अक्सर हमारे हाथ यही रह जाता है
अक्सर हमारे हाथ यही रह जाता हैडर और पैसे में इंसाफ़ बिक जाता है
है झूठ तो फाँसी पे चढ़ा दो मुझको
इंसाफ के इंतज़ार में इंसान ही उठ जाता है
बच्चों को सब्र करना ही सिखाया मैंने
सब्र खुद मेरा अब टूट जाता है
ए खुदा कोई आस जगा दे दिल में
मेरे सीने में तूफ़ान सा उठ जाता है
हक़ की लड़ाई में सब-कुछ बिक गया
गुनहगार हर-बार बाइज्ज़त बच जाता है
सवालों के कटघरे में खड़ा हूँ नादिर
सच बोलना गुनाहे कबीरा बन जाता है
No comments:
Post a Comment