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Sunday, October 28, 2012

इलेक्शन कमीशन या फिर कॉंग्रेस का ही मीशन !

इलेक्शन कमीशन या फिर कॉंग्रेस का ही मीशन !

पेड न्यूज के दोषी अमर उजाला और जी-न्यूज को को सम्मानित किया है इलेक्शन कमीशन ने ! जैसा तरह कॉंग्रेस का मीशन रहा है की हर घोटाले बाज की पदोन्नति कर देते है ! तब अब ये चुनाव आयोग भी ऐसे महाभियोग से बच नहीं पाया !

लोकसभा चुनाव के दौरान पेड न्यूज का कोराबार करने के दोषी करार दिये गये अमर उजाला को अब देश का इलेक्शन कमीशन लोकतंत्र को मजबूत करनेवाली पत्रकारिता के पुरस्कार से पुरस्कृत करेगा. वह भी ऐसे वक्त में जब एक तरफ पेड न्यूज पर नजर रखने के लिए नयी गाइडलाइन तैयार की जा रही हैं वहीं प्रेस परिषद द्वारा दोषी करार दिये गये अखबार को जनता को जागरुक के लिए पुरस्कृत किया  है.

इलेक्शन कमीशन ने इसी साल 23 जनवरी को घोषणा किया था कि हर साल मतदाता दिवस पर वह ऐसे समाचार माध्यमों या संस्थाओं को पुरस्कृत करेगा जो मतदाताओं को जागरूक करने का काम करते हैं. यह पुरस्कार मतदाता जागरूकता दिवस 23 जनवरी को दिया जाएगा.  इस साल चुनाव आयोग ने जिन दो मीडिया घरानों को यह पुरस्कार देने के लिए चुना उसमें एक जी न्यूज है तो दूसरा अमर उजाला है. इन दोनों को यह पुरस्कार उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान की गई रिपोर्टिंग के लिए पुरस्कृत किया जाएगा.

चुनाव आयोग ने अपना ही साल दो साल पुराना रिकार्ड चेक नहीं किया जब इसी अमर उजाला के खिलाफ चुनाव आयोग में भी शिकायत की गई थी कि उसने लोकसभा चुनाव के दौरान 2009 में एक उम्मीदवार से खबर छापने के लिए पैसे की मांग की थी. उस वक्त योगेन्द्र कुमार नामक एक प्रत्याशी ने चुनाव आयोग और प्रेस परिषद से दो अखबारों की शिकायत थी. इसमें एक दैनिक जागरण था और दूसरा अमर उजाला. उस उम्मीदवार की शिकायत पर प्रेस परिषद ने जांच की और फैसला भी सुनाया था. प्रेस परिषद ने अमर उजाला को पेड न्यूज का दोषी पाया था. अब उसी अमर उजाला को चुनाव आयोग इस बात के लिए पुरस्कृत कर रहा है, कि चुनाव के दौरान मतदाताओं को जागरुक करने के लिए इस अखबार ने बेहतरीन काम किया है.

और जी-न्यूज भी आज खुद नवीन जीदाल के रीवर्स स्टींग से आरोपो के घेरे मे है ! अब तक लगता था की सिर्फ टीवी चेनल ही बीके न्यूझ देते है ! लेकिन मेरा एक साल पहले का एक गुजराती लेख , सार्थक होता दिख रहा है की यह चेनल का दूषण अब प्रिंट मीडिया मे भी घुस गया है ! अब बात ये सोचनेवाली है की गुजरात मे जिस तरह आर्थिक हेर फेर को आचार संहिता के दायरे मे ला कर जिस तरह सामान्य व्यापारी गण और आम इंसान को परेशान कर रहा है तो उसकी निष्पक्षता पर सवाल लाजमी है ! अभी पीछले हफ्ते ही एक सोनी व्यापारी की एक किलो चांदी आचार समहीता के नाम पर जप्त कर ली थी ! गुजरात मे इतनी समृद्धता है की ज़्यादातर व्यापारी के जेब से ही 2-3 लाख यूही निकल जाएँगे ! तो 2 लाख की रकम की हेरफेर को आचार संहिता के दायरे मे ला कर आखिर चुनाव आयोग गुजरात और गेर कोंग्रेसी राज्यो मे ही क्यूँ इतनी सख्ती से पेश आ रहा है ! क्या इसमे भी कोई पैड आयोग का मामला है ?

सवाल यह है कि ऐसे वक्त में जब चुनाव आयोग खुद पेड न्यूज को रोकने के लिए सख्त गाइडलाइन बना रहा है तब दागदार छवि वाले अखबारों को पुरस्कार करके वह कौन सी परंपरा कायम करना चाह रहा है?

Friday, October 26, 2012

केजरीवाल के अभियान - भारत की अर्थव्यवस्था बिगाड़ रहे है ![ जरूर पढे नग्न सत्य]केजरीवाल की चियरगर्ल्स किसके जनानखाने से बरामद होती है?


फोर्ड फाउंडेशन’ का इतिहास रहा है कि वह अमेरिकी हितों के लिए काम करने वाली संस्थाओं और व्यक्तिओं को प्रायोजित करती है।
‘टीम केजरीवाल’ का दावा है कि भारत के मौजूदा सभी राजनीतिक दल भ्रष्ट हैं इसलिए उनकी टीम अब स्वयं राजनीतिक विकल्प पेश कर भ्रष्टाचार को नेस्तानाबूद करेगी। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि भ्रष्टाचार पर नियंत्रण आवश्यक है, पर क्या भ्रष्टाचार का खात्मा करने में ‘टीम केजरीवाल’समर्थ है?
‘टीम केजरीवाल’ पर कालिख: पखवाड़े भर में केजरीवाल ने राजनीति से जुड़े तीन लोगों पर आरोप लगाए और इसी दौरान उन्हें खुद इस मुद्दे पर रक्षात्मक रवैया अपनाने को मजबूर होकर अपनी ही टीम के तीन प्रमुख सदस्यों प्रशांत भूषण, अंजली दमानिया और मयंक गांधी पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए.पी. शाह की अध्यक्षता में त्रिसदस्यीय अंतर्गत लोकपाल गठित करना पड़ा। अभी न्यायमूर्ति ए.पी. शाह ने जांच शुरू भी नहीं की थी कि तीन सदस्यीय लोकपाल गठित करने का फैसला करने वाले अरविंद केजरीवाल पर ही आरोप उछलने लगे। आरोप है कि केजरीवाल ‘कबीर’ नामक जिस एनजीओ से जुड़े हैं उसे अमेरिका के फोर्ड फाउंडेशन से सन् 2005 में 1,72ए000 अमेरिकी डॉलर तथा 2009 में 1,17,000 अमेरिकी डॉलर की रकम चंदे के तौर पर प्राप्त हुई है। तमाम राजनीतिक दल केजरीवाल के अभियान को अमेरिकी और यूरोपीय संस्थाओं द्वारा पोषित होने का आरोप लगाते रहे हैं। ब्रिक (ब्राजील, रूस, चीन और भारत) समूह द्वारा 2010 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक से हटकर अपने समूह की नई बैंक गठित करने की घोषणा के बाद इन देशों में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन छिड़े। परिणामस्वरूप चारों देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर चोट लगी, चारों देशों की मुद्रा का अवमूल्यन हुआ और चारों देशों में राजनीतिक वर्ग के खिलाफ अविश्वास का माहौल बना। ‘फोर्ड फाउंडेशन’ का इतिहास रहा है कि वह अमेरिकी हितों के लिए काम करने वाली संस्थाओं और व्यक्तिओं को प्रायोजित करती है।
सब चंदे का खेल: ‘टीम अण्णा’ से मिलकर जब 2011 में डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने जनलोकपाल विधेयक प्रारूप समिति का गठन किया था तब केजरीवाल, किरण बेदी और अण्णा हजारे लोकपाल पद पर नियुक्ति के लिए पात्र व्यक्तियों के मापदंड में मैगासेस पुरस्कार प्राप्त व्यकित का आग्रह रख रहे थे। सनद रहे कि ये सब मैगासेस पुरस्कार से नवाजे चुके हैं। आम आदमी इस तथ्य से अपरिचित है कि मैगासेस पुरस्कार का एक प्रमुख प्रायोजक ‘फोर्ड फाउंडेशन’ है। जब अण्णा हजारे को अगस्त 2011 में सरकार नई दिल्ली में अनशन करने की अनुमति नहीं दे रही थी तब अमेरिकी दूतावास भी हजारे के समर्थन में बयानबाजी कर रहा था। केजरीवाल हर राजनीतिक दल और संस्था से पारदर्शिता की अपेक्षा करते हैं, पर उनकी संस्था को दान देने वाली संस्थाओं और व्यक्तियों की सूची आज दिन तक ‘कबीर’ संस्था की बेवसाइट पर क्यों उपलब्ध नहीं है? अमेरिका से संचालित एक एनजीओ है ‘आवाज’। इस एनजीओ ने लीबिया, ट्यूनीशिया, इजिप्त और सीरिया के सत्ताविरोधी आंदोलन की फंडिंग और सोशल मीडिया के माध्यम से नेटवर्किंग और प्रचार किया। ‘आवाज’ के रिकी पटेल और केजरीवाल ने संबंधों के बारे में बीते डेढ़ वर्षों में जब भी सवाल पूछा गया है ‘टीम अण्णा’ और ‘टीम केजरीवाल’ ने जवाब देने से कन्नी काटी है।
केजरीवाल का ‘भ्रष्टाचार’: केजरीवाल भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी के तौर पर अपना पूरा कार्यकाल दिल्ली में बिता चुके हैं और उनकी पत्नी आज भी दिल्ली में पोस्टिंग का लुत्फ ले रही हैं। दिल्ली या मुंबई में बिना रसूख के लंबी अवधि तक पोस्टिंग नहीं प्राप्त की जा सकती। आर्थिक न सही पर नैतिक तौर पर तो केजरीवाल पति-पत्नी साफ तौर पर भ्रष्ट नजर आते हैं। केजरीवाल सरकारी सेवा में रहते हुए अमेरिकी संस्था से अपने एनजीओ के लिए दान प्राप्त करते हैं, सो यह उनका आर्थिक भ्रष्टाचार ही माना जाएगा। अण्णा हजारे जब केजरीवाल के अभियान से भागने लगे तो उन्हें मनाने के लिए केजरीवाल 2 करोड़ रुपये का चेक लेकर गए थे। हजारे के साथी निजी वार्ता में आरोप लगाते हैं कि अनशन के दौरान केजरीवाल के चेलों ने लगभग 20 करोड़ रुपए चंदे के तौर पर जमा किए। जब इस राशि को लेकर टीम अण्णा हजारे के अंदरखाने में कहा-सुनी शुरू हुई तो केजरीवाल जमा राशि का 10 फीसदी हिस्सा लेकर अण्णा हजारे को लुभाने पहुंचे जिसे स्वीकारने से अण्णा ने साफ मना कर दिया। सो, स्पष्ट है कि केजरीवाल के हाथ कोयला दलाली से भले ही न काले हों पर उनका दामन कहीं से भी पाक-साफ नहीं है। रहा निवृत्त न्यायाधीशों से जांच कराने का ढोंग तो तमाम सरकारों बीते 65 वर्षों में ऐसी हजारों समितियां नियुक्त कर भ्रष्टाचारियों को ‘क्लीनचिट’ दिलाती रही हैं। ऐसे में केजरीवाल की भावी पार्टी भ्रष्टाचार से मुक्त होगी यह सोचना भी एक प्रकार का बौद्धिक भ्रष्टाचार होगा। ग्लोब व्यापी स्थिति यही है कि अमेरिका-यूरोप के विकसित देश हों या अफ्रीका-एशिया के विकासशील देश, हर नया शासक पिछले शासकों के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करता हुआ सत्ता संभालता है और कालांतर में पूर्ववर्ती शासक जितना ही अथवा उससे भी कहीं अधिक भ्रष्टाचार स्वयं कर दिखाता है।
भ्रष्टाचार विरोधी झंडाबरदार, अब भ्रष्ट: भारत के संदर्भ में देखें तो 1977 की जनता पार्टी सरकार इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी के भ्रष्टाचार की जांच से शुरू हुई थी और जनता के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के पुत्र कांति देसाई के भ्रष्टाचार के आरोपों के साथ विदा हुई। आज कौन मानेगा कि जेपी (जय प्रकाश नारायणद्ध और वीपी (विश्वनाथ प्रताप सिंह) के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों के झंडाबरदार आज के भ्रष्टाचार शिरोमणि मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव जैसे लोग रहे हैं। वीपी सिंह, चंद्रशेखर, देवेगौड़ा और गुजराल की समाजवादी सरकारें कहीं से भी कांग्रेस सरकारों से कम भ्रष्ट नहीं थी। ‘सबको देखा बार-बार, हमको देखें एक बार’ का नारा लगाती हुई अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार आई थी। उसे भी भ्रष्ट जयललिता के कंधे पर चढ़कर आना पड़ा और भ्रष्टाचार के आरोप झेलते हुए जाना पड़ा। कांग्रेस का इतिहास पं. जवाहरलाल नेहरू के सरकार में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन छेड़ने वाले दामाद फिरोज गांधी से शुरू होकर भ्रष्टाचारी दामाद रॉबर्ट वड्रा तक पहुंचा है। ऐसे में क्या भ्रष्टाचार हमारी व्यवस्था को लगा लाइलाज रोग मान लिया जाए? सत्ता में भ्रष्टाचार युग-युगांतर से चला आ रहा है तभी तो कौटिल्य ने ईसा पूर्व लिखे अपने ‘अर्थशास्त्र’ में राजा को सावधान किया है कि जिस भी अधिकारी के हाथ से होकर राजा की दौलत गुजरती है, वह उसमें से थोड़ी-सी खुद भोग लेने का लोभ संवरण नहीं कर पाता। इस तरह की चोरी अंततः राजा और राज्य दोनों को गरीब बनाती है इसलिए इसे रोकने का हरसंभव प्रयास किया जाना चाहिए। कौटिल्य के काल से चंद्रशेखर की सरकार तक हमारे देश में सत्ता संस्थानों में भ्रष्टाचार मौजूद जरूर था, पर उसका संस्थानीकरण नहीं हुआ था। संजय गांधी पर 1970 के दशक में भ्रष्टाचार के आरोप लगे। ‘किस्सा कुर्सी का’ जैसा मशहूर मुकद्मा चला, पर उन आरोपों को तमाम सरकारी प्रयास के बावजूद साबित नहीं किया जा सका।
भ्रष्टाचार को शिष्टाचार का स्वरूप: नब्बे के दशक के प्रारंभ तक भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़े जाने पर समाज और बिरादरी में थू-थू होने की आशंका बरकरार रहती थी। 1991 में डॉ. मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण के साथ जो बेतहाशा बाजारवाद लाया उससे भ्रष्टाचार को शिष्टाचार का स्वरूप प्राप्त हो गया। मनमोहन सिंह ने अमेरिका से एक ऐसी प्रणाली आयात कर ली जिसमें भ्रष्टाचार और शोषण की रोकथाम के लिए कायदे-कानून तो मौजूद हैं लेकिन उसमें शोषण और रिश्वतखोरी को कभी सच्चे मन से अनैतिक करार नहीं दिया गया। अमेरिकी प्रणाली भ्रष्टाचार को कितना आत्मसात किए बैठी है उसे समझने के लिए ‘दि रॉबर बैरेन्स ऑफ अमेरिका’ पढ़ने से पर्याप्त दृष्टांत सामने आ जाते हैं कि कैसे बाजारवाद के चलते अच्छे से अच्छे नेताओं ने पूंजीपतियों के प्रभाव में आकर भ्रष्टाचार किए। अमेरिकी व्यवस्था में पूंजीपति प्रायोजित भ्रष्टाचार बीते दो शतकों से व्याप्त है। उन्नीसवीं सदी के दूसरे दशक में जनरल जैक्सन ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ही एक नया दल ‘डेमोक्रेट’ बनाया। उस समय भी अमेरिका में कितना भ्रष्टाचार था इसका अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि 1824 में राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत जाने के बावजूद जनरल जैक्सन को प्रतिनिधि सभा ने हारा हुआ घोषित कर दिया। 1824 में जैक्सन दुबारा जब जीते तो उन्हें सत्ता मिली पर वे भ्रष्टाचार का खात्मा नहीं कर सके। 1970 के दशक में भारत की अधिकांश आबादी की ईमानदारी की गारंटी ली जा सकती थी, परंतु अमेरिका में तब तक ईमानदारी का लोप हो चुका था। 1970 के दशक में एक अमेरिकी पत्रिका ‘सायकोलॉजी टुडे’ ने पाठकों से पूछा कि अगर आपको 10 लाख डॉलर दिए जाएं तो बायबल के 10 निषेधों में से किस-किस को आप तोड़ेंगे? जवाब पाया गया कि तमाम अपराध करने के लिए अधिकांश लोग राजी थे। 1980 के दशक तक साम्यवादी और समाजवादी देशों ने बाजारवादी भोगवाद को अपने देशों में नहीं घुसने दिया था। 1980 के दशक में दूरसंचार क्रांति टेलीविजन और कंप्यूटर के माध्यम से इन देशों में घुसी जिसने बाजारवाद के वैभव को प्रचारित कर इन देशों में असंतोष की आग सुलगा दी। ब्रेजनेव के शासनकाल में सोवियत संघ के नागरिकों को विदेशी सैलानियों से घुलने-मिलने तक की इजाजत नहीं थी।
मनमोहन के रूसी संस्करण येल्तसिन: गोर्बाचेव ने ‘ग्लासनोस्त’ और ‘पेरेस्त्रोइका’ लाकर उदारवाद दिखाया तो सोवियत संघ में अवैध मुद्रा परिवर्तन और वेश्या व्यवसाय खुलकर शुरू हो गया। अमेरिकोन्मुखी प्रणाली ने गोर्बाचेव को नोबल शांति पुरस्कार दिला सत्ता से बाहर कर वहां मनमोहन सिंह के रूसी संस्करण येल्तसिन को सत्ता में स्थापित किया। अब रूसी कम्युनिस्ट सीधे क्रिमिनल बन गए और उनकी खुफिया एजेंसी केजीबी के अफसर माफिया। पुतिन के काल तक सोवियत संघ से बिखरा हर देश भ्रष्टाचार के निर्बाध संस्थानीकरण से बिलख रहा है। यह सारा प्रभाव अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियां और उनके द्वारा प्रायोजित एनजीओ के चलते पड़ा है। भारत का मनमोहन काल भी सोवियत विघटन के समानांतर आया। चीन और ब्राजील पर भी अमेरिकी प्रभाव का यही परिणाम सप्रमाण पेश किया जा सकता है। अमेरिका और यूरोप के संदर्भ में खैरियत बस इतनी है कि वहां व्यक्तिगत स्तर के भ्रष्टाचार को रोकने का व्यापक प्रबंध है। वहां राजनीतिक दल पार्टी फंड के रूप में प्रतिष्ठित उद्योगों, व्यावसायों, व्यावसायिक समूहों और दलालों से तगड़ी रकम वसूल लेते हैं। उनका तर्क है कि आधुनिक चुनाव खर्च वहन करने के लिए ऐसा करना विधि सम्मत है। चूंकि वहां व्यक्तिगत भ्रष्टाचार के मामलों में दंड शीघ्र मिला सो उसे नियंत्रित किया जा सका। उन देशों को इस भ्रष्टाचार का भी सकारात्मक लाभ हुआ।
अमेरिका और यूरोप के लुटेरों ने दूसरे देशों की संपदा लूटी और अपने देश में विकास को गति दी, फिर भी उनका भ्रष्टाचार निंदित हुआ। भारत जैसे विकासशील देशों की स्थिति उलटी है यहां की शासक बिरादरी अपने ही गरीब भाइयों की संपदा लूट कर यूरोप में निवेश करती है। कांग्रेस और अन्य दलों के तमाम नेताओं पर इस तरह के आरोप लगे हैं। क्या टीम केजरीवाल इस लीक से हट पाएगी? कहावत है पूत के पांव पालने में दिखाई देते हैं। केजरीवाल जिस अंदाज में ‘आवाज’ और ‘फोर्ड फाउंडेशन’ से फंडिंग ले रहे हैं उससे कत्तई नहीं लगता कि सत्ता पाने पर वे राज दौलत भोगने के लोभ से बचेंगे। तब उनके अभियान को क्या कहा जाए? हमें तो उनकी टीम भ्रष्टाचार विरोधी ‘ट्वेंटी-ट्वेंटी’ के खेल में ‘चियरगर्ल्स’ से ज्यादा कुछ नजर नहीं आती। शाहरूख खान के आईपीएल टीम की एक चियरगर्ल पुणे में वेश्यावृत्ति में पकड़ी गई। देखना है केजरीवाल की चियरगर्ल्स किसके जनानखाने से बरामद होती है?

  •  आखरी आशा मोदी जी के गुजरात का नागरिक - जुगल पटेल [ईगुरु]║█║▌

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Thursday, October 25, 2012

मिडीया की भड़वागीरी आखिर सबूत के साथ सामने Φ !जिंदल के स्टिंग ऑपरेशन के मुख्‍य अंश

नवीन जिंदल के स्टिंग ऑपरेशन के मुख्‍य अंश

नई दिल्‍ली: कांग्रेस सांसद और देश के बड़े उद्योगपति नवीन जिंदल ने जी न्यूज चैनल पर कोयला घोटाले की खबर न चलाने के एवज में 100 करोड़ की रंगदारी मांगने का आरोप लगाया है. दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस में नवीन जिंदल ने जी न्यूज के संपादकों के साथ बातचीत का टेप जारी किया.

इस वीडियो में जी न्‍यूज़ के मैनेजिंग एडिटर सुधीर चौधरी और जी बिजनेस के संपादक समीर आहलूवालिया को जिंदल के अधिकारियों के साथ बातचीत करते हुए दिखाया गया है, जिसमें वे पैसों और कोयला घोटाले पर चर्चा कर रहे हैं.

हम यहां पर जी न्‍यूज़ और जिंदल के अधिकारियों के बीच बातचीत के कुछ अंश पेश कर रहे हैं:

समीर (जी टीवी): हर साल... 25 चार साल के लिए... हो सकता है कि हमारे कहने-सुनने में कुछ इधर-उधर हो गया हो.

समीर (जी टीवी): ये तो पहले से ही आराम से दिखाई जा रही है... अब दूसरा फेज़ यह है कि इसकी जो रिवर्स साइड है उसे भी हल्‍के तरीके से करेंगे. हमारे रिश्‍ते दोनों तरफ से दोनों के लिए फायदेमंद होने चाहिए.

सुधीर (जी टीवी): देखिए, एक तो ये है कि सबसे बड़ी सुरक्षा ये होती है कि इसके बाद कोई ऐसी चीज़ नहीं आएगी... अब इसके बाद कोई निगेटिव नहीं आएगा... इसके बाद कुछ नहीं आएगा... दूसरा ये है कि फिर सोचेंगे कि क्‍या, कैसे वो कराना है, कौन-सी चीज ऊपर डाली है, कौन सी नीचे डालनी है... क्‍योंकि हमारी कवरेज तो वैसे तो जारी रहेगे, क्‍योंकि कोयले पर तो हमारे पास कितनी सारी चीजें हैं... मतलब वो चलती रहेंगी.

सुधीर (जी टीवी): इसको हम जलदी से जल्‍दी कर लेते हैं, ताकि इससे हम खत्‍म हों और फिर जो आप बोल रहे हैं...

सुधीर (जी टीवी): फिर हम क्‍या करेंगे, फिर उस पर आप जो बोल रहे हो न... आगे का रोड मैप... फिर उस पर काम करना शुरू करेंगे.

सुधीर (जी टीवी): सबसे बड़ा फायदा जो है वो ये है कि इसके बाद कोई नुकसान नहीं होगा... मैं बता रहा हूं आपके वाले में जो सबसे नाजुक है उसमें आगे नुकसान हो सकता है... वो जो नुकसान है न वो रुक जाएगा.. मतलब आप मुसीबत में फंसने से बच जाएंगे...

समीर (जी टीवी): मैं आपसे कुछ अलग या अनोखा नहीं मांग रहा हूं. आप इस पर गौर करें, यह दरअसल दोनों के लिए फायदेमंद है. आप जितना मांग सकते हैं मैं उससे भी ज्‍यादा दूंगा. यह हमेशा ऐसे ही चलेगा. यह भी एकतरफा नहीं होगा. मैं आपसे यही कहना चाहता हूं.

खबरें दबाने के लिए जी न्यूज मांग रहा था पैसा: जिंदल -

 खबरें दबाने के लिए जी न्यूज मांग रहा था पैसा: जिंदल

 

 

 

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विडियोः नवीन जिंदल ने जारी किए जी ब्लैकमेल के 'सबूत'

 

 

 

 

 

 

 

नई दिल्ली।। जिंदल स्टील के अध्यक्ष नवीन जिंदल ने गुरुवार को जी न्यूज तथा जी पर खबरें दबाने के लिए 100 करोड़ रुपये का विज्ञापन मांगने का आरोप लगाया है। कांग्रेस सांसद जिंदल ने जी न्यूज तथा जी बिजनेस के खिलाफ पुलिस में औपचारिक शिकायत दर्ज कराई है। इसके लिए उन्होंने एक स्टिंग ऑपरेशन का भी सहारा लिया। हालांकि, जी ग्रुप ने जिंदल के सारे दावों के बकवास करार दिया है।

जिंदल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि जी ग्रुप के सम्पादक सुधीर चौधरी ने हमारी टीम से कहा कि वह तब तक हमारे खिलाफ निगेटिव खबरें दिखाते रहेंगे, जब तक कि हम उन्हें सालाना 20 करोड़ रुपये का विज्ञापन देने पर सहमति नहीं जताते। जिंदल ने कहा कि पहले उन्होंने 20 करोड़ रुपये मांगे और फिर 100 करोड़ रुपये की मांग की।

जिंदल ने कहा कि मीडिया ग्रुप ने उनकी कम्पनी के खिलाफ कुछ समाचार दिखाए थे, जिसके बाद जिंदल स्टील की टीम ने चैनलों से बातचीत शुरू की थी।

कांग्रेस सांसद ने एक सीडी भी जारी की, जिसमें चौधरी को रुपये मांगते हुए दिखाया गया है। उन्होंने कहा कि उनकी कम्पनी पिछले 40 साल से कारोबार कर रही है, लेकिन उन्हें इस तरह पहले कभी ब्लैकमेल नहीं किया गया।

जिंदल के दावे पर जी न्यूज ने कहा है कि नवीन जिंदल ने सीडी मीडिया के सामने पेश कर हकीकत को बरगलाने की कोशिश की। उन्होंने झूठी सीडी पेश की है। उन्होंने पूरी सीडी नहीं दिखाई। दरअसल कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले में फंसे जिंदल जी न्यूज पर चल रही खबरों को रुकवाना चाहते थे और इसके लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार थे। वह लगातार जी न्यूज की टीम को फॉलो कर रहे थे और चाहते थे कि उनकी खबर रोक दी जाए। लेकिन, जी न्यूज ने उनके तमाम हथकंडों के बावजूद कोल ब्लॉक आंवटन से जुड़ी खबर का प्रसारण नहीं रोका।

 

नवीन जिंदल के जी न्यूज पर गंभीर आरोप


Jindal Steel

जिंदल स्टील एंड पावर के मालिक और कांग्रेस सांसद नवीन जिंदल ने न्यूज चैनल जी न्यूज पर खबर रोकने के बदले पैसे मांगने के आरोप लगाए हैं।

नवीन जिंदल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान एक सीडी रिलीज की जिसमें जी बिजनेस के संपादक समीर अहलूवालिया और जी न्यूज के संपादक सुधीर चौधरी को जिंदल ग्रुप के साथ पैसों की बात करते हुए दिखाया गया है।

नवीन जिंदल ने ये भी आरोप लगाया है कि जी न्यूज ने उन्हें पैसे नहीं देने पर कंपनी को बदनाम करने की धमकी भी दी थी। नवीन जिंदल का कहना है कि जी न्यूज ने खबर रोकने के लिए 100 करोड़ रुपये मांगे थे। इसके पहले नवीन जिंदल जी न्यूज और जी बिजनेस के खिलाफ एफआईआर भी कर चुके हैं।

जी न्यूज और जी बिजनेस ने इस खबर का खंडन किया है और कहा है कि नवीन जिंदल के लगाए गए सभी आरोप गलत हैं। बल्कि, जी न्यूज का कहना है कि जिंदल स्टील ने खबर रोकने के लिए उन्हें पैसे देने की पेशकश की थी लेकिन चैनल ने उनकी इस पेशकश को ठुकरा दिया।

जिंदल ने किया जी न्यूज का स्टिंग, ब्लैक मेलिंग का आरोप-देश - IBN Khabar

नई दिल्ली। कांग्रेस सांसद और उद्योगपति नवीन जिंदल ने कहा कि सितंबर से कोयले के आवंटन के मामले में जीटीवी हमारी कंपनी के खिलाफ गलत खबर दिखा रहा था। जब हमने न्यूज चैनल से बात करनी चाही तो हमसे 20 करोड़ रुपये मांगे गए। बाद में ये रकम बढ़ाकर सौ करोड़ कर दी गई।

नवीन जिंदल ने जी न्यूज के संपादक सुधीर चौधरी और जी बिजनेस के संपादक समीर आहलूवालिया पर आरोप लगाया कि उनसे 13, 17 और 19 सितंबर को कंपनी के लोगों की मीटिंग हुई जिसमें उनसे करोड़ों की ये रकम मांगी गई। चैनल ने इस बातचीत को बाकायदा रिकॉर्ड कर लिया और आज वो टेप प्रेस कांफ्रेंस में दिखाया।

जिंदल ने किया जी न्यूज का स्टिंग, ब्लैक मेलिंग का आरोप

 

वहीं इस बारे में जी न्यूज का कहना है कि ये सब चैनल को बदनाम करने की साजिश है। नवीन जिंदल ने उन्हें खरीदने की कोशिश की और नाकाम रहने पर ये साजिश रची। जबकि जिंदल के मुताबिक स्टिंग रोकने के लिए जी न्यूज ने उनसे 100 करोड़ रुपए मांगे गए और पैसे नहीं देन पर बदनाम करने की धमकी दी। इस बाबत दिल्ली पुलिस में उन्होंने एक केस दर्ज कराया है।

 

 

एक आखरी आशा मोदी जी के गुजरात का नागरिक - जुगल पटेल [ईगुरु]║█║▌

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