अपने काम करने के तरीकों में नयापन विकसित करें।
शुरुआत अंतिम परिणाम को सोचते हुए करें
यहां स्टीफन निजी स्तर पर खुद को तैयार करने और अपनी निजी योजनाओं को विकसित करने पर जोर देते हैं। इसे वह पर्सनल लीडरशिप का नाम देते हैं, जिससे व्यक्ति परिस्थितियों का शिकार न बन कर खुद को सही दिशा की ओर बढ़ाने के लिए तत्पर रहता है। इस आदत का विकास करने पर व्यक्ति अपनी समस्त ऊर्जा को अपने अंतिम लक्ष्यों की ओर ले जाने वाली गतिविधियों पर लगा पाता है। आप विभिन्न विकल्पों में उलझते नहीं हैं। खुद को अधिक उत्पादक और सफल बनने की प्रक्रिया की ओर ले जाते हैं।
Thursday, August 23, 2012
Wednesday, August 22, 2012
हम शर्मिंदा हैं
हम शर्मिंदा हैं
मै भी तुझसे तू भी मुझसे,कुछ बात से हम शर्मिंदा हैंन तू भूला न मै भूला, प्यार तो अब भी जिंदा है
न कुछ तेरा सब-कुछ मेरा उसूल बनाकर रखा है
लूट मची है ऐसे-जैसे, पुश्तैनी ये धंधा है
विज्ञापन में है नारी जिसका उसमें शोषण है
ख़ुश है अपनी बेशर्मी पे, गंदा है पर धंधा है
अपनी इस तरक्की पे खुश हैं हम-सब बहुत मगर
चूसा कितना खून है, गला कितनों का रेंदा है
बाँट रहे हैं नफ़रतें लेकर ख़ुदा का नाम
मुश्किल भरा ये दौर है, कौन खुदा का बंदा है
अक्सर हमारे हाथ यही रह जाता है
अक्सर हमारे हाथ यही रह जाता है
अक्सर हमारे हाथ यही रह जाता हैडर और पैसे में इंसाफ़ बिक जाता है
है झूठ तो फाँसी पे चढ़ा दो मुझको
इंसाफ के इंतज़ार में इंसान ही उठ जाता है
बच्चों को सब्र करना ही सिखाया मैंने
सब्र खुद मेरा अब टूट जाता है
ए खुदा कोई आस जगा दे दिल में
मेरे सीने में तूफ़ान सा उठ जाता है
हक़ की लड़ाई में सब-कुछ बिक गया
गुनहगार हर-बार बाइज्ज़त बच जाता है
सवालों के कटघरे में खड़ा हूँ नादिर
सच बोलना गुनाहे कबीरा बन जाता है
दम तोड़ती रही ज़िंदगी रात-भर
दम तोड़ती रही ज़िंदगी रात-भर
दम तोड़ती रही ज़िंदगी रात-भरबेपरवाह महफ़िलें सजीं रात-भर
दंगों में मरते रहे बच्चे – बूढ़े
इंसानियत शर्मशार रही रात-भर
थी आज़ादी की सालगिरह जश्न का माहौल भी
झोपड़ियों की मसालें जलीं रात-भर
मै घर भी जाता तो क्या लेकर
उम्मीदें तार-तार हुईं रात-भर
सबकी फ़िक्र लिए भटकते रहे हम
सबकुछ लूट गया हुई बेज़्ज़ती रात-भर
अब अगर आओ तो
अब अगर आओ तो
अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आनासिर्फ एहसान जताने के लिए मत आना
मैंने पलकों पे तमन्नाएँ सजा रखी हैं
दिल में उम्मीद की सौ शम्मे जला रखी हैं
ये हसीं शम्मे बुझाने के लिए मत आना
प्यार की आग में जंजीरें पिघल सकती हैं
चाहने वालों की तक़दीरें बदल सकती हैं
तुम हो बेबस ये बताने के लिए मत आना
अब तुम आना जो तुम्हें मुझसे मुहब्बत है कोई
मुझसे मिलने की अगर तुमको भी चाहत है कोई
तुम कोई रस्म निभाने के लिए मत आना
आप भी आइए
आप भी आइए
आप भी आइए हमको भी बुलाते रहिएदोस्ती ज़ुर्म नहीं दोस्त बनाते रहिए।
ज़हर पी जाइए और बाँटिए अमृत सबको
ज़ख्म भी खाइए और गीत भी गाते रहिए।
वक्त ने लूट लीं लोगों की तमन्नाएँ भी,
ख़्वाब जो देखिए औरों को दिखाते रहिए।
शक्ल तो आपके भी ज़हन में होगी कोई,
कभी बन जाएगी तसवीर बनाते रहिए।
आज मैंने अपना फिर सौदा किया
आज मैंने अपना फिर सौदा किया
आज मैंने अपना फिर सौदा कियाऔर फिर मैं दूर से देखा किया
ज़िन्दगी भर मेरे काम आए असूल
एक एक करके मैं उन्हें बेचा किया
कुछ कमी अपनी वफ़ाओं में भी थी
तुम से क्या कहते कि तुमने क्या किया
हो गई थी दिल को कुछ उम्मीद सी
खैर तुमने जो किया अच्छा किया
कभी यूँ भी तो हो
कभी यूँ भी तो हो
कभी यूँ भी तो होदरिया का साहिल हो
पूरे चाँद की रात हो
और तुम आओ
कभी यूँ भी तो हो
परियों की महफ़िल हो
कोई तुम्हारी बात हो
और तुम आओ
कभी यूँ भी तो हो
ये नर्म मुलायम ठंडी हवायें
जब घर से तुम्हारे गुज़रें
तुम्हारी ख़ुश्बू चुरायें
मेरे घर ले आयें
कभी यूँ भी तो हो
सूनी हर मंज़िल हो
कोई न मेरे साथ हो
और तुम आओ
कभी यूँ भी तो हो
ये बादल ऐसा टूट के बरसे
मेरे दिल की तरह मिलने को
तुम्हारा दिल भी तरसे
तुम निकलो घर से
कभी यूँ भी तो हो
तनहाई हो, दिल हो
बूँदें हो, बरसात हो
और तुम आओ
कभी यूँ भी तो हो
इक पल गमों का दरिया
इक पल गमों का दरिया
इक पल गमों का दरिया, इक पल खुशी का दरियारूकता नहीं कभी भी, ये ज़िन्दगी का दरिया
आँखें थीं वो किसी की, या ख़्वाब की ज़ंजीरे
आवाज़ थी किसी की, या रागिनी का दरिया
इस दिल की वादियों में, अब खाक उड़ रही है
बहता यहीं था पहले, इक आशिकी का दरिया
किरनों में हैं ये लहरें, या लहरों में हैं किरनें
दरिया की चाँदनी है, या चाँदनी का दरिया
जाते जाते वो मुझे
जाते जाते वो मुझे
जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गयाउम्र भर दोहराऊँगा ऐसी कहानी दे गया
उससे मैं कुछ पा सकूँ ऐसी कहाँ उम्मीद थी
ग़म भी वो शायद बरा-ए-मेहरबानी दे गया
सब हवायें ले गया मेरे समंदर की कोई
और मुझ को एक कश्ती बादबानी दे गया
ख़ैर मैं प्यासा रहा पर उस ने इतना तो किया
मेरी पलकों की कतारों को वो पानी दे गया
क्यों डरें ज़िन्दगी में क्या होगा
क्यों डरें ज़िन्दगी में क्या होगा
क्यों डरें ज़िन्दगी में क्या होगाकुछ ना होगा तो तज़रूबा होगा
हँसती आँखों में झाँक कर देखो
कोई आँसू कहीं छुपा होगा
इन दिनों ना-उम्मीद सा हूँ मैं
शायद उसने भी ये सुना होगा
देखकर तुमको सोचता हूँ मैं
क्या किसी ने तुम्हें छुआ होगा
दर्द अपनाता है पराए कौन
दर्द अपनाता है पराए कौन
दर्द अपनाता है पराए कौनकौन सुनता है और सुनाए कौन
कौन दोहराए वो पुरानी बात
ग़म अभी सोया है जगाए कौन
वो जो अपने हैं क्या वो अपने हैं
कौन दुख झेले आज़माए कौन
अब सुकूँ है तो भूलने में है
लेकिन उस शख़्स को भुलाए कौन
आज फिर दिल है कुछ उदास उदास
देखिये आज याद आए कौन
तमन्ना फिर मचल जाए
तमन्ना फिर मचल जाए
तमन्ना फिर मचल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओयह मौसम ही बदल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
मुझे गम है कि मैने जिन्दगी में कुछ नहीं पाया
ये ग़म दिल से निकल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
नहीं मिलते हो मुझसे तुम तो सब हमदर्द हैं मेरे
ज़माना मुझसे जल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
ये दुनिया भर के झगड़े, घर के किस्से, काम की बातें
बला हर एक टल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
प्यास की कैसे लाए
प्यास की कैसे लाए
प्यास की कैसे लाए ताब[1] कोईनहीं दरिया तो हो सराब[2] कोई
रात बजती थी दूर शहनाई
रोया पीकर बहुत शराब कोई
कौन सा ज़ख्म किसने बख्शा है
उसका रखे कहाँ हिसाब कोई
फिर मैं सुनने लगा हूँ इस दिल की
आने वाला है फिर अज़ाब[3] कोई
शब्दार्थ:
- ↑ सामना करना का साहस
- ↑ मरीचिका
- ↑ सज़ा
मिसाल इसकी कहाँ है
मिसाल इसकी कहाँ है
मिसाल इसकी कहाँ है ज़माने में
कि सारे खोने के ग़म पाये हमने पाने में
वो शक्ल पिघली तो हर शै में ढल गई जैसे
अजीब बात हुई है उसे भुलाने में
जो मुंतज़िर[1] न मिला वो तो हम हैं शर्मिंदा
कि हमने देर लगा दी पलट के आने में
लतीफ़[2] था वो तख़य्युल[3] से, ख़्वाब से नाज़ुक
गँवा दिया उसे हमने ही आज़माने में
समझ लिया था कभी एक सराब[4] को दरिया
पर एक सुकून था हमको फ़रेब खाने में
झुका दरख़्त हवा से, तो आँधियों ने कहा
ज़ियादा फ़र्क़ नहीं झुक के टूट जाने में
शब्दार्थ:कि सारे खोने के ग़म पाये हमने पाने में
वो शक्ल पिघली तो हर शै में ढल गई जैसे
अजीब बात हुई है उसे भुलाने में
जो मुंतज़िर[1] न मिला वो तो हम हैं शर्मिंदा
कि हमने देर लगा दी पलट के आने में
लतीफ़[2] था वो तख़य्युल[3] से, ख़्वाब से नाज़ुक
गँवा दिया उसे हमने ही आज़माने में
समझ लिया था कभी एक सराब[4] को दरिया
पर एक सुकून था हमको फ़रेब खाने में
झुका दरख़्त हवा से, तो आँधियों ने कहा
ज़ियादा फ़र्क़ नहीं झुक के टूट जाने में
- ↑ इंतज़ार में
- ↑ मज़ेदार
- ↑ सोच
- ↑ मरीचिका
भूख
भूख
आँख खुल मेरी गई हो गया मैं फिर ज़िन्दापेट के अन्धेरो से ज़हन के धुन्धलको तक
एक साँप के जैसा रेंगता खयाल आया
आज तीसरा दिन है
आज तीसरा दिन है
एक अजीब खामोशी से भरा हुआ कमरा कैसा खाली-खाली है
मेज़ जगह पर रखी है कुर्सी जगह पर रखी है फर्श जगह पर रखी है
अपनी जगह पर ये छत अपनी जगह दीवारे
मुझसे बेताल्लुक सब, सब मेरे तमाशाई है
सामने की खिड़्की से तीज़ धूप की किरने आ रही है बिस्तर पर
चुभ रही है चेहरे में इस कदर नुकीली है
जैसे रिश्तेदारो के तंज़ मेरी गुर्बत पर
आँख खुल गई मेरी आज खोखला हूँ मै
सिर्फ खोल बाकी है
आज मेरे बिस्तर पर लेटा है मेरा ढाँचा
अपनी मुर्दा आँखो से देखता है कमरे को एक सर्द सन्नाटा
आज तीसरा दिन है
आज तीसरा दिन है
दोपहर की गर्मी में बेरादा कदमों से एक सड़क पर चलता हूँ
तंग सी सड़क पर है दौनो सिम पर दुकाने
खाली-खाली आँखो से हर दुकान का तख्ता
सिर्फ देख सकता हूँ अब पढ़ नहीं जाता
लोग आते-जाते है पास से गुज़रते है
सब है जैसे बेचेहरा
दूर की सदाए है आ रही है दूर
मैनें दिल से कहा
मैनें दिल से कहा
ऐ दीवाने बता
जब से कोई मिला
तू है खोया हुआ
ये कहानी है क्या
है ये क्या सिलसिला
ऐ दीवाने बता
मैनें दिल से कहा
ऐ दीवाने बता
धड़कनों में छुपी
कैसी आवाज़ है
कैसा ये गीत है
कैसा ये साज़ है
कैसी ये बात है
कैसा ये राज़ है
ऐ दीवाने बता
मेरे दिल ने कहा
जब से कोई मिला
चाँद तारे फ़िज़ा
फूल भौंरे हवा
ये हसीं वादियाँ
नीला ये आसमाँ
सब है जैसे नया
मेरे दिल ने कहा
बात इतनी सी है
के तुजे प्यार है ....!
ऐ दीवाने बता
जब से कोई मिला
तू है खोया हुआ
ये कहानी है क्या
है ये क्या सिलसिला
ऐ दीवाने बता
मैनें दिल से कहा
ऐ दीवाने बता
धड़कनों में छुपी
कैसी आवाज़ है
कैसा ये गीत है
कैसा ये साज़ है
कैसी ये बात है
कैसा ये राज़ है
ऐ दीवाने बता
मेरे दिल ने कहा
जब से कोई मिला
चाँद तारे फ़िज़ा
फूल भौंरे हवा
ये हसीं वादियाँ
नीला ये आसमाँ
सब है जैसे नया
मेरे दिल ने कहा
बात इतनी सी है
के तुजे प्यार है ....!
मिसाल इसकी कहाँ है
मिसाल इसकी कहाँ है
मिसाल इसकी कहाँ है ज़माने में
कि सारे खोने के ग़म पाये हमने पाने में
वो शक्ल पिघली तो हर शै में ढल गई जैसे
अजीब बात हुई है उसे भुलाने में
जो मुंतज़िर[1] न मिला वो तो हम हैं शर्मिंदा
कि हमने देर लगा दी पलट के आने में
लतीफ़[2] था वो तख़य्युल[3] से, ख़्वाब से नाज़ुक
गँवा दिया उसे हमने ही आज़माने में
समझ लिया था कभी एक सराब[4] को दरिया
पर एक सुकून था हमको फ़रेब खाने में
झुका दरख़्त हवा से, तो आँधियों ने कहा
ज़ियादा फ़र्क़ नहीं झुक के टूट जाने में
शब्दार्थ:कि सारे खोने के ग़म पाये हमने पाने में
वो शक्ल पिघली तो हर शै में ढल गई जैसे
अजीब बात हुई है उसे भुलाने में
जो मुंतज़िर[1] न मिला वो तो हम हैं शर्मिंदा
कि हमने देर लगा दी पलट के आने में
लतीफ़[2] था वो तख़य्युल[3] से, ख़्वाब से नाज़ुक
गँवा दिया उसे हमने ही आज़माने में
समझ लिया था कभी एक सराब[4] को दरिया
पर एक सुकून था हमको फ़रेब खाने में
झुका दरख़्त हवा से, तो आँधियों ने कहा
ज़ियादा फ़र्क़ नहीं झुक के टूट जाने में
- ↑ इंतज़ार में
- ↑ मज़ेदार
- ↑ सोच
- ↑ मरीचिका
हर ख़ुशी में कोई कमी सी है
हर ख़ुशी में कोई कमी सी है
हर ख़ुशी में कोई कमी-सी हैहँसती आँखों में भी नमी-सी है
दिन भी चुप चाप सर झुकाये था
रात की नब्ज़ भी थमी-सी है
किसको समझायें किसकी बात नहीं
ज़हन और दिल में फिर ठनी-सी है
ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई
गर्द इन पलकों पे जमी-सी है
कह गए हम ये किससे दिल की बात
शहर में एक सनसनी-सी है
हसरतें राख हो गईं लेकिन
आग अब भी कहीं दबी-सी है
यही हालात इब्तदा से रहे
यही हालात इब्तदा से रहे
यही हालात इब्तदा[1] से रहे
लोग हमसे ख़फ़ा-ख़फ़ा-से रहे
बेवफ़ा तुम कभी न थे लेकिन
ये भी सच है कि बेवफ़ा-से रहे
इन चिराग़ों में तेल ही कम था
क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे
बहस, शतरंज, शेर, मौसीक़ी[2]
तुम नहीं रहे तो ये दिलासे रहे
उसके बंदों को देखकर कहिये
हमको उम्मीद क्या ख़ुदा से रहे
ज़िन्दगी की शराब माँगते हो
हमको देखो कि पी के प्यासे रहे
शब्दार्थ:लोग हमसे ख़फ़ा-ख़फ़ा-से रहे
बेवफ़ा तुम कभी न थे लेकिन
ये भी सच है कि बेवफ़ा-से रहे
इन चिराग़ों में तेल ही कम था
क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे
बहस, शतरंज, शेर, मौसीक़ी[2]
तुम नहीं रहे तो ये दिलासे रहे
उसके बंदों को देखकर कहिये
हमको उम्मीद क्या ख़ुदा से रहे
ज़िन्दगी की शराब माँगते हो
हमको देखो कि पी के प्यासे रहे
- ↑ शुरु
- ↑ संगीत कला
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी
ये बता दे मुझे ज़िन्दगीप्यार की राह के हमसफ़र
किस तरह बन गये अजनबी
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी
फूल क्यूँ सारे मुरझा गये
किस लिये बुझ गई चाँदनी
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी
कल जो बाहों में थी
और निगाहों में थी
अब वो गर्मी कहाँ खो गई
न वो अंदाज़ है
न वो आवाज़ है
अब वो नर्मी कहाँ खो गई
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी
बेवफ़ा तुम नहीं
बेवफ़ा हम नहीं
फिर वो जज़्बात क्यों सो गये
प्यार तुम को भी है
प्यार हम को भी है
फ़ासले फिर ये क्या हो गये
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी
प्यार मुझसे जो किया तुमने
प्यार मुझसे जो किया तुमने
प्यार मुझसे जो किया तुमने तो क्या पाओगीमेरे हालात की आंधी में बिखर जाओगी
रंज और दर्द की बस्ती का मैं बाशिन्दा हूँ
ये तो बस मैं हूँ के इस हाल में भी ज़िन्दा हूँ
ख़्वाब क्यूँ देखूँ वो कल जिसपे मैं शर्मिन्दा हूँ
मैं जो शर्मिन्दा हुआ तुम भी तो शरमाओगी
क्यूं मेरे साथ कोई और परेशान रहे
मेरी दुनिया है जो वीरान तो वीरान रहे
ज़िन्दगी का ये सफ़र तुमको तो आसान रहे
हमसफ़र मुझको बनाओगी तो पछताओगी
एक मैं क्या अभी आयेंगे दीवाने कितने
अभी गूंजेगे मुहब्बत के तराने कितने
ज़िन्दगी तुमको सुनायेगी फ़साने कितने
क्यूं समझती हो मुझे भूल नही पाओगी
चली है बेचैन हवा
चली है बेचैन हवा
चली है बेचैन हवाऐ खुदा ! रोक ले
रहम कर ऐ खुदा !
ये हवा रोक ले
उजड़ गयीं बस्तियाँ
मिट गयीं हस्तियाँ
बुझ गयीं तूफ़ान में
टिमटिमाती बत्तियाँ
डूब गयीं कगार पे
न जाने कितनी कश्तियाँ
ये अन्धकार बढ़ रहा
ऐ खुदा ! रोक ले
रहम कर ऐ खुदा !
ये हवा रोक ले
खुद अपनी सृष्टि में
क्यों कहर मचा रहा
दृश्य क्यों विनाश का
हमें तू दिखा रहा
ख्याल मेरे मन में ये
बार-बार आ रहा
क्यों सितम ढा रहा
ऐ खुदा ! रोक ले
रहम कर ऐ खुदा !
ये हवा रोक ले
एक नया सा जहाँ बसायेंगे…
एक नया सा जहाँ बसायेंगे…
एक नया सा जहाँ बसायेंगे.
शामियाने नये सजायेंगे..
जहाँ खुशियों की बारिशें होंगी.
गम की ना कोई भी जगह होगी..
रात होगी तो बस सुकूं के लिये.
खिलखिलाती हुई सुबह होगी..
कोई किसी से ना नफरत करेगा.
करेगा प्यार, मोहब्बत करेगा..
जहाँ बच्चे ना भूखे सोयेंगे.
अपना बचपन कभी ना खोयेंगे..
देश का होगा, विकास जहाँ.
नेता होंगे सुभाष जैसे जहाँ..
जुल्म की दस्तां नहीं होगी.
अश्क से आँख ना पुरनम होगी..
राम-रहीम में, होगा ना कोई फर्क यहाँ.
ऐ खुदा तू भी, रह सकेगा जहाँ – २..
ना बना पाये, इस धरती को हम, स्वर्ग तो क्या.
इन्सां के रहने के, काबिल तो बना सकते हैं…
इन्सां के रहने के, काबिल तो बना सकते हैं…
बुरे कर्मों का देखो मैंने कितना दुःख उठाया है
बुरे कर्मों का देखो मैंने कितना दुःख उठाया है
बुरे कर्मों का देखो मैंने कितना दुःख उठाया हैमेरा साया मुझको ही अपनाने से कतराता है
जिसको मारी ठोकर आज उसी के दर पे जाता हूँ
रो-रोकर अपने दिल का औरों से हाल छुपाता हूँ
कोई किसी का नहीं यहाँ कहकर जी बहलाता हूँ
आदमी देखो, कैसे यहाँ खुद की चिता जलाता है
मेरा साया मुझको ही अपनाने से कतराता है
जिसने चाहा दिल से मुझको उसी का अवसान किया
उस डाली को काटा मैंने जिसने धूप-छाँव दिया
इक छोटी-सी भूल ने मेरे दिल में ऐसा घाव किया
अंत समय आया तो अब अंतर्मन पछताता है
मेरा साया मुझको ही अपनाने से कतराता है
सबको समझा याचक और खुद को समझा दानी
यही भूल बन गयी मेरे जीवन की करूण-कहानी
हाय, अनजाने में न जाने कितनों की हुई है हानि
सोचा तो ये जाना सबको नाच वही नचाता है
मेरा साया मुझको ही अपनाने से कतराता है
दीपक से मांगो न उजाला…
दीपक से मांगो न उजाला…
दीपक से मांगो न उजाला, सूरज का इंतज़ार करोचुपके-चुपके लम्हा-लम्हा, हृदय का विस्तार करो
हम करें प्रार्थना उसकी जो मुक्ति देने वाला है
एक वही जो इस जग को रचा, मिटाने वाला है
जिसको पाने की ख़ातिर मन इतना मतवाला है
सबसे पहले तुम अपने मन का ठोस आधार करो
चुपके-चुपके लम्हा-लम्हा, हृदय का विस्तार करो
यूँ तो दीपक भी सूरज को आने की राह दिखाता है
लेकिन पहले वो भी तम को अपना मीत बनाता है
फिर उसके आने के बाद खुद-ब-खुद मिट जाता है
जीवन दीपक जैसा हो ये कोशिश बार-बार करो
चुपके-चुपके लम्हा-लम्हा, हृदय का विस्तार करो
कभी-कभी गर्दिश में दीपक की साँसें टूटती हैं
स्नेह उसका झर जाता है, हस्ती उसकी मिटती है
लेकिन कोई दिल में रखे, रात अँधेरी कटती है
जब-तक है ये जीवन तुम औरों का उपकार करो
चुपके-चुपके लम्हा-लम्हा, हृदय का विस्तार करो
जाग ऐ वतन, जाग
जाग ऐ वतन, जाग
जाग ऐ वतन, जागकब नहीं रहा है तू
कब नहीं रहा हूँ मैं
कब नहीं रहेंगे लोग
सच कह रहा हूँ मैं
मेरी छत्र-छाया में
भंग हो तेरा विषाद
जाग ऐ वतन, जाग
अपने-पराये सब यहाँ
खड़े हैं सीना तान के
निकाल बाण युद्ध कर
बात मेरी मान के
डसने को तैयार है
काल का विकराल नाग
जाग ऐ वतन, जाग
आतंक चारों ओर है
उठ, जाग देख तू
धर्म के संग्राम में
अधर्म उखाड़ फ़ेंक तू
बजा बिगुल आगे बढ
युद्धभूमि से न भाग
जाग ऐ वतन, जाग
सदा मैं तेरे साथ हूँ
सदा तू मेरा साथ दे
बनकर निमित्त तू
दुश्मनों को मात दे
ये बाँसुरी नहीं, मेरा
धनुष है सिंगार आज
जाग ऐ वतन, जाग
वो आदमी क्या आदमी जो वक्त पे न काम दे
वो आदमी क्या आदमी जो वक्त पे न काम दे
वो आदमी क्या आदमी जो वक्त पे न काम देहै आदमी वही जो गिरते हुए को थाम ले
साथ उनके चलो जो ज़िन्दगी-भर साथ दे
सत्य के लिये जो अपने प्राण भी त्याग दे
है आदमी वही जो अपने होने का प्रमाण दे
वो आदमी क्या आदमी जो वक्त पे न काम दे
सुख में रहे मगर दुःख से डरे नहीं
जोश दिल में कभी उत्थान का मरे नहीं
है आदमी वही जो अपने-आप को पहचान ले
वो आदमी क्या आदमी जो वक्त पे न काम दे
चलते रहो रूको नहीं, मंज़िल मिल जायेगी
मन में हो लगन यदि राह मिल जायेगी
है आदमी वही जो सही काम को अंज़ाम दे
वो आदमी क्या आदमी जो वक्त पे न काम दे
नन्हें-मुन्ने की आँखों में है भारत का सपना
नन्हें-मुन्ने की आँखों में है भारत का सपना
नन्हें-मुन्ने की आँखों में है भारत का सपनाआज नहीं तो कल होगा पर होगा पूरा सपना
भारत का सपना हो पूरा ये उद्देश्य हमारा है
अपना-अपना देश सबको लगता सचमुच प्यारा है
मायूस न होना, चलते रहना और हरदम ये कहना
आज नहीं तो कल होगा पर होगा पूरा सपना
देते हो कुछ भी नहीं, लेने को दो-दो हाथ हैं
देना सीखो धरती को जो रखती अपने पास है
दुल्हन-सा सिंगार हमेशा तन-मन-धन से करना
आज नहीं तो कल होगा पर होगा पूरा सपना
देश की ख़ातिर जो अपने प्राण यहाँ गंवाते हैं
ऐसे वीरों के आगे हम अपना शीश नवाते हैं
मानाकि है घोर अँधेरा, दीप हथेली पर रखना
आज नहीं तो कल होगा पर होगा पूरा सपना
पहले ये मालूम न था, अब मुझको ऐसा लगता है
पहले ये मालूम न था, अब मुझको ऐसा लगता है
मेरे दिल को जैसे कोई अपने दिल में रखता है
ये मत पूछो यारों मुझसे इश्क मै किससे करता हूँ
जिसके दिल में रहता हूँ मैं इश्क उसी से करता हूँ
उसके दिल की धडकन से दिल मेरा धड़कता है
पहले ये मालूम न था, अब मुझको ऐसा लगता है
मोहब्बत के परिंदों को उड़ने से मत रोको
इस डाली से उस डाली तक जाने से मत रोको
आज़ाद रहे ये पंछी मुझको हरदम ऐसा लगता है
पहले ये मालूम न था, अब मुझको ऐसा लगता है
बात न जाने मेरे दिल में कब से यारों दबी रही
बनते-बनते बन जायेगी, बात अभी तक नहीं बनी
हो जायेगा संगम एक दिन ऐसा मुझको लगता है
पहले ये मालूम न था, अब मुझको ऐसा लगता है
मेरे दिल को जैसे कोई अपने दिल में रखता है
ये मत पूछो यारों मुझसे इश्क मै किससे करता हूँ
जिसके दिल में रहता हूँ मैं इश्क उसी से करता हूँ
उसके दिल की धडकन से दिल मेरा धड़कता है
पहले ये मालूम न था, अब मुझको ऐसा लगता है
मोहब्बत के परिंदों को उड़ने से मत रोको
इस डाली से उस डाली तक जाने से मत रोको
आज़ाद रहे ये पंछी मुझको हरदम ऐसा लगता है
पहले ये मालूम न था, अब मुझको ऐसा लगता है
बात न जाने मेरे दिल में कब से यारों दबी रही
बनते-बनते बन जायेगी, बात अभी तक नहीं बनी
हो जायेगा संगम एक दिन ऐसा मुझको लगता है
पहले ये मालूम न था, अब मुझको ऐसा लगता है
Saturday, August 18, 2012
कैसे करें अपना फेसबुक एकाउंट डिलीट
कैसे करें अपना फेसबुक एकाउंट डिलीट
सोशल नेटवर्किंग के दौर में यूं तो फेसबुक से एक दिन के लिए भी दूर होना मुश्किल है, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इससे पूरी तरह से ऊब चुके हैं। या फिर वे पूराना एकाउंट डिलीट करके नया एकाउंट बनाना चाहते हैं। कुछ यूजर्स ऐसे भी हैं जिन्होंने शुरुआत में आनन फानन में सैकड़ों की तादाद में ‘फ्रेंड्स’ को एड कर लिया है और अब उनसे जल्द से जल्द छुटकारा पा कर नया अकाउंट बनाना चाहते हैं।
जब बारी फेसबुक अकाउंट को डिलीट करने की आती है, तो ज्यादातर लोग खुद को इस मामले में असहाय पाते हैं। फेसबुक ने अपने फीचर में अकाउंट को डिलीट करने का आप्शन नहीं दिया है। कुछ मशक्कत कर भी ली जाए, तो आप केवल ‘डिएक्टिवेट योर अकाउंट’ तक ही पहुंच पाएगें।
इससे दूसरे यूजर आपका अकाउंट नहीं देख पाएगें, लेकिन आपकी पिक्चर और दूसरी सभी सामग्री सर्वर पर ही सेव रहतीं हैं। इसलिए अगर आप अगर आप अपना एकाउंट आगे नहीं चलाना चाहते हैं तो उसे पूरी तरह से डिलीट कर दीजिए-
इस लिंक पर जाइए-
अपना एकाउंट डिलीट करने के लिए सबसे पहले अपने एकाउंट में लॉग इन करके दसरे टैब में इस यूआरएल को इंटर करें।
अगर आप फेसबुक पर लॉग-इन नहीं हैं, तो सबसे पहले आपको लॉग इन होना पडेगा। इसके बाद यहां आपको सबमिट बटन पर क्लिक करना पडेगा। यूआरएल डालते ही आपके सामने एकाउंट डिलीट का ऑप्शन खुलकर सामने आ जाएगा। ध्यान रखे की सबमिट करने के बाद दो सप्ताह तक अपने एकाउंट को लॉग-इन ना करें। इस तरह आपका अकाउंट डिलीट हो जाएगा।
Thursday, August 16, 2012
पाकिस्तान ने खोली भारत के इस्लामी जेहादियों की पोल
पाकिस्तान ने खोली भारत के इस्लामी जेहादियों की पोल
- बर्मा में मुस्लिम उत्पीडन की हकीकत का पर्दाफाश....!!!
- पाकिस्तान ने खोली भारत के इस्लामी जेहादियों की पोल
- बर्मा में मुस्लिमो के विरुद्ध हिंसा की झूंठी खबरे हुई बेनकाब
- पाकिस्तान ने हिन्दुस्तान के इस्लामी जेहादियों को दिखाया सच का आईना
- उल्टा चोर कोतबाल को डांटे बाली कहाबत साबित हुए बर्मा के हालात पर
- हिन्दुस्तान के जेहादियों के मुहँ पर पाकिस्तानी तमाचा
- भारत में मुस्लिम हितों की लड़ाई लड़ने बाली तीस्ता शीतलबाड़ ने भी खोली
- भारत के पाकिस्तान परस्त जेहादियों की पोल
- पाकिस्तान के एक नागरिक ने किया हिन्दुस्तान के दंगाईयो का पर्दाफाश
- बर्मा में मुस्लिम उत्पीडन की झूंठी खबरों और फर्जी फोटो से भारत में दंगा
- करने बालो को किया एक पाकिस्तानी ने बेनकाब
- भारत में रह कर ‘’पाकिस्तान जिंदाबाद’’ के नारे लगाने बालो और ‘’पाकिस्तान
- का झंडा फहराने बालो’’ के मुहँ पर पाकिस्तानी तमाचा ..
- मुम्बई पुलिस कमिश्नर को सौपे तीस्ता शीतलबाड़ ने सबूत
- फर्जी फोटो के आधार पर भारत में फैलाया गया था तनाव
Note ,,,,,, पूरी जानकारी के लिये नीचे दिए लिंक को जरुर देखे
(इस फोटो में दिख रहे बर्मा के बौद्ध अपने देश में बंगलादेशी घुसपैठियों द्वारा फैलाई जा रही हिंसा के खिलाफ शांतिपूर्वक ढंग से एक मंदिर में प्रार्थना करते हुए ..क्या आपको इनके चेहरों पर जेहादियों जैसी आक्रामकता या हिंसा के कोई भाव दिख रहे है.. इन्ही लोगो पर झूंठा इल्जाम लगाया गया है की इन लोगो ने हिंसा की थी )
पिछले काफी समय से सोशल नेटवर्क पर बर्मा में मारे जा रहे मुस्लिमो की तस्वीरे चर्चा का विषय थी ... इन फोटो के आधार पर भारत की मुस्लिम आवादी के वीच झूठी खबरे फैलाई गयी की बर्मा में बड़े पैमाने पर मुस्लिमो को मारा जा रहा है इन फोटो के आधार पर भारत के अंदर बहुत शातिराना तरीके से एक आन्दोलन को अंजाम दिया जा रहा था .. फर्जी फोटो को पूरे देश में फैला कर मुस्लिम समाज के कुछ लोगो ने एक गुस्से का निर्माण किया .. जिसमे मुस्लिम समाज के कुछ जिम्मेदार लोग भी शामिल थे ...इसमें कुछ पुलिस बाले भी शामिल थे जो मुम्बई पुलिस के कर्मचारी रहे है ....इन सब ने बहुत शातिराना तरीके से पूरे घटनाक्रम को अंजाम दिया.. जिसकी परिणति थी पिछले दिनों रांची और मुम्बई में हुए हिंसक प्रदर्शन और दंगा ब आगजनी ... |
इसी वीच पाकिस्तान के एक जिम्मेदार नागरिक ने बर्मा की घटनाओं की सच्चाई को बेनकाब कर भारत के उन इस्लामी जेहादियों और कुछ पढ़े लिखे उन मुस्लिमो को आईना दिखाया जो भारत में रह कर देश विरोधी हरकतों के समर्थन में सोशल नेटबर्क पर तकरीरे पढ़ रहे थे ...| सबसे पहले पाकिस्तान के नागरिक फराज अहमद ने बर्मा की घटनाओं और उन तस्वीरों की हकीकत को बेनकाव किया जिसके आधार पर भारत में तनाव को भडकाया जा रहा था .. फिर फराज से मिली जानकारी के बाद भारत में मुस्लिम हितों की लड़ाई लड़ने बाली तीस्ता शीतलबाड़ ने उन सबूतों को इक्कट्ठा कर मुम्बई के पुलिस आयुक्त को सौप दिया है ... जिन सज्जन को इन सबूतों के बारे में कोई शक हो बो मुम्बई पुलिस के कमिश्नर से संपर्क करने के साथ तीस्ता शीतलबाड़ से भी संपर्क कर सकते है ...क्यों की अगर ये सबूत किसी हिंदू संगठन ने दिए होते तो उन पर देश का सेकुलर और इस्लामी तबका अपनी आदत के अनुसार सबाल जरुर उठाता |
. लेकिन इस बार सबूत दिए है उस पाकिस्तान के एक जिम्मेदार और जागरूक तथा पढ़े लिखे नागरिक ने जिस पाकिस्तान के समर्थन में भारत में कुछ लोग जिंदाबाद के नारे लगाने के साथ पकिस्तान का झंडा फहराना अपनी शान समझते है ..नीचे दिए गए लिंक पाकिस्तानी नागरिक फराज अहमद और उनके द्वारा बर्मा की घटनाओं की असलियत से सम्बंधित है साथ ही इस समाचार पर दिल्ली से प्रकाशित दैनिक जागरण ने भी एक खबर छापी है .जिसको 16-08-2012 के दिल्ली से प्रकाशित अंक के पहले पन्ने पर देखा जा सक्ता है .!!!.मुम्बई की घटना में तो पाकिस्तान का झंडा फहराए जाने के साथ पुलिस ब मीडिया पर हमला भी किया गया .. इस घटना में पचास से जादा पुलिसकर्मी और पत्रकार घायल हुए थे ,,, पुलिस के हथियारों को लूटा गया साथ ही देश के शहीदों की याद में बने स्मारक ‘’ अमर जवान ज्योति को मुस्लिम दंगाईयो ने सरेआम तहस नहस किया जिसकी फोटो मीडिया में भी सार्वजानिक हो चुकी है .... इतना सब होने के बाद भी मुस्लिम समाज के जिम्मेदार लोगो ने इस घटना पर कोई शर्मिंदगी और अफ़सोस नहीं जाहिर किया ..
- http://www.youtube.com/watch?v=Z-K8-YE9HRg
- http://vladtepesblog.com/?p=51562
- http://rakhapura.com/articles/item/144-bangladeshi-settlers-in-the-cht
- http://farazahmed.com/tag/featured
- http://farazahmed.com/muslims-killing-in-burma-and-our-social-media-islamic-parties-1010.aspx
- http://rakhapura.com/articles/item/144-bangladeshi-settlers-in-the-cht
- http://vladtepesblog.com/?p=51562
- http://blogs.tribune.com.pk/tag/muslims/
- http://blogs.tribune.com.pk/author/1131/faraz-ahmed/
- http://farazahmed.com/
- http://blogs.tribune.com.pk/story/12867/social-media-is-lying-to-you-about-burmas-muslim-cleansing/
Wednesday, August 15, 2012
ई रीडर्स की मांग और लोकप्रियता
लोकप्रियता के दबाव और ई रीडर्स की मांग
पिछले करीब तीन महीनों से ई एल जेम्स की फिफ्टी शेड्स ट्रायोलॉजी यानि तीन किताबें –फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे, फिफ्टी शेड्स डार्कर, फिफ्टी शेड्स फ्रीड अमेरिका में प्रिंट और ई एडीशन दोनों श्रेणी में बेस्ट सेलर बनी हुई हैं । जेम्स की इन किताबों ने पूरे अमेरिका और यूरोप में इतनी धूम मचा दी है कि कोई इसपर फिल्म बना रहा है तो कोई उसके टेलीवीजन अधिकार खरीद रहा है । फिफ्टी शेड्स ट्रायोलॉजी लिखे जाने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है । टीवी की नौतरी छोड़कर पारिवारिक जीवन और बच्चों की परवरिश के बीच एरिका ने शौकिया तौर पर फैनफिक्शन नाम के बेवसाइट पर मास्टर ऑफ यूनिवर्स के नाम से एक सीरीज लिखना शुरू किया । एरिका ने पहले तो स्टीफन मेयर की कहानियों की तर्ज पर प्रेम कहानियां लिखना शुरू किया जो काफी लोकप्रिय हुआ । लोकप्रियता के दबाव और ई रीडर्स की मांग पर उसे बार बार लिखने को मजबूर होना पड़ा । शौकिया लेखन पेशेवर लेखन में तब्दील हो गया । पाठकों के दबाव में एरिका ने अपनी कहानियों का पुर्नलेखन किया और उसे फिर से ई रीडर्स के लिए पेश कर दिया । पात्रों के नाम और कहानी के प्लॉट में बदलाव करके उसकी पहली किश्त बेवसाइट पर प्रकाशित हुई तो वह पूरे अमेरिका में वायरल की तरह फैल गई । चंद हफ्तों में एरिका लियोनॉर्ड का भी नाम बदल गया और वो बन गई ई एल जेम्स । उसकी इस लोकप्रियता को भुनाते हुए उसने ये ट्रायोलॉजी प्रकाशित करवा ली । इसके प्रकाशन के पहले ही प्री लांच बुकिंग से प्रकाशकों ने लाखों डॉलर कमाए । यह सब हुआ सिर्फ साल भर के अंदर ।
इस पूरे प्रसंग को लिखने का उद्देश्य यह बताना था कि ई बुक्स की बढती लोकप्रियता और उसके फायदों के मद्देनजर यूरोप और अमेरिका में लेखकों ने ज्यादा लिखना शुरू कर दिया है । उनकी पहली कोशिश ये होने लगी है कि वो अधीर पाठकों की झुधा को शांत करे जो कि अपने प्रिय लेखक की कृतियां एक टच से या एक क्लिक से डाउनलोड कर पढ़ना चाहता है । ई रीडिंग और ई राइटिंग के पहले के दौर में लेखक साल में एक कृति की रचना कर लेते थे तो उसे बेहद सक्रिय लेखक माना जाता था । जॉन ग्रीशम जैसा लोकप्रिय लेखक भी साल में एक ही किताब लिखता था । पाठकों को भी साल भर अपने प्रिय लेखकों की कृति का इंतजार रहता था । पुस्तक छपने की प्रक्रिया भी वक्त लगता था । पहले लेखकों के लिखे को टाइप किया जाता था । फिर उसकी दो तीन बार प्रूफरीडिंग होती थी । कवर डिजायन होता था । ले देकर हम कह सकते हैं कि लेखन से लेकर पाठकों तक पहुंचने की प्रक्रिया में काफी वक्त लग जाता था । यह वह दौर था जब पाठकों और किताबों के बीच एक भावनात्नक रिश्ता होता था । पाठक जब एकांत में हाथ में लेकर किताब पढ़ता था तो किताब के स्पर्श से वह उस किताब के लेखक और उसके पात्रों से एक तादात्मय बना लेता था । कई बार तो लेखक पाठक के बीच का भावनात्मक रिश्ता इतना मजबूत होता था कि पाठक वर्षों तक अपने प्रिय लेखक की कृति के इंतजार में बैठा रहता था और जब उसकी कोई किताब बाजार में आती थी तो उसे वो हाथों हाथ ले ले लेता था । लेकिन वक्त बदला, स्टाइल बदला, लेखन और प्रकाशन की प्रक्रिया बदली । अब तो ई लेखन का दौर आ गया है । ई लेखन और ई पाठक के इस दौर में पाठकों की रुचि में आधारभूत बदलाव देखने को मिल रहा है । पश्चिम के देशों में पाठकों की रुचि में इस बदलाव को रेखांकित किया जा सकता है । अब तो इंटरनेट के दौर में पाठकों का लेखकों से भावनात्मक संबंध की बजाए सीधा संवाद संभव हो गया है । लेखक ऑनलाइन रहते हैं तो पाठकों के साथ बातें भी करते हैं । ट्विटर पर सवालों के जवाब देते हैं । पेसबुक पर अपना स्टेटस अपडेट करते हैं । ई एल जेम्स की सुपरहिट ट्राय़ोलॉजी तो पाठकों के संवाद और सलाह का ही नतीजा है ।
दरअसल हमारे या विश्व के अन्य देशों के समाज में जो इंटरनेट पीढ़ी सामने आ रही है उनके पास धैर्य की कमी है । कह सकते हैं कि वो सबकुछ इंस्टैंट चाहती हैं । उनको लगता है कि इंतजार का विकल्प समय की बर्बादी है । अमेजोन या किंडल पर किताबें पढ़नेवाला ये पाठक समुदाय बस एक क्लिक या एक टच पर अपने पसंदीदा लेखक की नई कृति चाहता है । इससे लेखकों पर जो दबाव बना है उसका नतीजा यह है कि बड़े से बड़ा लेखक अब साल में कई कृतियों की रचना करने लगा । कई बड़े लेखक तो साल में दर्जनभर से ज्यादा किताबें लिखने लगे । जो कि ई रीडिंग और ई राइटिंग के दौर के पहले असंभव हुआ करता था । जैम्स पैटरसन जैसे बड़े लेखकों की रचनाओं में बढ़ोतरी साफ लक्षित की जा सकती है । पिछले साल पैटरसन ने बारह किताबें लिखी और एक सहलेखक के साथ यानि कुल तेरह । एक अनुमान के मुताबिक अगर पैटरसन के लेखन की रफ्तार कायम रही तो इस साल वो तेरह किताबें अकेले लिख ले जाएंगें । पैटरसन की सालभर में इतनी किताबें बाजार में आने के बावजूद ई पाठकों और सामान्य पाठकों के बीच उनका आकर्षण कम नहीं हुआ, लोकप्रियता में इजाफा हुआ है । लेकिन जेम्स पैटरसन की इस रफ्तार से कई साथी लेखक सदमे में हैं ।
ई रीडर्स की बढ़ती तादाद का फायदा प्रकाशक भी उठाना चाहते हैं, लिहाजा वो भी लेखकों पर ज्यादा से ज्यादा लिखने का दबाव बनाते हैं । प्रकाशकों को लगता है कि जो भी लेखक इंटरनेट की दुनिया में जितना ज्यादा चर्चित होगा वो उतना ही बड़ा स्टार होगा । जिसके नाम को किताबों की दुनिया में भुनाकर ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है । इसके मद्देनजर प्रकाशकों ने एक रणनीति भी बनाई हुई है । अगर किसी बड़े लेखक की कोई अहम कृति प्रकाशित होनेवाली होती है तो प्रकाशक लेखकों से आग्रह कर पुस्तक प्रकाशन के पहले ई रीडर्स के लिए छोटी छोटी कहानियां लिखवाते हैं । जो कि सिर्फ डिजिटल फॉर्मेट में बी उपलब्ध होता है । इसका फायदा यह होता है कि छोटी कहानियों की लोकप्रियता से लेखक के पक्ष में एक माहौल बनता है और उसकी आगामी कृति के लिए पाठकवर्ग में एक उत्सुकता पैदा होती है । जब वह उत्सुकता अपने चरम पर होती है तो प्रकाशक बाजार में उक्त लेखक की किताब पेश कर देता है । उत्सुकता के उस माहौल का फायदा परोक्ष रूप से प्रकाशकों को होता है और वो मालामाल हो जाता है । इसमें कुछ गलत भी नहीं है क्योंकि कारोबार करनेवाले अपने फायदे की रणनीति बनाते ही हैं ।
मशहूर और बेहद लोकप्रिय ब्रिटिश थ्रिलर लेखक ली चाइल्ड ने भी अपने उपन्यास के पहले कई छोटी छोटी कहानियां सिर्फ डिजीटल फॉर्मेट में लिखी । उन्होंने साफ तौर पर माना कि ये कहानियां वो अपने आगामी उपन्यास के लिए पाठकों के बीच एक उत्सुकता का माहौल बनाने के लिए लिख रहे हैं । तो प्रकाशक के साथ-साथ लेखक भी अब ज्यादा से ज्यादा लिखकर उस कारोबारी रणनीति का हिस्सा बन रहे हैं । चाइल्ड ने माना है कि पश्चिम की दुनिया में सभी लेखक कमोबेश ऐसा कर रहे हैं और उनके मुताबिक दौड़ में बने रहने के लिए ऐसा करना बेहद जरूरी भी है । इन स्थितियों की तुलना में अगर हम हिंदी लेखकों की बात करें तो उनमें से कई वरिष्ठ लेखकों को अब भी सोशल नेटवर्किंग साइट्स सरे परहेज है । उनकी अपनी कोई बेवसाइट नहीं है । दो-चार प्रकाशकों को छोड़ दें तो हिंदी के प्रकाशकों की भी बेवसाइट नहीं है । हिंदी के वरिष्ठ लेखक अब भी फेसबुक और ट्विटर से परहेज करते नजर आते हैं । नतीजा यह कि हिंदी में लेखकों पर अब भी पाठकों का कोई दबाव नहीं, वो अपनी रफ्तार से लेखन करते हैं । फिर रोना रोते हैं कि पाछक नहीं । वक्त के साथ अगर नहीं चलेगें तो वक्त भी आपका इंतजार नहीं करेगा और आगे निकल जाएगा । हिंदी के लेखकों के लिए चेतने का वक्त है ।
बिहार राष्ट्रभाषा परिषद
एक जमाने में बिहार राष्ट्रभाषा परिषद
एक जमाने में बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, बिहार ग्रंथ अकादमी और बिहार साहित्य सम्मेलन की देशभर में प्रतिष्ठा थी और उनसे रामधारी सिंह दिनकर, शिवपूजवन सहाय , रामवृत्र बेनीपुरी जैसे साहित्यकार जुड़े थे । लेकिन आज बिहार सरकार के शिक्षा विभाग की बेरुखी से ये संस्थाएं लगभग बंद हो गई हैं । बिहार राष्ट्रभाषा परिषद के परिसर में सरकारी सहायता प्राप्त एनजीओ किलकारी काम करने लगी है । किलकारी पर सरकारी धन बरस रहा है लेकिन उसी कैंपस में राष्ट्रभाषा परिषद पर ध्यान देने की फुर्सत किसी को नहीं है । बिहार ग्रंथ अकादमी का बोर्ड उसके दफ्तर के सामने लटककर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहा है । उसके अलावा बिहार साहित्य सम्मेलन में तो हालात यह है कि आए दिन वहां दो गुटों के बीच वर्चस्व की लड़ाई को लेकर पुलिस बुलानी पड़ती है । साहित्य सम्मेलन का जो भव्य हॉल किसी जमाने में साहित्यक आयोजनों के लिए इस्तेमाल में लाया जाता था वहां अब साड़ियों की सेल लगा करती है । इन संस्थाओं के समृद्ध पुस्तकालय देखभाल के आभाव में बर्बाद हो रहे हैं । बिहार के शिक्षा विभाग पर इन साहित्यक विभागों को सक्रिय रखने का जिम्मेदारी है लेकिन अपनी इस जिम्मेदारी को निभा पाने में शिक्षा विभाग बुरी तरह से नाकाम है ।
टीम अन्ना के अंदर का झगड़ा और मतभेद
टीम अन्ना के अंदर का झगड़ा और मतभेद
ये पांच बयान हैं जो दो दिनों के अंदर टीम अन्ना के अहम सदस्यों ने दिए हैं । इस बयान के केंद्र में है गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और बाबा रामदेव का मंच साझा करना और उसी मंच से रामदेव का नरेन्द्र मोदी की तारीफ करना । रामदेव और नरेन्द्र मोदी के एक साथ मंच पर आने से टीम अन्ना के अंदर का झगड़ा और मतभेद दोनों सामने आ गए । मोदी और रामदेव के मसले पर अन्ना हजारे, किरण बेदी और कुमार विश्वास गोलबंद हो गए हैं वहीं दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया हैं । रामदेव के मोदी के साथ मंच साझा करने और नितिन गडकरी की रामदेव के पांव छूती तस्वीर, फिछले साल दिल्ली में रामदेव के आंदोलन में हिंदूवादी साध्वी ऋतंभरा का शामिल होने को अगर मिलाकर देखें तो एक साफ तस्वीर उभरती है । जो तस्वीर है वो धर्मनिरपेक्ष तो नहीं ही है । इन्हीं तस्वीरों के आधार पर कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह तो साफ तौर यह आरोप लगा चुके हैं कि रामदेव और अन्ना हजारे का पूरा आंदोलन राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की योजना के मुताबिक चल रहा है । हम यहां याद दिला दें कि अन्ना हजारे भी एक बार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ कर चुके हैं । बाद में जब अन्ना हजारे घिरे तो मीडिया पर तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश करने का आरोप लगाकर टीम अन्ना ने बेहद सफाई से अन्ना के उस बयान से पल्ला झाड़ लिया था । लेकिन जिस तरह से अब टीम अन्ना रामदेव के साथ कंधा से कंधा मिलाकर आंदोलन कर रही है उससे दिग्विजय सिंह के आरोप और गहराने लगे हैं । जंतर मंतर पर चल रहे अनशन के दौरान इस तरह का विवाद उठना अनशन और आंदोलन दोनों की विश्वसनीयता को कठघरे में खड़ा कर देती है । अन्ना हजारे बार बार पंथ निरपेक्षता की बात करते हैं लेकिन लगातार रामदेव के साथ गलबहियां भी करते नजर आते हैं । रामदेव की आस्था और प्रतिबद्धता दोनों बिल्कुल साफ है । अनशन के दौरान जंतर मंतर पर रामदेव अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल के साथ हाथ खड़े कर हुंकार भरते हैं और अगले ही दिन अहमदाबाद जाकर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की वंदना करने लग जाते हैं ।
- मोदी मानवता के हत्यारे हैं- संजय सिंह
- इस कीचड़ में मुझे मत डाले- अन्ना हजारे
- मोदी ना केवल सांप्रदायिक हैं बल्कि भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा देते हैं- अरविंद केजरीवाल
- मोदी इस देश के निर्वाचित मुख्यमंत्री हैं और कोई उनसे मिले तो किसी को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए- कुमार विश्वास
- कालेधन पर बाबा के जंग में हम उनके साथ हैं – किरण बेदी
मोदी-रामदेव मुलाकात पर जिस तरह से टीम अन्ना में मतभेद खुलकर सामने आया है वो आंदोलन के भविष्य और उसकी साख के लिए अच्छा नहीं है । जिस जनता की टीम अन्ना लगातार दुहाई देती है वही जनता आज टीम अन्ना से और विशेष तौर पर अन्ना हजारे से ये जानना चाहती है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी तारीफों के पुल बांधनेवाले रामदेव के बारे में उनकी राय क्या है । अन्ना हजारे को इस बारे में अपनी राय साफ करनी होगी कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर उनकी सोच क्या है । जो व्यक्ति दो हजार दो के गुजरात दंगों के लिए कठघरे में खड़ा हो, जिसके मुख्यमंत्रित्व काल में राज्य में तमाम संवैधानिक संस्थाओं की धज्जियां उड़ी हों, जिसके शासनकाल के दौरान राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हो पाई हो उसके बारे में चुप्पी साधना टीम अन्ना की विश्वसनीयता के साथ साथ उनकी मंशा पर भी शक का धुंधलका बनकर छाने लग गई है ।
ऐसा नहीं है कि रामदेव और मोदी के मुद्दे पर ही टीम अन्ना के सदस्यों के बीच मतभेद हैं । और कई अन्य मुद्दे भी हैं जिसको लेकर मतैक्य नहीं है । एक ही मुद्दे पर अलग अलग बयान से जनता के बीच भ्रम फैलता है, जिससे आंदोलन के बिखर जाने का खतरा बन गया है । मसलन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को लेकर भी अन्ना और अरविंद केजरीवाल में मतभेद खुलकर सामने आ गए । अनशन के दौरान एक दिन अरविंद केजरीवाल ने सरेआम अन्ना हजारे से असहमति जताते हुए कहा कि कुछ लोग कह रहे हैं कि राष्ट्रपति बनने के बाद प्रणब मुखर्जी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगाए जाने चाहिए । अरविंद केजरीवाल जिन कुछ लोगों की बात कर रहे थे वो अन्ना हजारे और बाबा रामदेव थे जिन्होंने एक दिन पहले उसी मंच से ये ऐलान किया था कि राष्ट्रपति बनने के बाद प्रणब मुखर्जी के खिलाफ आरोप लगाने बंद होने चाहिए । अन्ना की मौजूदगी में अरविंद केजरीवाल ने महामहिम पर हमले किए । अरविंद केजरीवाल बेहद ईमानदार होंगे, उनके अंदर देशप्रेम का जज्बा भी होगा, वो देश के लिए वो बलिदान देने को भी तैयार होंगे लेकिन अरविंद केजरीवाल को यह बात समझनी होगी कि देश के राष्ट्रपति पद की कोई मर्यादा होती है और पूरा देश उस पद को एक इज्जत बख्शता है । लिहाजा प्रचारप्रियता के लिए देश के प्रथम नागरिक पर आरोप जड़ने से आम जनता के मन में केजरीवाल की क्रांतिकारी छवि नहीं बल्कि एक वैसे अराजक इंसान की छवि बनती है जो हर किसी को गाली देता चलता है । इसका नतीजा यह होता है कि उसकी गंभीरता कम होती है और लोग उनकी बातों को शिद्दत से लेना बंद करने लगेंगे ।
इस तरह की बयानबाजियों और टीम के सदस्यों के बीच मतभिन्नता से ये साफ है कि इस आंदोलन को नेतृत्व देनेवालों के बीच मुद्दों को लेकर जबरदस्त मतभेद हैं । इंडिया अगेंस्ट करप्शन में भी सबकुछ ठीक नहीं चल रहा । पिछले एक साल से जिस तरह से कई लोगों ने संगठन में पारदर्शिता के आभाव और अरविंद केजरीवाल पर मनमानी के आरोप लगाते हुए खुद को अलग किया उससे भी जनता के बीच गलत संदेश गया । सोशल मीडिया में आंदोलन की कमान संभालने वाले शिवेन्द्र सिंह ने भी खत लिखकर टीम में चल रही राजनीति और टीम के नेतृत्व के गैरलोकतांत्रिक होने का मुद्दा उठाया था । लेकिन उन मुद्दों को तवज्जो नहीं दिए जाने से शिवेन्द्र सिंह ने अपने आपको समेट लिया । पिछले साल अपना सबकुछ छोड़ छाड़कर इस आंदोलन से जुड़े कितने ऐसे शिवेन्द्र हैं जिन्होंने नेतृत्व पर संगठन को गैरलोकतांत्रिक तरीके से चलाने के आरोप लगाते हुए टीम का साथ छोड़ दिया । इसके अलावा टीम के कई लोगों को तुरंत फुरंत मिली प्रसिद्धि ने भी काम बिगाड़ा । चौबीस घंटे न्यूज चैनलों के इस दौर में बहुत जल्दी प्रसिद्धि मिलती है उससे उस शख्स से अपेक्षा भी बढ़ जाती है । बहुधा होता यह है कि प्रसिद्दि के बोझ और नशे में जिम्मेदारियों से दूर हट जाते हैं । टीम अन्ना के कुछ सदस्यों के साथ भी ऐसा हो रहा है । प्रसिद्दि के दंभ में वो धरती छोड़ने लगे है जो ना तो आंदोलन के लिए अच्छा है और ना ही उनके खुद के लिए
Tuesday, August 14, 2012
आजादी के दीवानों पर बेइंतहा जुल्म
आजादी के दीवानों पर बेइंतहा जुल्म ढाए गए थे. अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें फर्जी मुकदमों में फंसाया था. स्वाधीनता की मांग करने पर कई देशप्रेमियों को कालापानी की सजा भी दे दी थी. सिटी के थानों में मौजूद दस्तावेज उन जुल्मों की दास्तां बयां करते हैं. ये बताते हैं कि किस तरह देश के लिए लडऩे वालों पर अत्याचार किए गए थे.
कांटे की तरह चुभने लगे थे
आजादी की लड़ाई में इलाहाबाद का महत्वपूर्ण रोल रहा है. यहां स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत लियाकत अली के नेतृत्व में हुई. उनके आह्वान पर ही हजारों लोग देश को गुलामी की बेडिय़ों से आजाद कराने के लिए सड़कों पर उतर आए थे. यही रीजन था कि लियाकत अंग्रेजी हुकूमत की आंखों में कांटे की तरह चुभने लगे. तब तत्कालीन कोतवाल सज्जाद अली ने उन्हें पकडऩे के लिए इश्तेहार निकलवाया. लियाकत को बागी करार देते हुए जिंदा या मुर्दा पकड़वाने पर इनाम की घोषणा की गई. यही नहीं कानपुर के रहने वाले नाना साहब पर भी ऐसी ही कार्रवाई की गई. के नाम से भी कोतवाली पुलिस ने इश्तिहार छपवा दिया. उन्हें जिन्दा पकडऩे पर एक लाख का इनाम घोषित किया गया. लियाकत के खिलाफ कोतवाली में गैंगस्टर के तहत मामला दर्ज किया गया.
सुरक्षित है रिपोर्ट
आखिरकार एक दिन लियाकत को अरेस्ट कर मलाका जेल लाया गया. मजिस्ट्रेट ने उन्हें कालापानी की सजा सुनाई. इससे संबंधित पूरी रिपोर्ट आज भी क्षेत्रीय अभिलेखागार कार्यालय में सुरक्षित है. मलाका जेल में बंद रहने के दौरान लियाकत अली द्वारा पहने गए कपड़े आज भी इलाहाबाद म्यूजियम में मौजूद हैं. म्यूजियम में चन्द्रशेखर आजाद की वह पिस्तौल भी रखी हुई है जिसे वह बमतुल बखारा कहते थे.
पंडित नेहरू को भी नहीं छोड़ा था
देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और उनके साथियों के खिलाफ भी कोतवाली पुलिस ने मामले दर्ज किए थे. इलाहाबाद म्यूजियम में मौजूद दस्तावेज नामक बुक में कहानी दर्ज है. 1931, 1932 और 1933 में पंडित नेहरू समेत सैकड़ों लोगों के खिलाफ कोतवाली और कर्नलगंज थाने में रिपोर्ट दर्ज की गई. 1932 में पुरुषोत्तम दास टंडन के खिलाफ पुलिस एक्ट 30 के तहत कोतवाली में एफआईआर दर्ज हुई. अंडर सेक्शन 4 के तहत फिरोज गांधी, प्रभुलाल, शिओ नाथ और मूलचन्द्र के खिलाफ 1930 में कोतवाली पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया था. पंडित नेहरू के खिलाफ कोतवाली पुलिस ने 1930 में अटेम्प्ट टु मैनुफैक्चर कंट्रोवर्सियल स्पेल के आरोप में कार्रवाई की गई. उनके खिलाफ 1922 में सेक्शन 506, 117 और 116 के तहत कोतवाली पुलिस पहले ही एफआईआर दर्ज कर चुकी थी. 1941 में मौलाना अबुल कलाम आजाद के खिलाफ पुरुषोत्तम दास पार्क में भड़काऊ भाषण देने के आरोप में रिपोर्ट दर्ज की गई. यू/ए 17 व 18 के तहत नवाब डैसेन, बृजभूषण, नेहरु, सरजू, रामचन्द्र नाथ, गोपी नाथ सिंह, अब्दुल, काशी प्रसाद, राजकुमार शास्त्री, फिरोज गांधी, महावीर प्रसाद, अब्दुल खालिद, मंजर अली आदि के खिलाफ भी कार्रवाई हुई थी.
इन पर भी हुई कार्रवाई
अंग्रेजों के जुल्म की इंतहा यहीं नहीं खत्म हुई थी. यहां तक कि उन्होंने आंदोलन में शामिल महिलाओं को भी नहीं बख्शा. किसी जनसभा में शामिल होने पर भी उनके खिलाफ कार्रवाई की गई. 1931 में कमला नेहरू ने घुरपूर में जनसभा की थी. इससे क्षुब्ध अंग्रेजी सरकार ने उनके खिलाफ भड़काऊ भाषण देने का मामला दर्ज करवाया. लक्ष्मी, चन्द्रकांता, सीता, सुंदर देवी और कमला देवी जैसे कई महिलाओं के खिलाफ विभिन्न धाराओं में मुकदमे कायम किए गए.
राष्ट्र तभी फलते-फूलते हैं
इन दिनों मैं एक दिलचस्प किताब पढ़ रहा हूं, जिसका नाम है-ह्वाई नेशन फेल। आप जैसे-जैसे इस किताब को पढ़ते जाएंगे, उतने ही इसके मुरीद होते जाएंगे कि अफगानिस्तान के मामले में हम कितने मूर्ख साबित हुए और हमें अपनी विदेशी सहायता रणनीति को बदलने की कितनी जरूरत है।
एमआईटी के अर्थशास्त्री डॉरेन एकमॉलू और हार्वर्ड के राजनीतिशास्त्री जेम्स ए रॉबिन्सन द्वारा लिखी गई यह किताब बताती है कि मुख्यतः संस्थाएं ही देशों के बीच फर्क पैदा करती हैं। राष्ट्र तभी फलते-फूलते हैं, जब वे समावेशी राजनीतिक और आर्थिक संस्थानों का विकास करते हैं, और वे तभी विफल होते हैं, जब वे संस्थाएं शोषक बन जाती हैं तथा सत्ता एवं अवसर चंद लोगों तक सिमटकर रह जाते हैं।
संपत्ति के अधिकार को लागू करने वाली समावेशी और राजनीतिक संस्थाएं सबके फल-फूल सकने का ढांचा तैयार करती हैं और नई तकनीकों और हुनर में निवेश को प्रोत्साहित करती हैं। ये उन शोषक आर्थिक संस्थानों की तुलना में आर्थिक वृद्धि में सहायक होती हैं, जिनकी संरचना चंद लोगों द्वारा कइयों से संसाधन छीनने के लिए होती है।
समावेशी आर्थिक और राजनीतिक संस्थाएं एक-दूसरे को सहयोग करती हैं, बहुलतावादी तरीके से राजनीतिक शक्तियों का व्यापक वितरण करती हैं और कानून-व्यवस्था बहाल कर, संपत्ति के अधिकार का ढांचा सुनिश्चित कर और समावेशी बाजार अर्थव्यवस्था स्थापित कर कुछ हद तक राजनीतिक केंद्रीकरण हासिल करने में सक्षम होती हैं। इसके विपरीत शोषक राजनीतिक संस्थाएं सत्ता पर पकड़ बनाए रखने के लिए कुछ सबल शोषक आर्थिक संस्थाओं के पास शक्तियां केंद्रित करती हैं।
एकमॉलू एक इंटरव्यू में बताते हैं कि राष्ट्र तभी फलते-फूलते हैं, जब वे हर नागरिक के नवोन्मेष, निवेश और विकास की पूरी शक्तियों को स्वतंत्र, सशक्त और संरक्षित करने वाली राजनीतिक एवं आर्थिक संस्थाओं का निर्माण करते हैं। जरा तुलना कीजिए कि साम्यवाद के पतन के बाद से सोवियत संघ का हिस्सा रहे जॉर्जिया या उजबेकिस्तान के साथ पूर्वी यूरोप के रिश्ते कैसे हुए या इस्राइल बनाम अरब देशों या कुर्दिस्तान बनाम बाकी इराक में क्या हुआ।
इन दोनों लेखकों के मुताबिक, इतिहास का सबक यह है कि अगर आपकी राजनीति सही नहीं होगी, तो आपकी अर्थव्यवस्था भी दुरुस्त नहीं होगी। इसीलिए वे इस धारणा का समर्थन नहीं करते कि चीन ने राजनीतिक नियंत्रण के जरिये आर्थिक विकास हासिल करने का कोई जादुई फॉरमूला ईजाद किया है। एकमॉलू कहते हैं, 'हमारा विश्लेषण यह है कि चीन ने कम्युनिस्ट पार्टी के तानाशाही नियंत्रण वाली शोषक संस्थाओं के जरिये विकास हासिल किया है। इसलिए यह विकास टिकाऊ नहीं है, क्योंकि यह उस 'रचनात्मक विघटन' को प्रोत्साहित नहीं करता, जो नवोन्मेष और उच्चतम आय के लिए बेहद अहम होता है।'
वे आगे लिखते हैं कि टिकाऊ आर्थिक विकास के लिए नवोन्मेष जरूरी है और नवोन्मेष को रचनात्मक विघटन से अलग नहीं किया जा सकता। नवोन्मेष आर्थिक क्षेत्र में पुराने की जगह नए को स्थापित करता है और राजनीतिक क्षेत्र में स्थापित सत्ता संबंधों को अस्थिर करता है। इसलिए जब तक चीन रचनात्मक विघटन पर आधारित अर्थव्यवस्था के लिए अपनी नीतियों में परिवर्तन नहीं करता, तब तक उसका विकास टिकाऊ नहीं होगा।
क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं कि पढ़ाई छोड़ चुके एक 20 वर्षीय लड़के को एक कंपनी शुरू करने की इजाजत मिलती है, जो सरकारी बैंकों द्वारा वित्त पोषित चीनी कंपनियों के पूरे क्षेत्र के लिए चुनौती बनती है। एकमॉलू बताते हैं कि 9/11 के बाद उपजा विचार, कि अरब देशों और अफगानिस्तान में लोकतंत्र की कमी ही उसका रोग है, गलत नहीं था। लेकिन अमेरिका का यह सोचना गलत था कि हम वहां लोकतंत्र का निर्यात कर सकते हैं। टिकाऊ लोकतांत्रिक बदलाव कहीं बाहर से नहीं आ सकता, बल्कि वह स्थानीय तौर पर जमीनी आंदोलनों से ही उभरता है।
हालांकि इसका मतलब यह भी नहीं कि बाहरी लोग कुछ नहीं कर सकते। उदाहरण के लिए, हमें मिस्र जैसे देशों में सैन्य सहायता से हाथ खींचकर वहां के समाजों को व्यापक रूप से राजनीति से जोड़ना चाहिए। मिस्र, पाकिस्तान और अफगानिस्तान को दी जाने वाली अमेरिकी सहायता वास्तव में फिरौती है, जो वहां के शासक वर्ग को इसलिए दी जाती है, ताकि वे गलत काम न करें। हमें इसे प्रलोभन के रूप में बदलने की जरूरत है।
मसलन, काहिरा को और 1.3 अरब डॉलर की सैन्य सहायता देने के बजाय हमें इस बात पर जोर देना चाहिए कि मिस्र अपने समाज के सभी क्षेत्रों के प्रतिनिधियों की एक कमेटी बनाए, जो हमें बताएगा कि विदेशी सहायता से वे कौन-सी संस्थाएं, मसलन स्कूल, अस्पताल आदि बनाएंगे और उसके लिए उचित प्रस्ताव देगा। यदि हम उन्हें धन दे रहे हैं, तो उसका उपयोग संस्थाओं की मजबूती के लिए करना चाहिए।
हम केवल उनके लिए दबाव समूह ही हो सकते हैं। अगर आपके पास समावेशी संस्थानों के निर्माण के लिए जमीनी स्तर पर आंदोलन होगा, तो हम उसे केवल गति ही सकते हैं, लेकिन हम उसका निर्माण नहीं कर सकते या उसका विकल्प नहीं बन सकते। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि अफगानिस्तान और कई अरब देशों में हमारी नीतियां जमीनी स्तर के आंदोलनों को हतोत्साहित करती और हमारे लिए सुविधाजनक ताकतवरों की मदद करती हैं। इसलिए उन देशों में हमारे पास करने के लिए कुछ नहीं है।
भारत को आजाद हुए 65 साल
भारत को आजाद हुए 65 साल बीत चुके हैं। इन 65 सालों में भारतीय लोकतंत्र का चेहरा इतना बदल चुका है कि पहचाना नहीं जा सकता। भारतीय लोकतंत्र कई क्षेत्रों में परिवर्तन की सीढ़ियां चढ़कर आधुनिक और विकसित हो चुका है।
आर्थिक और व्यावसायिक तौर पर भारत ने निश्चित तौर पर तरक्की की है। तीसरी दुनिया का देश कहा जाने वाले भारत आज विश्व की तीसरी महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। दूसरी तरफ सामाजिक विषमताएं और राजनीतिक जटिलताएं अभी भी भारतीय लोकतंत्र की परेशानी का सबब बनी हुईं हैं। 65 सालों का ये सफर भारतीय लोकतंत्र के विकास की एक ऐसी कहानी कहता है, जिसमें कई उतार चढ़ाव हैं।
आजादी के सफर में कुछ विषमताएं ऐसी है जिन पर चर्चा बहुत जरूरी है। एक तरफ हम चांद और मंगल पर जा पहुंचे हैं तो दूसरी ओर घर में चांद सी बिटिया नहीं चाहते। एक तरफ हम बच्चों को हुनरमंद और अच्छी नौकरी में देखना चाहते हैं, लेकिन उच्च शिक्षा इतनी महंगी हो गई है कि पढ़ाई मुहाल हो गई है। एक तरफ प्रेम को आधार बनाकर बनी फिल्में सुपरहिट हो जाती हैं तो दूसरी तरफ प्रेम विवाह करने वालों को जान से मार दिया जाता है।
एक तरफ देश में करोड़पतियों की संख्या एक लाख हो गई है तो दूसरी तरफ करीब 43 फीसदी आबादी दिन में रोज बीस रुपए भी नहीं कमा पाती। एक तरफ शहरों में मॉल कल्चर पनपा है और भारतीय शहरियों की खर्च करने की कैपेसिटी बढ़ी है तो दूसरी तरफ गांवों में अभी तक बुनियादी सुविधाओं का अकाल है।
आर्थिक तौर पर मजबूत बना है भारत
1947 में जब भारत आजाद हुआ तब अंग्रेजी हुकूमत भारत को इतना निचोड़ चुकी थी कि 'सोने की चिड़िया' कहलाने वाला भारत कंगाली के दर्जे तक पहुंच गया था। ऐसे में भारत-पाक विभाजन ने रही सही कसर पूरी कर दी। आजाद भारत को आर्थिक तौर पर संभलने में करीब ढाई दशक लगा। 1975 तक भारतीय उद्योग ठीक ठाक अवस्था में पहुंच चुके थे।
पिछले 20 सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय योगदान दिया है। भारत को विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था के तौर पर प्रोजेक्ट किया जा रहा है। 65 सालों की एक बड़ी उपलब्धि इस क्षेत्र में तब मिली जब 2008 में भारत ने 9.4 फीसदी की विकास दर हासिल की। अर्थशास्त्री भी इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि आने वाले कुछ सालों में भारत विकासशील से विकसित देशों की कतार में शामिल हो
जाएगा।
आईटी-बीपीओ के क्षेत्र में उन्नति
भारत में कंप्यूटर युग आने के बाद उन्नति के रास्ते खुले। आईटी कंपनियों ने वैश्विक पटल पर अपनी पहचान बनाई। खासकर आईटी और बीपीओ के क्षेत्र में भारत ने दुनिया भर में अपनी अलग पहचान बनाई। आज इस क्षेत्र के भारतीय हुनरमंद युवाओँ की विदेशों में भारी मांग है। आज विदेशों में काम कर रहे अधिकतर हुनरमंद प्रोपेशनल्स में सबसे ज्यादा संख्या भारतीयों की है। भारत के आईटी और मेडिकल क्षेत्र के होनहार युवा कई देशों के विकास की रीढ़ बने हुए हैं।
बढ़ गई वैश्विक भागीदारी
आउटसोर्सिंग की बयार ने भारत को निश्चित तौर पर वो मौका दिया जिससे भारत अन्तरराष्ट्रीय पटल पर अपनी पहचान बना रहा है। हमारा देश सूचना प्रौद्योगिकी और आउटसोर्सिंग के क्षेत्र में दुनिया भर में अपनी अलग पहचान बना चुका है। यही वजह है कि 2001 से 2006 तक आईटी सेवा में भारत की वैश्विक भागीदारी 62 प्रतिशत से बढ़कर 65 प्रतिशत हुई और बीपीओ क्षेत्र में 39 से बढ़कर 45 प्रतिशत तक हो गया। उम्मीद की जा रही है कि 2015 तक आईटी-बीपीओ क्षेत्र की वैश्विक भागीदारी 75 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगी।
परमाणु संपन्नता हासिल की
पहले जहां भारत को तीसरी दुनिया के एक गरीब मुल्क के तौर पर देखा जाता था, वही भारत आज विश्व के महत्वपूर्ण देशों की सूची में आ गया है। परमाणु संपन्नता की दौड़ में भी भारत ने अपना नाम दर्ज कराया है। आज भारत को परमाणु संपन्न देशों की श्रेणी में छठा स्थान हासिल है। जी-8 नामक संपन्न और ताकतवर देशों के सम्मेलन में भारत बाकायदा सलाहकार की भूमिका निभाता है। लड़ाकू विमान से लेकर लंबी दूरी की बैलेस्टिक मिसाइलें बनाने के मामले में हमारा कोई सानी नहीं।
हाल ही में भारत ने अग्नि-5 कांटिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल बनाई है जो 5000 हजार किलोमीटर तक मार कर सकती है। 2016 तक भारत की योजना 5,000 किलोमीटर मारक क्षमता वाली मिसाइल-रोधी रक्षा प्रणाली विकसित करने की है। अभी तक यह प्रणाली सिर्फ अमेरिका, रूस और इजरायल के पास है।
वैज्ञानिक उपलब्धि और अंतरिक्ष में छलांग
अंतरिक्ष में जाने वाले भारतीयों में कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स का नाम लेते ही हर भारतीय का सीना चौड़ा हो जाता है। नासा में ऐसे कई भारतीय वैज्ञानिक हैं जिनसे नासा के कार्यक्रम फलदायक साबित हुए है। दुनिया की उत्पत्ति का राज जानने को कराए गए 'बिगबैंग परीक्षण' में भी भारतीय र्वैज्ञानिकों का अहम योगदान रहा। 'गार्ड पार्टिकल' यानी 'हिग्स बोसोन' की खोज में भी भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस की अहम भूमिका की दुनिया भर में चर्चा हुई है।
जन जन की रग में घुसा भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार का मुद्दा आज भारत की दुखती रग बन चुका है। राजनीति से लेकर आम जनता की सामान्य दिनचर्या तक में भ्रष्टाचार इतना घुस गया है कि इससे छुटकारा पाने की कोशिशें दम तोड़ चुकी हैं। पिछले पैंतीस-चालीस सालों में भ्रष्टाचार भारतीय जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है। सरकारी स्तर पर पारदर्शिता सवालों के घेरे में आ चुकी है और राजनीति में समाहित नैतिकता धुंधली हो गई है।
ऐसा लगता है मानो राजनीति लोकतंत्र नहीं भ्रष्टतंत्र की दिशा में काम कर रही है। घोटालों की फेरहिस्त इतनी लंबी हो गई है कि पढ़ी तक नहीं जा सकती। सच कहें तो आज भ्रष्टाचार इस कदर आम जीवन में बस गया है कि एक व्यक्ति के लिए ईमानदार बने रहना नामुमकिन सा लगता है।
धन और बल पर टिका लोकतंत्र
जिसे विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है, वहां चुनाव बंदूकों के साए में होते हैं। लोकतंत्र पर बुलेटतंत्र और धनतंत्र हावी है। जाति और धर्म के नाम पर चुनाव लड़े जाते हैं।
अलगाववादी और नक्सली संगठनों से पूरा देश ग्रसित है। उतर पूर्व के कई राज्यों में अलग देश बनाने की मांग उठ रही है। देश के 14 राज्यों के 280 जिले आज नक्सलवाद की मार झेल रहे है। इनमें से 180 से ज्यादा जिलों में नक्सलियों से लोहा लेने के लिए बाकायदा सेना को लगाया गया है।
महंगी होती उच्च शिक्षा
आंकड़ों पर यकीन किया जाए तो दुनिया के सबसे ज्यादा युवा भारत में हैं। इस लिहाज से भारत में उच्च शिक्षा की स्थिति मजबूत और बेहतर होनी चाहिए। लेकिन स्थिति इसके उलट है। देश में उच्च शिक्षा बहुत महंगी है।
आम आदमी अपने होनहार बच्चों को मेडिकल, आईटी जैसे कोर्स कराने का सपना देखता है लेकिन महंगी पढ़ाई और भारी भरकम डोनेशन से उसके हौंसले पस्त हो जाते हैं। दूसरी ओर, यहां कदम कदम पर फर्जी इंस्टीट्यूट खुल गए हैं जो महज कुछ कमाई के लिए विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खेल रहे हैं।
डंस रहे हैं सामाजिक विषमता के नाग
अपने आपको आधुनिक कहने वाले भारत में सामाजिक विषमता की गहरी खाई है। हालांकि सामाजिक और जातीय विषमता तो आजादी से पहले भी थी लेकिन आधुनिक भारत में इसकी मार भयंकर है। एक तरफ समलैंगिकों को अधिकार देकर अदालतें न्याय और बराबरी की मिसाल पैदा कर रही हैं तो दूसरी तरफ 'कन्या भ्रूण हत्या', 'दहेज हत्या', 'यौन शोषण', 'बाल श्रम' और 'ऑनर किलिंग' के मामले समाज को निचले दर्जे पर ला रहे हैं।
पिछले एक दशक में बलात्कार के मामलों ने रिकार्ड तोड़ दिया है। जिस भारत में औरत को 'देवी मां' का दर्जा दिया जाता है, उसी भारत में औरतों को 'डायन' बताकर नग्न घुमाने के मामले शर्मिंदा करते हैं। ऐसा लगता है जैसे की समाज में संवेदनशीलता खत्म हो गई है। एक तरफ 'लिव इन' का चलन बढ़ा है तो दूसरी तरफ वृद्धाश्रम में बुजुर्गो की तादाद भी बढ़ी है। संयुक्त परिवार एकल परिवारों में टूट गए हैं और एकल परिवार सिंगल पेरेंट में बदल रहे हैं।
बढ़ती महंगाई और बढ़ते गरीब
महंगाई 'सुरसा' की तरह मुंह फैला रही है और गरीबी 'फीनिक्स' पक्षी की तरह बार-बार अपनी ही राख से फिर पैदा हो जाती है। गरीबी की रेखा 22 रुपए और 32 रुपए के बीच झूल रही है। महंगाई इतनी तेजी से बढ़ी है कि सरकार का नारा 'गरीबी हटाओ' की बजाय 'गरीब हटाओ' में तब्दील होता दिख रहा है। विडंबना है कि कृषि आधारित भारत में खाद्य महंगाई सर्वाधिक तेजी से बढ़ी है।
सवाल - क्या आपको भी लगता है कि आजाद भारत कई मायनों में अब तक गुलाम है। क्या सामाजिक और राजनीतिक विषमताओँ को दूर करना ही असल आजादी है?
नए माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस में दिए गए 10 बेहतरीन फीचर
New Microsoft Office 10 amazing features। नए माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस में दिए गए 10 बेहतरीन फीचर
माइक्रोसॉफ्ट कॉरपोरेशन ने नए माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस 2013 का प्रिव्यू वर्जन की एक झलक दुनिया के सामने पेश की है जिसको देखकर आने वाले माइकोसॉफ्ट ऑफिस को एक बेहतर प्रोडेक्ट कहा जा सकता है। आने वाला नया वर्जन टैबलेट, कंप्यूटर दोनों को सपोर्ट करेगा। इसके अलावा विंडो8 में भी इसे प्रयोग किया जा सकता है। माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ स्टीव ब्लैमर ने सैन फ्रांसिस्को में एक प्रेस कांफ्रेंस के दैरान बताया नया ऑफिस पहले से कई ज्यादा फ्लेक्सिबल है साथ ही ये क्लाउड सर्विस को भी सपोर्ट करता हे। आइए जानते है माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस 2013 में दिए गए 10 नए फीचरों के बारे में,
- टच फीचर - नए ऑफिस में टच की सुविधा दी गई है यानी आप इसमें बिना माउस और कीबोर्ड के भी आसानी से काम कर सकते हैं। साथ डाक्यूमेंट को पढ़ने के साथ-साथ फिंगर से जूम भी कर सकते हैं।
- इंकिंग- नए ऑफिस में स्टायलस यानी स्क्रीन पेन के द्वारा आप डाक्यूमेंट में नोट्स, मेल लिख सकते हैं, ऑफिस ऑटोमेटिक उसे एनालाइज करके कॉलम में फिट कर देगा। यानी आपको कॉलम सलेक्ट करके टाइम करने की कोई जरूरत नहीं, अगर धाखे से कोई गलत कंटेट लिख दिया हो तो चिंता करने की कोई बात नहीं ईरेज़ टूल से उसे आसानी से मिटाया जा सकता है।
- एप्पलीकेशन- वन नोट और लाइंस जैसी एप्लीकेशन पहली बार नए ऑफिस में दी गईं हैं। इसके अलावा नया रेडियल मीनो यूजर को ऑफिस प्रयोग करने में और सहूलियत प्रदान करता है।
- स्कॉय ड्राइव- ऑफिस आपके डाक्यूमेंट को ऑटोमेटिक स्कॉय ड्राइव में सेव करता रहता है जिससे आप उस कंटेट को कभी भी चाहें तो अपने टैबलेट, लैपटॉप या फिर फोन में ओपेन कर सकते हैं।
- सबक्रिप्शन की सुविधा- नए ऑफिस में क्लाउड बेस सबक्रिप्शन की सुविधा की सुविधा दी गई है। मतलब यूजर भविष्य में इसे अपग्रेड भी कर सकता है। साथ में ऑफिस में आप स्काइपे का प्रयोग भी कर सकते हैं।
- स्टे कनेक्ट- ऑफिस 2013 में आप लोगों को फॉलो करने के अलावा डाक्यूमेंट और साइटें शेयर भी कर सकते हैं। आप चाहें तो इसमें वीडियो, पिक्चर और ऑफिस कंटेट के कोड इम्बेड कर अटैच कर सकते हैं।
- स्काइपे- नए ऑफिस में हर महिने 60 मिनट पूरी दुनिया में बात करने को मिलेंगे। इसके अलावा यूजर किसी को भी स्काइपें की मदद से मैसेज भी कर सकता है।
- रीडिंग और मार्कअप- ऑफिस में दिया गया रीडिंग मोड ऑप्शन के द्वारा यूजर आसानी से अपने कंटेंट को पढ़ सकता है। जबकि पूराने ऑफिस में कंटेट पढ़ने के लिए जूम के साथ साथ कई एडजस्टमेंट करने पड़ते थे।
- डिजिटल नोट टेकिंग- डिजिटल नोट टेकिंग की मदद से यूजर एक ही नोट को मल्टीपल यानी एक से ज्यादा डिवाइस में प्रयोग कर सकता है। इसके अलावा एक ही नोट को कई तरीको से प्रयोग भी कर सकते हैं।
- मीटिंग- नए ऑफिस में पॉवरप्वाइंट का न्यू प्रजेंटेशन व्यू फीचर दिया गया है जिसकी मदद से आप ही चीज पहले से शिड्यूल कर सकते हैं। साथ ही सिफ एक ही क्लिक से जूम, मार्कअप फीचरों का प्रयोग कर सकते हैं।
visfot.com - विदा हो गये विलासराव
महाराष्ट्र की राजनीति का मराठा अकाल मौत के गाल में समा गया. विलासराव दादोजी राव देशमुख स्वास्थ्य ऐसा बिगड़ा कि चेन्नई का ग्लोबल हेल्थ सिटी हास्पिटल चाहकर भी उनकी तबितय नहीं सुधार पाया. एक दिन पहले आधे घण्टे के लिए उन्हें वेन्टिलेटर से हटाया गया था. लेकिन राजनीतिक रूप से पराभवकाल में चल रहे विलासराव जिन्दगी की वह जंग भी हार गये जिसे जीतने के बाद शायद वे लौटकर अपनी राजनीतिक यात्रा दोबारा शुरू कर सकते.
विरासराव की कोई ऐसी उम्र न थी कि वे चले जाते. आजादी से महज दो साल पहले उनका जन्म महाराष्ट्र में लातूर जिले के बाभलगांव में हुआ था. अपनी राजनीतिक यात्रा में अभी पिछले एक दशक से उन्होंने उतार चढ़ाव का दौर देखना शुरू किया था. किसी जमाने में पुणे लॉ कालेज की कैण्टीन में आज के फिल्मी सितारों के साथ बैठकर गप्प मारनेवाले विलासराव बड़े होकर फिल्म स्टार बनना चाहते थे लेकिन किस्मत ने उन्हें राजनीति का दरवाजा दिखा दिया. और राजनीति भी ऐसी कि आज ऊपर बैठा कोई राजनीतिज्ञ शायद ही वहां से चलकर यहां तक पहुंचा हो.
विलासराव देशमुख आसमानी नेता नहीं थे. उन्होंने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरूआत अपने ही गांव बाभलगांव का सरपंच बनकर शुरू की थी 1974 में. उनके पिता दादोजी राव न सिर्फ बाभलगांव के संपन्न सरपंच थे बल्कि वे आस पास के पूरे इलाके में अपनी सच्चाई और ईमानदारी के लिए भी जाने जाते थे. वे खुद पंद्रह साल से बाभलगांव के सरपंच थे. शायद यही कारण है कि विलासराव ने पिता की नैतिक विरासत से अपने राजनैतिक सफर की शुरूआत की.
कोई ऐसा लड़का जो पुणे लॉ कालेज से पढ़कर आया हो और अपनी खूबसूरती और अदाकारी की बदौलत फिल्मी दुनिया का अमोल पालेकर बनने के बारे में सोचना हो, उससे यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह गांव की राजनीति में पग धरेगा. लेकिन विलासराव को राजनीति करनी की ऐसी ललक जगी कि उन्होंने एकदम जमीनी स्तर से राजनीति कैरियर की शुरूआत की. 1974 में बाभनगांव के सरपंच बने लेकिन दो साल के अंदर ही वे उस्मानाबाद जिला परिषद के सदस्य बन गये. इसके बाद लातूर जिला परिषद के डिपुटी चेयरमैन. कांग्रेस की राजनीति तो कर ही रहे थे. 1980 में शिवराज पाटिल के चुनाव लड़ने से मना करने के बाद विलासराव को विधानसभा का टिकट मिल गया और 1980 से लेकर 1995 तक वे लगातार लातूर से विधायक चुनकर महाराष्ट्र विधानसभा पहुंचते रहे.
इसे आप विलासराव का भाग्य कहें या फिर उनकी प्रतिभा कि उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की यात्रा बहुत तेज गति से की. 1974 में गांव के सरपंच बननेवाले विलासराव 1982 में महाराष्ट्र सरकार में मंत्री बन चुके थे. इसके बाद 1995 तक वे महाराष्ट्र सरकार में दर्जनों विभागों के मंत्री बनते रहे. विलासराव की राजनीतिक यात्रा में पहला बड़ा झटका लातूर में भूकंप आने के दो साल बाद लगा 1995 में. विलासराव उसी लातूर में शिवसेना भाजपा की लहर में 35 हजार वोटों से हार गये जिस लातूर ने उन्हें पहचान दी थी. लेकिन उनकी हार का यह सदमा बहुत देर तक नहीं रहा. 1999 में उसी लातूर से वे एक बार विजयी हुए और इस बार उनकी जीत के अंतर ने सारे रिकार्ड तोड़ दिये. वे लातूर विधानसभा सीट 91 हजार से अधिक मतों से जीतकर महाराष्ट्र विधानसभा पहुंचे.
लातूर में मिली इसी अपराजेय विजय के बाद कांग्रेस ने उन्हें एक और बड़ा ओहदा सौंप दिया. इस बार वे मंत्री नहीं बल्कि मुख्यमंत्री बने. शिवसेना के नारायण राणे से गद्दी छीनकर विलासराव देशमुख मुख्यमंत्री बने लेकिन अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. ठीक विधानसभा चुनाव से पहले वे मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाये जरूर गये लेकिन चुनाव के बाद एक बार फिर उन्हें ही 2004 में मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी गई. इस बार भी विलासराव अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये और 2008 में मुंबई हमलों के वक्त एक ऐसे विवाद ने उनकी राजनीतिक बलि ले ली जिसका कोई तुक नहीं था. कहते हैं आपके पुराने शौक अक्सर आपकी कमजोरी बन जाते हैं. यही विलासराव के साथ भी हुआ. ताज होटल पर आतंकी हमले के बाद जब बतौर मुख्यमंत्री वे वहां दौरा करने गये तो उनके साथ एक्टर बेटा और बेटे का निर्देशक दोस्त रामगोपाल वर्मा भी था. किसी टीवी कैमरे ने यह दृश्य पकड़ लिया और उनको मुख्यमंत्री की कुर्सी से हाथ धोना पड़ा.
महाराष्ट्र की राजनीति में हुए इस अवसान के बाद विलासराव का राजनीतिक पराभव भी शुरू हो गया. वे दिल्ली आ गये और यहां लगातार कमतर मंत्रालयों के मंत्री बनाये जाते रहे. केन्द्र में बतौर भारी उद्योग मंत्री अपना राजनीतिक कैरियर शुरू करनेवाले विलासराव जब विदा हुए तो विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री थे. इसी दौर में उनके ऊपर आदर्श घोटाले का भी आरोप लगा और कैंसर ने शरीर को भी खोखला करना शुरू कर दिया. 6 अगस्त को अचानक वे बुरी तरह बीमार पड़ गये. उन्हें मुंबई के ब्रीच कैण्डी अस्पताल ले जाया गया तो पता चला कि उनकी किडनी और लीवर दोनों क्रिटिकल हैं. इसके बाद ब्रीच कैण्डी अस्पताल की ही सलाह पर उन्हें चेन्नई के अस्पताल ट्रांसफर कर दिया गया जहां वे सिर्फ आधे घण्टे के लिए लाइफ सपोर्ट सिस्टम से अलग हो पाये. लाइफ सपोर्ट सिस्टम भी उनको बचा नहीं पाया और 67 साल की उम्र में 14 अगस्त को उनका निधन हो गया.
कभी महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा नेता शरद पवार से राजनीतिक जमीन छीनकर महाराष्ट्र की राजनीति में कांग्रेस को दोबारा मजबूत करनेवाले विलासराव अपनी कमजोर होती काया को मजबूत नहीं कर सके. निश्चित रूप से उनके समर्थकों को ही नहीं बल्कि उन्हें भी हार्दिक कष्ट होगा जो कांग्रेस में विलासराव को भविष्य के एक चमकदार चेहरे के रूप में देख रहे थे
Wednesday, August 8, 2012
સરદાર પટેલ એક એવી વ્યકતિ હતાં
જવાહરલાલના વિચારને ‘પોપટીયા અવાજ’તરીકે સરદાર પટેલ ફગાવી દેતાં હતાં
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આ માણસ કેમ મારા પર દાદાગીરી કરવાનો પ્રયાસ કરી રહ્યો છે ???
માઉન્ટબેટને વિચાર્યુ.સામે બેઠેલા ચટ્ટાન જેવાં આદમી આગળ તેમની
’કામણની કામગીરી’ એકાએક અટકી ગઇ હતી.ખંભા પર ખાદીની ધોતી નાખેલો,ચળકતી
ટાલવાળૉ,રૂક્ષ,ખૂરશીમાં કડક ગોઠવાયેલો આદમી,હિંદુસ્તાની રાજકારણીની બદલે
કોઇ રોમન સેનેટર જેવો લાગતો હતો.
શબ્દોને આડેધડ વાપરનારા દેશમાં,સરદાર પટેલ એક એવી વ્યકતિ હતાં,જે એક કંજુસની માફક શબ્દોને સંઘરી રાખતાં.
નવો સમાજ રચવાના નહેરુંના અલૌકિક આદર્શો સાથે સરદાર પટેલને કાંઇ
લેવાદેવા ન હતાં.બહાદૂર સમાજવાદી દુનિયાના સ્વપના જોતાં જવાહરલાલના વિચારને
‘પોપટીયા અવાજ’તરીકે સરદાર પટેલ ફગાવી દેતાં હતાં
તેમનાં જ એક મદદનીશે પટેલના વિશે જણાવ્યું હતું કે,
’વલ્લભભાઇ એક એવા શહેરમાંથી આવતાં હતાં,મશીનો,ફેકટરીઓ અને કાપડઉધોગનાં કેન્દ્રમાં તે ઉછર્યા હતાં;
જયારે નહેરું એક એવી જગ્યાએથી આવતાં હતાં;જ્યાં ફૂલો અને ફળૉનો ઉછેર થતો હતો.
૩૩ વર્ષની વયે સરદાર પટેલ બેરિસ્ટર બનવાં વિલાયત જાય છે.પોતાની
જાતકમાઇમાંથી વિલાયત ગયેલા સરદાર પટેલના રહેઠાણથી મિડલટેમ્પલ ખાતેની ‘ઇન્સ
ઓફ કોર્ટ’ની લાઇબ્રેરી વચ્ચે ૧૧ માઇલનું અંતર હતું,તે પગે ચાલીને પટેલ જતાં
હતાં.
ઉપરોકત લખાણ લેરિ કોલિન્સના ચર્ચાસ્પદ પુસ્તક ’ફ્રિડમ એટ મિડનાઇટ’ માંથી લીધેલા છે.
હવે જોઇએ કે હિંદસ્તાનની આઝાદીમાં સૌથી વધું ચર્ચામાં જે ચારેય નામ હતાં તેઓ
,ગાંધી,સરદાર,જિન્હા અને નહેરું.
આ ચારેય જણા બેરિસ્ટર થવાં વિલાયત ગયાં હતાં.આ ચારેય વ્યકિતમાંથી
ગાંધી અને સરદાર વિલાયતમાં સાદગીથી રહેતાં હતાં અને નહેરું અને જિન્હા બંને
ત્યાની બ્રિટિશ લાઇફસ્ટાઇને પુરી રીતે માણીને રહેતાં હતાં.
આ
બધામાં જિન્હા તો ચારચાસણી ચડે તેવાં હતાં. સુંદર સૂટ,સેમ્પેઇન,વાઇન અને
બ્રાનડીના શોખીન જિન્હા મુસલમાન હોવાં છતાં સુંવરનું માંસ ખાતા,ચિરુટ પીતા
હતાં.નિયમિત દાઢી કરતાં હતાં અને એટલી જ નિયમિતતંથી દર શુક્રવારે નમાઝ
પઢવાનું ટાળતા હતાં.
એક વાર મુંબઇની ચાલુ કોર્ટે વલ્લભભાઇને એમની પત્નીના અવસાનનો તાર મળ્યો,તે તાર વાંચીને કોર્ટની આગળની કાર્યવાહીમાં જોડાય ગયાં.
વલ્લભભાઇના દિલ્હી ખાતેનાં નિવાશસ્થાને હિંદુસ્તાનના લેખકોએ હિંદ વિશે
લખેલા ઘણા પુસ્તકો હતાં.દેશના અલગ અલગ પ્રાંતમાંથી ૩૦ જેટલા અખબારો આવતાં
હતાં.
ફરીથી ફ્રિડમ એટ મિડનાઇટ પુસ્તકના સરદાર ઉપર લખેલા એક
વાકય ઉપર નજર-નહેરું ભલે ગાંધીની ચાદર ઓઢતાં હોય પણ વલ્લભભાઇ જાણતાં હતાં
કે સ્વતંત્ર હિંદને બીજા સીઝરની જરૂર પડશે.જિન્હા સાથે વલ્લભભાઇને સારા
સંબધ હતાં,એ જિન્હાની માફક જ વલ્લભાઇને ઓછા આંકવામાં આવ્યાં હતાં,ગાંધી અને
નહેરું પ્રત્યે મમતાં ઠાલવનાર સૌએ વલ્લભભાઇની ગણતરી કમ કરી હતી…એ એક
ગંજાવર ભૂલ હતી.તેના એક મદદનીશે કહ્યું હતું કે,’ખરેખર તો ‘વલ્લભભાઇ’ જ
હિંદના છેલ્લા મોગલ હતાં
ત્રાજવાના એક પલડામાં સરદારસાહેબને
મુકવામાં આવે અને બીજા પલડામાં બધા નેતાઓને મુકવામાં આવે તોપણ
સરદારસાહેબનું પલડું ઊંચું ના કરી શકાય,બધા નેતાઓ માટે કહી શકાય કે આ ન હોત
તોચાલત.વાંધો ન આવત પણ સરદારસાહેબ માટે એવું કહી જ ન શકાય સરદાર ન હોત તો
કશું બગડી જવાનું ન હતું. તે અનિવાર્ય હતા.એક માત્ર અનિવાર્ય.(સ્વામી
સચ્ચિદાનંદ)
આજે કોંગ્રેસ નાં પ્રચારતંત્રમાં એક પણ જગ્યાએ
સરદાર પટેલનો ફોટો નજરે પડતો નથી.એ ના ભૂલવું જોઇએ કે એક મહાન ગુજરાતી ના
બલિદાનથી અને સાચી રાષ્ટ્રભાવનાને કારણે નહેરુંને વડાપ્રધાન પદની ખૂરશી પર
બેસવા મળ્યું હતું. સરદાર કેવા દેશભકત હતા,તેના અનેક દાખલા છે.કાયદાની
દર્ષ્ટીએ પણ વડાપ્રધાન પદના દાવેદાર તે જ હતાં.૧૯૪૬ માં જે વ્યકિત કોંગ્રેસ
ની પ્રમુખ બની હોય તે સ્વાભાવિકપણે જ હિંદની સરકારના વડા તરીકે પણ પંસદગી જ
હોય.હિંદુસ્તાનની ૧૬ માંથી ૧૫ પ્રદેશ કોંગ્રેશ સમિતિઓએ સરદાર પટેલની
તરફેણમાં મતદાન કર્યું હતું.પરંતુ ગાંધીજીના બોલને કદી નહી ઉથાપનાર સરદારે
ગાંધીજીના કહેવાથી તેમને નહેરુ માટે ખુરશી છોડી દીધી હતી કારણકે સરદારને
પોતાની જાત કરતાં દેશને મહાન બનાવવામાં રસ વધું હતો.એક મહાન અને મર્દ
ગુજરાતીના બલિદાનને ભુલી જઇને આજે કોંગ્રેસ પ્રચારમાં નહેરુના ફોટાનો ઉપયોગ
વધુ કરે છે.
સરદારની જન્મજંયતી અને ઇન્દિરાજીની મરણતીથિ એક જ
દિવસે આવે છે.કોંગ્રેસે તો હદ કરી નાખી છે,જે મજબુત બે પાયા ઉપર કોંગ્રેસ
ની ઇમારત ઉભી છે,એવા ગાંધી અને સરદારનું કોંગ્રેસ ના પ્રચારતંત્રમાં સ્થાન જ
નથી,એની બદલે બોફોર્શકાંડ અને શાહબાનું કેસમાં બદનામ થયેલા રાજીવગાંધીના
ફોટા વધારે દેખાય છે :(
સરદાર પટેલને સમાજવાદ પ્રત્યે પણ એટલી
જ ચીડ હતી.૧૯૩૪માં આચાર્ય નરેન્દ્ર દેવ અને જયપ્રકાશ નારાયણ બંનેએ મળીને
‘અખિલ ભારતીય કોંગ્રેસ સોશ્યાલિસ્ટ પાર્ટી’નું નવું માળખું તૈયાર કર્યું
હતું.ત્યારે સરદારે આ સમાજવાદીઓને આડે હાથે લીધા હતાં. સરદાર નીવેદન આપતા
કહ્યું હતું કે,’આ પાર્ટીનું બધું જ્ઞાન પુસ્તક પંડીતોને આધારિત છે.પ્રજા
અને દેશની સમસ્યા ઉકેલવાનો વ્યવ્હારિક અભિગમ આવા લોકોની સમજ બહારનો વિષય છે
એ પછી ગુજરાતમાં સમાજવાદીઓએ પોતાની પાર્ટીની શાખા ખોલી ત્યારે સરદારે
પટેલે બયાન આપતાં કહ્યું હતું કે,’જે રીતે મારા ઘરમાંથી એક પાગલ કુતરાને
હાંકી કાઢું એ જ રીતે આ પ્રકારનાં સમાજવાદને ગુજરાતમાંથી હાકી કાઢીશં.’
આઝાદીના ચાર દિવસ અગાઇ ૧૧ઓગષ્ટ ૧૯૪૭નાં રોજ બધી રિયાસતોને ચેતવણી
આપતાં સરદારે બયાન આપ્યું કે,’ચાર દીવસની અંદર વિદેશી સરકાર ચાલી જશે,માટે
૧૫ ઓગષ્ટ બધી રિયાસતોએ હિંદમાં જોડાય જવાંનું છે.અન્યથા જે રિયાસતો નહિં
જોડાય એમની સાથે કઠોર વ્યવહાર કરવામાં આવશે.’ પરિણામે ૫૬૫ રજવાડામાંથી ૫૬૧
રજવાડા આઝાદ હિંદ સાથે જોડાય ગયાં
૭,સપ્ટેમ્બરના રોજ
માઉન્ટબેટને જુનાગઢના મામલાને સયુંકત રાષ્ટ્રમાં લઇ જવાનો પ્રસ્તાવ પણ
રાખ્યો હતો,ત્યારે સરદારે નહેરૂં સહિત અન્ય નેતાઓને વિરોધ વચ્ચે જુનાગઢનો
મામલો પોતે સંભાળી લઇને જુનાગઢ લશ્કર મોકલવાનો તાત્કાલિક નિર્ણય લીધો હતો.
એ પછી ૧૩ નવેમ્બરનાં રોજ કાઠિયાવાડમાં જુનાગઢની પ્રજાને સંબોધતા
સરદારે જુનાગઢની પ્રજાને કહ્યું હતું કે,’જે લોકો હજું પણ બે રાષ્ટ્રનાં
સિધ્ધાંતમાં માને છે અને જેઓની હમદર્દી પાકિસ્તાન સાથે છે,તેવા લોકોનું
કાઠિયાવાડમાં કોઇ સ્થાન નથી.જેઓનાં મનમાં હિંદ પ્રત્યે વફાદારી નથી,તેઓ
પાકિસ્તાન ચાલ્યા જાય.’
૨૦ ફેબ્રુઆરી ૧૯૪૮નાં રોજ જુનાગઢમાં
જનમત લેવાયો.કેવળ ૯૧ મતો જ પાકિસ્તાન તરફી પડ્યાં.૨૦ ફેબ્રુઆરી ૧૯૪૯નાં રોજ
સૌરાષ્ટ્રસંધમાં જુનાગઢને ભેળવી દેવામાં આવ્યું…આ હતી સરદારની ખુમારી…
આ બાજું હૈદ્રાબાદનો મુસ્લિમ નિઝામ મીર ઉસ્માનઅલીને પાકિસ્તાન સાથે
જોડાવું હતું.આ નવાબે હિંદ સરકારની જાણબહાર ૨૦કરોડ જેવી માતબર રકમ
પાકિસ્તાનને ખેરાતમાં આપી દીધી,અને અધુરામાં પુરું નિઝામે હિંદ સરકારને
ધમકી આપતાં કહ્યું કે,”જો હિંદ સરકાર હૈદ્રાબાદના મામલે કોઇ પણ પ્રકારનો
હસ્તક્ષેપ કરશે તો હૈદ્રાબાદમાં રહેતાં દોઢ કરોડ હિંદુઓનાં હાડકા અને રાખ
સિવાય કંઇ હાથમાં નહી આવે.”
બ્રિટનની પાર્લામેન્ટમાં ચર્ચિલે
હૈદ્રાબાદની નિઝામની તરફેણમાં નિવેદન આપ્યું હતું.તેથી ગુસ્સે ભરાયેલા
સરદારે ચર્ચિલને આડે હાથ લેતાં નિવેદન આપ્યું હતું કે,
”ચર્ચિલ એક નિર્લજ સામ્રાજયવાદી નેતા છે,જ્યારે હિંદમાં બ્રિટનની સત્તા
છેલ્લા શ્વાસ લઇ રહી છે ત્યારે તેની બુધ્ધિહિનતાં,હઠાગ્રહ,તર્ક,કલ્પ નાં
વિવેકની સીમાં પાર કરી ગઇ છે.ઇતિહાસ સાક્ષી છે,ચર્ચિલની નીતિને કારણે જ
હિંદ અને બ્રિટન વચ્ચેની મૈત્રીનાં પ્રયાસો અસફળ રહ્યાં છે.”
આ
બાજું મુસ્લિમ રઝાકારો હૈદ્રાબાદમાં રહેતાં હિંદુઓ ઉપર અમાનુષી અત્યાચાર
ગુજારવાનો શરું કરી દીધો.નિઝામે હજારો કોંગ્રેસી કાર્યકરોને જેલમાં નાંખી
દીધા.૯ સપ્ટેમ્બર ૧૯૪૮નાં રોજ સરદારે તાત્કાલિક નિર્ણય લેતાં જનરલ
જે.ચૌધરીનાં નેતૃત્વ હેઠળ હૈદ્રાબાદમાં લશ્કર મોકલવાનું નક્કી કર્યું.
“ઓપરેશન પોલો” નાં નેજા હેઠળ હિંદનાં લશ્કરે હૈદ્રાબાદ પર કાર્યવાહી
શરૂં કરી અને અંતે હૈદ્રાબાદનાં મુસ્લિમ નિઝામ મીર ઉસ્માન અલીએ શરણાગતી
સ્વીકારી લીધી અને ઉભી પુંછડીએ પાકિસ્તાન ભાગી ગયો.
એ વખતે હૈદ્રાબાદનો હવાલો સંભાળનાર કનૈયાલાલ મુનશીએ એક બ્યાન આપતાં કહ્યું હતું કે,
”જો નહેરુંની ઇચ્છા અનુસાર આ કાર્યવાહી થઇ હોત તો હિંદનાં પેટ ઉપર એક બીજું પાકિસ્તાન ઉભું થઇ ગયું હોત.”
આ બાજું કાશ્મીરમાં ગંભીર પરિસ્થતી ઉભી થઇ રહી હતી. મુસ્લિમ
અફઘાનીઓ,પઠાણો,કબિલાવાળા મુસ્લિમોએ એક સંપ કરીને કાશ્મીરમાં મોટા પાયે
ઘુસપેઠ શરું કરી દીધી. કાશ્મીરમાં રહેતાં હિંદુઓ અને પંડીતો ઉપર બેરહેમીથી
ઝુલ્મ શરું કર્યો. મોટાપાયે લૂંટફાંટ,હિંદુ સ્ત્રીઓ સાથે બળાત્કાર અને
હિંદુઓની બેરહમીથી કત્લેઆમનો સિલસિલો કરી દીધો….
આ ઘટનાની વિગતવાર અને રજેરજની માહિતી માટે વિજયગુપ્ત મૌર્યનું પુસ્તક ‘કાશ્મીરનું અગ્નિસ્નાન’વાંચી જવાં નમ્ર વિંનતી છે.
કાશ્મીરનો મામલો જવાહરલાલ અને ગોપાલસ્વામી આંયગરે પોતાનો અલગ મામલો
ગણીને સરદારનાં ગૃહખાતાથી અલગ રખાવ્યો હતો.અંતે નહેરુંની અણસમજ,માઉન્ટબેટન
પ્રત્યેના અહોભાવ,ઢીલીપોચી નીતિનાં કારણે કાશ્મીરનો મામલો સયુકત
રાષ્ટ્રસંઘમાં પહોંચી ગયો.જે આજ સુધી અટકાયેલો પડયો છે.
ઘટનાં
બાદ દુઃખી હ્રદયે સરદારે નિવેદન આપ્યું હતું કે,”જો જવાહરલાલ અને ગોપાલ
સ્વામી આંયગરે કાશ્મીરને પોતાનો વ્યકિતગત વિષય બનાવીને મારા ગૃહખાતાથી અલગ
ના રાખ્યો હોત તો કાશ્મીર સમસ્યાનો ઉકેલ હૈદ્રાબાદની જેમ આજે આવી ગયો હોત.
આજે હિદુસ્તાનની પ્રજા નહેરુંની નાદાનીની કિંમત કેટલી મોટા પાયે ચુકવી રહી છે :(
અધુરામાં પુરૂં જવાહરલાલ અને માઉન્ટબેટનના કારણે ૩૭૦ની હિંદુસ્તાનને
ખતરારૂપ કલમ મળી તે નફામાં. આ કલમ હિંદુસ્તાનના દરેક નાગરીકને એક જોરદાર
તમાચારૂપ છે.આજે કાશ્મીરીઓ સ્વતંત્ર કાશ્મીરની માંગણી કરે છે તે તદન
ગેરવ્યાજબી છે.પારકી ભૂમિ ઉપર રચાયેલી દરેક મુસ્લિમ સલ્તનતમાં અંદરોઅંદરની
લડાઇઓ અને ટુકી બુધ્ધિના કારણે વહીવટ ખોંરભે ચડ્યો છે. પાકિસ્તાન અને
બાંગ્લાદેશ આપણી નજર સામેના દાખલા છે…
૩૭૦ની કલમ માટે જો કોઇ
દોષીત હોય તો જવાહરલાલ નહેરુ,ગોપાલ સ્વાંમી આંયગર અને શેખ અબદુલ્લા
છે.૧૯૪૭માં નહેરૂની સુચનાથી શેખ અબદુલ્લા ૩૭૦ની કલમનો મુસદ્દો લઇને બાબા
સાહેબ આંબેડકરને મળવા ગયાં ત્યારે બાબાસાહેબ રીતસર શેખને ધમકાવીને કાઢી
મુકયા હતાં.
જ્યારે શેખ વીલા મોઢે નહેરુ પાસે પાછા ગયા ત્યારે
નહેરુએ બિટીશકાળના બાહોશ સનદી અધિકારી ગોપાલસ્વામી આંયગર ઉપર દબાણ કરીને
બંધારણ સભામાં આ મુસદો રજુ કરાવ્યો.
એ તો ઠીક..તે સમયે મૌલાના આઝદ
જેવા મુસ્લિમ નેતાએ પણ આ મુદદ્દાનો સખત વિરોધ કર્યો હતો.મૌલાનાએ પોતાની
દલીલ રજુ કરતા કહ્યુકે,’આ આખી કલમ કાશ્મીરને દેશથી જુદુ પાદી દેશે.જોકે આ જ
દલીલ સરદાર પટેલે પણ નહેરુની સામે ઉચ્ચારી હતી.
એ સમયે બંધારણના સભ્યોનો વિરોધ શાંત કરવા નહેરુએ કહ્યુકે,’આ કલમની જોગવાય કામચલાઉ ધોરણે છે.’
પરંતુ આજ સુધી નહેરુના વારસદારો ઇન્દિરાથી લઇને સોનીયા સુધી કોઇએ પણ આ કામચલાઉ જોગવાય દુર કરવાની હિંમત કરી નથી.
આઝાદીના સમયથી આજ લગી કોંગ્રેસ ની નીતિ..
”ગાય મારીને કુતરાને ધરાવવાની રહી છે.”
સરદાર પટેલ પછી કોંગેશમાં મર્દ નેતાની ફસલ પાકવાની બંધ થઇ ગઇ છે.
હિંદુસ્તાન અને પાકિસ્તાનનાં ભાગલા સમયે સરદાર,જિન્હા અને ડૉ.આંબેડકર આ
ત્રણેય વ્યકિતઓ બંને બાજુએથી વસતિની ફેરબદલીની તરફેણમાં હતાં
એ સમયે જિન્હાનાં સાથીદાર સીંધ પ્રાંતનાં પીર ઇલાહી બક્ષે પણ નિવેદન
આપ્યું હતું કે -” જો વસતિની સંપૂર્ણપણે ફેરબદલી કરવામાં આવશે જ બંને બાજુએ
સાંપ્રાદાયિક તનાવનો અંત આવશે અને લધુમતિઓની સમસ્યાઓનો કાયમી ઉકેલ આવી
શકશે.”
આઝાદી પછી હિંદમાં તેજીથી પરિવર્તનની જરૂર હતી. ત્યારે
રિયાસતોનાં મામલે સરદારની કઠોર નીતિના કારણે ભીરું પ્રકૃતિના નહેરુંનો
સરદાર સાથે ટકરાવ થયો હતો.કાશ્મીરનો મામલો સયુંકત રાષ્ટ્રસંઘમાં જતાં અને
કાશ્મીરનાં મામલે પાકિસ્તાન સામે કઠોર પગલા લેવા બાબતે નહેરુંની ઢીલીપોચી
નીતિનાં કારણે સરદારે ગુસ્સે થઇને નહેરુંને, “ભારતનો પાક્કો મુસલમાન” જેવા
શબ્દો કહી દીધા હતાં.
એ સમયે ડૉ.આંબેડકરે ગ્રીસ અને તુર્કીનો દાખલો આપતાં કહ્યું હતું કે,
”ગ્રીસ અને તુર્કીની જેમ પધ્ધતીસર વસતિની ફેરબદલી થવી
જોઇએ.પાકિસ્તાનમાં રહેતાં શીખ અને હિંદુઓ તમામ હિંદમાં આવી જાય અને હિંદમાં
રહેતાં તમામ મુસલમાનો પાકિસ્તાન ચાલ્યાં જાય.આ રીતે પધ્ધતીસર વસતિની
ફેરબદલી થશે તો જ દેશમાં શાતિ સ્થાપાશે…"
જો કે ડૉ.આંબેડકરે
એક બીજી વાત પણ કહી હતી કે ગ્રીસ અને તુર્કીની વસતિના મામલે અહિંયાની
ફેરબદલી બહું મોટાપાયે છે,પણ કાયમી શાંતિ માટે આ એક જ આખરી ઉપાય છે.
કદાચ આજે સરદાર,જિન્હા અને આંબેડકરની સમજણ મુજબ વસતિની ફેરબદલી થઇ હોત
તો આઝાદી પછી બનતી આવતી કોમી ઘટનાઓ,આંતકવાદ અને આંતકવાદીઓને સહેલાયથી મળી
રહેતાં સ્થાનિક મોડયુલો મળી રહેવાં,બાબરી મસ્જિદ,ગોધરાકાંડ જેવી ધટનાઓ
બનવાનો અવકાશ જ ના રહેવા પામત……ઇન્શા અલ્લાહ…જય હિંદ
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