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Tuesday, August 14, 2012

आजादी के दीवानों पर बेइंतहा जुल्म

 

आजादी के दीवानों पर बेइंतहा जुल्म ढाए गए थे. अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें फर्जी मुकदमों में फंसाया था. स्वाधीनता की मांग करने पर कई देशप्रेमियों को कालापानी की सजा भी दे दी थी. सिटी के थानों में मौजूद दस्तावेज उन जुल्मों की दास्तां बयां करते हैं. ये बताते हैं कि किस तरह देश के लिए लडऩे वालों पर अत्याचार किए गए थे.

 

कांटे की तरह चुभने लगे थे

आजादी की लड़ाई में इलाहाबाद का महत्वपूर्ण रोल रहा है. यहां स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत लियाकत अली के नेतृत्व में हुई. उनके आह्वान पर ही हजारों लोग देश को गुलामी की बेडिय़ों से आजाद कराने के लिए सड़कों पर उतर आए थे. यही रीजन था कि लियाकत अंग्रेजी हुकूमत की आंखों में कांटे की तरह चुभने लगे. तब तत्कालीन कोतवाल सज्जाद अली ने उन्हें पकडऩे के लिए इश्तेहार निकलवाया. लियाकत को बागी करार देते हुए जिंदा या मुर्दा पकड़वाने पर इनाम की घोषणा की गई. यही नहीं कानपुर के रहने वाले नाना साहब पर भी ऐसी ही कार्रवाई की गई. के नाम से भी कोतवाली पुलिस ने इश्तिहार छपवा दिया. उन्हें जिन्दा पकडऩे पर एक लाख का इनाम घोषित किया गया. लियाकत के खिलाफ कोतवाली में गैंगस्टर के तहत मामला दर्ज किया गया.

 सुरक्षित है रिपोर्ट

आखिरकार एक दिन लियाकत को अरेस्ट कर मलाका जेल लाया गया. मजिस्ट्रेट ने उन्हें कालापानी की सजा सुनाई. इससे संबंधित पूरी रिपोर्ट आज भी क्षेत्रीय अभिलेखागार कार्यालय में सुरक्षित है. मलाका जेल में बंद रहने के दौरान लियाकत अली द्वारा पहने गए कपड़े आज भी इलाहाबाद म्यूजियम में मौजूद हैं. म्यूजियम में चन्द्रशेखर आजाद की वह पिस्तौल भी रखी हुई है जिसे वह बमतुल बखारा कहते थे.

 पंडित नेहरू को भी नहीं छोड़ा था

देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और उनके साथियों के खिलाफ भी कोतवाली पुलिस ने मामले दर्ज किए थे. इलाहाबाद म्यूजियम में मौजूद दस्तावेज नामक बुक में कहानी दर्ज है. 1931, 1932 और 1933 में पंडित नेहरू समेत सैकड़ों लोगों के खिलाफ कोतवाली और कर्नलगंज थाने में रिपोर्ट दर्ज की गई. 1932 में पुरुषोत्तम दास टंडन के खिलाफ पुलिस एक्ट 30 के तहत कोतवाली में एफआईआर दर्ज हुई. अंडर सेक्शन 4 के तहत फिरोज गांधी, प्रभुलाल, शिओ नाथ और मूलचन्द्र के खिलाफ 1930 में कोतवाली पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया था. पंडित नेहरू के खिलाफ कोतवाली पुलिस ने 1930 में अटेम्प्ट टु मैनुफैक्चर कंट्रोवर्सियल स्पेल के आरोप में कार्रवाई की गई. उनके खिलाफ 1922 में सेक्शन 506, 117 और 116 के तहत कोतवाली पुलिस पहले ही एफआईआर दर्ज कर चुकी थी. 1941 में मौलाना अबुल कलाम आजाद के खिलाफ पुरुषोत्तम दास पार्क में भड़काऊ भाषण देने के आरोप में रिपोर्ट दर्ज की गई. यू/17 18 के तहत नवाब डैसेन, बृजभूषण, नेहरु, सरजू, रामचन्द्र नाथ, गोपी नाथ सिंह, अब्दुल, काशी प्रसाद, राजकुमार शास्त्री, फिरोज गांधी, महावीर प्रसाद, अब्दुल खालिद, मंजर अली आदि के खिलाफ भी कार्रवाई हुई थी.

 इन पर भी हुई कार्रवाई

अंग्रेजों के जुल्म की इंतहा यहीं नहीं खत्म हुई थी. यहां तक कि उन्होंने आंदोलन में शामिल महिलाओं को भी नहीं बख्शा. किसी जनसभा में शामिल होने पर भी उनके खिलाफ कार्रवाई की गई. 1931 में कमला नेहरू ने घुरपूर में जनसभा की थी. इससे क्षुब्ध अंग्रेजी सरकार ने उनके खिलाफ भड़काऊ भाषण देने का मामला दर्ज करवाया. लक्ष्मी, चन्द्रकांता, सीता, सुंदर देवी और कमला देवी जैसे कई महिलाओं के खिलाफ विभिन्न धाराओं में मुकदमे कायम किए गए.

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