जातिय आरक्षण की क्या आवश्यकता थी ?
क्यों इसे संविधान में लागु किया गया ?
इन कारणों पर विस्तार से चर्चा करना
कुछ बुद्धिजीवियो का मनोरंजन हो सकता है |
खाली बैठे बुद्धिजीवीयो के लिये समय कटने का एक विषय हो सकता है |
क्या राजनीति के तथाकथित ** चाणक्य **
आरक्षण के राजनीति षड्यंत्र पर कभी सोचते है ?
आज की राजनीति
निजी स्वार्थो और चंद लोगो के गिरोह के स्वार्थो की राजनीति हो गयी है |
आज राजनीति में कोई सिद्धांत वाद नही है |
राजनीति में सिद्धांत पर यदि किसी ने राजनीति की है
तो मै इसके लिये मेवाड़ के महाराणा प्रताप सिंह जी को श्रेय दुगा |
जिन्होंने मुग़ल बादशाह अकबर की ये जिद के
मेवाड़ के राजघराने की लड़की का डोला अकबर के रनिवास में भेजो |
हिन्दू शिरोमणि , आन, बाण ,शान के धनी
महाराणा प्रताप भी मेवाड़ की किसी
गरीब सुंदर कन्या को गोद ली हुई बेटी कह कर
अकबर के महल में भेज कर सुखी और विलासितापूर्ण जीवन जी सकते थे,
जैसा की आज कल के नेता करते है |
देश नया नया आजाद हुआ था
कांग्रेसी नेताओ की सत्ता की भूख
बिना सोचे विचारे संविधान में
आरक्षण को दस साल के लिये स्वीकार कर लिया |
स्वार्थी राजनीति गिरोह के लोगो ने
बिना सोचे समझे देश के नागरिको को
दो भागो में बांट दिया अगडे और पिछड़े |
लेकिन अगडे कौन ? पिछड़े कौन ?
इसकी कोई परिभाषा नही |
हम बात करते है पिछडो की
पिछडो में जिन्हें संवैधानिक नाम दिया
अनुसूचित जाति (SC)/अनुसूचित जनजाति(ST)|
इसमें शामिल करने के लिए
कोई नियम / योग्यता का माप दंड(CRITERIA)
निर्धारित नही किया गया |
इन जातियों के लिए संवेधानिक आरक्षण दिया गया
इसके लिये जातिय आधार एक सूची तैयार की गई
जिसे नाम दिया गया अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति |
इन सूचियों में जातियों को बिना किसी आधार के शामिल कर
उन्हें संवैधानिक आरक्षण दे दिया |
हम भारत के बुद्धिजीवियो,समाज शास्त्रियों, राजनेताओ से पूछना चाहते है
वो कौन से माप दंड [ criteria ]थे
जिनके आधार पर दस साल के लिए
इन जातियों को संवैधानिक आरक्षण दिया था?
अगड़ी जातियों और पिछड़ी जातियों में मुलभुत क्या अंतर था ?
इस मुलभुत अंतर की क्या सीमा रेखा थी या क्या मापदंड था?
किस बिंदु या योग्यता के आधार पर कोई
जाति विशेष या व्यक्ति विशेष दलित नही रह जायेगा ?
वो जाति विशेष या व्यक्ति विशेष
अगड़ी जाति का कब माना जायेगा?
हम उनसभी आरक्षण समर्थको से पूछना चाहते है
क्या इन ६२ वर्षो में कोई भी जाति जिसे आरक्षण मिला हुआ है
उस स्तर तक नही पहुची की उसे अगड़ी जातियों के समकक्ष माना जाये ?
भारतीय राजनीती का एक षड्यंत्र ----- --- अंतरजातिय विवाह
भारत की सरकार अंतरजातिय विवाह को
प्रोत्साहन के लिए विवाहित जोड़े को जिसमे
वर या वधु मेंसे एक दलितजाति से हो दूसरा अगड़ीजाति से हो
उन्हें नकद प्रोत्साहन राशी देती है |ऐसा क्यों ?
क्या दलितों में जातीय नही होती?
क्यों नही SC & ST के बीच विवाह संबंधो पर भी
सरकार प्रोत्साहन देती ?
भंगी और चमार के बीच विवाह सम्बन्ध
को प्रोत्साहित क्यों नही करती सरकार ?
जब जब आरक्षण के विरुद्ध सुप्रीमकोर्ट ने कोई फैसला दिया
तब तब इन राजनेताओ ने संविधान संशोधन कर अन्याय किया,
सुप्रीमकोर्ट का अपमान किया |
अटल बिहारी वाजपेई ने ८१व,८२वा संविधान कर
सवर्णों के साथ बहुत बड़ा अन्याय किया |
जो अटल बिहारी शाहबानो केस में संविधान संशोधन करने पर
राजीव गाँधी की आलोचना में कहते थे
कांग्रेस मुस्लिम तुष्टिकरण करने के लिए
सुप्रीमकोर्ट का अपमान कर रही है
उसी अटल बिहारी ने दलित तुष्टिकरण के लिए
क्या सुप्रीमकोर्टका अपमान नही किया ?
विशेष रूप से इस दलित तुष्टिकरण के लिए
RSS
जो एक सामाजिक संगठन है दोषी है ,
संघ के पुराने स्वयंसेवक जानते है
संघ का जन्म डॉ हेडगेवार जी के तत्कालीन
राज सत्ता और गाँधी की मुस्लिम तुष्टिकरण नीति
के विरोध का परिणाम था |
आज न जाने संघ दलित तुष्टिकरण पर मौन क्यों है ?
संघ समाज में समरसता की बात करता है
पर सुप्रीमकोर्ट के पदोन्नति में आरक्षण नही के विरुद्ध
संविधान संशोधन पर दलित नेताओ दवारा
संघ के समरसता के विरुद्ध भिन्नता के प्रयासों का विरोध न करना
संघ की सामाजिक सोच पर एक प्रश्न चिन्ह है ?
जागो सवर्णों जागो
जिस तरह मायावती और अन्य दलित नेता दलितों के हितो के लिए
संविधान में संशोधन करवा ने की ताकत दिखाते ,
हमारे लिए कोई भी सवर्ण नेता कभी नही बोलता ,
आओ और आरक्षण विरोधी वोट बैंक बनाओ |
क्यों देते हो इन सवर्ण जातियों के नेताओ को वोट
जो जातिय आधार पर राजनीती करते है |
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