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Friday, September 7, 2012

मैं भारत का संविधान हूँ लाल किले से बोल रहा हूँ

 

मेरे वादे समता के है दीन दुखी से ममता के है , कोई भूखा नहीं रहे गा कोई आँसू नहीं बहेगा ॰ मेरा मन क्रंदन करता है जब कोई भूखा मरता है मै जब से आज़ाद हुआ हूँ और अधिक बर्बाद हुआ हूँ , मैं ऊपर से हारा भरा हूँ संसद मे सौ बार मरा हूँ मैं भारत का संविधान हूँ लाल किले से बोल रहा हूँ ,मैंने तो अधिकार दिये है धर्म कर्म संसार दिये है लेकिन तुमने अधिकारों का मुझमें लिखे उपचारों का ये कैसा उपयोग किया है सब नाजायज भोग किया है मेरा यूं अनुकरण किया है जैसे सीता हरण किया है मै भारत का ...........
आरक्षण को बढ़ा बढ़ा कर राज्य समता बाँट रहे है, निर्मम द्रौण एकल्वयों के रोज अंगूठे काट रहे है, मैंने तो समता सौंपी थी तुमने ध्वस्त व्यवस्था कर दी ,मैंने न्याय व्यवस्था दी थी ,तुमने नरक वयवस्था कर दी ,हर मंजिल थैली कर डाली गंगा भी मैली कर डाली, शान्ति व्यवस्था हास हो गयी विस्फोटों का भाष्य हो गयी आज अहिंसा वनवासी है कायरता के घर दासी है न्याय व्यवस्था भी रोती है गुंडो के घर पे सोती है बलिदानियों को गाली मिलती है गुंडो को ताली मिलती है मै भारत का ...........
मै चोटिल हूँ छत विछ्त हूँ ,मैंने ऐसा आघात सहा है जैसे घायल पड़ा जटायु पीड़ा से कराह रहा है, जिंदा हूँ या मरा पड़ा हूँ अपनी नब्ज़ टटोल रहा हूँ मै भारत का ......
मेरे बदकिस्मत लेखे है मैंने काले दिन देखे है दिल्ली धन की रजधानी चलचित्रों की पटरानी है उनसठ घंटे बंधक हो गयी पूरी नागरी गंधक हो गयी हिंसा गली गली देखी है मैंने रेल जली देखी है संसद पे हमला देखा है अक्षरधाम जला देखा है मै दंगो मे जला पड़ा हूँ आरक्षण से छला पड़ा हूँ मुझे भिखारी नाम मिला है खूनी नंदिग्राम मिला है माथे पे मजबूर लिखा है सीने पर सिंदूर लिखा है पूरा भारत आग हुआ है जलियाँवाला बाग हुआ है मै भारत का ............
जनता मौन साध बैठी है वर्दी की पड़ताल देख कर बच्चों के कंकाल देखा कर मेरे दिल पर क्या बीती है जिसमे संप्रभुता जीती है जनता हाथ बाँध बैठी है सत्ता मौन साध बैठी है चौखट पर आतंक खड़ा है दिल मे भय का डंक गड़ा है कोई खिड़की नहीं खोलता आँसू भी कुछ नहीं बोलता
संसद मेरा अपना दिल है तुमने चकनाचूर कर दिया राजनीति जो करते कम है नैतिकता का किसको गम है आरोपी हो गए उजाले मर्यादा है राम हवाले मेरे तन मन डाले छाले जब संसद मे नोट उछाले ,जो भी सत्ता मे आता है मेरी ही कसमें खाता है सब ने कसमों को तोड़ा है मुझको नंगा कर छोड़ा है दागी चेहरों वाली संसद चम्बल घाटी दिख रही है सांसदो की आवाजों मे हल्दीघाटी चीख रही है मेरा संसद से सड़कों तक चीरहरण जैसा होता है चक्रसुदर्शन धारी बोलो क्या कलियुग ऐसा होता है
मेरे तन मे अपमानों के भाले ऐसे गड़े हुए है जैसे शरशैयया पे भीष्म पितामह पड़े हुए है मुझको कपटी लोगो के मन का गोरखधंधा बना दिया है पट्टी बांधे माँ गांधारी जैसा अंधा बना दिया है
मेरे पहरेदारों ने पथ मे ऐसे बोये कांटे जैसे कोई बेटा बूढ़ी माँ को मार रहा हो चांटे ,मजहब के अंधे जुनून का मुझे तमाचा बना दिया है मुझको मामा शकुनि के चौसर का पाँसा बना दिया है छोटे कद के अवतारों ने मुझको बौना समझ लिया है अपनी अपनी खुदगरजी के लिए मुझे खिलौना समझ लिया है इतिहासों मे पढ़ के रोना क्यूँ खंडित भूगोल रहा हूँ मै भारत
मेरी धारा को मत मोड़ो मेरे संयम को मत तोड़ो चाहे मौसम शर्मिंदा है लोकतंत्र मुझसे जिंदा है मै टूटा तो सब टूटेगा जो कुछ है सब छूटेगा मेरी मौत तबाही देगी तुमको तानाशाही देगी आज़ादी जा भी सकती है पुनः गुलामी आ सकती है मै भारत
लेकिन अभी समय बाकी है सवा अरब हाथों का बल दो जिनसे मेरी रक्षा न हो ऐसे पहरेदार बदल दो जिनको मुझसे प्यार नहीं है वो मुझ पे भाषण मत देना जिनके दिल मे देश नहीं है उनको सिंहासन मत देना नेताओं के पाप पुण्य से मेरा वर्तमान मत आँको मै अखंडता का मंदिर हूँ मेरे अंतर्मन मे झाँको मै वैधानिक शिलालेख हूँ दल बदलू औज़ार नहीं और दलालों की मंडी का शेयर बाजार नहीं लाल किले पे जिस दिन मर्दानी भाषा मे बोला जाएगा मुझमे कितना बल होता है ये उस दिन तोला जाएगा मै जन मन गण की धड़कन हूँ मै खुद मे कमजोर नहीं हूँ चाँदी मे बिक जाने वाला मै कोठों का शोर नहीं हूँ झंझावातों से घबरा के झुकने वाला दौर नहीं हूँ ये डंके की चोट बता दो मै भारत हूँ कोई और नहीं हूँ पूरी दुनिया को समझा को दो दिल्ली हूँ लाहौर नहीं हूँ आतंकों से लड़ने वाला मुझको शक्तिमान बना लो मुझको अपना राम समझ कर जनता को हनुमान बना दो ,शायद नया खून जागेगा इसीलिए मैं खौल रहा हूँ मैं भारत का संविधान हूँ लाल किले से बोल रहा हूँ
................... डॉ हरी ओम पवार ...........................

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