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Tuesday, August 14, 2012

visfot.com - विदा हो गये विलासराव

महाराष्ट्र की राजनीति का मराठा अकाल मौत के गाल में समा गया. विलासराव दादोजी राव देशमुख स्वास्थ्य ऐसा बिगड़ा कि चेन्नई का ग्लोबल हेल्थ सिटी हास्पिटल चाहकर भी उनकी तबितय नहीं सुधार पाया. एक दिन पहले आधे घण्टे के लिए उन्हें वेन्टिलेटर से हटाया गया था. लेकिन राजनीतिक रूप से पराभवकाल में चल रहे विलासराव जिन्दगी की वह जंग भी हार गये जिसे जीतने के बाद शायद वे लौटकर अपनी राजनीतिक यात्रा दोबारा शुरू कर सकते.

विरासराव की कोई ऐसी उम्र न थी कि वे चले जाते. आजादी से महज दो साल पहले उनका जन्म महाराष्ट्र में लातूर जिले के बाभलगांव में हुआ था. अपनी राजनीतिक यात्रा में अभी पिछले एक दशक से उन्होंने उतार चढ़ाव का दौर देखना शुरू किया था. किसी जमाने में पुणे लॉ कालेज की कैण्टीन में आज के फिल्मी सितारों के साथ बैठकर गप्प मारनेवाले विलासराव बड़े होकर फिल्म स्टार बनना चाहते थे लेकिन किस्मत ने उन्हें राजनीति का दरवाजा दिखा दिया. और राजनीति भी ऐसी कि आज ऊपर बैठा कोई राजनीतिज्ञ शायद ही वहां से चलकर यहां तक पहुंचा हो.

विलासराव देशमुख आसमानी नेता नहीं थे. उन्होंने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरूआत अपने ही गांव बाभलगांव का सरपंच बनकर शुरू की थी 1974 में. उनके पिता दादोजी राव न सिर्फ बाभलगांव के संपन्न सरपंच थे बल्कि वे आस पास के पूरे इलाके में अपनी सच्चाई और ईमानदारी के लिए भी जाने जाते थे. वे खुद पंद्रह साल से बाभलगांव के सरपंच थे. शायद यही कारण है कि विलासराव ने पिता की नैतिक विरासत से अपने राजनैतिक सफर की शुरूआत की.

कोई ऐसा लड़का जो पुणे लॉ कालेज से पढ़कर आया हो और अपनी खूबसूरती और अदाकारी की बदौलत फिल्मी दुनिया का अमोल पालेकर बनने के बारे में सोचना हो, उससे यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह गांव की राजनीति में पग धरेगा. लेकिन विलासराव को राजनीति करनी की ऐसी ललक जगी कि उन्होंने एकदम जमीनी स्तर से राजनीति कैरियर की शुरूआत की. 1974 में बाभनगांव के सरपंच बने लेकिन दो साल के अंदर ही वे उस्मानाबाद जिला परिषद के सदस्य बन गये. इसके बाद लातूर जिला परिषद के डिपुटी चेयरमैन. कांग्रेस की राजनीति तो कर ही रहे थे. 1980 में शिवराज पाटिल के चुनाव लड़ने से मना करने के बाद विलासराव को विधानसभा का टिकट मिल गया और 1980 से लेकर 1995 तक वे लगातार लातूर से विधायक चुनकर महाराष्ट्र विधानसभा पहुंचते रहे.

इसे आप विलासराव का भाग्य कहें या फिर उनकी प्रतिभा कि उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की यात्रा बहुत तेज गति से की. 1974 में गांव के सरपंच बननेवाले विलासराव 1982 में महाराष्ट्र सरकार में मंत्री बन चुके थे. इसके बाद 1995 तक वे महाराष्ट्र सरकार में दर्जनों विभागों के मंत्री बनते रहे. विलासराव की राजनीतिक यात्रा में पहला बड़ा झटका लातूर में भूकंप आने के दो साल बाद लगा 1995 में. विलासराव उसी लातूर में शिवसेना भाजपा की लहर में 35 हजार वोटों से हार गये जिस लातूर ने उन्हें पहचान दी थी. लेकिन उनकी हार का यह सदमा बहुत देर तक नहीं रहा. 1999 में उसी लातूर से वे एक बार विजयी हुए और इस बार उनकी जीत के अंतर ने सारे रिकार्ड तोड़ दिये. वे लातूर विधानसभा सीट 91 हजार से अधिक मतों से जीतकर महाराष्ट्र विधानसभा पहुंचे.

लातूर में मिली इसी अपराजेय विजय के बाद कांग्रेस ने उन्हें एक और बड़ा ओहदा सौंप दिया. इस बार वे मंत्री नहीं बल्कि मुख्यमंत्री बने. शिवसेना के नारायण राणे से गद्दी छीनकर विलासराव देशमुख मुख्यमंत्री बने लेकिन अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. ठीक विधानसभा चुनाव से पहले वे मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाये जरूर गये लेकिन चुनाव के बाद एक बार फिर उन्हें ही 2004 में मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी गई. इस बार भी विलासराव अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये और 2008 में मुंबई हमलों के वक्त एक ऐसे विवाद ने उनकी राजनीतिक बलि ले ली जिसका कोई तुक नहीं था. कहते हैं आपके पुराने शौक अक्सर आपकी कमजोरी बन जाते हैं. यही विलासराव के साथ भी हुआ. ताज होटल पर आतंकी हमले के बाद जब बतौर मुख्यमंत्री वे वहां दौरा करने गये तो उनके साथ एक्टर बेटा और बेटे का निर्देशक दोस्त रामगोपाल वर्मा भी था. किसी टीवी कैमरे ने यह दृश्य पकड़ लिया और उनको मुख्यमंत्री की कुर्सी से हाथ धोना पड़ा.

महाराष्ट्र की राजनीति में हुए इस अवसान के बाद विलासराव का राजनीतिक पराभव भी शुरू हो गया. वे दिल्ली आ गये और यहां लगातार कमतर मंत्रालयों के मंत्री बनाये जाते रहे. केन्द्र में बतौर भारी उद्योग मंत्री अपना राजनीतिक कैरियर शुरू करनेवाले विलासराव जब विदा हुए तो विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री थे. इसी दौर में उनके ऊपर आदर्श घोटाले का भी आरोप लगा और कैंसर ने शरीर को भी खोखला करना शुरू कर दिया. 6 अगस्त को अचानक वे बुरी तरह बीमार पड़ गये. उन्हें मुंबई के ब्रीच कैण्डी अस्पताल ले जाया गया तो पता चला कि उनकी किडनी और लीवर दोनों क्रिटिकल हैं. इसके बाद ब्रीच कैण्डी अस्पताल की ही सलाह पर उन्हें चेन्नई के अस्पताल ट्रांसफर कर दिया गया जहां वे सिर्फ आधे घण्टे के लिए लाइफ सपोर्ट सिस्टम से अलग हो पाये. लाइफ सपोर्ट सिस्टम भी उनको बचा नहीं पाया और 67 साल की उम्र में 14 अगस्त को उनका निधन हो गया.

कभी महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा नेता शरद पवार से राजनीतिक जमीन छीनकर महाराष्ट्र की राजनीति में कांग्रेस को दोबारा मजबूत करनेवाले विलासराव अपनी कमजोर होती काया को मजबूत नहीं कर सके. निश्चित रूप से उनके समर्थकों को ही नहीं बल्कि उन्हें भी हार्दिक कष्ट होगा जो कांग्रेस में विलासराव को भविष्य के एक चमकदार चेहरे के रूप में देख रहे थे

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