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Saturday, December 29, 2012

DRDO, other govt websites hacked by Algerian group

 

DRDO, other govt websites hacked by Algerian group

Hackers reveal how FBI used Apple UDID's to track 12 mn users

  • Biggest threat to India's cyber security: Pen drives, says army

It seems that hackers have once again showcased the weakness of India’s cyber-security system. According to IANS several important government websites were hacked late on Wednesday night.  The message posted on the websites read ‘SanFour25, Algerian Hackers’ minutes after the hacking took place.

Among the sites that came under the attack were those of the prime minister’s adviser on public information, infrastructure and innovations – http://iii.gov.in, and Recruitment and Assessment Centre (RAC) of the Defence Research and Development Organisation(DRDO) www.rac.gov.in.

Sam Pitroda is the prime minister’s adviser on public information, infrastructure and innovations, while RAC takes care of the process of scientists recruitment for the DRDO.

The cyber attackers group, said to be ‘SanFour25′, also targeted five more Indian websites and defaced them.

According to Rediff, the sites hacked include DRDO’s Recruitment and Assessment Centre, West Bengal’s police department, Directorate of Estates (Ministry of Urban Development), Biotechnology Industry Research Assistance Council, and Rehabilitation Council of India .

It seems that the DRDO Recruitment and Assessment Centre site was down for over nine hours. This is a particularly sensitive site as it deals with the recruitment of scientists to the several laboratories of the DRDO.

IANS quoting government sources as saying however that there were ”no secrets on these websites”.

The other important website that was hacked was Advisor to the Prime Minister on Public Information’s website. It seems that the authorities realised about the attack only after they stopped functioning.

The DRDO and Advisor to the Prime Minister on Public Information’s website site appear to be back now.

Thursday, December 20, 2012

केजरीवाल के प्रत्यक्ष लोकतंत्र के खतरे

केजरीवाल के प्रत्यक्ष लोकतंत्र के खतरे

 

केजरीवाल के प्रत्यक्ष लोकतंत्र के खतरे - India Real Time Hindi - WSJ

स्विटज़रलैंड अंतर्राष्ट्रीय रेड क्रॉस और घोर मानवाधिकार हनन के खिलाफ जिनेवा सम्मेलन का जन्मस्थान है। इस देश को धार्मिक सहिष्णुता का गढ़ माना जाता है। इसके बावजूद 2009 में, स्विटज़रलैंड ने नागरिकों के जनमत के आधार पर मस्जिदों की मीनारों पर राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध लगाया। क्योंकि स्विटज़रलैंड एक ऐसा देश है, जिसने प्रत्यक्ष लोकतंत्र को अपनाया है, लिहाज़ा जनमत का फैसला वहां का कानून बन गया।

इस कानून को धार्मिक स्वतंत्रता पर कुठाराघात कहकर व्यापक तौर पर निंदा की गई। यूरोप और मध्य एशिया में एमनेस्टी इंटरनेशनल के उप-कार्यक्रम निदेशक डेविड डियाज़-जॉगिक्स ने टिप्पणी की: “स्विटज़रलैंड एक ऐसा देश है, जहां धार्मिक सहिष्णुता की लंबी परंपरा रही है और जहां सताए हुए लोगों को शरण देने का प्रावधान है, ऐसा देश इस विकृत विभेदकारी प्रस्ताव का अनुमोदन करे, ये चौंकानेवाले है।”

फ्रेंच दैनिक ‘लिबरेशन’ के एक रिपोर्टर जीन क्वाट्रेमेर ने उपयुक्त ढंग से मीनारों पर प्रतिबंध और प्रत्यक्ष लोकतंत्र के खतरे के बीच संबंधों का खाका ये कहते हुए खींचा: “एक बार फिर, प्रत्यक्ष लोकतंत्र ने साबित किया है कि इसकी प्रकृति काफी खतरनाक है। लोगों को दूसरों से खतरों को ज़ाहिर करने की दी गई स्वीकृति, तर्कों को तिलांजलि देना और अल्पावधि-हितों पर फोकस करना, निश्चित तौर पर जनमत संग्रह सभी तरह के जनोत्तेजकों के हाथों में एक खतरनाक यंत्र है। ये समझना आसान है कि क्यों कई लोकंतात्रिक देशों ने इसे सीधे तौर पर गैरकानूनी बनाया है।”

भारत उन कई देशों में है, जिन्होंने प्रत्यक्ष लोकतंत्र को नहीं अपनाया। हम प्रतिनिधित्व पर आधारित एक लोकतंत्र हैं, जहां लोग अपने लिए कानून और नीतियां बनाने हेतु प्रतिनिधियों को चुनते हैं। हालांकि, पिछले दो-एक सालों से, अरविंद केजरीवाल और उनके समर्थक स्विस-सरीखे प्रत्यक्ष लोकतंत्र की ज़ोर-शोर से वकालत कर रहे हैं। श्री केजरीवाल दावा करते हैं कि प्रत्यक्ष कानून निर्माण विशेष हितों की हिफाज़त करने वाले कृतज्ञ भ्रष्ट राजनेताओं को दरकिनार करने की स्वीकृति प्रदान कर नागरिकों की सुरक्षा करते हैं।

श्री केजरीवाल ने जनमत संग्रहों और पहलकदमी को प्रस्तुत करने की मांग की है। जनमत संग्रह एक पद्धति है, जहां लोग, प्रत्यक्ष मतों से, नए कानून, नीति अथवा संसद द्वारा पारित मौजूदा कानून को नकारने का फैसला कर सकते हैं। दूसरी तरफ, एक पहलकदमी में नागरिकों का समूह राष्ट्रव्यापी प्रत्यक्ष मत हेतु नया मसौदा प्रस्तुत कर नए कानून अथवा संविधान संशोधन के लिए पहल करता है। हाल ही में, जिस तरीके से बहु-ब्रांड खुदरा में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को मंजूरी देने के लिए संसद में वोटिंग हुई, उसने गुस्से को भड़काया, श्री केजरीवाल ने एक बार फिर इस मुद्दे पर फैसले के लिए संसद में वोटिंग की बजाय राष्ट्रव्यापी जनमत संग्रह पर ज़ोर डाला।

मीनारों पर प्रतिबंध लगाने वाले स्विस जनमत संग्रह के भारत सरीखे देशों में प्रत्यक्ष लोकतंत्र की मांग हेतु गहरे निहितार्थ हैं, जहां कई अल्पसंख्यक गुट हैं। ये दलील दी जा सकती है कि व्यापक भागीदारी, अल्पसंख्यक समूहों को संभावित दमनकारी नीतिगत परिणामों को झेलने के लिए छोड़ती है (जैसे स्विस मीनार प्रतिबंध) जिनका समर्थन बहुसंख्यक आबादी के एक हिस्से (जैसे 50 फीसदी जमा एक वोट) ने किया।

वे अमेरिकन स्टेट्स जिन्होंने प्रत्यक्ष लोकतंत्र को अपनाया और चुनावों को लेकर पहलकदमी के दुर्भाग्यशाली उदाहरण बनाए, इस मुद्दे को स्पष्ट करते हैं। इनमें से कुछ पहलों में शामिल है, हिस्पैनिक्स के लिए बहुभाषी कार्यक्रमों को समाप्त करना, कानून में एक प्रावधान जो समलैंगिकों को बगैर भेदभाव के संरक्षण देता है और अवैध प्रवासियों को स्वास्थ्य, शिक्षा और मेडिकल फायदों जैसी आधारभूत सुविधाओं से वंचित रखना।

शायद, इसी वजह से भारतीय संविधान निर्माता चाहते थे कि कानून चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा बनाए जाएं, हालांकि संविधान सभा के अंतरिम अध्यक्ष, सचिदानंद सिन्हा ने मसौदा तैयार करने वालों के संज्ञान के लिए स्विस संविधान की ओर भी ध्यानाकर्षण दिलाया।

संविधान निर्माताओं ने इसकी बजाय यूएस संविधान, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रमंडल मॉडलों और ब्रिटिश संसदीय व्यवस्था पर ज्यादा भरोसा किया। उन्होंने भारत के राष्ट्रपति के चुनाव और संविधान संशोधन के मामले में राष्ट्रव्यापी जनमत संग्रह के विचार को खारिज कर दिया।

संविधान ने जिस सरकार को ढांचागत किया वो सत्ता के प्रसार के ज़रिए प्रजा पीढ़क शासन को रोकने की कोशिश थी। इसलिए उदाहरणस्वरूप, इसकी तीन शाखाओं की प्रबंधकीय, संसदीय और न्यायिक शक्तियां पृथक हैं। संविधान ने संघवाद के ज़रिए शक्ति को छितरा दिया: ऐसा उसने केन्द्र और राज्यों के बीच सत्ता का विभाजन करके किया। ये संतुलन प्रत्यक्ष लोकतंत्र में गायब है। विभाजित-शक्ति व्यवस्था जो विचार-विमर्श और अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व, अल्पसंख्यक अधिकारों को बढ़ावा देती है, प्रतिनिधि की रोकटोक के बगैर जोखिमपूर्ण होती है।

हालांकि, ऐसा नहीं कहा जा सकता, भारत में प्रत्यक्ष लोकतंत्र की संपूर्ण मांगें औचित्यहीन हैं। मशहूर राजनीतिक विज्ञानी येहेज़केल ड्रॉर ने अन्वेषण किया कि प्रत्यक्ष लोकतंत्र छोटे समुदायों में अपेक्षाकृत अच्छा कर सकता है, जहां लोगों के ज्यादातर मुद्दों पर व्यक्तिगत अनुभव होते हैं, ये देखते हुए कि ये एक उपयुक्त विचारक प्रक्रिया और जटिल मुद्दों की पेशेवर व्याख्या के साथ संयोजित किया जाता है। जीन-जैक्स रूसो भी प्रत्यक्ष लोकतंत्र के हिमायती थे, लेकिन एक बार फिर छोटे प्रांतों के लिए।

प्रत्यक्ष लोकतंत्र सरकार का एक शक्तिशाली प्रकार है, जहां प्रत्येक नागरिक नामित छोटे इलाके में वार्तालाप में सहयोग देने की क्षमता (और इच्छाशक्ति) रखता हो। कुछ हद तक, अल्पसंख्यक दमन की चिंताएं प्रत्यक्ष लोकतंत्र में निहित होती हैं, जो प्रमुख तौर पर तब कम होती हैं, जब ये स्थानीय स्तर पर हर किसी मामले में लागू की जाती हैं, जैसे स्वास्थ्य, साफ-सफाई और आधारभूत सेवाओं का प्रावधान। छोटे क्षेत्रों में, पूरा समुदाय एकत्र हो सकता है और सक्रिय तौर पर अपने प्रतिदिन के क्रियाकलाप से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कर सकता है।

इसे समझते हुए, संविधान निर्माताओं ने संविधान के अनुच्छेद 40 का मसौदा तैयार किया, जो राज्यों के लिए चुने गए प्रतिनिधियों वाली ग्राम पंचायतों की स्थापना ज़रूरी बनाता है और उन्हें आत्म-शासन की एक इकाई के तौर पर शक्ति भी प्रदान करता है। इससे आगे, संविधान के 73वें और 74वें संशोधनों के अंतर्गत ग्राम सभाओं और पंचायतों का गठन, प्रोफेसर ड्रॉर और रूसो द्वारा प्रतिपादित प्रत्यक्ष लोकतंत्र के सम्मोहक उदाहरण हैं।

2008 का मॉडल नगर राज बिल शहरों में ग्राम सभाओं के अनुरूप इकाईयां बनाने की बात करता है। ये बिल जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन के तहत जरूरी सुधार है, जिसका अर्थ हुआ, राज्यों को जेएनयूआरएम कार्यक्रम के तहत फंडिग की पात्रता के लिए बिल-आधारित समुदाय-सहभागी कानून बनाना अनिवार्य है।

श्री केजरीवाल और उनकी नई राजनीतिक पार्टी दुर्लभ और शायद विचित्र भी है, जो कई राजनीतिक दलों की विषमता दिखाती है, जिनकी मुख्य समस्या नए विचारों का अभाव, गहरी जातिगत-राजनीति और भ्रष्टाचार है। भारतीय राजनीति में खलबली के वक्त, श्री केजरीवाल खेल से दूर पर महत्वपूर्ण खिलाड़ी हैं। जैसा प्रताप भानु मेहता ने हाल ही में इंगित किया, विकेन्द्रीकरण को लेकर श्री केजरीवाल की तत्परता चाह जगाने वाली है। हालांकि, उन्हें असंवैधानिक राष्ट्रव्यापी जनमत संग्रह के शब्दाडंबरों को छोड़कर संवैधानिक तरीकों पर चलना चाहिए। शुरुआत में, वो सभी राज्यों से मॉडल नगर राज बिल के तुरंत कार्यान्वयन की जरूरत पर ज्यादा बात कर सकते हैं, जो शहरी परिषदों के गठन की बात करता है।

-करण सिंह त्यागी पेरिस की एक कानून फर्म में एक एसोसिएट एटॉर्नी हैं। वे हारवर्ड लॉ स्कूल से एलएलएम कार्यक्रम में स्नातक हैं।

-इंडिया रियल टाइम को ट्वीटर @indiarealtime पर फॉलो कीजिए।

Tuesday, December 18, 2012

▐ इंसान बनो जानवरो के साथ ▐ How to Give First Aid to Your Dog - गली सड़क या पालतू कुत्ते के लिए जानिए प्राथमिक उपचार !

▐ सभी कार और चो पहिया वाहन चालक कृपया जानवरो से उम्मीद ना रक्खे की वे इंसानी अकल से काम करेंगे ... कृपया गाड़ी को शुरू करते -ड्राइव करते ॥ या रिवर्स - लेते वक्त भी ध्यान दे कहीं गाड़ी के नीचे या पीछे कोई जानवर तो नहीं है न !▐

▐ इंसान बनो जानवरो के साथ ▐ How to Give First Aid to Your Dog

Φ How to Give First Aid to Your Dog ▐ गली सड़क या पालतू कुत्ते के लिए जानिए प्राथमिक उपचार !

कभी कभी आप चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते जब आप की गली या सडक पर कुत्ता इंजर हो जाता है .... किसी इंसानी जानवर की लापरवाही से या फिर गलती से आप से खुद हो जाये ! तो उसको वैसे ही छोडना नहीं चाहते ! हमारे देश मे .... इन्सानो को मेडिकल केर उपलबध्ध नहीं ठीक से तो जानवरो के डॉक्टर और एनिमेल केर डिपार्टमेन्ट हर जगह होना ... कोशो दूर की बात है ! कल एक इंसानी जानवर ने.... दिन के उजाले मे ... एक कुत्ते के बच्चे को नहीं देखा ....! उसे जल्दी थी गेस के बोतल लेने जाने की ...! और मैंने देखि थी वो घटना .... उसने ये सोचकर गाड़ी नहीं रोकी ... की गाड़ी को नजदीक आता देखकर वे खुद खड़े होके हट जाएँगे ! उसकी ऐसी जल्दी की रसीदे मैंने उसके गालो मे बना दी .... पर अब करूँ भी तो क्या अगर जान भी ले लू उस इंसानी जानवर की ....! तो फिर मेरे पढ़ने की आदत ... खोजने की आदत की वजह से ॥ कुछ बाते जानता था ... तो मेरी तरफ से हो शके उतना किया ..... जो किया कुछ इस तरह से था ... कोई और हो जो ऐसा करना चाहता हो और पता ना हो क्या करना है .... तो उनके लिए ये जानकारी शेर कर रहा हूँ !

▐ सभी कार और चो पहिया वाहन चालक कृपया जानवरो से उम्मीद ना रक्खे की वे इंसानी अकल से काम करेंगे ... कृपया गाड़ी को शुरू कराते या रिवर्स - लेते वक्त भी ध्यान दे अगर आपकी गली मे कोई छोटे या बड़े कुत्ते आपने आसपास घूमते दिख रहे हो ..... मैंने 3 कुत्तो के बच्चो को जिज्ञासा वश गाड़ी के नीचे खेल रहे थे ॥ और फिर चालक की एक एक्सलेटर से .... उनकी गरदन पर बड़े बड़े टायरो को घूमा ने की वजह से कुचल जाते देखे है .... तो कृपया ... प्लीज प्लीज प्लीज ... ! वो हमारे ही भाई और बच्चे है ... और वे भी हम इंसान जानवरो की तरह सामाजिक भी है ... थोड़े समजदार भी है ... और सबसे जरूरी ... के वफादार है .... जो इन्सानो मे से ये तत्व गायब होता दिख रहा है .........! बिनती है .....! कोई हुकुम नही ॥

▬▬▬▬▬▬▬▬Φ माफ कीजिये अनुवाद नहीं कर रहा ...!

How to Give First Aid to Your Dog

Have you ever seen a dog injured in a fight or hit by a car? Perhaps you could only shake your head and walk away. Not because you didn't care, but because you didn't know how to approach and examine the dog or what to do next. Especially if you have a dog of your own, you'll want to be prepared, for your dog depends on you for help in an emergency situation.

This article will give you the information and techniques you'll need to confidently administer first aid and perhaps save the life of a pet. From administering CPR to treating an insect bite, you'll learn how to deal with a wide range of dog emergencies.

Let's begin by learning how to properly restrain a hurt and frightened dog, since this will be the first order of business to treat most dog injuries.

Restraining an Injured Dog

An injured dog is usually frightened and in pain, and unless it feels very secure with your presence, it may try to escape or even bite you. So, it's important to use the following tips when approaching an injured dog.

Step 1: Approach the dog slowly, speaking in a reassuring tone of voice.

Step 2: Move close to the dog without touching it.

Step 3: Stoop down to the dog. While continuing to speak, observe its eyes and facial expression.

Step 3a: If the dog is wide-eyed and growling, DO NOT attempt to pet it. Proceed to Step 4.

Step 3b: If the dog is shivering, with its head lowered and a "smiling" appearance to its mouth, pet the dog for reassurance, first under the jaw. If this is permitted, pet the dog on the head.

Step 4: Slip a leash around the dog's neck. Use whatever material is available -- a rope, a tie, a belt, or torn rags.

Step 5: If you are alone, place the leash around a fixed object, such as a fence post. Pull the dog against this object and tie the leash so the dog cannot move its head.

Step 6: Muzzle the dog to protect yourself.

Step 6a: Using a long piece of rope, torn rags, or a tie, loop over the dog's muzzle and tie a single knot under the chin.

Step 6b: Bring the ends of the rope, rags, or tie behind the ears and tie them in a bow.

Step 7: If you are alone, proceed to administer treatment.

If You Have an Assistant

Step 8: If possible, place the dog on a table or other raised surface.

Step 8a: If the dog is small, grasp its collar with one hand, and place your other arm over its back and around its body. At the same time, pull forward on the collar and lift the dog's body, cradling it against your body.

Step 8b: If the dog is large, slip one arm under its neck, holding its throat in the crook of your arm. Be sure the dog can breathe easily. Place your other arm under the dog's stomach. Lift with both arms.

Step 8c: If the dog is very large, slip one arm under its neck, holding its chest in the crook of your arm. Be sure the dog can breathe easily. Place your other arm under the dog's rump and, pressing your arms toward one another, lift the dog.

Step 8d: Have your assistant administer treatment while you hold the dog on the table.

Step 9: If you want the dog on its side:

Step 9a: Stand or kneel so the dog is in front of you with its head to your right.

Step 9b: Reach over the dog's back and grasp the front leg closest to you with your right hand and the rear leg closest to you with your left hand.

Step 9c: Push the dog's legs away from you, and slide the dog down your body.

Step 9d: Grasp both front legs in your right hand and both rear legs in your left hand.

.Steps 9d and 9e

Step 9e: Hold the dog's neck down gently with your right arm.

Step 9f: Have your assistant administer treatment.

Step 10: If you want the dog sitting:

Step 10a: Slip one arm under the dog's neck, holding its throat in the crook of your arm. Be sure the dog can breathe easily.

Step 10b: Place your other arm over the dog's back and around its stomach.

Step 10c: Pressing the dog against your body, apply body weight to the dog's rear quarters.

Step 10d: Have your assistant administer treatment.

Step 11: If you want the dog standing:


Steps 11a and 11b

Step 11a: Slip one arm under the dog's neck, holding its throat in the crook of your arm. Be sure the dog can breathe easily.

Step 11b: Place your other arm under the dog's stomach.

Step 11c: Press the dog toward your body and lift upward.

Step 11d: Have your assistant administer treatment.

Learning how to restrain a dog will help you in almost any pet emergency situation. Now let's take a look at how to transport that injured dog to the veterinarian.
▐ इंसान बनो जानवरो के साथ ▐

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Saturday, December 15, 2012

प्रकृति में 108 की विविध अभिव्यंजना किस प्रकार की है

हमारे हिन्दू धर्म के किसी भी शुभ कार्य, पूजा , अथवा अध्यात्मिक व्यक्ति के नाम के पूर्व ""श्री श्री 108 "" लगाया जाता है...!
लेकिन क्या सच में आप जानते हैं कि.... हमारे हिन्दू धर्म तथा ब्रह्माण्ड में 108 अंक का क्या महत्व है....?????
Photo: साभार : आस्था एवं संस्कारहमारे हिन्दू धर्म के किसी भी शुभ कार्य, पूजा , अथवा अध्यात्मिक व्यक्ति के नाम के पूर्व ""श्री श्री 108 "" लगाया जाता है...!लेकिन क्या सच में आप जानते हैं कि.... हमारे हिन्दू धर्म तथा ब्रह्माण्ड में 108 अंक का क्या महत्व है....?????दरअसल.... वेदान्त में एक ""मात्रकविहीन सार्वभौमिक ध्रुवांक 108 "" काउल्लेख मिलता है.... जिसका अविष्कार हजारों वर्षों पूर्व हमारेऋषि-मुनियों (वैज्ञानिकों) ने किया था lआपको समझाने में सुविधा के लिए मैं मान लेता हूँ कि............ 108 = ॐ (जो पूर्णता का द्योतक है).अब आप देखें .........प्रकृति में 108 की विविध अभिव्यंजना किस प्रकार की है :1. सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी/सूर्य का व्यास = 108 = 1 ॐ150,000,000 km/1,391,000 km = 108 (पृथ्वी और सूर्य के बीच 108 सूर्य सजाये जा सकते हैं)2. सूर्य का व्यास/ पृथ्वी का व्यास = 108 = 1 ॐ1,391,000 km/12,742 km = 108 = 1 ॐसूर्य के व्यास पर 108 पृथ्वियां सजाई सा सकती हैं .3. पृथ्वी और चन्द्र के बीच की दूरी/चन्द्र का व्यास = 108 = 1 ॐ384403 km/3474.20 km = 108 = 1 ॐपृथ्वी और चन्द्र के बीच 108 चन्द्रमा आ सकते हैं .4. मनुष्य की उम्र 108 वर्षों (1ॐ वर्ष) में पूर्णता प्राप्त करती है .क्योंकि... वैदिक ज्योतिष के अनुसार.... मनुष्य को अपने जीवन काल मेंविभिन्न ग्रहों की 108 वर्षों की अष्टोत्तरी महादशा से गुजरना पड़ता है .5. एक शांत, स्वस्थ और प्रसन्न वयस्क व्यक्ति 200 ॐ श्वास लेकर एक दिन पूरा करता है .1 मिनट में 15 श्वास >> 12 घंटों में 10800 श्वास >> दिनभर में 100 ॐ श्वास, वैसे ही रातभर में 100 ॐ श्वास6. एक शांत, स्वस्थ और प्रसन्न वयस्क व्यक्ति एक मुहुर्त में 4 ॐ ह्रदय की धड़कन पूरी करता है .1 मिनट में 72 धड़कन >> 6 मिनट में 432 धडकनें >> 1 मुहूर्त में 4 ॐ धडकनें ( 6 मिनट = 1 मुहूर्त)7. सभी 9 ग्रह (वैदिक ज्योतिष में परिभाषित) भचक्र एक चक्र पूरा करते समय 12 राशियों से होकर गुजरते हैं और 12 x 9 = 108 = 1 ॐ8. सभी 9 ग्रह भचक्र का एक चक्कर पूरा करते समय 27 नक्षत्रों को पार करतेहैं... और, प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं और 27 x 4 = 108 = 1 ॐ9. एक सौर दिन 200 ॐ विपल समय में पूरा होता है. (1 विपल = 2.5 सेकेण्ड)1 सौर दिन (24 घंटे) = 1 अहोरात्र = 60 घटी = 3600 पल = 21600 विपल = 200 x 108 = 200 ॐ विपल@@@@ उसी तरह ..... 108 का आध्यात्मिक अर्थ भी काफी गूढ़ है..... और,1 ..... सूचित करता है ब्रह्म की अद्वितीयता/एकत्व/पूर्णता को0 ......... सूचित करता है वह शून्य की अवस्था को जो विश्व की अनुपस्थिति में उत्पन्न हुई होती8 ......... सूचित करता है उस विश्व की अनंतता को जिसका अविर्भाव उस शून्य में ब्रह्म की अनंत अभिव्यक्तियों से हुआ है .अतः ब्रह्म, शून्यता और अनंत विश्व के संयोग को ही 108 द्वारा सूचित किया गया है .इस तरह हम कह सकते हैं कि.....जिस प्रकार ब्रह्म की शाब्दिक अभिव्यंजनाप्रणव ( अ + उ + म् ) है...... और, नादीय अभिव्यंजना ॐ की ध्वनि है.....ठीक उसी उसी प्रकार ब्रह्म की ""गाणितिक अभिव्यंजना 108 "" है.


दरअसल.... वेदान्त में एक ""मात्रकविहीन सार्वभौमिक ध्रुवांक 108 "" का
उल्लेख मिलता है.... जिसका अविष्कार हजारों वर्षों पूर्व हमारे
ऋषि-मुनियों (वैज्ञानिकों) ने किया था l

आपको समझाने में सुविधा के लिए मैं मान लेता हूँ कि............ 108 = ॐ (जो पूर्णता का द्योतक है).

अब आप देखें .........प्रकृति में 108 की विविध अभिव्यंजना किस प्रकार की है :

1. सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी/सूर्य का व्यास = 108 = 1 ॐ

150,000,000 km/1,391,000 km = 108 (पृथ्वी और सूर्य के बीच 108 सूर्य सजाये जा सकते हैं)

2. सूर्य का व्यास/ पृथ्वी का व्यास = 108 = 1 ॐ

1,391,000 km/12,742 km = 108 = 1 ॐ
सूर्य के व्यास पर 108 पृथ्वियां सजाई सा सकती हैं .

3. पृथ्वी और चन्द्र के बीच की दूरी/चन्द्र का व्यास = 108 = 1 ॐ
384403 km/3474.20 km = 108 = 1 ॐ
पृथ्वी और चन्द्र के बीच 108 चन्द्रमा आ सकते हैं .

4. मनुष्य की उम्र 108 वर्षों (1ॐ वर्ष) में पूर्णता प्राप्त करती है .

क्योंकि... वैदिक ज्योतिष के अनुसार.... मनुष्य को अपने जीवन काल में
विभिन्न ग्रहों की 108 वर्षों की अष्टोत्तरी महादशा से गुजरना पड़ता है .

5. एक शांत, स्वस्थ और प्रसन्न वयस्क व्यक्ति 200 ॐ श्वास लेकर एक दिन पूरा करता है .

1 मिनट में 15 श्वास >> 12 घंटों में 10800 श्वास >> दिनभर में 100 ॐ श्वास, वैसे ही रातभर में 100 ॐ श्वास

6. एक शांत, स्वस्थ और प्रसन्न वयस्क व्यक्ति एक मुहुर्त में 4 ॐ ह्रदय की धड़कन पूरी करता है .

1 मिनट में 72 धड़कन >> 6 मिनट में 432 धडकनें >> 1 मुहूर्त में 4 ॐ धडकनें ( 6 मिनट = 1 मुहूर्त)

7. सभी 9 ग्रह (वैदिक ज्योतिष में परिभाषित) भचक्र एक चक्र पूरा करते समय 12 राशियों से होकर गुजरते हैं और 12 x 9 = 108 = 1 ॐ


8. सभी 9 ग्रह भचक्र का एक चक्कर पूरा करते समय 27 नक्षत्रों को पार करते हैं... और, प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं और 27 x 4 = 108 = 1 ॐ

9. एक सौर दिन 200 ॐ विपल समय में पूरा होता है. (1 विपल = 2.5 सेकेण्ड)

1 सौर दिन (24 घंटे) = 1 अहोरात्र = 60 घटी = 3600 पल = 21600 विपल = 200 x 108 = 200 ॐ विपल
@@@@ उसी तरह ..... 108 का आध्यात्मिक अर्थ भी काफी गूढ़ है..... और,

1 ..... सूचित करता है ब्रह्म की अद्वितीयता/एकत्व/पूर्णता को

0 ......... सूचित करता है वह शून्य की अवस्था को जो विश्व की अनुपस्थिति में उत्पन्न हुई होती

8 ......... सूचित करता है उस विश्व की अनंतता को जिसका अविर्भाव उस शून्य में ब्रह्म की अनंत अभिव्यक्तियों से हुआ है .
अतः ब्रह्म, शून्यता और अनंत विश्व के संयोग को ही 108 द्वारा सूचित किया गया है .


इस तरह हम कह सकते हैं कि.....जिस प्रकार ब्रह्म की शाब्दिक अभिव्यंजना प्रणव ( अ + उ + म् ) है...... और, नादीय अभिव्यंजना ॐ की ध्वनि है.....ठीक उसी उसी प्रकार ब्रह्म की ""गाणितिक अभिव्यंजना 108 "" है.

Thursday, December 13, 2012

भारत के लिये क्‍यों महत्‍वपूर्ण है सर क्रीक ?

भारत के लिये क्‍यों महत्‍वपूर्ण है सर क्रीक ?

 

Sir Creek
गुजरात के कच्‍छ की समुद्री सीमा पर स्थित 650 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र सर क्रीक अचानक सुर्खियों में आ गया है। इस मुद्दे को उठाया है गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी ने और दबाने की कोशिश कर रही है केंद्र की सत्‍ताधारी पार्टी कांग्रेस। देश की सुरक्षा से जुड़े इस संवेदनशील मामले की गहराई में जाने से पहले हम आपको सैर कराना चाहेंगे सरक्रीक की।

 

आये दिन अखबारों में आप पाकिस्‍तानी रेंजरों द्वारा भारतीय मछुवारों को पकड़ने की और भारतीय रेंजरों द्वारा पाक मछुवारों के पकड़े जाने की खबरें पढ़ते रहते होंगे। असल में दोनों देशों के गरीब मछुवारे भी आज तक इस समुद्री सीमा को लेकर कंफ्यूज्‍ड हैं। सर क्रीक 650 वर्ग किलोमीटर का भारत का वो समुद्री इलाका है, जिस पर पाकिस्‍तान अपना दावा करता है।

इतिहास के पन्‍ने पलटें तो भारत में ईस्‍ट इंडिया कंपनी के शासन के दौरान चार्ल्‍स नैपियर ने 1842 में सिंध पर जीत हासिल की और उसे बंबई राज्‍य को सौंप दिया। उसके बाद सिंध में शासन कर रही सरकार ने सिंध और बंबई के बीच सीमारेखा खींचने का निर्णय लिया, जो कच्‍छ से गुजरती थी। उस निर्णय के अंतर्गत सरक्रीक खाड़ी को सिंध प्रांत में दर्शाया गया।

जबकि दिल्‍ली में शासन कर रही अंग्रेज सरकार के नक्‍शे में इसे भारत में दर्शाया गया। विवाद हुआ और फाइलों में दब गया। लेकिन स्‍वतंत्रता के बाद जब दोनों देशों के बीच बंटवारा हुआ तो पाकिस्‍तान ने सरक्रीक खाड़ी पर अपना मालिकाना हक जता दिया। इस पर भारत ने एक प्रस्‍ताव तैयार किया जिसमें समुद्र में कच्‍छ के एक सिरे से दूसरे सिरे तक सीधी रेखा खींची और कहा कि इसे ही सीमारेखा मान लेनी चाहिये। यह प्रस्‍ताव पाकिस्‍तान ने ठुकरा दिया, क्‍योंकि इसमें 90 फीसदी हिस्‍सा भारत को मिल रहा था। तब से लेकर आज तक दोनों देशों के बीच इस खाड़ी के मालिकाना हक को लेकर विवाद चल रहा है।

केंद्र में हाल ही में क्‍या हुआ

केंद्र सरकार ने हाल ही में सर क्रीक पर पाकिस्‍तान से समझौता करने पर सहमति बना ली है। ऐसी खबर आयी है कि हाल ही में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस पर डील फाइनल करने की चर्चा की। रक्षामंत्री एके एंटनी और तत्‍कालीन वित्‍त मंत्री प्रणब मुखर्जी भी इस पर राजी हो गये। माना जा रहा है कि यूपीए इस मामले को जल्‍द ही पाकिस्‍तान के सामने रख सकती है।

नरेंद्र मोदी क्‍यों कर रहे हैं विरोध

यूपीए की इस योजना के बारे में पता चलने पर नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा। पत्र में यह मांग की है कि सरक्रीक का 10 फीसदी हिस्‍सा पाकिस्‍तान को दे दिया जाये और बाकी भारत में रहने दिया जाये। यदि इससे कम पर समझौता हुआ तो देश की सुरक्षा में सेंध लग सकती है। उन्‍होंने कहा कि ऐसा होने पर पूरा देश भले ही खुद को सुरक्षित महसूस करे, लेकिन कच्‍छ सुरक्षित कभी नहीं रह पायेगा। मोदी ने कहा कि सरक्रीक में देश की प्राकृतिक संपदा का भंडार है उसे ऐसे पाकिस्‍तान को नहीं दे देनी चाहिये। आर्थिक दृष्टि से देखें तो इस क्षेत्र में भारी मात्रा में कच्‍चा तेल अथवा गैस होने की संभावना है, जो भारतीय अर्थ व्‍यवस्‍था के लिये सकारात्‍मक साबित हो सकता है।

सरक्रीक से जुड़े कुछ अन्‍य तथ्‍य

- सन 2000 में पाकिस्‍तान ने सरक्रीक पर भारी संख्‍या में सैनिकों को तैनात किया था। यानी वहां भी कारगिल जैसे युद्ध की तैयारी थी।
- 1965 के बाद ब्रिटिश पीएम हेरोल्‍ड विल्‍सन के हस्‍तक्षेप के बाद अदालत ने 1968 में फैसला सुनाया था, जिसके अनुसार पाकिस्‍तान को 9000 वर्ग किलोमीटर का मात्र 10 फीसदी हिस्‍सा मिला था।
- पाकिस्‍तान ने सिंध और कच्‍छ के बीच हुए एग्रीमेंट की कुछ तस्‍वीरों के आधार पर क्रीक को सिंध का भाग घोषित कर दिया और एक रेखा खींची जिसे ग्रीन लाइन बाउंड्री कहा।
- भारत ने इसे मानने से इंकार कर दिया। भारत ने कहा कि अंतर्राष्‍ट्रीय कानून के मुताबिक 1924 के आधार पर लगाये गये स्‍तंभों के आधार पर अपना दावा पेश किया। पाकिस्‍तान ने उसे यह कहकर मानने से इंकार कर दिया कि इस सीमा से नाव पार नहीं की जा सकती है, जबकि इस सीमा को आसानी से पार किया जा सकता है।
- 1999 में भारतीय वायुसेना ने सरहद के पार से आये एक पाकिस्‍तानी विमान को ध्‍वस्‍त कर दिया था। बताया जाता है कि यह विमान भारतीय सीमा में सर क्रीक की स्थिति को टोहने के लिये आया था। यह घटना कारगिल युद्ध के कुछ महीनों बाद ही हुई थी।

कुल मिलाकर देखा जाये तो केंद्र को इस मामले में जल्‍दबाजी नहीं करनी चाहिये। यदि नरेंद्र मोदी ने इस पर सवाल उठाये हैं, तो चुनाव के बाद इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए सुलझाने के ऐसे प्रयास करने चाहिये, जो भारत के हक में हों।

गांधी और कैलनबैक के बीच लिखे पत्र

लंदन में नीलम होंगे गांधी और कैलनबैक के बीच लिखे पत्र

 

लंदन में नीलम होंगे गांधी और कैलनबैक के बीच लिखे पत्र
गुरूवार, जून 14, 2012, 13:35 [IST]

mahatma gandhi
लंदन। दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी द्वारा गुजारे गए समय से जुड़े पत्र, तस्वीरें और दस्तावेज लंदन में 10 जुलाई को नीलाम होने जा रहे हैं। आपको बता दें कि इनमें बापू के आर्किटेक्ट हरमन कैलनबैक के विवादित संबंधों से जुड़े दस्तावेज भी शामिल हैं। नीलाम घर सॉथबी को गांधी से जुड़ी इस सामग्री से 5 लाख से 7 लाख पौंड मिलने की उम्मीद है।

पत्रों में से एक में गांधी ने 25 मार्च 1945 को कालबाख के बारे में लिखा है, ऐसे वक्त में जब सभी ने मेरा साथ छोड़ दिया था वह अक्सर मुझसे कहा करते थे कि मैं उन्हें हमेशा अपने साथ चलने वाले दोस्त की तरह पाएंगे, अगर जरूरत हुई तो, सच की तलाश में धरती के अंत तक जाएंगे।

सॉथबी ने कहा है कि इस सामग्री में दो पुरुषों के बीच दोस्ती के बारे में काफी जानकारियां हैं। यह गांधी जी की जीवनी के लिए अहम दस्तावेज हैं। कैलनबैक की दक्षिण अफ्रीका में 1904 में गांधी से मुलाकात हुई थी। इसके बाद वे दोनों हमेशा संपर्क में बने रहे।

ज्ञात हो कि गांधी जी के भारत लौटने के बाद भी उनकी दोस्ती कायम रही। 1910 में कैलनबैक ने जोहेनसबर्ग के पास 1100 एकड़ जमीन खरीदी और गांधी जी को दे दी। इस जमीन पर खेती का कामकाज गांधी जी और कैलनबैक मिलकर देखते थे।

सॉथबी ने इस विषय में जानकारी देते हुए बताया कि नीलामी के लिए रखी जाने वाली सामग्री में न केवल जमीन की खरीद से संबंधित दस्तावेज हैं, बल्कि वह दस्तावेज भी शामिल हैं, जो बताते हैं कि कैसे दोनों लोगों ने जमीन के लिए फलों के पेड़ खरीदे। वहां सिंचाई की व्यवस्था की। जमीन पर खेती को लेकर उनका पड़ोसियों से बहस होने का जिक्र भी इनमें है।

इन दस्तावेजों को ध्यान से देखने से पता चलता है कि इसमें गांधीजी के बड़े बेटे हरिलाल, दूसरे पुत्र मणिलाल और तीसरे पुत्र रामदास के बारे में भी जानकारी है। सॉथबी के मुताबिक गांधीजी के पारिवारिक सदस्यों और उनके करीबी सहयोगियों की ओर से लिखे गए इन पत्रों में गांधी की निजी जिंदगी के बारे में विस्तृत जानकारी है।

Wednesday, December 12, 2012

10 reasons India’s $35 tablet is destined for failure

10 reasons India’s $35 tablet is destined for failure

 

10 reasons India’s $35 tablet is destined for failure

 


I am rather late in writing on the $35 tablet computer but that was a deliberate decision. I didn’t think there was anything positive to write about Aakash, claimed to be the “cheapest” touch-screen tablet PC in the world.

The Indian government, which commissioned the tablet’s development and manufacture, should have learnt from the performance of the world’s cheapest car – Tata’s Nano – that nobody wants. But, then, we expect too much from our elected leaders. As Apple’s Steve Jobs may have said, Aakash may simply be DOA – dead on arrival and here’s why.

#1. Aakash is not the cheapest tablet PC in the world. As Digit magazine points out, several nondescript manufacturers in Taiwan and China are selling tablets that are just as cheap, given the higher specifications of these models. For example, one with a faster processor than Aakash and a webcam sells for $39.71, which is cheaper even than the proposed price for the commercial version of Aakash, called UbiSlate.

#2. Aakash is a Wi-Fi-only version, meaning only those at the elite educational institutions can use it. It should be obvious that students at institutions that have on-campus Wi-Fi don’t need a discount store product with sub-standard features.

#3. With a resistive touch screen, it would need a miracle for somebody to use it for any form of writing, even e-mail, especially with the lag likely from the slow 366 MHz processor. Consequently, the device could at best function as a browsing device.

#4. Aakash’s claimed battery life of three hours is a stretch, given it may have been achieved under unspecified test conditions. If manufacturers’ routine claims and lab tests are anything to go by, users will be lucky to get half that time, which would mean a mere 90 minutes.

#5. Just like the Nano failed because people count the costs of running a car, not just its cost, Aakash’s success will depend on how many can also afford the cost of Wi-Fi Internet service. DataWind, Aakash’s manufacturer, is offering unlimited mobile Internet service for a monthly fee of a mere $2 (Rs. 98) but only on its commercial version, not the subsidized version being sold to the government for distribution to students at unspecified educational institutions.

#6. DataWind, a firm with operations in the U.K., Canada and Australia, has previously only made wireless Internet access products. The firm was founded by and run by the brothers Raja Singh Tuli and Suneet Singh Tuli.

#7. Aakash has received a surprisingly fair review but that in itself hides a story. Few reviewers have had a good look at it, and nobody as far as I can tell has had a hands-on test of the tablet. Even Apple, when it released the first version of its iPad, gave the device to reputed reviewers such as Walt Mossberg of The Wall Street Journal for an independent review. Digit, one of the leading computer magazines, had not got a unit for its review and only said this: “We hope to get our hands on the $35 gadget soon, we will reserve our final verdict for the detailed review.” Good luck, guys.

#8. For those touting Aakash as a means to better quality of education, here’s a thought even if it is a comment on school education. Mint columnist Anurag Behar, who oversees Azim Premji’s education program, wrote thus: “Across two continents, they (school officials) said the same thing – “not a dollar will we invest in ICT, every dollar that we have will go to teacher and school leader capacity building. Like us, through experience, they have learnt the limits of ICT.” You can read his full column here.

#9. For those who consider Aakash as a means to bridge the digital divide between rural and urban India, it should be obvious that college students are, by no stretch of imagination, the demographic that is most disenfranchised.

#10. Finally, even the Tamil Nadu government, which plans to hand out 6.8 million free laptops to poor school and college students in the state, is giving out computers with far superior specifications and features. It will be spending an estimated $1.5 billion, not a measly $5 million that the federal government is spending on the initial order of 100,000 tablets.

For the sake of the country, I hope Aakash will not go the way of the Nano, but am hard-pressed to understand how it can avoid the fate of the cheap car that even the poor don’t want.

 

10 reasons India’s $35 tablet is destined for failure

 

We've all seen this before. The Indian public gets excited easily and politicians exploit this tendency with shitty projects with no substance. Make it sound like something revolutionary that will propel India to the very top etc etc. Does everyone remember the how nutty they got over the anti-corruption movement Team Anna? Well try a google search now and you're see that it fizzled to nothing, and everyone is onto the next great delusion.

 

10 reasons India’s $35 tablet is destined for failure

 

We've heard of white elephant projects, this is a white mice project.

 

10 reasons India’s $35 tablet is destined for failure

 

The number 1 reason "India's $35 table" will fail is because it does not exist. The tablet is Taiwanese designed AND made. India just slaps its sticker on it and claims it as "indigenous".

 

10 reasons India’s $35 tablet is destined for failure

 

I will not be surprise at all if this so-called India made world cheapest tablet turn out to be another hoax after the $10 world cheapest computer claim. What bothering me is that Indians bashing, labeling China for making cheap products and they themselves taking pride of producing this and that so-called world cheapest car, computer now "world cheapest tablet" textbook example of hyprocrite to the core.

 

India's Aakash Tablet 'Made in China'

 

India's Aakash Tablet 'Made in China'

With initiative like this where the government will pay a company half the product cost just to import something from China, no wonder India's account deficit is in terrible shape.

 

From R. Vasudevan—Reporting from New Delhi

New Delhi, 25 November (Asian tribune.com):

Doubts have arisen whether India’s tech-showpiece Aakash 2, the world's cheapest tablet, was actually made in China?

Union Minister Kapil Sibal had tom-tommed the achievement which was meant to help students who cannot afford expensivePCs or Laptops.

Documents reviewed by the Hindustan Times show DataWind founders and NRI brothers Suneet and Raja Singh Tuli may have procured these devices off-the-shelf from manufacturers in China for $42 ( Rs. 2,263 then), exactly the price at which they sold these to the Indian government.

DataWind bought more than 10,000 or more "A 13" made-in-China tablets from at least four manufacturers in Shenzhen and Hong Kong between October 26 and November 7.

These were shipped to India duty-free as they were meant for school students under an HRD ministry programme. Last year, Canada-based DataWind won a bid to supply 100,000 low-cost computing devices to students. Aakash 2, which is meant to be India-made, is part of that agreement.

DataWind had no role either in the design or manufacturing of Aakash 2 tablets, a source said.

Documents with HT show that DataWind bought the tablets from at least four manufacturers, Dasen International Electronics, Shenzhen Shitong Zhaoli Technology, Kalong Technology and Trend Grace Ltd.

DataWind's manufacturing partner in Hyderabad --- VMC Systems---had not built any device over the last couple of months, said a source. Its manufacturing partners and facilities in Delhi and Amritsar, respectively, too, had not produced even a single tablet over the last couple of months, the source said.

“Instead of manufacturing these low-cost tablets themselves… DataWind has simply purchased these 'off-the-shelf' from China and supplied it to the Indian government,” the source told HT.

It now appears that Datawind handed over the China-made tablets to Indian Institute of Technology (IIT), Bombay for testing. IIT-B's role is limited to testing and installing apps. These, it emerges, were subsequently unveiled as Aakash 2 on November 11.

 

India's Aakash Tablet 'Made in China'

 

DataWind bought more than 10,000 or more "A 13" made-in-China tablets from at least four manufacturers in Shenzhen and Hong Kong between October 26 and November 7.

 

Price of Aakash tablet to come down to $35 soon: Sibal | NDTV Gadgets

 

Price of Aakash tablet to come down to $35 soon: Sibal

 

 

Aakash-launch-Kapil-Sibal.jpg

 

 

Telecom and IT Minister Kapil Sibal on Wednesday said the price of Aakash
tablet will soon come down to $35 (about Rs. 1,900 approximately) from
$49 at present.

"Aakash is a tablet which at the moment costs $49. It will come down to $35 very soon. It has all the amenities of
any modern tablet," Sibal said at Reverse Buyer Seller Meet (RBSM) New Delhi
organised by Telecom Equipment and Service Export Promotion Council.

The
Minister added that next version of the tablet will also have Skype, an
application used for making voice calls using Internet connection and
does not necessarily require a SIM.

"It performs the same function
as a $150 tablet," Sibal said, adding that Aakash is kind of product
that two- third population of world needs as they don't have enough
resources to buy tablet costing $150.

Explaining on the way
price of Aakash tablet drops, the Minister said "The capacitative
(touch) screen is imported at a cost of $22 or around $20. The
manufacturing cost is $2. If you were to set up that manufacturing
unit in India, the cost will come down automatically from $49 to $29."

He said that government is in process to get Cabinet approval
for manufacturing of 50 lakh units of Aakash tablet in India and then
float a global tender for its production in the country.

He said the production of Aakash tablet in large volumes will further drive down the cost.

In
the last tender, each unit of Aakash tablet costed government Rs. 2,263
and it announced 50 percent subsidy on the tablet for students which
finally costs Rs. 1,130.

The Minister said if Indian industry is
able to provide a quality solution for citizen of the country then such
solution or product will work anywhere in the world.

"In fact it
will be game changer for the world consumer in Europe, consumer in
Japan, consumer in the United States of America would be looking for
those solution because he will be getting the same solution at a much
lower cost and a very high quality solution," Sibal said.

The
Minister said government is giving enormous emphasis to research and
development (R&D) for manufacturing of electronics product in the
country that are of high quality and reasonably priced.

 

"We are
going to create an R&D fund in which the government will contribute.
We are setting up fab so that (electronic) chip manufacturing can be
done India," he said.

 

 

 

 

Datawind rubbishes claim that Aakash 2 is 'Made in China'

Datawind, the makers of the low-cost Aakash 2, has refuted claims made by a media report that the tablet is a cheap Chinese import and not Indian. A report carried by Hindustan Times had alleged that Datawind founders and NRI brothers Suneet and Raja Singh Tuli ‘may have procured these devices off-the-shelf from manufacturers in China' for $42 (Rs 2,263 then), exactly the price at which they sold these to the Indian government.


The report further added that Datawind bought more than 10,000 or more ‘A 13’ made-in-China tablets from at least four manufacturers in Shenzhen and Hong Kong. The company’s Indian manufacturing partners in Hyderabad, Delhi, and Amritsar had not played any part in the manufacturing process.


The UK based company that has been authorised to supply Aakash 2 denied this report, calling it ‘misleading’ and ‘inaccurate'. CEO Suneet Singh Tuli insists that the tablets are built in India, including all circuit boards, which are made in Hyderabad.

ITI among other PSUs will bid for Aakash 2

Aakash 2: Indian or Chinese?

 


Tuli further added that Datawind had the motherboards and kits of the first 10,000 units for IIT manufactured in its Chinese subcontractor’s facilities for the sake of expediency. The units had been ‘kitted’ at various manufacturers in China, whereas the final assembly and programming had happened in India. Tuli said that Datawind had won approval for this prior to its shipping.

 

The major difference between Aakash 1 and 2 is the latter’s capacitive touchscreen that Tuli reveals has been manufactured in the company’s Montreal facility and assembled in China. Datawind is setting up its second touchscreen facility in India, which it hopes will be up and running by another month.


“The initial devices were assembled and programmed at our facilities in New Delhi and Amritsar.  We finished this batch of 10,000 units and delivered them to IIT and will be starting another batch of 20,000 units for them in two weeks,” said Tuli, adding that the media were welcome to visit when they were making this batch. “We also have four partner manufacturers across India that will work on the deliveries to the government but we just couldn't get them started to assemble our new Aakash 2 units in time but they will start to ship early in December.”


Commissioned by Government of India’s Human Resource Development, the ambitious Aakash project has hit several roadblocks since its inception. Aakash 1 had been shrouded in controversy with several delays and issues with its quality. Later, Datawind and its erstwhile assembly partner Quad Electronics Solutions parted ways, and the company's strained relations with manufacturer VMC resulted in delays that pushed the shipping of Aakash 2 to December.

 

Aakash 1 was built by Datawind with IIT-Rajasthan overlooking the production. The MHRD slapped a showcause notice to the institute over its failure to set up a timely tablet testing facility and procedure, along with the institute's failure to ease differences with Datawind. Cracks had appeared between the two over production values in the beginning itself with IIT-R seeking military-style specifications, like water-resistance, shock-resistance etc. Datawind stood its ground on making the Aakash tablet an affordable tablet with the basic specifications.


While Tuli insists this latest controversy is ‘a desperate attempt by somebody to sabotage the image of India’, whether or not this affects the sale of Aakash 2 is something only time will tell.

Saturday, December 8, 2012

बेकार - बदहाल --- बेअसर भारत की खुफिया एजंसियां

 बेकार - बदहाल --- बेअसर भारत की  खुफिया एजंसियां

कानून-व्यवस्था बनाए रखने और सुचारु शासन व्यवस्था के लिए खुफिया तंत्र का मजबूत होना बहुत जरूरी है। राजतंत्र के दौरान खुफिया ही शासकों के आंख-कान हुआ करते थे। आजादी मिलने के बाद भी खुफिया तंत्र अधिक सक्रिय था। इसके पीछे एक कारण यह भी हो सकता है कि देश के सामने कई चुनौतियां थीं। विभाजन के घाव हरे थे। देश विरोधी शक्तियां कभी भी सिर उठा सकती हैं, इसलिए ज्यादा सतर्कता रखी गई। कालांतर में सतर्कता में कमी आई है। हालांकि सांप्रदायिक दंगों, आतंकवाद और नक्सलवादी गतिविधियां इन दिनों बढ़ी हैं एवं हमारा खुफिया तंत्र ज्यादा सक्रिय व सतर्क होना चाहिए था। इसके विपरीत कुछ वर्षों से खुफिया तंत्र में कमजोरी साफ नजर आ रही है।


इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के साथ हुई घटनाओं के बारे में खुफिया तंत्र अनभिज्ञ रहा। इसके बाद मुंबई दंगे, 26/11 और देश के विभिन्न स्थानों पर हुए विस्फोटों के मामले में हमें पहले से कोई जानकारी नहीं मिल पाई। देश का खुफिया विभाग समय-समय पर सतर्क रहने की सूचना जब भी देता है तब कोई घटना ही नहीं होती। दरअसल खुफिया विभाग की हालत हमारे मौसम विभाग जैसी हो गई है। मौसम विभाग की अधिकतर घोषणाएं सच नहीं होतीं। उसी तरह खुफिया सूचनाएं भी अक्सर गलत निकल जाती हैं। खुफिया एजेंसियों में तालमेल का अभाव, कर्मियों और विशेषज्ञ स्टाफ की कमी और लचर प्रशासनिक व्यवस्था भी एक बड़ा मुद्दा है।

हर कुछ समय बाद बेखौफ आतंकी हमें लहूलुहान कर रहे हैं। कभी मुंबई, वाराणसी, अहमदाबाद तो कभी जयपुर। हम क्यों नहीं रोक पा रहे इन हमलों को? कहां छूट रही है कमी? क्या हैं हमारी कमी और कमजोरी? खुफिया सूचनाओं की कमी। पिछली आतंकी घटनाओं की बेतरतीब जांच। जिम्मेदार अपराधियों के अनछुए सुराग। सुस्त जांच एजेंसियों को प्रति सरकारी उदासीनता। प्रशिक्षण, आधुनिक हथियारों और उपकरणों की कमी। यही चंद वजहें हैं कि देश में हर छह महीने बाद कहीं न कहीं आतंकी अपनी ताकत दिखा रहे हैं। पिछली घटनाओं से हम कोई सबक नहीं ले रहे। असम और म्यांमार में हुई हिंसा के विरोध में मुंबई में रैली के दौरान दंगा फैल सकता है, खुफिया विभाग इस बारे में सूंघ नहीं सका। असम में हुई हिंसा की भी पहले से जानकारी नहीं मिली। उत्तर प्रदेश में पिछले नौ महीने में हुए एक दर्जन सांप्रदायिक दंगों की हवा भी खुफिया तंत्र को नहीं लगी। इसका मतलब कहीं न कहीं सतर्कता में कमी है। बैंगलोर में मुंबई जैसी हिंसा की अफवाह के चलते एक ही रात में 6 हजार लोग पलायन कर गए मगर हमारे सूचना तंत्र को कानोंकान खबर नहीं लगी, जबकि ये अफवाहें फेसबुक और इंटरनेट के जरिए फैलाई जा रही थीं। यात्रियों की भीड़ के कारण रेल विभाग को स्पेशल ट्रेनें चलाना पड़ती हैं तब जाकर सरकार को खबर लगती है। सूचना तंत्र की कमजोरी के चलते जो हालात बैंगलोर या मुंबई में बने थे, ऐसे हालात आगे चलकर भारत के हर बड़े शहर में पैदा हो सकते हैं।

2008 में मुंबई पर हुए हमले के बाद इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (आईडीएसए) टास्क फोर्स की रिपोर्ट में खुफिया तंत्र में सुधार की बात कही गयी थी। मुंबई पर हुए आतंकी हमले के बाद गहरी नींद में सो रही सरकार ने राष्ट्र विरोधी व आंतकवादी घटनाओं से जुड़े मामलों की जांच पड़ताल करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नेश्नल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी [एनआईए] का मजबूत किया है और देश के विभिन्न राज्यों में इसकी क्षेत्रीय इकाइया गठित की जा रही है। मुंबई पर हुए बड़े आतंकी हमले के बाद 2002 में गठित गठित गुप्तचर ब्योरों की एजेंसी ‘मेक’ (बहुएजेंसी केंद्र) की पहली बैठक 1 जनवरी 2009 को तत्तकालीन गृहमंत्री पी. चिदबरम की अध्यक्षता में हुई थी, जिसमें गुप्तचर ब्यूरो, केन्द्रीय अर्द्ध सुरक्षाबलों तथा गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे। तब चिदंबरम ने घोषणा की थी कि मेक तथा अन्य सभी सरकारी एजेंसियों के बीच खुफिया सूचनाओं का आदान-प्रदान कानूनन करना होगा। पिछले लगभग चार वर्षों में मेक के तत्त्वावधान में खुफिया एजेंसियों की एक हजार से अधिक बैठकें हो चुकी हैं और नतीजा ढाक के तीन पात ही है।
भारतीय खुफिया एजेंसियों के खराब प्रदर्शन का कारण उनकी आपसी खींचतान और रणनीतिक दृष्टि की कमी है। एक एजेंसी दूसरी एजेंसी को अपने अधिकार क्षेत्र में घुसने नहीं देती इसीलिए दोहरी मेहनत होती है। काडर राज्य से दूर रहने के लिए अधिकारी नागरिक खुफिया एजेंसियों में पड़े रहते हैं। वहीं खुफिया पर लगातार ध्यान देने की जरूरत को नकारा नहीं जा सकता है। ऐसा नहीं हो सकता कि जब कोई बड़ी घटना घटे तब इस तरफ ध्यान दिया जाए और फिर अगले ही पल आप इसे भूल जाएं। प्रतिस्पर्धा और नंबर बढ़ाने के खेल से समस्या पैदा होती है। संस्थाओं को समझना होगा कि समय अहम है न कि यह कि जानकारी कौन दे रहा है।

एक सच यह भी है कि सुधार अचानक नहीं हो सकते। इसमें समय लगेगा। विभागीय बंटवारे, द्वेष और दूरदृष्टि की कमी भी अड़चन का काम करेगी. इसीलिए विशेषज्ञों का मानना है कि विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय ही समस्या का हल है। हमारे यहां आईबी गृह मंत्री को रिपोर्ट करती है, रिसर्च एंड अनालिसिस विंग(रॉ) प्रधानमंत्री को, ज्वाइंट इंटेलीजेंस कमेटी (जेआईसी), एविएशन रिसर्च ब्यूरो (एआरसी) और नेशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (एनटीआरओ) जैसी एजेंसियां भी हैं जो राष्ट्रीय  सुरक्षा परिषद को रिपोर्ट करती हैं। सेना के पास अपनी खुफिया एजेंसियां हैं जो थल सेना, जल सेना और वायु सेना के लिए काम करती हैं, सभी के ऊपर नेशनल इंटेलीजेंस एजेंसी नाम की संस्था है। वित्तीय खुफिया जांच के लिए अन्य एजेंसियां हैं। इनमें आयकर, सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क के निदेशालय शामिल हैं। इसके अलावा राज्य स्तरीय खुफिया एजेंसियां और विशेष प्रकोष्ठ भी हैं जो खुफिया का ही काम करते हैं। पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने 2009 में इंटेलीजेंस ब्यूरो के समारोह में भाषण देते हुए स्वीकार किया था कि महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी के सभी डेटाबेस को एक साथ जोडऩे की जरूरत है। नागरिक और सैन्य खुफिया के बीच की दूरी भी बड़ा मसला है। परंपरागत रूप से रॉ का सचिव मौके और वक्त के हिसाब से प्रधानमंत्री को रिपोर्ट देता रहता है और आईबी का निदेशक गृह मंत्री को। इसमें सैन्य खुफिया यानी मिलिट्री इंटेलीजेंस (एमआई) के पास ऐसा कोई फोरम ही नहीं बचता जहां वह अपनी बात कह सके।

हर बड़े हादसे के बाद सूचना तंत्र की कमजोरी सामने आती है और कुछ दिनों हाय-तौबा करने के बाद इस गंभीर सवाल पर मिट्टी डाल दी जाती है। इससे सरकार की नीयत पर भी संदेह उठता है। क्या खुफिया तंत्र ठीक है। वह सही समय पर सूचनाएं सरकार तक पहुंचा रहा है और सरकार कानों में तेल डालकर बैठी है? क्या सरकार महंगाई या अन्य गंभीर मुद्दों से जनता का ध्यान हटाने के लिए हिंसक घटनाएं होने देना चाहती है। अगर नहीं तो ऐसे कदम उठाए जाना जरूरी हैं, जिनसे खुफिया तंत्र को मजबूत किया जा सके, ताकि सरकार को समय पर सूचनाएं मिलें और देश हिंसा की लपटों में घिरने से बच सके। महाराष्ट्र सरकार 50 हजार लोगों की रैली निकालने को मंजूरी दे देती है और इसमें शामिल लोगों के मंसूबों से कोई सरोकार नहीं रखती, यह बात हैरान करने वाली है।

स्टाफ की कमी बड़ी समस्या है। चिदंबरम ने इसी साल अप्रैल में लोकसभा को बताया कि प्रति 100,000 लोगों पर (पुलिस-जनसंख्या अनुपात) अनुमोदित और वास्तविक पुलिस बल क्रमश: 145.25 और 117.09 है। भारत में प्रति 100,000 लोगों पर 130 पुलिसकर्मी हैं जबकि संयुक्त राष्ट्र के मानकों में यह संख्या न्यूनतम 220 होनी चाहिए. इस मानक को माना जाए तो भारत में 600,000 पुलिसकर्मियों की कमी है यानी अनुमोदित संख्या बल से करीब 25 फीसदी कम। खुफिया एजेंसियों और राज्य स्तर पर खुफिया विभाग में कार्मिकों का बड़ा टोटा है। जिला स्तर पर इंटेलीजेंस ब्यूरो में चार-पांच लोग होते हैं। सिपाही से उम्मीद रखी जाती है कि वह अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे और बिना किसी प्रतिक्रिया के जरूरी जानकारी जुटाता रहे। मगर, बंदोबस्त, चुनाव, राजनीतिक रैलियों और वीआईपी ड्यूटी के चक्कर में उसके काम पर बुरा असर पड़ता है। राज्य सरकारों के पास खुफिया जानकारी जुटाने के लिए विशेष शाखाएं हैं मगर क्या किसी ने कभी इस बात की परवाह की है कि वहां किस तरह के लोग रखे जाते हैं?

विशेषज्ञ और विश्लेषक मानते हैं कि अब खुफिया तंत्र में पूरी तरह बदलाव लाने का समय आ गया है और साथ ही इसकी मुनासिब निगरानी भी होनी चाहिए, चाहे विभिन्न संसदीय समितियों की तर्ज पर निगरानी समिति बनाई जाए या फिर रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री को शामिल करके प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति बनाई जाए। जरूरी है कि विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को शामिल किया जाए। सुरक्षा के लिए खुफिया तंत्र के  आधुनिकीकरण को जरूरी बताते हुए आईडीएसए ने प्रस्ताव रखा है कि भर्ती से लेकर प्रशिक्षण, वेतन और करियर में आगे बढऩे की प्रक्रिया में सुधार होना चाहिए ताकि प्रतिभावान लोग खुफिया तंत्र से जुडऩा पसंद करें।

अफसोस इस बात का है कि सुधारों को तब एजेंडा में रखा जाता है जब नुकसान हो चुका होता है। इसीलिए हम हमेशा पीछे भागते रहते हैं। यही वजह है कि हम आज तक ऐसा सिस्टम नहीं बना सके जो किसी उभरती हुई शक्ति के पास होना चाहिए। सुब्रामण्यम समिति की रिपोर्ट काफी समझ-बूझ के साथ तैयार की गई थी मगर लागू करने के मामले में हम कभी सफल नहीं हो सकते। बड़ी समस्या यह है कि जो एजेंसियां स्थापित हो चुकी हैं वही विरोध करती हैं ताकि उनकी जगह खतरे में न पड़े। ऊपर से हमारे यहां राजनीतिक दृढ़ता भी नहीं है। बदलते वैश्विक परिदृश्य, आंतकवाद की बढ़ती चुनौतियों और दिन ब दिन मजबूत होते नक्सलवाद, ड्रग माफियाओं और तस्करों पर प्रभावी रोक के लिए खुफिया तंत्र के पेंच कसने की जरूरत है। खुफिया तंत्र की नाकामी देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के लिए विस्फोटक स्थिति ओर हालात पैदा कर सकती है।

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Sunday, December 2, 2012

भोपाल गैस त्रासदीः 28 साल बाद

भोपाल गैस त्रासदीः 28 साल बाद भी पीड़ितों को मुआवजा नहीं-देश - IBN Khabar

भोपाल।डेढ़ साल पहले भोपाल गैस त्रासदी मामले में अदालत का फैसला आने के बाद केन्द्र और मध्य प्रदेश की सरकार ने वादा किया कि किडनी और कैंसर के गंभीर मरीजों को दो-दो लाख रुपये मिलेंगे। मगर त्रासदी के 28 साल बाद भी हजारों मरीज मुआवजे से महरूम हैं। आपको बता दें कि 3 दिसंबर 1984 को भोपाल यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से जहरीली गैस निकलने से 15 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी, जबकि हजारों लोग गंभीर बीमारियों की चपेट में आ गए।

 

भोपाल की नगर निगम कॉलोनी में रहने वाली साबरा बी गैस हादसे के बाद से ही किडनी की बीमारी से परेशान हैं। अब नौबत ये आ गई है कि हफ्ते में दो मर्तबा डायलिसिस होती है। भोपाल मेमोरियल अस्पताल में इनका इलाज चल रहा है। डॉक्टरों के मुताबिक साबिरा बी को ईएसआरडी यानि टोटल रीनल फेल्योर की बीमारी है। मगर कल्याण आयुक्त ने उन्हें टोटल रीनल फेल्योर में मिलने वाली मदद देने से साफ मना कर दिया है। राजेन्द्र नगर में रहने वाली शशिकला सिंह के पति अजय की मौत बारह साल पहले कैंसर से हुई। डेढ़ साल पहले हुए सरकार के ऐलान ने शशिकला के मन में मदद की उम्मीद जगा दी थी। लेकिन शशिकला को भी कोरा वादा मिला है।

 

भोपाल गैस त्रासदीः 28 साल बाद भी पीड़ितों को मुआवजा नहीं

 

गैस पीड़ित साबरा बी के मुताबिक डायलिसिस होता है। इससे कमजोरी होती है। किडनी की परेशानी है। चल फिर नहीं पाती। उन्होंने दो लाख का आवेदन निरस्त कर दिया। गैस पीड़ित शशिकला सिंह के मुताबिक ब्लड कैंसर से मौत हो गई तो पर्ची आई थी मेरे पास हम लोग कागज़ लेकर गये मगर कुछ हुआ नहीं, कुछ मिला नहीं अभी तक।

 

केन्द्र सरकार का ऐलान होने के बाद जैसे ही वेलफेयर कमिश्नर ने मुआवज़ा देने के लिए सूची मांगी तो भोपाल में 12,700 से ज्यादा गैस पीड़ितों ने कैंसर औऱ किडनी की बीमारी के मुआवज़े की अर्जी लगाई। लेकिन इसमें से मुआवज़े के लिए मंज़ूर हुये सिर्फ चार हज़ार मामले। गैस पीड़ित संगठनों का आरोप है कि सरकार मनमाने तरीके से मामलों को खारिज़ कर रही है।

 

भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन संयोजक अब्दुल जब्बार के मुताबिक

उस सबके बाद यहां जो मेडिकल एक्सपर्ट की टीम बनी उसने मनमाने डंग से नॉर्मस तय कर लिये। जो टोटल रीनल फेलुयर होगा तो ही उसे किडनी का केस कहेंगे। कैंसर में इस इस प्रकार का केस होगा तो ही हम कहेंगे। नतीजतन 12,700 में से 8,000 को मुआवज़ा नहीं मिला।

 

सरकार के मुताबिक कैंसर औऱ किडनी के मरीज तय करने का काम विशेषज्ञों की कमेटी को दिया गया है। जितना बजट है उसमें जरूरतमंदों की ही मदद की जा सकती है। गैस राहत मंत्री बाबूलाल गौर के मुताबिक आप दीजिये हम परीक्षण कराते हैं। लेकिन तथ्य होना चाहिए। मैं कह दूं कि बाबूलाल गौर ही गैस पीड़ित हैं। मैं कह दूं कि किडनी खराब हैं। जांच करवाएंगे आपकी। किडनी खराब नहीं तो आपको कैसे पांच लाख दे दें। जनता का पैसा है।

 

भोपाल गैस त्रासदी। दुनिया के सबसे खतरनाक औद्योगिक हादसे की अट्ठाईसवीं बरसी भी आ गई लेकिन इलाज औऱ मुआवजे की जो शिकायतें पहले साल हुईं थीं वो आज भी बरकरार है। भोपाल का पुराना शहर गवाह है कि केन्द्र औऱ राज्य सरकार ने इस शहर के लोगों के साथ इंसाफ़ नहीं किया है।