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Thursday, April 4, 2013

चीन साइबर दुनिया के माध्यम से अपने दुश्मनको निशाना बना शक्ति प्रदर्शन कर रहा है.

♠ Jugal Eguru™ § आईटी जागृति और शिक्षा अभियान : ♠ Éगुरु द्वारा|  

युद्ध का नया सिद्धांत किसी राष्ट्र पर आर्थिक हमला करने, उसे आगामी कई वर्षों के लिए पंगु बना देना है. हो सकता है चीन शुरुआती तौर पर औद्योगिक क्रांति में पिछड़ गया हो लेकिन अतीत से सीखते हुए, आभासीय क्रांति का अगुवा बनने को वह पूर्णतया उद्यत है. सच यह है कि दूसरे देशों के साथ साइबर वार की सघन प्रतिस्पर्धी आभासी दुनिया में वह एक कदम आगे ही है. इस बार भी वह सुस्त पड़ने वाला नहीं!

 

चीन साइबर दुनिया के माध्यम से अपने दुश्मन अमेरिका को निशाना बना शक्ति प्रदर्शन कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य और एक परमाणु शक्ति होने के बावजूद, चीन अच्छी तरह से जानता है कि वह अभी भी पश्चिमी आयुध प्रौद्योगिकी की बराबरी नहीं कर सकता. हताशा की इसी खाई को पाटने के लिए ही चीन साइबर वार के औचित्य को मूलाधार बना रहा है. इसके जरिए कई बार विभिन्न सैन्य और खुफिया वेबसाइटों पर हमला किया गया।

 

आखिर जासूसी किसे कहते हैं? आंकड़े, प्रौद्योगिकी, ब्लूप्रिंट, रणनीतियों और भूसामरिक निर्देशांकों तक की पहुंच को ही न! तो इस काम में वह काफी हद तक सफल भी है। इस वक्त चल रहे साइबर वार की जो भारी कीमत अमेरिकी और ब्रिटिश प्रतिष्ठान चुका रहे हैं उसे देखते हुए उनका चिंतित होना वाजिब है. हालांकि, साइबर संघर्ष सिर्फ सैन्य जासूसी तक ही सीमित नहीं है. इसमें खुफियागीरी, आर्थिक और सामाजिक जासूसी भी शामिल है. 2010 में, तकरीबन 103 देशों के राजनयिकों के कंप्यूटर में चीनी साइबर जासूसों ने सेंधमारी की, लाल ड्रेगन की कारगुजारियों पर भारत भी सचेत हुआ है. कारण स्पष्ट है. इस क्षेत्र में- चीन के बाद भारत तेजी से बढ़ता भावी सिलिकॉन हब की एशियाई शक्ति माना जाता है. ऐसा तो है नहीं कि चीन भारत के रक्षा प्रौद्योगिकी और सैन्य तैयारियों से बहुत कुछ सीख सकता है, पर निश्चित ही वह भारत की कुछ जानकारियां चोरी कर सकता है और उन्हीं के अनुरूप विभिन्न स्तरों पर रणनीतियां और प्रतिरणनीतियों बना सकता है.

 

 

निस्संदेह, आधुनिक युद्ध में हताहतों की संख्या या भौतिक संपत्ति का विनाश न्यूनतम होता है. इस साइबर वार में आर्थिक मायाजाल पर हमला किया जाता है और उसे ध्वस्त करने की कोशिश की जाती है. आर्थिक विपन्न देश दीर्घकालिक तौर पर न केवल मानव पूंजी से महरूम बल्कि राजनीतिक अस्थिरता का भी शिकार हो जाता है.

 

वियतनाम तट पर दक्षिण चीनी सागर में, जहां भारत और चीन की  तेल की खोज और नौसैनिक शक्ति से संबंधित मुद्दों पर कुछ समय से राजनीतिक कशमकश चल रही है. इस पर भी नजर डालें: 30 जून, 2010 को, विशाखापत्तन स्थित भारत के पूर्वी नौसेना कमान मुख्यालय के कंप्यूटर प्रणाली को अज्ञात एजेंटों द्वारा हैक कर लिया गया. साइबर फोरेंसिक विशेषज्ञों ने ट्रैक किया तो हैकिंग में बीजिंग की संलिप्तता जाहिर हो गई. अतीत में इसी तरह वित्त मंत्रालय के से ले कर पीएमओ की वेबसाइटों को चीनी हैकरों ने हैक किया. चीन के दुश्मनों की नजर में भविष्य में साइबर हमलों में वृद्धि की पूरी आशंका है, भारत के विरुद्ध भी जो इस साइबरवार में पूर्णत: शिथिल बैठा है.

अजीब बात है कि प्रतिभाशाली कंप्यूटर विशेषज्ञों समूह के बावजूद, भारत इस मोर्चे पर अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने में लचर साबित हो रहा है. वास्तव में यह रक्षा, रक्षा उत्पादन और रक्षा अनुसंधान एवं विकास जैसे हमारे संस्थानों की बेहतर भर्ती और बौद्धिक पूंजी की राष्ट्र के रहस्यों की रक्षा के संदर्भ में उपयोग में विफलता है. सरकार हैकरों की सेना क्यों नहीं रखती है जो राष्ट्र के रहस्यों की रक्षा कर सकते हों? कम से कम इतना तो ईमानदारी से प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए.

इसके विपरीत, हैकिंग चीन में सरकार प्रायोजित पहल है. चीनी सरकार इसके लिए सालाना 55 मिलियन डॉलर की भारी भरकम राशि खर्च करती है. टोरंटो विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार, चीनी नौसेना की गुप्त शाखा कई तरह की साइबर जासूसी के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है. यहां तक ​​कि पाकिस्तान में पलने और दूसरी जगहों पर चलने वाले आतंकवादी संगठनों को चीनी हैकर्स (राज्य प्रायोजित या अन्यथा) से निकलने वाली संवेदनशील जानकारी तक पहुंचने में खासी रुचि रहती है. ये जानकारियां भारत में आतंकी हमलों की साजिश में काम आ सकती हैं. भारत के लिए यह वक्त की मांग है कि वह साइबर सुरक्षा मोर्चे पर मजबूत बने.

 

साइबर सुरक्षा के लिए एक विशेष सेल का गठन अत्यंत महत्वपूर्ण है, प्रधानमंत्री और उनकी मंडली को इस स्थिति की गंभीरता का एहसास होना चाहिए. भारत तेजी से कंप्यूटरीकृत और उसकी अधिकतर संचार प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण होता जा रहा है, एक भरपूर साइबरवार के दुष्परिणाम का असर उस पूरी प्रणाली पर पड़ेगा जिससे देश संचालित होता है. यदि स्टक्सनेटॅ जैसे वायरस (जिसने नवंबर 2007 में ईरान के परमाणु कार्यक्रम को गड़बड़ा दिया था) भारत के शेयर बाजार से लेकर भारतीय सशस्त्र बलों या यूटीलिटी सेंटरों तक के सर्वर पर हमला कर दे तो  देश जहां का तहां ठिठक कर ठहर जाएगा. (बेशक, इसके चलते लोगों के बीच भ्रम, भय, अविश्वास, क्रोध, लाचारी और हताशा अलग से उपजेगी !)

इस सूचना युग में, जब जानकारी की सुरक्षा सीमाओं की रक्षा जितनी ही जरूरी है, भारत क्यों न अपनी आवश्यकतानुसार आभासी और वास्तविक युद्ध को एकीकृत कर एक व्यापक रक्षा नीति का निर्माण करे. एक केंद्रीकृत रक्षा इकाई जो कि एक साथ साइबर और सीमा की रक्षा से निपटने के लिए सक्षम हों, ऐसी डिवीजनों का गठन जरूरी है. वर्तमान में, भारत में वेबसाइटों की हैकिंग कोई कठिन काम नहीं है. एक चीनी से ऐसा करने को कह कर तो देखें, यह वास्तव में यह बहुत आसान है!

Φ याद रखिए - सिक्यूरिटी का एक ही नियम है .... " हम कहीं भी सिक्यूर नहीं ...." फिर भी बचाव करना हमारे हाथ मे है !
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