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Wednesday, January 16, 2013

मौलाना कादरी का गुजरात की मोदी सरकार से भी है कनेक्शन! National maulana kadri has a modi connect!

मौलाना कादरी का गुजरात की मोदी सरकार से भी है कनेक्शन! National maulana kadri has a modi connect!

 

पाकिस्तान में जिस मौलाना ताहिर उल कादरी के लॉंग मार्च से पाकिस्तान की हुकूमत डरी हुई है उसी कादरी के लिए गुजरात की मोदी सरकार पलक पांवडे बिछा चुकी है। वैसे मौलाना ने दिल्ली, हैदराबाद और अजमेर का भी दौरा किया था लेकिन लेकिन गुजरात का उनका यह दौरा अहम इसलिए है क्योंकि उन्होंने भारत में अपनी संस्था के मुख्यालय के लिए गुजरात को चुना है।

 

ज्ञात रहे, कादरी ने अपने धार्मिक और सामाजिक संगठन मिनहाज उल कुरान के भारतीय मुख्यालय के लिए गुजरात के वडोदरा के कर्जन को चुना है। कर्जन में अपने प्रवचन के दौरान मौलाना ने अमन-शन्ति और भाई चारा की बातें की थी लेकिन तब की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उन्होंने मुसलमानों को गुजरात के 2002 के दंगों से आगे बढने की बातें कही थीं। इस बारे में अहमदाबाद से मिली खबरों के मुताबिक पिछले साल कादरी जब गुजरात आए थे तब मोदी सरकार ने न सिर्फ उन्हें विशेष सिक्योरिटी दी थी बल्कि भाजपा के बडे प्रदेश नेताओं ने भी पाकिस्तानी मौलाना के कर्जन के कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। कनाडा और पाकिस्तान की नागरिकता रखने वाले मौलाना ताहिर उल कादरी के संगठन का मुख्यालय कर्जन में होगा और इसके लिए एक लाख वर्ग मीटर के कैम्पस में अब निर्माण का काम शुरू किया जाना है।

 

मिनहाज उल कुरान के भारतीय मुख्यालय के शिलान्यास के मौके पर मोदी सरकार के तत्कालीन गृह राज्य मंत्री और बीजेपी के कई नेताओं ने शिरकत की थी, उन्हें खास सुरक्षा भी मुहैया कराई गई थी। कार्यक्रम के आयोजक नादे अली सैयद का दावा है कि खुद मोदी ने मौलाना ताहिर उल कादरी को वेलकम लेटर भेजा था।

 

जानते हैं,मौलाना कादरी का गुजरात की मोदी सरकार से भी है कनेक्शन! National maulana kadri has a modi connect!

 

 

Monday, January 14, 2013

साइबर वॉर के लिए ▐ Cyber ​​War | Cyber ​​ARMY

साइबर वॉर के लिए ▐ Cyber ​​War | Cyber ​​ARMY

मुंबई।। आनेवाले समय में 'साइबर वॉर' की आशंका से निपटने के लिए 'साइबर सोलजर्स' (कंप्यूटर सैनिक) तैयार करने का महाराष्ट्र सरकार का इरादा है। नागपुर यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर वी.एस. सकपाल के अधीन बनी समिति को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है।

मूल तौर पर आईटी, साइबर लॉ और साइबर क्राइम पर यूनिवर्सियों में मास्टर्स डिग्री और डिप्लोमा कोर्स तैयार करने का जिम्मा सपकाल समिति को सौंपा गया था। समिति ने बुधवार को अपनी रिपोर्ट रखते हुए ईरान, नाइजीरिया, चीन और रशिया की तर्ज पर सायबर सैनिक तैयार करने की रूपरेखा रखी। उच्च शिक्षा मंत्री राजेश टोपे ने समिति को इसके लिए 15 दिनों का टाइम दिया है।

समिति ने यूनिवर्सिटी के सभी फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट्स के लिए आईटी और साइबर क्राइम का छह महीने का डिप्लोमा अनिवार्य करने का सुझाव दिया है। इसके अलावा, साइबर लॉ और आईटी पर मास्टर्स कोर्स शुरू करने की भी सिफारिश की गई है।





अनजाने साइबर क्राइम Φ CYBER CRIME in INDIA

 

 

अनजाने साइबर क्राइम

 

 

 

 
 
  
 
  
 
  
  

इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले करीब-करीब हर शख्स ने कोई न कोई साइबर क्राइम जरूर किया है। कानूनी नहीं तो नैतिक अपराध तो किया ही है। इनमें से ज्यादातर को तो इसका अंदाजा तक नहीं होता। वे कहीं से भी कोई चित्र, लेख या विडियो कॉपी-पेस्ट करते समय जरा भी नहीं झिझकते। इंटरनेट पर ऐसे तमाम काम हैं, जो साइबर क्राइम के तहत आते हैं। 

कॉपी-पेस्ट या सामग्री की चोरी
- हर क्रिएटिव चीज बनाने वाले के पास एक खास हक होता है जो उसे अपनी सामग्री को गैरकानूनी ढंग से नकल किए जाने के खिलाफ सुरक्षा देता है। इसे कॉपीराइट कहते हैं।
- आपके लेख, कहानी, कविता, व्यंग्य, फोटो, संगीत की धुन, सॉफ्टवेयर, विडियो, कार्टून, एनिमेशन, किताब, ई-बुक, वेबसाइट वगैरह पर आपको यह खास हक हासिल है। कोई भी शख्स आपकी इजाजत के बिना आपकी रचना की कॉपी नहीं कर सकता और न ही उसे दूसरों को दे सकता है। ऐसा करना कॉपीराइट कानून का उल्लंघन है और आप उसके खिलाफ अदालत जा सकते हैं।
- कॉपीराइट लेने की एक कानूनी प्रक्रिया है, लेकिन अगर ऐसा नहीं भी करते, तो भी अपनी रचना पर आपका ही हक है।

- इसी तरह अगर आप किसी और का फोटो उसकी लिखित मंजूरी के बिना अपने फेसबुक प्रोफाइल पर पोस्ट करते हैं तो वह साइबर क्राइम है। गूगल इमेज या दूसरी इमेज होस्टिंग वेबसाइटों से अपनी पसंद का कोई फोटो लेकर उसे अपने ब्लॉग, सोशल नेटवर्किंग ठिकाने, वेबसाइट या पत्र-पत्रिका में इस्तेमाल करना भी उसी कैटिगरी में आता है।
- गूगल एक सर्च इंजन भर है, वह फ्री डाउनलोड साइट नहीं है। इसीलिए वह किसी भी पिक्चर के साथ उस वेब पेज को भी दिखाता है, जहां से उसे ढूंढा गया है। ऐसा करके वह पिक्चर चुराए जाने के मामले में किसी भी तरह की जिम्मेदारी से आजाद हो जाता है।

क्या करें

- अगर आपको गूगल इमेज सर्च पर मौजूद कोई फोटो इस्तेमाल करना है, तो कायदे से उस वेब पेज के संचालक से इजाजत लेनी चाहिए।
- अगर कोई शख्स अपनी रचना को लेकर ज्यादा ही गंभीर हो, तो यह छोटी सी चोरी आपको भारी पड़ सकती है। जिस गूगल के जरिये आपने वह लेख, फोटो या विडियो ढूंढा है, उसी के जरिये आपकी चोरी भी पकड़ी जा सकती है।

मजेदार साभार
- कुछ ब्लॉगों पर बड़ी दिलचस्प बातें नजर आती है। ब्लॉगरों ने गूगल इमेजेज से फोटो का इस्तेमाल किया और बतौर सावधानी नीचे साभार गूगल लिख दिया।
- गूगल पर दिखने वाले सर्च नतीजों, फोटो वगैरह पर गूगल का कोई मालिकाना हक नहीं है। वे तो महज रेफरेंस के तौर पर दिए गए हैं, जिससे आप सही ठिकाने तक पहुंच सकें।
- आभार ही जताना है तो उस वेबसाइट का जताइए, जहां से गूगल ने उसे ढूंढा है।

चाइल्ड पॉर्नोग्रफी देखना
- अगर आप जाने या अनजाने अपने इंटरनेट कनेक्शन के जरिये चाइल्ड पॉर्नोग्रफी (बच्चों के अश्लील चित्र, विडियो, लेख आदि) देखते हैं तो वह साइबर क्राइम है।
- आपने ऐसी किसी सामग्री को अपने किसी दोस्त को फॉरवर्ड कर दिया तो आप एक और साइबर क्राइम कर चुके हैं।
- 18 साल से कम उम्र वालों से संबंधित अश्लील सामग्री देखना, इंटरनेट से भेजना और सहेजना साइबर क्राइम है।
- इन्हें न खुद देखें, न किसी को फॉरवर्ड करें।

लोगो की चोरी
- इंटरनेट पर लोगो, आइकंस, प्रतीक चिह्नों, ट्रेडमार्क वगैरह की चोरी भी आम है।
- नया काम खोलना है या नई वेबसाइट बनानी है लोगो के लिए इंटरनेट सर्च से बेहतर जरिया क्या होगा?
- अच्छा सा लोगो दिखाई दिया और आपने उसे कॉपी कर इस्तेमाल कर लिया या किसी डिजाइनर की सेवा ली जिसने झटपट इंटरनेट से किसी कंपनी का अच्छा सा लोगो इस्तेमाल कर आपका विजिटिंग कार्ड, ब्रोशर और लेटरहेड तैयार कर दिया। ऐसा करके आपने न सिर्फ कॉपीराइट का उल्लंघन कर चुके हैं बल्कि ऑनलाइन ट्रेडमार्क के उल्लंघन मामले में भी आपको दोषी करार दिया जा सकता है।
- ऐसे किसी भी लोगो या आइकन का प्रयोग अपने बिजनेस आदि के लिए न करें।

वाई-फाई का दुरुपयोग
- जुलाई 2008 में अहमदाबाद बम विस्फोटों के बाद उनकी जिम्मेदारी लेते हुए आतंकवादियों ने जो ईमेल भेजा था, वह आपके-हमारे जैसे ही किसी आम इंटरनेट यूजर के वाई-फाई कनेक्शन का इस्तेमाल करके भेजा था। जांच एजेंसियों ने पता लगाया कि यह ईमेल नवी मुंबई के एक ?लैट में लगे वायरलेस इंटरनेट कनेक्शन के जरिये आया था। जाहिर है, उन्होंने यही निष्कर्ष निकाला कि जिस घर से मेल भेजा गया, वह किसी न किसी रूप में हमलावरों से जुड़ा हुआ होगा, लेकिन इस फ्लैट में रहता था मल्टिनैशनल कंपनी में काम करने वाला अमेरिकी नागरिक केनेथ हैवुड। अब उसे समझ आया कि इंटरनेट कनेक्शन लगाने वाले इंजिनियर ने क्यों कहा था कि उसे अपने वाई-फाई नेटवर्क का पासवर्ड जल्दी ही बदल लेना चाहिए। दरअसल, हैवुड के वाई-फाई कनेक्शन में कोई सिक्युरिटी सेटिंग नहीं की गई थी और आस-पास से गुजरता कोई भी शख्स हैवुड के कनेक्शन का इस्तेमाल कर सकता था। आतंकवादियों ने यही किया और हैवुड एक आतंकवादी मामले में गिरफ्तार होते-होते बचा।
- अगर कोई अपराधी आपके इंटरनेट कनेक्शन का इस्तेमाल करते हुए साइबर क्राइम करता है तो पुलिस उसे भले ही न ढूंढ पाए, आप तक जरूर पहुंच जाएगी और नतीजे भुगतने होंगे आपको।
- अगर वाई-फाई इंटरनेट कनेक्शन इस्तेमाल करते हैं तो उसे पासवर्ड प्रोटेक्ट करना और एनक्रिप्शन का इस्तेमाल करना न भूलें।

वायरस, स्पाईवेयर
- अगर आपके कंप्यूटर पर किसी वायरस या स्पाईवेयर ने कब्जा जमा लिया है और वह जोम्बी में तब्दील हो गया है तो समझिए, आप अपने कंप्यूटर और डेटा की असुरक्षा के साथ-साथ साइबर क्राइम में भी फंस सकते हैं। मुमकिन है, आप किसी परोक्ष साइबर क्राइम में हिस्सेदार बन रहे हों।
- कुछ वायरस और स्पाईवेयर न सिर्फ आपके कंप्यूटर के डेटा और निजी सूचनाएं चुराकर अपने संचालकों तक भेजते हैं बल्कि आपके संपर्क में मौजूद दूसरे लोगों तक अपनी प्रतियां पहुंचा देते हैं। कभी इंटरनेट के जरिये, कभी ईमेल के जरिये तो कभी लोकल नेटवर्क के जरिये। जिन लोगों के कंप्यूटर में आपके जरिये वायरस या स्पाईवेयर पहुंचा और कोई बड़ा नुकसान हो गया, उनकी नजर में दोषी कौन होगा? आप। ऐसे मामलों में आप अपनी कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी से बच नहीं सकते।
- कंप्यूटर में अच्छा एंटिवायरस, एंटिस्पाईवेयर और फायरवॉल जरूर लगवाएं। ये सिर्फ आपकी साइबर सुरक्षा के लिहाज से ही जरूरी नहीं है बल्कि इसलिए भी है कि कहीं आप अनजाने में कोई साइबर अपराध न कर बैठें।

किसी का अकाउंट खोलना
- कुछ लोग अपने दोस्तों और साथियों के ईमेल अकाउंट, फेसबुक वगैरह का पासवर्ड ढूंढने की कोशिश करते हैं और कभी-कभी सफल भी हो जाते हैं। हो सकता है, आप महज मौज-मस्ती या मजाक के लिए ऐसा कर रहे हों लेकिन अगर आप किसी का पासवर्ड हासिल करने के बाद उसके खाते में लॉग-इन करते हैं तो आप साइबर क्राइम कर रहे हैं।
- ऐसा तब भी होता है, जब किसी ने आप पर भरोसा करके आपको अपना पासवर्ड बताया हो। यह खाता ईमेल, सोशल नेटवर्किंग, ब्लॉग, वेबसाइट, ऑनलाइन स्टोरेज सविर्स, ई-कॉमर्स साइट, इंटरनेट-बैंकिंग जैसा हो सकता है।
- किसी की प्राइवेसी में सेंध लगाने पर आप डेटा प्रोटेक्शन कानून के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी कानून 2000 की धारा 72 के तहत दोषी करार दिए जा सकते हैं।
- किसी का पासवर्ड चुराकर उसका अकाउंट खोलने की कोशिश न करें। साथ ही अगर कोई साथी कहे कि मेरा ईमेल खोलकर देख लेना, यह मेरा पासवर्ड यह है, तो उससे माफी मांग लेने में ही भलाई है।

सॉफ्टवेयर पायरेसी
- भारत के ज्यादातर कंप्यूटर यूजर किसी न किसी सॉफ्टवेयर का पाइरेटेड वर्जन इस्तेमाल कर रहे हैं। चाहे विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम हो, ऑफिस सॉफ्टवेयर सूइट हों या फिर ग्राफिक्स, पेजमेकिंग के सॉफ्टवेयर।
- अब सॉफ्टवेयरों के भीतर एडवांस किस्म के पाइरेसी प्रोटेक्शन और मॉनिटरिंग सिस्टम आने लगे हैं और हो सकता है आपके बारे में भी कंपनियों को जानकारी हो।
- ऐसे सॉफ्टवेयरों का इस्तेमाल करना साइबर क्राइम के तहत आता है। हमेशा ऑरिजनल सॉफ्टवेयर ही यूज करें।

गूगल क्लिक फ्रॉड
- इंटरनेट पर विज्ञापनों के बदले भुगतान की व्यवस्था थोड़ी अलग है। यह विज्ञापनों को क्लिक किए जाने की संख्या पर आधारित है। जैसे दस क्लिक यानी दो डॉलर या करीब 110 रुपये।
- ऐसे में कुछ लोग खुद ही अपने ब्लॉगों पर लगे विज्ञापनों को क्लिक करते रहते हैं या फिर कुछ दूसरे लोगों के साथ गठजोड़ कर लेते हैं। उन्हें पता नहीं कि इंटरनेट पर ऐसे फर्जी क्लिक की निगरानी रखी जा सकती है।
- इस तरह के क्लिक से बचें। यह बड़ा आर्थिक अपराध है और पता लगने पर आपके विज्ञापन तो बंद हो ही सकते हैं, भारी-भरकम जुर्माना या दूसरी सजा भी मिल सकती है।

बैंडविड्थ की चोरी
- कुछ लोग अपनी वेबसाइट पर दूसरी जगहों से ली गई भारी-भरकम ग्राफिक फाइलें (कुछ एमबी के फोटो या विडियो आदि) डालने के लिए शॉर्टकट अपनाते हैं।
- वे फाइलों को अपनी वेबसाइट पर सीधे नहीं डालते बल्कि ऑरिजनल वेबसाइट से ही उन्हें लिंक कर देते हैं। होता यह है कि विडियो या चित्र दिखता तो आपकी वेबसाइट पर है लेकिन असल में वह अपनी ऑरिजनल वेबसाइट पर ही लगा हुआ है, आपके वेब सर्वर पर नहीं है।
- यहां आप दो तरह के साइबर क्राइम कर रहे हैं। पहला कॉपीराइट संबंधी और दूसरा बैंडविड्थ की चोरी।
- बैंडविड्थ की चोरी को ऐसे समझ सकते हैं। हर वेबसाइट को डेटा डाउनलोड का एक खास कोटा मिला होता है और इस सीमा से बाहर जाने पर उसके संचालक को अलग से पैसे का भुगतान करना होता है। जब आप किसी और की साइट पर मौजूद भारी-भरकम विडियो को लिंक करके अपनी साइट पर लगाते हैं तो आपकी साइट पर आने वाले हर विजिटर के लिए वह विडियो ओरिजनल साइट से डाउनलोड होता है। डाउनलोड की इस प्रक्रिया में उसकी बैंडविड्थ खर्च होती है, जबकि आप अपनी बैंडविड्थ बचा लेते हैं।
- यह किसी अनजान व्यक्ति की जेब काटने जैसा है। हमेशा अपनी बैंडविड्थ ही खर्च करें, दूसरों की नहीं।

कुछ और साइबर क्राइम
- साइबर स्क्वैटिंग : किसी मशहूर ब्रैंड, कंपनी, संगठन, इंसान आदि के नाम से जुड़ा डोमेन नेम अनधिकृत रूप से अपने नाम से बुक करवा लेना।
- ऑनलाइन मानहानि : अपने ब्लॉग, वेबसाइट, सोशल नेटवकिर्ंग ठिकाने या दूसरे इंटरनेट ठिकाने पर किसी के बारे में अपमानजनक या अश्लील टिप्पणी करना।
- कारोबारी डेटा : किसी ग्राहक द्वारा मुहैया कराए जाने वाले गोपनीय कारोबारी डेटा की कॉपी बनाकर अपने पास रखना।
- वेबसाइट, डोमेन नेम पर कब्जा : भारत में कई वेब डिवेलपमेंट कंपनियां ऐसा करने की दोषी पाई गई हैं। अपने ग्राहकों के लिए डोमेन नेम बुक कराते, वेब होस्टिंग स्पेस लेते और इंटरनेट सेवा मुहैया कराते समय वे उनका सबसे खास यूजरनेम और पासवर्ड अपने कब्जे में रख लेते हैं और फिर उसी के दम पर ग्राहकों को तंग करते हैं।
- डिजाइन की चोरी : किसी वेबसाइट, ब्लॉग, ई-बुक आदि की बिना मंजूरी हू-ब-हू नकल कर लेना। किसी की टेंप्लेट को अनधिकृत रूप से इस्तेमाल कर लेना।

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Thursday, January 10, 2013

FACEBOOK in DANGER : Indian Govt. Planning To GET RID OVER

♠ FACEBOOK in DANGER : Indian Govt. Planning To GET RID OVER
♠ फेसबुक खतरे मे : भारत सरकार दबाना चाहती है अभिव्यक्ति की आजादी

 

दिल्ली में घटित हुए कांड के विरोध में रायसीना हिल्स पर पहुंचे जनसैलाब ने सरकार और खुफिया तंत्र को हिलाकर रख दिया है। सरकारी मशनीरी हैरत में है कि बिना किसी नेतृत्व के इतनी बड़ी तादाद में जनता सिर्फ सोशल मीडिया के जरिये एकजुट हुए और राष्ट्रपति भवन के पास तक आक्रोश जाहिर करने पहुंच गये। सरकार और खुफिया तंत्र की ओर से सोशल मीडिया को खतरे के तौर पर देखा जा रहा है। इससे निपटने के लिए भी व्यापक विचार विमर्श इंटेलीजेंस और सरकार के बीच शुरू हो चुका है। माना जा रहा है कि देश के राजनीतिक और सांप्रदायिक माहौल को बिगाडऩे के लिए भविष्य में भी सोशल मीडिया अहम् भूमिका निभा सकता है।

सुरक्षा के लिहाज से सोशल साइटें एक नयी चुनौती बनकर सरकार के सामने खड़ी हैं। इस बात की आशंका सोशल मीडिया साइटों पर निगरानी रखने वाली सरकारी एजेंसी ने जाहिर की है। रिपोर्ट में कहा गया है उग्र प्रदर्शन के पीछे इन साइटों का इस्तेमाल किया गया। भावनाओं को छू जाने वाले अनगिनत संदेशों के जरिये दिल्ली के यूथ को टारगेट किया गया। एजेंसी की रिपोर्ट पर कारगर कदम उठाने का निर्णय लिया गया है। सरकार और तमाम खुफिया एजेंसियां उन कारणों पर गहन चिंतन मंथन कर रही है जिससे भविष्य में इस तरह की स्थितियों की पुनरावृत्ति न होने पाए।
   
आज की तारीख में युवा भारत के पास अपने जज्बात और गुस्से का इजहार करने के लिए वो हथियार है, जिसे कोई नहीं रोक सकता। वो हैं सोशल वेबसाइट्स। जो लोग दिल्ली के इंडिया गेट पर अपना आक्रोश दिखाने नहीं पहुंच सके, वो ट्विटर और फेसबुक सरीखी सोशल वेबसाइट्स पर अपने जज्बातों और गुस्से की इबारत लिख रहे हैं। लेकिन आम आदमी की सोशल मीडिया पर सक्रियता सरकार को रास नहीं आ रही है और येन-केन प्रकरेण वो सोशल मीडिया को दायरे में रखने और रखवाली के उपायों को खोज रही है। सोशल बेवसाइटस पर पोस्ट, कमेंटस और लाइक करना अपराध की श्रेणी मे शामिल है और इसकी वजह से कई लोग हवालात की सैर भी कर चुके हैं। गौरतलब है कि शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे की शवयात्रा के दौरान शिवसेना कार्यकर्ताओं द्वारा मुम्बई ठप किये जाने पर शाहीन धाडा नामक युवती ने फेसबुक पर टिप्पणी की थी और उनकी मित्र रेणु श्रीनिवासन ने उसे ‘लाइक’ किया था। इसके बाद दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन बाद में उन्हे रिहा कर दिया गया। कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को कार्टून बनाने पर राजद्रोह के मामले में जेल की हवा खानी पड़ी तो वहीं आम आदमी की आवाज दबाने के लिए सरकार और सरकारी मशीनरी आईटी एक्ट की विभिन्न धाराओं का दुरूपयोग जमकर कर रही है। आईटी एक्ट की धारा 66-ए  में संशोधन की मांग जोर-शोर से उठने लगी है।

असलियत यह है कि वर्तमान यूपीए सरकार लगभग हर मोर्चे पर फेल दिख रही है। सरकार के हठधर्मी, बेश्र्म और नकारा रवैये के कारण जनता में अंदर तक गुस्सा भरा हुआ है और जनता विशेषकर युवा वर्ग अपनी भड़ास को सोशल वेबसाइटस के माघ्यम से देश-दुनिया में सांझा करता है। इससे जनता के बीच सरकार की छवि को गहरा धक्का पहुंच रहा है। लेकिन समस्या यह है कि सरकार कमियों को दूर करने की बजाय जनता की आवाज दबाने में ऊजो खपा रही है। सरकार अपने अपराधों की मुखर आलोचना सुनने की सहनशीलता खो चुकी है और उसी का परिणाम है कि सरकार झुंझलाहट भरे आलोकतांत्रिक व्यवहार पर उतर आई है।

 

सोशल नेटवर्किंग की दुनिया में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर शिकंजा कसने के सरकार के षडयंत्र इसी झुंझलाहट और खीझ की असंतुलित प्रतिक्रिया है जिसे कि वह कई बहानों के चोले से ढंकने का प्रयास कर रही है। योग गुरू रामदेव का आंदोलन रहा हो अथवा अन्ना का अभियान, सरकार व कांग्रेस की तरफ से जिस तरह की प्रतिक्रिया व बयानबाजी की गई वह उसकी हताशा व अवसाद को बखूबी स्पष्ट करती है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की असफलता के साथ साथ राहुल गांधी का औंधे मुंह गिरना और उसके बाद एक और बड़े राज्य आन्ध्र प्रदेश में सूपड़ा साफ होना कांग्रेस और सोनिया गांधी की हताशा के ऊपर और कई मन का बोझ बढ़ा गया। रही सही कसर गुजरात में कांग्रेस की हार ने पूरी कर दी है। निश्चित रूप से इन असफलताओं में कांग्रेस नीत केंद्र सरकार के काले इतिहास का बहुत बड़ा योगदान है।

पिछले दो वर्षों में अन्ना हजारे द्वारा लोकपाल बिल पास करने के लिए चलाया जाने वाला अभियान हो या फिर बाबा रामदेव की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साईट्स की मदद से तेजी से आगे बढ़ी और फ़ैली। अगर ये कहा जाए कि सोशल नेटवर्किंग साइटस ने ही इन आंदोलनों की आग को फैलाया तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। समस्त विश्व में पिछले एक दशक में  इन्टरनेट विरोध या असहमति दर्ज कराने के एक नए प्लेटफॉर्म के रूप में उभरा है। इसे दुर्भाग्य कहा जाए या भ्रष्ट मानसिकता का दुराग्रह कि सत्तासीन अपने इन पापों को स्वीकारने व सुधारने के स्थान पर सतत सीनाजोरी का रास्ता अपनाए हुए हैं! इसी दुराग्रह के चलते सरकार अन्ना के विरुद्ध भद्दी बयानबाजी और रामदेव पर सस्ते आरोप लगाकर अपनी साख बचाने का बचकाना प्रयास करती रही है और अब उसी बचकानी सोच का परिणाम है कि सरकार सोशल नेटवर्किंग साइट्स को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही है। गूगल सहित फेसबुक व ट्विटर जैसी वेबसाइट्स से सरकार लंबे समय से आमने-सामने की स्थिति में है।

 

लोकतन्त्र में यदि सरकार सच को स्वीकारने की अपनी अक्षमता के चलते अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के हनन की सीमा तक पहुंच जाए तो यह स्वयंसिद्ध हो जाता है कि सरकार लोकतान्त्रिक व्यवस्था में पूर्णत: असफल हो चुकी है। ऐसी सरकार को लोकतान्त्रिक व्यवस्था में बने रहने का नैतिक अधिकार ही नहीं रह जाता है। 1975 के आपातकाल के बाद आज पुन: एक बार सरकार यदि उस स्थिति में नहीं तो उस मनोदशा में अवश्य पहुंच गई है। फिनलैंड ने विश्व के सभी देशों के समक्ष एक उदहारण पेश करते हुए इन्टरनेट को मूलभूत कानूनी अधिकार में शामिल कर लिया। वहीं विश्व के सबसे बड़े और सफल लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले हमारे राष्ट्र में नकारा और निकम्मी सरकारें अपनी नाकामियां, असफलताओं, लचर कार्यप्रणाली, लालफीताशाही, भ्रष्टाचार और कमियों को ढकने के लिए आम आदमी की आवाज को दबाने का जो कुचक्र रच रही हैं वो किसी भी दृष्टि से स्वस्थ प्रजातंत्र का लक्षण नहीं है वहीं यह संविधानप्रदत्त मौलिक अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन भी है। अगर सरकार आम आदमी की आवाज दबाने की बजाय उसे सुनने और समझने का प्रयास करे तो देश की दशा और दिशा बदल सकती है। अदम गोंडवी का  शेर इस हालात के माकूल है-

 

ताला लगा के आप हमारी ज़बान को,
कैदी न रख सकेंगे ज़ेहन की उड़ान को।

Wednesday, January 9, 2013

ऐसी धमकी तो कभी लादेन ने भी नहीं दी

 - सुन, शैतान की औलाद!

 

ऐसी धमकी तो कभी लादेन ने भी नहीं दी
अकबरुद्दीन ओवैसी के बयान पर इन पालतू राष्ट्रवादी मुसलमानों तक की बकार भी नहीं फूटी। किसी अन्य शीर्ष नेता ने भी आज दिन तक ओवैसी पर कड़ी कार्रवाई की मांग नहीं की है। किसी बुद्धिजीवी, पत्रकार और सेकुलर नेता ने यह जानने की जहमत भी नहीं उठाई है कि ओवैसी के पास आखिर कौन सा ऐसा हथियार है जिससे वह १०० करोड़ हिंदुओं के खात्मे की वल्गना कर रहा है? कहीं ओवैसी को पाकिस्तानी इस्लामी परमाणु बम हाथ तो नहीं लग गया? ओवैसी जितनी बड़ी धमकी दे रहा है उतनी बड़ी धमकी तो कभी ओसामा बिन लादेन ने भी नहीं दी। जुल्फिकार अली भुट्टो दशकों तक हिंदुस्तान से लड़ने का दंभ भरा करते थे तो उनकी बेटी बेनजीर भुट्टो सदियों तक हिंदुस्तान से लड़ने का पाकिस्तानी हौसला बयान किया करती थी, पर उन दोनों ने भी कभी १०० करोड़ हिंदुओं के खात्मे का बड़बोलापन नहीं किया। फिर ओवैसी के इतने जबर्दस्त विध्वंसक बयान पर भी सेकुलरवाद के रखवाले गूंगे-बहरे क्यों बने रहे? ‘सहमत’ और शबाना आजमी का एक बयान जरूर आया पर उसमें भी औपचारिक विरोध के अलावा कुछ नजर नहीं आता।

 

ओवैसी को हल्के में लिया तो पछताओगे
आंध्रप्रदेश की पुलिस ने तो ओवैसी के इस बयान पर एक साधारण एफआईआर दर्ज करना भी जरूरी नहीं माना और उनकी कलम तब उठी जब अदालत ने निर्देश दिया। गुजरात दंगों में मुस्लिमों की मौत के लिए दुनिया की कोई भी अदालत न्याय के मान्य मापदंड पर नरेंद्र मोदी को दोषी नहीं ठहरा सकती, फिर भी सिर्फ यूरोप-अरब-अमेरिका प्रायोजित एनजीओ बिरादरी के बखेड़े पर मोदी को यूरोप और अमेरिका मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर विराजमान होने के बावजूद वीसा देने से इंकार करते हैं। ओवैसी को इतने घातक बयान के बाद भी ब्रिटेन का वीसा मिलने और लंदन यात्रा करने में कोई दिक्कत नहीं आती। इस राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ढोंग का क्या औचित्य? क्या ओवैसी के बयान को हलके में लिया जा सकता है? ओवैसी जिस आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन का विधायक है उसकी पृष्ठभूमि जानने वाला कोई भी जानकार उसके बयान को हलके में लेने की सलाह नहीं देगा। मुस्लिम अलगाववाद का सऊदी अरेबिया और पाकिस्तान प्रायोजित जो ब्लू प्रिंट है उसका अंतिम चरण दक्षिणी हिंदुस्थान का इस्लामी अलगाववाद है। इस्लामी अलगाववाद का पहला चरण कश्मीर, दूसरा चरण असम समेत पूर्वोत्तर, तीसरा चरण हिंदुस्थान के प्रमुख शहरों को निशाना बनाना तथा अंतिम चरण हैदराबाद को केंद्र में रख दक्षिणी हिंदुस्थान में अलगाववादी ताकतों को बढ़ावा देना है।

 

हैदराबाद हो पाकिस्तान का हिस्सा...
इस्लामी आतंकवाद का कश्मीर को हिंदुस्थान से अलग करने का प्रयास १९४७ से जारी है। १९६० के दशक से लगातार पूर्वोत्तर हिंदुस्थान में मुस्लिम आबादी बढ़ाकर असम को लीलने का प्रयास चल रहा है। १९८० के बाद से दर्जनों बार असम में स्थानाrय असमी आबादी और बांग्लादेशी मुसलमानों के बीच टकराव हो चुका है। बीते वर्ष जब बोडो जनजाति और बांग्लादेशी मुसलमानों के बीच संघर्ष व्यापक हुआ था तब मुंबई, बैंगलोर समेत तमाम शहरों में मुसलमानों ने किस तरह पूर्वोत्तर वासियों को धमकाया यह पूरा देश हताश होकर देख रहा था। १९९० के दशक से ऑपरेशन के-२ के माध्यम से इस्लामी अलगाववादी देश के तमाम शहरों में निर्दोष हिंदुओं का खून बहाते रहे हैं। हुजी, लश्कर-ए-तोयबा, इंडियन मुजाहिदीन, हरकत-उल-अंसार जैसी दर्जनों तंजीमे हिंदुस्थान में ग्रीन कॉरिडोर (हरा गलियारा) बनाने में जुटी रही हैंै। शायद ही कोई प्रमुख शहर बचा हो जहां इस्लामी आतंकवाद का पंजा नजर न आया हो। अब मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआईएम) के विधायक अकबरुद्दीन ओवैसी का बयान संकेत दे रहा है कि मुस्लिम अलगाववाद अपने चौथे यानी अंतिम चरण में पहुंचने को है। १९४७ के पहले जिन इलाकों से पाकिस्तान समर्थक बांग लगी थी उसमें हैदराबाद प्रमुख था। हैदराबाद को पाकिस्तान का हिस्सा बनाने की मांग के लिए ही एमआईएम गठित हुई थी। ज्ञात इतिहास के अनुसार १९२७ में निजाम का समर्थन करने के लिए नवाब मीर उस्मान अली खान की सलाह पर महमूद नवाज खान किलेदार गोलकुंडा ने एमआईएम का गठन किया था। इसकी पहली बैठक नवाब महमूद नवाज खान के घर ‘तौहीद मंजिल’ में हुई थी जिसमें पहला ही प्रस्ताव यही था कि एमआईएम को किसी भी सूरत में हैदराबाद को हिंदुस्थान का हिस्सा बनने से रोकना है।

 

...तब कासिम राजवी दुम दबाकर भागा
पाकिस्तान की मांग १९३० के दशक में हुई, एमआईएम उसके पहले से अलगाववाद की पैरोकार रही है। १९३८ में बहादुर यार जंग एमआईएम का सदर बना तो उसने मुस्लिम लीग के साथ सियासी समीकरण बैठा लिया। २६ दिसंबर १९४३ को लाहौर के मुस्लिम लीग सम्मेलन में इसी नवाब बहादुर यार जंग ने पाकिस्तान के समर्थन में सबसे आक्रामक भाषण दिया था। एमआईएम ने आजादी के पहले हैदराबाद से हिंदुओं के सफाए के लिए डेढ़ लाख रजाकारों की फौज तैयार की थी। हैदराबाद स्टेट में तब महाराष्ट्र का वर्तमान मराठवाड़ा भी हिस्सा था। हैदराबाद स्टेट के तत्कालीन प्रधानमंत्री मीर लाइक अली की सलाह पर तब कासिम राजवी नामक वकील को रजाकारों की सेना का मुखिया बनाया गया था। जब १९४८ में रजाकारों ने हिंदुओं का कत्लेआम शुरू किया तब भी पं. जवाहर लाल नेहरू मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के चलते हिंदुओं का खूनखराबा रजाकारों के हाथ चुपचाप देखते रहे। उन दिनों सरदार वल्लभभाई पटेल देश के गृहमंत्री थे, उन्होंने नेहरू को फटकारा और सेना और पुलिस के संयुक्त अभियान के तहत ‘ऑपरेशन पोलो’ का आदेश दिया। हिंदू जनता पहले से ही रजाकारों की बर्बरता से लड़ने को तैयार थी। जब रजाकार चुन-चुन कर काटे जाने लगे तब मुस्लिम अलगाववादियों का दिमाग ठिकाने पर आया और निजाम भी आत्मसमर्पण को मजबूर हुआ। रजाकारों के मुखिया कासिम राजवी को जेल में ठूंस दिया गया। जब उसने अपने गुनाहों से तौबा कर लिया तब उसे १९५७ में पाकिस्तान जाने की शर्त पर जेल से रिहा किया गया। राजवी के दुम दबाकर भागने के बाद एमआईएम ठंडी पड़ गई। उसका नियंत्रण अब्दुल वाहिद ओवैसी के हाथ आ गया।

 

ये है ओवैसी का अतीत...
अब्दुल वाहिद ओवैसी स्वयंभू सालार-ए-मिल्लत (कौम का कमांडर) कहलाता था। १९६० में उसने हैदराबाद महापालिका का चुनाव जीता। १९६२ में अब्दुल वाहिद ओवैसी का बेटा सुलतान सलाहुद्दीन ओवैसी पथरघट्टी विधानसभा सीट जीतकर आंध्र प्रदेश विधानसभा पहुंचा। १९६७ में वह चारमीनार से और १९७२ में यकूतपुरा से विधानसभा पहुंचा। १९७४-७५ में सुलतान सलाहुद्दीन ओवैसी एमआईएम का सर्वेसर्वा बन गया। १९८४ में सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी पहली बार हैदराबाद से लोकसभा चुनाव जीतने में कामयाब हुआ तब से २००४ तक वह लगातार सांसद रहा। २००४ में उसने अपनी जगह अपने बेटे असदुद्दीन ओवैसी को हैदराबाद से लोकसभा प्रत्याशी बनाया। २९ सितंबर २००८ को सुलतान सलाहुद्दीन के इंतकाल के बाद उसका बड़ा बेटा असदुद्दीन एमआईएम का प्रमुख बन गया। १९९० के दशक में एमआईएम में फूट पड़ी थी। ओवैसी परिवार के खिलाफ एमआईएम के चंद्रगुट्टा के विधायक अमानुल्ला खान ने बगावत कर दी तो १९९९ में अकबरुद्दीन ओवैसी को उसके खिलाफ उतार कर ओवैसी परिवार ने उसे परास्त किया था। हैदराबाद की महापालिका पर भी एमआईएम का कब्जा है और हैदराबाद का महापौर एमआईएम का मोहम्मद माजिद हुसैन है। एमआईएम की दहशत के चलते बीते कई वर्षों से हैदराबाद में रामनवमी के जुलूस को राज्य सरकार अनुमति नहीं दे रही। चारमीनार के निकट भाग्यलक्ष्मी मंदिर जो कि ३०० साल पुराना ऐतिहासिक मंदिर है और जिसके नाम पर हैदराबाद पहले भाग्यनगर के रूप में जाना जाता था, के गुबंद का निर्माण रोका गया।

 

औवेसी के सामने कांग्रेस भीगी बिल्ली!
आंध्रप्रदेश विधानसभा में एमआईएम के केवल ७ विधायक हैं पर उनकी दबंगई से कांग्रेस की सरकार कांपती है। अकबरुद्दीन ओवैसी माफिया गतिविधियों और हिंदूद्रोही वक्तव्यों के लिए कुख्यात है। २००७ में इसी अकबरुद्दीन ने ऐलान किया था कि यदि सलमान रश्दी या तस्लीमा नसरीन कभी हैदराबाद आए तो वह उनके सिर कलम कर लेगा। तस्लीमा नसरीन पर एमआईएम के कार्यकर्ताओं ने हमले की योजना भी बनाई थी, पर आज दिन तक आंध्र की कांग्रेस सरकार ने अकबरुद्दीन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। २०११ में कुरनूल में एमआईएम की एक रैली में इसी अकबरुद्दीन ने आंध्र के विधायकों को काफिर तथा आंध्र की विधानसभा को कुप्रâस्तान कह कर अपमानित किया था, पर किसी आंध्र के विधायक ने अकबरुद्दीन पर विशेषाधिकार हनन का मामला चलाने की भी हिम्मत नहीं जुटाई। इसी रैली में उसने पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंहराव को कातिल, दरिंदा, बेईमान, धोखेबाज और चोर जैसी गालियां देकर कहा था -‘अगर राव मरा नहीं होता तो मैं उसे अपने हाथों से मार डालता।’ अप्रैल २०१२ में अकबरुद्दीन ने हरामीपने की हद पार करते हुए हिंदुओं के प्रभु राम और उनकी मां कौशल्या के लिए ऐसे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया जिसे सुनकर उस सूअर के पिल्ले की खाल खींच लेना ही एकमेव दंड बचता है।

 

अगस्त २०१२ में इसी अकबरुद्दीन ओवैसी ने आंध्र पुलिस को ‘हिजड़ों की फौज’ करार दिया था, तब भी इस ‘लंडूरे’ के खिलाफ आंध्र पुलिस का आत्म सम्मान नहीं जागृत हुआ। उस समय भी ओवैसी ने चुनौती दी थी कि पुलिस और हिंदुओं में मुसलमानों से लड़ने की ताकत नहीं। बीते माह ८ दिसंबर २०१२ को इसी हरामपिल्ले ने फिर जहर उगला- ‘यह भाग्यलक्ष्मी कौन है और वहां बैठ कर क्या कर रही है? यह हिंदुओं का नया देवता कौन है, मैंने तो इसका नाम पहले कभी नहीं सुना। इतनी जोर से नारा लगाओ कि उनका भाग्य कांप जाए और लक्ष्मी गिर पड़े।’ अकबरुद्दीन ने जब यह हरामपंथी वाला बयान दिया तब मुस्लिमों की उन्मादी भीड़ ने ‘अल्लाह ओ अकबर’ का गगनभेदी नारा लगाया। उसके बाद उसने २४ दिसंबर को आदिलाबाद में हजारों मुसलमानों की मौजूदगी में १०० करोड़ हिंदुओं के १५ मिनट में खात्मे की कूवत का ऐलान किया। नरेंद्र मोदी को फांसी पर लटकाने की मांग की। सरकार मुस्लिम वोट बैंक के लिए चुप्पी साधे पड़ी है। सरकार हिंदुओं के सहनशीलता का इम्तहान ले रही है। यदि अकबरुद्दीन पर कार्रवाई नहीं हुई और हिंदुओं का माथा भड़का तो उसकी ऐसी दुर्दशा होगी कि उसके पूर्वज भी कब्र से निकल कर अपने गुनाहों के लिए तौबा करेंगे।

हिंदुस्तान की कसाबों की फेकटरी- (एइएमइएम) लगभग 80 वर्ष पुराना संगठन - ओवेशी का इतिहास

▐ हिंदुस्तान की कसाबों की फेकटरी डालनेवला ओवेशी का इतिहास ♠

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एइएमइएम) लगभग 80 वर्ष पुराना संगठन है जिसकी शुरुआत एक धार्मिक और सामाजिक संस्था के रूप में हुई थी लेकिन बाद में वो एक ऐसी राजनैतिक शक्ति बन गई जिस का नाम हैदराबाद के इतिहास का एक अटूट हिस्सा बन गया है.

ƪJugal Eguru

▐ हिंदुस्तान की कसाबों की फेकटरी डालनेवला ओवेशी का इतिहास ♠
भाग-1 ..... © Jugal Eguru™
[सोर्स बीबीसी- विकिपेडिया - डबल्यूएसजे - ब्रिटिश लाइब्रेरी आर्काइव्स]

▐ जिसकी शुरुआत एक धार्मिक और सामाजिक संस्था के रूप में हुई थी वो है ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एइएमइएम) लगभग 80 वर्ष पुराना संगठन है ! लेकिन बाद में वो एक ऐसी पोलिटिकल पावर बन गई जिस नाम का हैदराबाद के इतिहास गवाह है.

▐1928 म...ें नवाब महमूद नवाज़ खान के हाथों स्थापना से लेकर 1948 तक जबकि यह संगठन हैदराबाद को एक अलग मुस्लिम राज्य बनाए रखने की वकालत करता था. सरदार पटेल को सैनी बल इसी लिए इस्तेमाल करना पड़ा था ! और उस निझाम का बेकिंग बनके येही सब खड़े थे ! उस पर 1948 में हैदराबाद राज्य के भारत में विलय के बाद भारत सरकार ने प्रतिबन्ध लगा दिया था.

▐ 1957 में इस पार्टी बनके शुरू हुआ तब नाम में "ऑल इंडिया" जोड़ा और साथ ही अपने संविधान को बदला. कासिम राजवी ने, जो हैदराबाद राज्य के विरुद्ध भारत सरकार की कारवाई के समय मजलिस के अध्यक्ष थे और गिरफ्तार कर लिए गए थे, कासिम राजवी पाकिस्तान चले जाने से पहले इस पार्टी की बागडोर उस समय के एक मशहूर वकील अब्दुल वहाद ओवैसी के हवाले कर गए थे.

▐ 50 सालो मे धीरे धीरे कॉंग्रेस की तरह पारिवारिक परंपरा रूप .... इस संगठन पर ओवेशी परिवार हावी हो गया है !अब्दुल वाहेद के बाद सलाहुद्दीन ओवैसी उसके अध्यक्ष बने और अब उनके पुत्र असदुद्दीन ओवैसी उस के अध्यक्ष और सांसद हैं जब उनके छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी विधान सभा में पार्टी के नेता हैं. विधान सभा में उस के सदस्यों की संख्या बढ़ कर 7 हो गई है, विधान परिषद में उस के दो सदस्य हैं. हैदराबाद लोक सभा की सीट पर 1984 से उसी का कब्ज़ा है और इस समय हैदराबाद के मेयर भी इसी पार्टी के है.

▐ एइएमइएम को आम तौर पर मुस्लिम राजनैतिक संगठन या मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है और हैदराबाद के मुसलमान बड़ी हद तक इसी पार्टी का समर्थन करते रहे हैं हालांकि खुद समुदाय के अन्दर से कई बार उस के विरुद्ध भी हुए है. जहाँ तक ओवैसी परिवार का सवाल है उस के हाथ में पार्टी की बाग़ डोर उस समय आई जब 1957 में इस संगठन पर से प्रतिबंध हटाया गया.

▐ पोलिटिकल पावर के साथ साथ ओवैसी परिवार के साधन और संपत्ति में भी ज़बरदस्त वृद्धि हुई है जिसमें एक मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज, कई दूसरे कालेज और दो अस्पताल भी शामिल हैं ! जो बिना कॉंग्रेस की रहमो नजर और मुस्लिम ब्रदरहुड नामक फंडिंग संस्था पोसिबल ही नहीं था !
▬ जिस तरह पाकिस्तान मे सोशियल मीडिया गरम है ....! इस की गिरफतारी को लेकर की " भाई को पुलिस हाथ तो नहीं लगाएगी ना ? भाई को गिरफ्तार कर के अब ये ******* क्या करेंगे आगे ? " तो इस हिसाब से वहा का पैसा और दाऊद की अमीरीयत के जलवे भी हो शकते है !

▐ पहला चुनाव जीते 1960 में - सलाहुद्दीन ओवैसी हैदराबाद नगर पालिका के लिए चुने गए और फिर दो वर्ष बाद वो विधान सभा के सदस्य बने तब से मजलिस की शक्ति लगातार बढती गई..... और आज यहाँ तक जा पहुंचे है की लगाने को कसाब पे लगाई देशद्रोह की कार्यवाही भी चल शक्ति है पर ....
कानून = कॉंग्रेस ...................

इस परिवार और मजलिस के नेताओं पर यह आरोप लगते रहे हैं की वो अपने भड़काओ भाषणों से हैदराबाद में साम्प्रदायिक तनाव को बढ़ावा देते रहे हैं. लेकिन दूसरी और मजलिस के समर्थक उसे भारतीय जनता पार्टी और दूसरे हिन्दू संगठनों का जवाब देने वाली शक्ति के रूप में देखते हैं.

राजनैतिक शक्ति के साथ साथ ओवैसी परिवार के साधन और संपत्ति में भी ज़बरदस्त वृद्धि हुई है जिसमें एक मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज, कई दूसरे कालेज और दो अस्पताल भी शामिल हैं.

एइएमइएम ने अपनी पहली चुनावी जीत 1960 में दर्ज की जब की सलाहुद्दीन ओवैसी हैदराबाद नगर पालिका के लिए चुने गए और फिर दो वर्ष बाद वो विधान सभा के सदस्य बने तब से मजलिस की शक्ति लगातार बढती गई.

सांप्रदायिकता का आरोप

बढ़ती हुई लोकप्रियता के साथ साथ सलाहुद्दीन ओवैसी "सलार-ए-मिल्लत" (मुसलमानों के नेता) के नाम से मशहूर हुए. वर्ष 1984 में वो पहली बार हैदराबाद से लोक सभा के लिए चुने गए साथ ही विधान सभा में भी उस के सदस्यों की संख्या बढती गई हालाँकि कई बार इस पार्टी पर एक सांप्रदायिक दल होने के आरोप लगे लेकिन आंध्र प्रदेश की बड़ी राजनैतिक पार्टिया कांग्रेस और तेलुगुदेसम दोनों ने अलग अलग समय पर उससे गठबंधन बनाए रखा.

दिलचस्प बात यह है की हैदराबाद नगरपालिका में यह गठबंधन अभी भी जारी है और कांग्रेस के समर्थन से ही मजलिस को मेयर का पद मिला है.

 मजलिस के नेता अकबरुद्दीन ओवैसी की गिरफ़्तारी के विरुद्ध हैदराबाद में बंद का एक दृश्य

मजलिस के नेता अकबरुद्दीन ओवैसी की गिरफ़्तारी के विरुद्ध हैदराबाद में बंद का एक दृश्य

2009 के चुनाव में एइएमइएम ने विधान सभा की सात सीटें जीतीं जो की उसे अपने इतिहास में मिलने वाली सब से ज्यादा सीटें थीं. कांग्रेस के साथ उस की लगभग 12 वर्ष से चली आ रही दोस्ती में दो महीने पहले उस समय अचानक दरार पड़ गई जब चारमीनार के निकट एक मंदिर के निर्माण के विषय ने एक विस्फोटक मोड़ ले लिया.

मजलिस ने कांग्रेस सरकार पर मुस्लिम-विरोधी नीतियां अपनाने का आरोप लगाया और उस से अपना समर्थन वापस ले लिया. अकबरुद्दीन ओवैसी के तथाकथित भाषण को लेकर जो हंगामा खड़ा हुआ है और जिस तरह उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेज गया है उसे कांग्रेस और मजलिस के टकराव के परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है.

अधिकतर हैदराबाद तक सीमित मजलिस अब अपना प्रभाव आंध्र प्रदेश के दूसरे जिलों और पडोसी राज्यों महाराष्ट्र और कर्नाटक तक फैलाने की कोशिश कर रही है.

हाल ही में उस ने महाराष्ट्र के नांदेड़ नगर पालिका में 11 सीटें जीत कर हलचल मचा दी है. आंध्र प्रदेश में कांग्रेस इस संभावना से परेशान है कि 2014 के चुनाव में एइएमइएम जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस के साथ हाथ मिला सकती है. अकबरुद्दीन ओवैसी की गिरफ्तारी के बाद तो मजलिस और कांग्रेस के बीच किसी समझौते की सम्भावना नहीं रह गई.