भारत के लिये क्यों महत्वपूर्ण है सर क्रीक ?
आये दिन अखबारों में आप पाकिस्तानी रेंजरों द्वारा भारतीय मछुवारों को पकड़ने की और भारतीय रेंजरों द्वारा पाक मछुवारों के पकड़े जाने की खबरें पढ़ते रहते होंगे। असल में दोनों देशों के गरीब मछुवारे भी आज तक इस समुद्री सीमा को लेकर कंफ्यूज्ड हैं। सर क्रीक 650 वर्ग किलोमीटर का भारत का वो समुद्री इलाका है, जिस पर पाकिस्तान अपना दावा करता है।
इतिहास के पन्ने पलटें तो भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के दौरान चार्ल्स नैपियर ने 1842 में सिंध पर जीत हासिल की और उसे बंबई राज्य को सौंप दिया। उसके बाद सिंध में शासन कर रही सरकार ने सिंध और बंबई के बीच सीमारेखा खींचने का निर्णय लिया, जो कच्छ से गुजरती थी। उस निर्णय के अंतर्गत सरक्रीक खाड़ी को सिंध प्रांत में दर्शाया गया।
जबकि दिल्ली में शासन कर रही अंग्रेज सरकार के नक्शे में इसे भारत में दर्शाया गया। विवाद हुआ और फाइलों में दब गया। लेकिन स्वतंत्रता के बाद जब दोनों देशों के बीच बंटवारा हुआ तो पाकिस्तान ने सरक्रीक खाड़ी पर अपना मालिकाना हक जता दिया। इस पर भारत ने एक प्रस्ताव तैयार किया जिसमें समुद्र में कच्छ के एक सिरे से दूसरे सिरे तक सीधी रेखा खींची और कहा कि इसे ही सीमारेखा मान लेनी चाहिये। यह प्रस्ताव पाकिस्तान ने ठुकरा दिया, क्योंकि इसमें 90 फीसदी हिस्सा भारत को मिल रहा था। तब से लेकर आज तक दोनों देशों के बीच इस खाड़ी के मालिकाना हक को लेकर विवाद चल रहा है।
केंद्र में हाल ही में क्या हुआ
केंद्र सरकार ने हाल ही में सर क्रीक पर पाकिस्तान से समझौता करने पर सहमति बना ली है। ऐसी खबर आयी है कि हाल ही में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस पर डील फाइनल करने की चर्चा की। रक्षामंत्री एके एंटनी और तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी भी इस पर राजी हो गये। माना जा रहा है कि यूपीए इस मामले को जल्द ही पाकिस्तान के सामने रख सकती है।
नरेंद्र मोदी क्यों कर रहे हैं विरोध
यूपीए की इस योजना के बारे में पता चलने पर नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा। पत्र में यह मांग की है कि सरक्रीक का 10 फीसदी हिस्सा पाकिस्तान को दे दिया जाये और बाकी भारत में रहने दिया जाये। यदि इससे कम पर समझौता हुआ तो देश की सुरक्षा में सेंध लग सकती है। उन्होंने कहा कि ऐसा होने पर पूरा देश भले ही खुद को सुरक्षित महसूस करे, लेकिन कच्छ सुरक्षित कभी नहीं रह पायेगा। मोदी ने कहा कि सरक्रीक में देश की प्राकृतिक संपदा का भंडार है उसे ऐसे पाकिस्तान को नहीं दे देनी चाहिये। आर्थिक दृष्टि से देखें तो इस क्षेत्र में भारी मात्रा में कच्चा तेल अथवा गैस होने की संभावना है, जो भारतीय अर्थ व्यवस्था के लिये सकारात्मक साबित हो सकता है।
सरक्रीक से जुड़े कुछ अन्य तथ्य
- सन 2000 में पाकिस्तान ने सरक्रीक पर भारी संख्या में सैनिकों को तैनात किया था। यानी वहां भी कारगिल जैसे युद्ध की तैयारी थी।
- 1965 के बाद ब्रिटिश पीएम हेरोल्ड विल्सन के हस्तक्षेप के बाद अदालत ने 1968 में फैसला सुनाया था, जिसके अनुसार पाकिस्तान को 9000 वर्ग किलोमीटर का मात्र 10 फीसदी हिस्सा मिला था।
- पाकिस्तान ने सिंध और कच्छ के बीच हुए एग्रीमेंट की कुछ तस्वीरों के आधार पर क्रीक को सिंध का भाग घोषित कर दिया और एक रेखा खींची जिसे ग्रीन लाइन बाउंड्री कहा।
- भारत ने इसे मानने से इंकार कर दिया। भारत ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय कानून के मुताबिक 1924 के आधार पर लगाये गये स्तंभों के आधार पर अपना दावा पेश किया। पाकिस्तान ने उसे यह कहकर मानने से इंकार कर दिया कि इस सीमा से नाव पार नहीं की जा सकती है, जबकि इस सीमा को आसानी से पार किया जा सकता है।
- 1999 में भारतीय वायुसेना ने सरहद के पार से आये एक पाकिस्तानी विमान को ध्वस्त कर दिया था। बताया जाता है कि यह विमान भारतीय सीमा में सर क्रीक की स्थिति को टोहने के लिये आया था। यह घटना कारगिल युद्ध के कुछ महीनों बाद ही हुई थी।
कुल मिलाकर देखा जाये तो केंद्र को इस मामले में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिये। यदि नरेंद्र मोदी ने इस पर सवाल उठाये हैं, तो चुनाव के बाद इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए सुलझाने के ऐसे प्रयास करने चाहिये, जो भारत के हक में हों।
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