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Wednesday, August 22, 2012

बुरे कर्मों का देखो मैंने कितना दुःख उठाया है

बुरे कर्मों का देखो मैंने कितना दुःख उठाया है

बुरे कर्मों का देखो मैंने कितना दुःख उठाया है
मेरा साया मुझको ही अपनाने से कतराता है
जिसको मारी ठोकर आज उसी के दर पे जाता हूँ
रो-रोकर अपने दिल का औरों से हाल छुपाता हूँ
कोई किसी का नहीं यहाँ कहकर जी बहलाता हूँ
आदमी देखो, कैसे यहाँ खुद की चिता जलाता है
मेरा साया मुझको ही अपनाने से कतराता है
जिसने चाहा दिल से मुझको उसी का अवसान किया
उस डाली को काटा मैंने जिसने धूप-छाँव दिया
इक छोटी-सी भूल ने मेरे दिल में ऐसा घाव किया
अंत समय आया तो अब अंतर्मन पछताता है
मेरा साया मुझको ही अपनाने से कतराता है
सबको समझा याचक और खुद को समझा दानी
यही भूल बन गयी मेरे जीवन की करूण-कहानी
हाय, अनजाने में न जाने कितनों की हुई है हानि
सोचा तो ये जाना सबको नाच वही नचाता है
मेरा साया मुझको ही अपनाने से कतराता है

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